उषा कविता - शमशेर बहादुर सिंह
जन्म -सन् 1911ई0 मृत्यु - सन् 1993ई0
देहरादून में जन्मे शमशेर बहादुर सिंह को मात्र 8-9 वर्श की
उम्र में माँ का चिरवियोग सहना पडा। 18 वर्श की उम्र में उनका विवाह हुआ मगर मात्र 6 वर्ष साथ निभाकर पत्नी भी टीबी से चल बसी। जीवन के
अभावों ने उनके कवित्व को दुर्बल नहीं बनाया बल्कि धारदार बनाया।
बिम्बधर्मी कवि के रूप में विख्यात शमशेर की कविता में
प्रगतिशील कवि की वैचारिकता तथा
प्रयोगधर्मी कवि की षिल्प विधा का अनुठा संगम मिलता हैं। कवि द्वारा रचित सौन्दर्य
के अनूठे चित्र पाठकों के मन को भाते हैं।
उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-
कुछ कविताएँ, कुछ और
कविताएँ, चुका भी नहीं हूँ मै, इतने पास अपने , बात बोलेगी तथा काल तुझसे होड है मेरी। उन्होंने उर्दू-हिन्दी कोष
का सम्पादन भी किया।
प्रस्तुत कविता उषा भोर के समय होने वाले सुर्योदय का अनूठा शब्द -चित्र है। सूर्यादय के दृष्यों को मनोहारी घरेलु बिम्बों में बदलकर कवि ने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। ये बिम्ब हमें गाँव की मोहक भोर एंव जीवन्त परिवेश का साक्षी बनाते हैं। भाशा, बिम्ब और लय-तीनों का मणिकांचन संयोग इस कविता में मिलता है। कवि प्रातःकालीन सूर्योदय का मूकद्रश्टा मात्र न बनकर भोर के जीवन्त परिवेष को जीवन के चिर परिचित बिम्बों में अभिव्यक्त कर सृष्टा के रूप का अहसास कराता है। राख से लीपा हुआ चैका, बहुत काली सिल, स्लेट या लाल खडिया चाक , ये हमारे सामान्य घरेलु परिवार के बिम्ब है, लेकिन इनमें अनूठा सौन्दर्य भी है।
उषा
शमशेर बहादुर सिंह
प्रात नभ था बहुत नीला
शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
ख्अभी गीला पड़ा है,
बहुत काली सिल जरा.से
लाल केसर से
कि जैसे धुल गयी हो
स्लेैट पर या लाल
खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और
जादू टटता है इस उषा का
अब
सूर्योदय हो रहा है।
व्याख्या- कवि कहता है कि प्रातःकाल का आकाष एक गहरे नीले रंग जैसा था। भोर होने पर वह प्रकाष के मेल से राख जैसे रंग का
हो गया । अब वह राख से लिपे फर्ष वाले किसी रसोईघर के समान लग रहा है। अभी अभी
लीपे जाने के कारण वह गीला है। गहरे नीले या काले आकाष में उषाकालीन लालिमा एसी लग
रही है मानों कोई बहुत काली सिल लाल केसर मिले पानी से धो दी गई हो। अथवा किसी ने
लाल रंग की खडिया या चाक को स्लेट पर मल पर दिया हो।
सूर्योदय
से पूर्व के आकाश के दृष्य को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे नीले जल में किसी का गौरा
और झिलमिलाता शरीर हिल रहा हो।
सूर्य
के उदय होते ही आकाश का यह उषा काल का जादू जैसा मोहक दृष्य अदृष्य हो जाता है।
सूर्य के प्रकाष में सारे रंग गायब हो जाते है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. भोर के
समय का आकाश है –
(क) काला (ख) नीला
(ग) लाल (घ) पीला (ख)
2. कवि ने
लाल केसर कहा है –
(क) केसर की क्यारी को (ख) लाल फूलों को
(ग) उषा की लालिमा, को (घ) सिल के रंग को (ग)
3. ‘उषा’ कविता
में कवि ने स्लेट कहा है –
(क) भोर के आकाश को (ख) धरती को
(ग) बच्चों के लिखने की स्लेट को (घ) चौके को (क)
4. कवि ने ‘नील जल
में ……………गौर झिलमिल देह’ में वर्णन किया है –
(क) हिलते हुए सरसों के फूलों का (ख) नीले जल में नहाती गोरी स्त्री का
(ग) नीले आकाश में छाए पीले प्रकाश का (घ) प्रात: के धुंधले प्रकाश में
दूर जलती आग का(ग)
5. ‘उषा’ कविता की
प्रमुख विशेषताएँ हैं –
(क) भोर के नभ का वर्णन (ख) अलंकार योजना
(ग) नवीन बिम्ब-योजना (घ) भाषा-शैली (ग)
6. ‘उषा’ कविता
में है –
(अ) सूर्योदय का वर्णन (ब) सूर्यास्त का वर्णन
(स) बादलों का शब्द-चित्र (द) सबेरे की लालिमा का वर्णन (द)
7. ‘जादू टूटता है उषा का’
में जादू का अर्थ है –
(अ) तमाशा (ब) खेल
(स) आकर्षण (द) भोर का दृश्य (स)
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
उत्तर: ‘उषा’ कविता के रचयिता कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं।
प्रश्न 2. ‘उषा’ कविता में कवि ने किसका
वर्णन किया है?
उत्तर: ‘उषा’ कविता में कवि ने भोर के आकाश का वर्णन किया है।
प्रश्न 3. प्रातःकालीन आकाश का रंग कवि को कैसा लगा है?
उत्तर: प्रात:कालीन आकाश का रंग कवि को बहुत नीले शंख जैसा लगा है।
प्रश्न 4. ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कवि ने किसे बताया है?
उत्तर: कवि ने राख से लीपा चौका, भोर के समय के आकाश को बताया है।
प्रश्न 5. ‘लाल केसर से धुली काली सिल’ में किस दृश्य का चित्रण है?
उत्तर: इस पंक्ति में भोर के नीले आकाश में छाए, उषा के लाल शुभ्र प्रकाश का चित्रण है।
प्रश्न 6. ‘लाल खड़िया चाक से मली गई स्लेट’ इस पंक्ति में ‘लाल खड़िया’ और ‘स्लेट’ किनके लिए प्रयुक्त हुए हैं?
उत्तर: लाल खड़िया उषा की लाली के लिए और स्लेट आकाश के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न 7. उषा’ कविता में ‘नीलजल’ से किसकी तुलना की गई है?
उत्तर: कविता में नील जल से नीले आकाश की तुलना की गई है।
प्रश्न 8. ‘गौर झिलमिल देह’ द्वारा किस दृश्य का चित्रण हुआ है?
उत्तर: ‘गौर झिलमिल देह’ द्वारा सूर्योदय से पूर्व आकाश में छा रहे प्रकाश के दृश्य का चित्रण हुआ है।
प्रश्न 9. ‘उषा-काल’ का जादू भरा दृश्य कब और क्यों अदृश्य हो गया?
उत्तर: उषाकालीन दृश्य सूर्योदय के कारण अदृश्य हो गया क्योंकि सूर्य का प्रकाश होने पर उषा की लालिमा समाप्त हो गई। और पीला प्राकश भी नहीं रहा।
प्रश्न 10. उषा’ कविता में प्रकृति चित्रण की कौन-सी
विशेषता सामने आई है?
उत्तर: ‘उषा’ कविता में कवि द्वारा प्रस्तुत नवीन बिम्ब-योजना द्वारा, प्रकृति के दृश्यों को प्रस्तुत किया गया है।
प्रश्न 11. आज भोर और उषा के ऐसे दृश्य कहाँ
देखने को मिल सकते हैं?
उत्तर: ऐसे दृश्य ग्रामीण क्षेत्रों में ही देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि नगरों के बहुमंजिली भवनों ने ऐसे दृश्यों का दर्शन दुर्लभ बना दिया है।
प्रश्न 12. कवि शमशेर बहादुर सिंह काव्य-रचना के क्षेत्र में किसलिए विख्यात है?
उत्तर: ‘शमशेर’ ने अपनी रचनाओं में ‘बिम्ब विधान’ या शब्द-चित्रों के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग किए हैं। उनको प्रयोगधर्मी कवि भी कहा जाता है।
प्रश्न 13. ‘उषा’ कविता में आए अलंकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: ‘उषा’ कविता में उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 14. उषा कविता में प्रस्तुत किसी
घरेलू बिम्ब का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: एक घरेलू बिम्ब (शब्द-चित्र) है-‘भोर का नभ, राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)।
प्रश्न 15. भोर का आकाश किसके समान नीला था?
उत्तर: भोर का आकाश बहुत नीले शंख के समान था।
प्रश्न 16. कवि ने नभ को राख से लीपा हुआ
चौका क्यों कहा है?
उत्तर: नीले आकाश में भोर के हल्के सफेद प्रकाश के मिल जाने पर राख जैसा रंग दिखाई देने के कारण, कवि ने उसे राख से लीपा चौका बताया है।
प्रश्न 17. उषा का जादू टूटने का क्या
तात्पर्य है?
उत्तर: जादू टूटने का तात्पर्य है कि सूर्योदय होते ही आकाश में दिखाई देने वाला उषा का मनमोहक दृश्य समाप्त हो गया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. प्रातः के नभ को बहुत नीला शंख जैसा बताकर कवि
आकाशी दृश्य की क्या विशेषता बताना चाहता है?
उत्तर: कवि इस कविता में ग्रामीण क्षेत्र के दूर-दूर तक दर्शनीय आकाश के प्रात:कालीन सौन्दर्य का वर्णन कर रहा है। भोर के समय सूर्योदय से पहले धुंधलके में आकाश गहरा नीला या काला-सा प्रतीत होता है। इस रंग में भोर के हल्के उजास का भी मिश्रण रहता है। अत: इसमें एक बहुत हल्की-सी दमक भी होती है। कवि ने इसी कारण बहुत नीला ‘शंख’ जैसा बताया है। शंख में एक प्राकृतिक दमक देखी जाती है।
प्रश्न 2. भोर के आकाश के लिए कवि ने ‘राख से
लीपा चौका (अभी गीला पड़ा है।’ उपमान का चुनाव क्यों किया है? अपना मत
लिखिए।
उत्तर: ग्रामीण घरों में आग भी रसोईघर को चौका कहा जाता है और उसके फर्श को गोबर और मिट्टी से लीपा जाता है। ताजा पीला हुआ फर्श गीला रहता है। कवि ने इस घरेलू और सुपरिचित बिम्ब में थोड़ा सुधार करके उसे राख से लीपा बताया है। नीले आकाश में भोर के हल्के प्रकाश का मिश्रण उसे राख जैसे रंग वाला बना रहा है। इसी कारण कवि ने उसे राख से लीपा गया चौको कहा है।
प्रश्न 3. बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से कि जैसे धुल
गई हो।” इस पंक्ति की काव्यगत विशेषताओं का परिचय कराइए।
उत्तर: इस पंक्ति में कवि ने एक सर्वथा नए घरेलू बिम्ब द्वारा उषाकालीन आकाश का वर्णन किया है। सामान्य घरों में आज भी मसाला चटनी आदि पीसने के लिए सिल का प्रयोग होता है। पीसने के पश्चात् सिल को धो दिया जाता है। किन्तु प्रतिः के आकाश के गहरे नीले रंग में उसकी लालिमा छिटकी हुई है। कवि ने आकाश को काली सिल और लालिमा को लाल केसर मिश्रित जल माना है। जिससे सिल को धोया गया है। इसके अतिरिक्त भाषा की सरलता और लाक्षणिकता तथा उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग भी इस पंक्ति की विशेषता है।
प्रश्न 4. “स्लेट पर या लाल खड़िया मल दी हो किसी ने इस
पंक्ति द्वारा कवि ने प्रात:काल के किस दृश्य को बिम्ब साकार किया है? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर: इस पंक्ति द्वारा कवि ने भोर के नीले-काले आकाश में छाई हुई उषा की लालिमा के दृश्य को एक बिलकुल नए विम्ब द्वारा हमारे मने पर साकार किया है।
आकाश काला है और स्लेट भी काली है। आकाश में उषा की लालिमा छाई हुई है और काली स्लेट पर लाल खड़िया या चाक मल दिया गया है। इस प्रकार कवि ने भोर के आकाश के लिए इस नए उपमान की सृष्टि की है। उपमेय और उपमान की समानता से हमें कवि द्वारा देखे गए भोर के दृश्य की प्रत्यक्ष जैसी अनुभूति होती है।
प्रश्न 5. नीले जल में झिलमिलाती गौरवर्ण देह’ का
प्रयोग किस दृश्य के लिए किया है?
उत्तर: इस विम्ब में नीला जल नीले आकाश का प्रतीक है। आकाश में सूर्योदय से पूर्व का पीला प्रकाश गौरवर्ण देह द्वारा व्यक्त किया गया है। नीले जल में स्नान करती गौरवर्ण सुन्दरी का झिलमिलाता शरीर बताकर इस विम्ब द्वारा सूर्योदय पूर्व के आकाशीय दृश्य को प्रस्तुत कर रहा है।
प्रश्न 6. उषा’ कविता में प्रयुक्त दो प्रतीकों को छाँटकर
बताइए कि कवि ने उनका प्रयोग क्या बताने के लिए किया है?
उत्तर: दो प्रतीक निम्नलिखित हैं –
(1)राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) – इस प्रतीक का प्रयोग कवि ने आकाश का रंग बताने के लिए किया है। भोर के समय का बहुत हल्का-सा प्रकाश नीले आकाश से मिलाकर राख जैसे रंग वाला लग रहा है। प्रकाश की मात्रा बहुत कम होने से वह गीली राख जैसा प्रतीत हो रहा है।
(2) लाल केसर से धुली काली सिल – इस प्रतीक का प्रयोग गहरे नीले आकाश में उषा की लालिमा के दृश्य का बोध कराने के लिए किया गया है। आकाश काली सिल है और लाल केसर से धुला होना, उषा की लाली के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न 7. उषा का जादू क्यों टूट गया? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर: उषाकाल के समय आकाश में मनमोहक लालिमा छाई हुई थी। ज्ये-ज्यों सूर्योदय का समय निकट आ रहा था, आकाश का रूप पल-पल में बदल रहा था। लाल से पीला हुआ और फिर सूर्य का उदय होते ही आकाश में श्वेत प्रकाश छा गयी। सूर्य के इस प्रखर प्रकाश में उषाकाल का मन परे जादू करने वाला दृश्य भी अदृश्य हो गया। इस प्रकार उषा का जादू टूट गया।
प्रश्न 8. कवि शमशेर बहादुर को प्रयोगधर्मी कवि कहा जाता
है। पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता के आधार पर इस कथन पर अपना मत लिखिए।
उत्तर: प्रयोगधर्मी का आशय है जो अपनी रचनाओं में नए-नए प्रयोग करे । शमशेर एक प्रगतिशील सोच वाले कवि हैं। उन्होंने परंपरा से हट कर अपनी कविता में शिल्प संबंधी नए प्रयोग किए हैं। ‘उषा’ कविता का विषय प्रातः कालीन आकाश के दृश्यों का वर्णन है। कवि ने घरेलू विम्बों के माध्यम से इस दृश्य का अंकन किया है। आकाश को नीला शंख, राख से लीपा चौका, लाल केसर से धुली सिल और लाल खड़िया चाक से मली हुई स्लेट कहा है। ये सभी प्रयोग नए हैं। अन्य कवियों ने भी प्रात:काल के वर्णन किए हैं लेकिन शमशेर का यह विम्ब-विधान सबसे अलग है।
प्रश्न 9. प्रातःकालीन आकाश के रंग को व्यक्त करने के लिए
कवि ने किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है?
लिखिए।
उत्तर: कवि ने निरंतर रंग बदलते प्रातः कालीन आकाश के लिए भिन्न-भिन्न और उपयुक्त उपमान चुने हैं। सर्वप्रथम कवि उसके लिए बहुत नीले शंख’ उपमान का प्रयोग करता है। इसके पश्चात् भोर के नभ को गीली राख के रंग वाला बताता है। इसके लिए उसने ‘राख से पुते चौके’ को उपमान बताया है। तीसरा उपमान ‘बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से धुली’, चौथा उपमान आकाश के स्लेटी रंग के लिए है, ‘स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो’ और अंतिम उपमान नीलजल’ चुना है।
प्रश्न 10. उषा कविता का विषय (काव्य) क्या है? कवि ने
अपनी बाता किस शिल्प द्वारा कही है?
उत्तर: उषा कविता का विषय भोर के आकाश के पल-पल बदलते प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण करना है। कवि ने प्रात: के इन दृश्यों को पाठकों तक पहुँचाने के लिए कुछ नए विम्बों को चुना है। कवि ने प्रतीकात्मक वर्णन-शैली के द्वारा आकाश के कुछ घरेलू विम्ब प्रस्तुत किए हैं। यह कवि के काव्य की एक विशेषता है।
प्रश्न 11. ‘उषा’ कविता का प्रतिपाद्य (उद्देश्य) और प्रेरणा
क्या है? लिखिए।
उत्तर: ‘उषा’ एक प्रकृति-चित्रण करने वाली सरल, सहज, नवीन भावोत्तेजक कविता है। कवि को उद्देश्य कविता के माध्यम से जहाँ ग्रामीण परिवेश में उपस्थित ‘उषा काल’ के प्राकृतिक सौन्दर्य से पाठकों को परिचित करना है वहीं अपने नए-नए शिल्पगत प्रयोगों से चमत्कृत करना भी है। कवि का यह विविध विम्बों से सजा प्रकृति-चित्र हमें प्रकृति से जुड़ने की प्रेरणा भी देता है। ग्राम-वासी तो नित्य ही प्रकृति की मनमुग्धकारी जादई झाँकियाँ देखते रहते हैं। कवि ने विशेष रूप से नगर और महानगर वासियों को प्रकृति-प्रेम की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 12. ‘कवि शमशेर ने ‘उषा’ कविता
में विविध रंगों की रंगोली सजाई है।” इस कथने पर अपना मत लिखिए।
उत्तर: उषा’ कविता वैसे तो प्रकृति के मनमोहक सौन्दर्य का एक सुपरिचित दृश्य प्रस्तुत करती है किन्तु इस छोटे से चलचित्रण द्वारा कवि शमशेर ने सटीक शब्दावली का चुनाव करते हुए विविध प्राकृतिक रंगों से एक सुंदर रंगोली-सी सजा दी है। कविता में नीले शंख जैसा बहुत नीला रंग है। खाकी या गीली राख जैस रंग है। बहुत काला और काले-लाल का मिश्रित रंग भी है। कविता में स्लेटी रंग और लाल रंग का मिश्रित आभास भी है। अंत में कवि ने नीले रंग के बीच झिलमिलाते पीले रंग को भी रंगोली में स्थान दिया है।
प्रश्न 13. “शमशेर बहादुर सिंह की कविता ‘उषा’ नवीन
विम्बों व उपमानों का जीवंत दस्तावेज है।”
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: हिन्दी में प्रयोगवादी कविता का युग आया तो कवियों ने परंपरा से चले आ रहे विम्ब-विधन और उपमानों के स्थान पर नए-नए प्रयोग किए। कवि शमशेर को भी प्रयोगधर्मी’ कवि कहा गया है। पाठ्यपुस्तके में संकलित उनकी कविता ‘उषा’ उनके नए प्रयोगों को प्रस्तुत करती है। ‘उषा’ कविता में कवि ने भोर के दृश्य को चित्रित करने के लिए आकाश को नीला शंख, राख से लीपा गया चौका, लाल केसर से धुली काली सिल, लाल खड़िया से मली गई स्लेट तथा नीले जल में हिलती किसी की गोरी देह बताया है। ये सभी विम्ब और उपमान नए प्रयोग हैं।
प्रश्न 14. “स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी है किसी ने”, “उषा’ कविता
की यह पंक्ति बाल मनोविज्ञान पर प्रकाश डालती है। कैसे?
उत्तर: पहले बच्चों को लिखना, गणित के प्रश्न हल करना आदि सिखाने के लिए स्लेट का प्रयोग होता था। लिखे को मिटाकर बच्चे बार-बार स्लेट का प्रयोग कर सकते थे। कभी बच्चे खेल-खेल में भी स्लेट पर मनचाही आकृतियाँ बनाकर खुश हुआ करते थे। कवि द्वारा ‘उषा’ कविता में स्लेट संबंधी उपमान बच्चों के मनोविज्ञान की ओर संकेत करता है।
प्रश्न 15. “भाषा,
विम्ब और लय का सुंदर मेल
कविता ‘उषा’ को अत्यन्त आकर्षक बनाता है।” इस कथन
पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर: उषा कविता में कवि ने अपने विम्बों को पाठकों तक पहुँचाने के लिए सटीक शब्दावली का प्रयोग किया है। नीला शंख, राख-लिपा चौका, लाल केसर से धुली सिल, लाल खड़िया मली स्लेट, नीलजल में झिलमिल गोरी देह, ये सभी शब्द-समूह पाठक के अन्तर्मन परे एक स्पष्ट शब्द-चित्र अंकित करते हैं। कवि ने विम्बों की चुनाव भी हमारे नित्य-जीवन, घरेलू उपकरणों से किया है। इंसके साथ ही अतुकांत होते हुए भी कविता में एक अन्तर्निहित लय का आभास होता है। इस प्रकार कवि ने भाषा, विम्ब और लय को आकर्षक संगम प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 16. क्या आपको कभी प्रातः कालीन उषा का दृश्य देखने
का अवसर मिला है। क्या आपने मन में उस दृश्य को देखकर कोई विम्ब अथवा उपमान जागे
हैं? यदि हाँ तो गद्य या पद्य में अपने अनुभव को व्यक्त
कीजिए।
उत्तर: ‘उषा’ के मनमोहक दृश्य को देखने का मुझे अनेक बार अवसर मिला है। एक अनुभव का पद्यमय रूप इस प्रकार है –
क्षितिज के नेपथ्य से
धीरे-धीरे चली आ रही,
प्राची के मंच पर,
उषा–सुंदरी।
पीछे टॅगी है नीली पिछवाई
जो गा उठे भूतल से,
स्वागत में,
विहगों के संगीतकार
और हो गया सबेरा।
प्रश्न 17. ‘लाल केसर’
तथा ‘लाल
खड़िया चाक’ के माध्यम से कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर: कवि ने उषा की लालिमा के आकर्षक दृश्य को पाठकों के हृदय में उतारने के लिए कवि ने दो सुपरिचित उपमानों को चुना है। लाल केसर से बना रंग भी उषा की लालिमा जैसा ही होता है। यदि उससे काली सिल को धो दिया जाय तो आकाश में उषा की लालिमा के दृश्य का आभास कराया जा सकता है। इस प्रकार स्लेट का रंग भी काला होता है। उस पर यदि लाल खड़िया यो चाक मल दिया जाय तो भी उसके माध्यम से काले या नीले आकाश में उषा की लाली को मन के पट पर उतारा जा सकता है। इन दोनों उपमानों से कवि उषा काल के जादू को पाठकों तक पहुँचाना चाहता है।
प्रश्न 18. उषा’ कविता में कवि का क्या संदेश है?
उत्तर: कवि शमशेर हिन्दी कविता के प्रयोगवादी कवियों में प्रमुख स्थान रखते हैं। ‘उषा’ कविता में प्रकृति-चित्रण में कवि ने कुछ नए प्रयोग दिए हैं। इस कविता में निहित संदेश यही है कि कवि परंपरा से हटकर, नवीन उपमानों के प्रयोग से, पाठकों की प्रकृति के प्रति रुचि बढ़ाना चाहता है। कवि ने पाठकों के साथ ही कवियों को भी चुनौतीमय संदेश दिया है कि वे परंपरा से हटकर प्रकृति के प्रति लोगों का अनुराग जगाएँ।।
प्रश्न 19 . उषा’ कविता की प्रमुख शिल्पगत विशेषता क्या है?
उत्तर:
‘शमशेर’
एक
प्रयोगवादी कवि हैं। उन्हें कविता के शिल्प-कलापक्ष में नए-नए प्रयोग करने में
आनन्द आता है। कविता ‘उषा’ में भी कवि ने ‘भोर’ के
प्रतिपल बदलते दृश्यों को शब्दों में बाँधने के लिए नए-नए उपमानों का प्रयोग किया
है। प्रात:कालीन आकाश को ‘नीला शंख’, ‘राख से लीपा हुआ
गीला चौका’, ‘काली सिल पर लाल केसर’, ‘लाल खड़िया चाक
से मली स्लेट’ तथा ‘नीले जल में झिलमिलाते गौर वर्ण शरीर’
जैसे
नए उपमानों से प्रस्तुत किया है। अत: ‘उषा’ कविता
की प्रमुख शिल्पगत विशेषता, उसमें
नवीन बिम्ब-योजना है।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. शमशेर बहादुर सिंह की ‘उषा’ का
प्रकृति वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: भोर होने को है। गहरा नीला आकाश एक विशालकाय नीले शंख जैसा लग रहा है। नीले आकाश में भोर का धुंधला प्रकाश ऐसा लगता है जैसे वह राख से लीपा गया चौकी हो, जो अभी गीला है।
अथवा यह आकाश एक विशाल काली सिल है जिसे लाल केसर के जल से धो दिया गया है। या नीले आकाश में उषा की यह लालिमा ऐसी लगती है माने स्लेट पर लाल खड़िया या चाक मल दिया गया हो।
अथवा यह नीले जल में झिलमिलाती किसी रमणी का गोरा शरीर है जो लहरों के जल में हिलता दिखाई दे रहा है।
लो अब सूर्य का उदय हो रहा है। धीरे-धीरे यह मनमोहक भोर का दृश्य अदृश्य होता जा रहा है।
प्रश्न 2. कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता
है कि उषा कविता गाँव की सुबह को गतिशील शब्दचित्र है?
उत्तर: ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील चित्र है। कविता में प्रयुक्त उपमानों को देखकर यह बात सुनिश्चित ढंग से कही जा सकती है। भोर के नीले आकाश के लिए ‘राख से लीपा हुआ गीला चौका, ‘केसर से धुली काली सिल’ तथा ‘लाल खड़िया चाक मली हुई स्लेट’ आदि उपमान प्रयुक्त हुए हैं। राख से लिपा चौपा (रसोईघर) तथा ‘काले रंग की सिल (मसाला पीसने का पत्थर)’-ग्रामीण जीवन से लिए गए उपमान हैं। शहरी जीवन में इनका कोई स्थान नहीं है। स्लेट पर चाक से गाँव के बच्चे ही लिखते हैं, शहर के नहीं। चौके का लीपा जाना, सिल पर मसाला पीसा जाना तथा बच्चों द्वारा स्लेट पर लाल खड़िया मला जाना में एक क्रम है। इस कारण भोर का यह चित्र ग्राम जीवन से सम्बन्धित तथा गतिशील है।
प्रश्न 3. भोर का नभ।
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी
गीला पड़ा है।)
नयी कविता में कोष्ठक, विराम
चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है। उपर्युक्त
पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए।
उत्तर: नई कविता में नए-नए प्रयोगों का विशेष महत्त्व है। इसके लिए कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों तथा पंक्तियों के बीच के स्थान को भी विशेष अर्थ प्रकट करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस अंश में कोष्ठक में ‘अभी गीला पड़ा है’ लिखकर कवि ने अपने उपमान को पूर्णता प्रदान की है। उसने आकाश को गीली राख जैसा बताना चाहा है। इससे कवि यह व्यक्त करना चाहता है कि पूर्ण प्रकाश न होने से नीला आकाश अभी कुछ काला–सा लग रहा है तथा उसमें नमी (गीलापन) भी व्याप्त है।
इसी प्रकार कविता की पंक्तियों के आकार में बहुत असमानता भी नई कविता की एक विशेषता रही है। कविता की एक पंक्ति में तो केवल एक ही ‘और………….’ शब्द है।
प्रश्न 4. अपने आसपास के उपमानों का प्रयोग करते हुए
सूर्योदय और सूर्यास्त का शब्दचित्र खींचिए।
उत्तर:
(1) सूर्योदय – लाल मिट्टी का घड़ा
कूप के नीलाभ जल से
बाहर आ गया है।
उसे सिर पर उठाए।
लाल चूनर धारी सुन्दरी
अब दिखाई नहीं दे रही है।
(2) सूर्यास्त – बड़ी लाल गेंद
हरियाले ढालू मैदान से
नीचे लुढक रही है।
वह किसी झाड़ी में छिप गई है।
बच्चे उसे ढूँढ़ रहे हैं।
पर वह क्या मिलेगी अब?
(छात्र अपने अनुभवों और अपनी भाषा-शैली में स्वयं ऐसे शब्द-चित्र लिख सकते हैं।)
प्रश्न 5. “नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह,
जैसे हिल रही हो।”
उपर्युक्त विम्ब द्वारा कवि ने किस प्राकृतिक दृश्य
का चित्रण किया है। क्या इस अंश में प्रयुक्त उपमान आपको उपयुक्त प्रतीत होते हैं?
उत्तर: इस शब्द-चित्र द्वारा कवि शमशेर बहादुर सिंह ने प्रात:कालीन आकाश के दृश्य को साकार करना चाहा है। सूर्योदय से पहले आकाश में कुछ समय के लिए पीला प्रकाश उदित होता है। नीले आकाश में झिलमिलाता यह पीला प्रकाश कवि को उपर्युक्त विम्ब की रचना को प्रेरित करता है। कवि द्वारा चुने गए उपमान प्राकृतिक दृश्य के अनुरूप ही है। नीला आकाश, नीला जल है और पीला प्रकाश जल में झिलमिलाती किसी गोरी रमणी की देह है। निरंतर होते दृश्य परिवर्तन को कवि ने हिलती’ शब्द द्वारा व्यक्त किया है। अतः इस विम्ब में प्रयुक्त उपमान दृश्य के अनुरूप और उसमें पूर्णता तथा प्रभाव उत्पन्न करने वाले हैं।
शमशेर बहादुर सिंह कवि परिचय
कवि शमशेर सिंह का जन्म सन् 1911 ई. में देहरादून में हुआ था। आठ वर्ष की आयु में
उनकी माँ का देहावसान हो गया। 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनकी पत्नी भी छ: वर्षों के
बाद क्षयरोग से पीड़ित होकर चल बसी। इन पीड़ादायक अनुभवों और अभावों से गुजरने पर
भी उनका आत्मविश्वास नहीं डगमगाया। इन संकटों ने उनकी कविता को और भी हृदयस्पर्शी
बनाया।
कवि शमशेर सिंह अपने अनूठे कल्पना-चित्रों के लिए प्रसिद्ध रहे
हैं। वह प्रगतिशील विचारक थे और कविता में नए-नए प्रयास भी करते रहे। वह सुन्दरता
को नए-नए और लुभावने रूपों में प्रस्तुत करते रहे।
रचनाएँ-शमशेर
सिंह की प्रमुख रचनाएँ हैं-‘कुछ कविताएँ’, कुछ और कविताएँ, चुका भी नहीं हूँ मैं’, ‘इतने पास अपने’, ‘बात बोलेगी’, तथा ‘काल तुझसे है होड़ मेरी’।
शमशेर बहादुर सिंह पाठ परिचय
प्रस्तुत कविता ‘उषा’ में कवि ने प्रातः कालीन उषा की लालिमा और सूर्योदय के दृश्य
के चार बिम्ब-शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं। नीले आकाश में भोर के शंख जैसे
शुभ्र उजाले को, राख से लीपा गया चौका बताया है।
उषा की लालिमा से युक्त गहरे नीले या काले आकाश को लाल केसर
से सिल का धुला हुआ रूप बताया है। अगला बिम्ब स्लेट पर लाल चाक मल दी गई है और
चौथे अंतिम बिम्ब में नीले जल में किसी गोरे शरीर की झिलमिल को हिलता दिखाया है।
सूर्योदय होते ही यह भोर का जादू भरा दृश्य अदृश्य हो जाता
है।
काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ
(1)
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)
कठिन शब्दार्थ- भोर = प्रात:काल। चौका = रसोईघर अथवा उसका फर्श । लीपा हुआ = राख के घोल से पोता गया।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि शमशेर बहादुर सिंह की कविता ‘उषा’ से उद्धृत है। कवि ने इसमें भोर के समय का एक अनूठा शब्द-चित्र अंकित किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि प्रात: का आकाश एक गहरे नीले रंग जैसा था। भोर होने पर वह प्रकाश के मेल से राख जैसे रंग का हो गया। अब वह राख से लिपे फर्श वाले, किसी रसोईघर के समान लग रहा है। अभी-अभी लिपे जाने के कारण वह गीला है।
विशेष-
(i) कवि ने प्रातः काल के दृश्य को एक घरेलू बिम्ब (शब्द-चित्र) के द्वारा प्रस्तुत किया है।
(ii) प्रातः के आकाश के लिए कवि द्वारा रंगों का चुनाव वास्तविकता के निकट है।
(iii) कवि की उपमाएँ नए प्रयोग हैं।
(iv) आकाश को ‘नीले शंख जैसा’ और ‘राख के लिये चौका’ जैसा बताने में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(v) भाषा सरल और शैली बिम्ब विधायिनी है।
(2)
बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
कठिन शब्दार्थ-सिल = मसाले, चटनी आदि पीसने के लिए प्रयुक्त होने वाला पत्थर का टुकड़ा। केसर = कश्मीर में पैदा होने वाला लाल-पीले रंग का एक पुष्प। स्लेट = हेलके काले पत्थर की चौकोर पतली प्लेट, जिस पर चाक या खड़िया से लिखा जाता है। खड़िया = सफेद रंग की मिट्टी का टुकड़ा जिससे बोर्ड या स्लेट पर लिखी जाता है। चाक = खड़िया, खड़िया से बनाई गई लिखने की बत्ती।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि शमशेर बहादुर सिंह की कविता ‘उषा’ से लिया गया है। कवि अनूठे उपमानों से प्रात:काल के आकाश के शब्द-चित्र प्रस्तुत कर रहा है।
व्याख्या-कवि कहता है गहरे नीले या काले आकाश में उषाकालीन लालिमा ऐसी लग रही है मानो कोई बहुत काली सिल लाल केसर मिले पानी से धो दी गई हो अथवा किसी ने लाल रंग की खड़िया या चाक को स्लेट पर मल दिया हो।
विशेष-
(i) आकाश के लिए ‘काली सिल’ तथा ‘स्लेट’ अनूठे और सटीक उपमान हैं। नीले आकाश में उषा की हल्की लालिमा के दृश्य को अंकित करने के लिए ‘लाल केसर से धुला होना’ तथा स्लेट पर ‘लाल खड़िया मला होना भी जाने-पहचाने घरेलू बिम्ब हैं।
(ii) भाषा सरल है और वर्णन शैली बिम्ब अंकित करने वाली है।
(iii) आकाश में बहुत काली ………………… धुल गई हो’ तथा ‘स्लेट पर ……………किसी ने अंशों में उत्प्रेक्षा तथा संदेह अलंकार भी है।
(iv) काव्यांश में प्रयोगवादी काव्य की झलक है।
(3)
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और ……………….
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
कठिन शब्दार्थ-नील = नीला। गौर = गोरी झिलमिल = रह-रहकर चमकती। देह = शरीर। जाँद = मोहक दृश्य। सूर्योदय = पूर्व दिशा में सूर्य का निकलना।
संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि शमशेर सिंह की कविता ‘उषा’ से लिया गया है। इस अंश में कवि सूर्य के निकलने से पहले नीले पूर्वी आकाश में छा रहे सुनहले प्रकाश के दृश्य का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या-कवि कह रहा है कि सूर्योदय से पूर्व के आकाश के दृश्य को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे नीले जल में किसी (सुंदरी) का गोरा और झिलमिलाता शरीर हिल रहा हो।
सूर्य के उदय होते ही आकाश का यह उषा काल का जादू जैसा मोहक दृश्य अदृश्य हो जाता है। सूर्य के प्रकाश में सारे रंग गायब हो जाते हैं।
विशेष-
(i) कवि ने नीले आकाश का नीला सरोवर और सूर्योदय से पूर्व सूर्य की किरणों से उत्पन्न पीली या सुनहली आभा को, एक गोरी रमणी की जल में झिलमिल करती देह बताया है।
(ii) लग रहा है सूर्योदय के समय भी पीली ज्योति रूपी सुंदरी नीले आकाश रूपी जल में स्नान कर रही है। उसकी झिलमिलाती गोरी देह जल के साथ हिलती प्रतीत हो रही है।
(iii) बिम्ब-विधान अद्भुत और मनमोहक है।
(iv) भाषा सरल है। शब्दों का चयन विषय के अनुरूप है।
(V) वर्णन शैली में
कवि की शब्द-चित्र अंकित करने की कुशलता प्रमाणित हो रही है। (vi) काव्यांश
में ‘नील जल…………………..हिल रही हो’। कथन में
उत्प्रेक्षा अलंकार है।
ज़मीर जिन्दा रख, कबीर जिंदा रख,
सुल्तान भी बन जाये तो, दिल में फ़कीर जिंदा रख,
हौसले के तरकश में कोशिश का वो तीर जिंदा रख,
हार जा चाहे जिंदगी में सब कुछ,
मगर फिर से जीतने की उम्मीद जिंदा रख।
आपके उज्जवल भविष्य की कामना में ........................
साधनारत ...
कुमार महेश
लालसोट ,राजस्थान
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