kumar Mahesh |
Summary of Poem |
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि
ने फागुन के महीने की सुंदरता का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। होली के वक्त जो
मौसम होता है, उसे फागुन कहते हैं। उस समय प्रकृति अपने चरम
सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है। फागुन के समय पेड़ हरियाली से भर जाते
हैं और उन पर रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल उग जाते हैं। इसी कारण जब हवा चलती है,
तो
फूलों की नशीली ख़ुशबू उसमें घुल जाती है। इस हवा में सारे लोगों पर भी मस्ती छा
जाती है, वो काबू में नहीं कर पाते और मस्ती में झूमने लगते हैं।
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो,
उड़ने को नभ में तुम
पर-पर कर देते हो,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि घर-घर में
उगे हुए पेड़ों पर रंग-बिरंगे फूल खिले हुए हैं। उन फूलों की ख़ुशबू हवा में यूँ बह
रही है, मानो फागुन ख़ुद सांस ले रहा हो। इस तरह फागुन का महीना पूरे वातावरण
को आनंद से भर देता है। इसी आनंद में झूमते हुए पक्षी आकाश में अपने पंख फैला कर
उड़ने लगते हैं। यह मनोरम दृश्य और मस्ती से भरी हवाएं हमारे अंदर भी हलचल पैदा कर
देती हैं। यह दृश्य हमें इतना अच्छा लगता है कि हम अपनी आँख इससे हटा ही नहीं
पाते। इस तरह फागुन के मस्त महीने में हमें भी मस्ती से गाने एवं पर्व मनाने का मन
होने लगता है।
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी, कहीं लाल,
कहीं पड़ी है उर में
मंद गंध पुष्प माल,
पाट-पाट शोभा श्री
पट नहीं रही है।
भावार्थ :- कवि के अनुसार फागुन मास में प्रकृति इतनी
सुन्दर नजर आती है कि उस पर से नजर हटाने को मन ही नहीं करता। चारों तरफ पेड़ों पर
हरे एवं लाल पत्ते दिखाई दे रहे हैं और उनके बीच रंग-बिरंगे फूल ऐसे लग रहे हैं,
मानो
पेड़ों ने कोई सुंदर, रंगबिरंगी माला पहन रखी हो। इस सुगन्धित पुष्प
माला की ख़ुशबू कवि को बहुत ही मादक लग रही है। कवि के अनुसार, फागुन
के महीने में यहाँ प्रकृति में होने वाले बदलावों से सभी प्राणी बेहद ख़ुश हो जाते
हैं। कविता में कवि स्वयं भी बहुत ही खुश लग रहे हैं।
अट
नहीं रही है कविता का काव्य सौंदर्य/शिल्प सौंदर्य :
यहां कवि यह कहना चाहता है कि फागुन के
महीने में प्रकृति सर्वत्र सुंदर दिखाई देती है। इन पंक्तियों में तत्सम व तद्भव
शब्दावली युक्त साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है। भाषा प्रसाद गुण युक्त
व लाक्षणिक है। छंद मुक्त होने के बावजूद इन पंक्तियों में सुर, लय
व संगीत का पूर्ण निर्वाह हुआ है। वर्णनात्मक शैली में रचित इन पंक्तियों में
दृश्य व गंध बिंब का सफल प्रयोग हुआ है। ‘पट नहीं रही है’ मुहावरे का सफल
प्रयोग हुआ है।
अट
नहीं रही है कविता के आधार पर निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएं:
काव्य शिल्प का अर्थ है - कविता का कला पक्ष। इसे हम अभिव्यक्ति पक्ष भी
कहते हैं। निराला जी ने इन कविताओं में संस्कृत निष्ठ तत्सम प्रधान साहित्यिक खड़ी
बोली का प्रयोग किया है। कवि का शब्द चयन
सर्वथा उचित और सटीक है। लेकिन कहीं-कहीं
वे ठेठ ग्रामीण शब्दों का प्रयोग करते हैं । कवि ने इन कविताओं में नाद सौंदर्य का
विशेष ध्यान रखा है। गीती शैली की सभी
विशेषताएं जैसे यथार्थ, अनुभूति, गेयता, प्रभाहमयी
भाषा इन कविताओं में देखी जा सकती है। यही नहीं छायावादी कविताएं होने के कारण कवि
ने सांकेतिक तथा प्रतीकात्मक शब्दावली का भी प्रयोग किया है। मुक्त छंद में रचित
इन कविताओं में निराला जी ने अनुप्रास, पुनरुक्ति-प्रकाश, उपमा,
विशेषोक्ति
एवं मानवीकरण अलंकारों का सफल प्रयोग किया है।
प्रश्न-1 .छायावाद की एक खास
विशेषता है। अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन
पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर-कविता की निम्न पंक्तियों को
पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है कि अंतर्मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य
बिठाया गया हैं।
1 . आभा फागुन की तन
, सट नहीं रही है।
2 . उड़ने को नभ में
तुम , पर-पर कर देते हो।
3 . आँख हटाता हूँ
तो , हट नहीं रही है।
प्रश्न
2 .कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही हैं ?
उत्तर –फागुन माह में
चारों तरफ एक से एक खूबसूरत फूल खिल जाते हैं। डाली डाली हरे और लाल रंग के पत्तों
से भर जाती हैं। बातावरण सुगंधित फूलों की खुशबू से महक उठता हैं। प्रकृति इतनी
सुंदर व मनमोहक हो उठती हैं कि कवि उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाते हैं। वह प्रकृति
के उस सौंदर्य से अपनी आँखें हटाना तो चाहते हैं पर उनकी आँखें उस पर से हट नहीं
पा रही है।
प्रश्न
3 . प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन
रूपों में किया हैं ?
उत्तर –प्रस्तुत कविता
में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन निम्न रूपों में किया हैं।
1 . कवि को ऐसा लग
रहा है मानो प्रकृति ने रंग बिरंगे फूल पत्तों से अपना मनमोहक श्रृंगार किया है।
2 . फूलों ने अपनी
भीनी भीनी खुशबू चारों तरफ बिखराकर वातावरण को और भी सुगंधित कर दिया है।
3 . प्रकृति अपने
गले में लाल और हरे पत्तों की खूबसूरत माला पहन कर खुशी से झूम रही हैं।
4 . चारों तरफ
हरियाली छाने से प्रकृति का सौंदर्य कई गुना बढ़ गया है।
5 . प्रकृति ने एक
बार फिर से इतना मनमोहक रूप धारण किया है कि कवि को अब उसके सौंदर्य से अपनी आंख
हटाने में मुश्किल हो रही है।
प्रश्न
4 .फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर-फागुन माह में “ऋतुराज”
बसंत
का आगमन होता हैं। पतझड़ के समय फूल पत्ते विहीन पेड़ पौधों में फिर से नई कोपल
फूटने लगती हैं। बाग़ बगीचों में अनेक प्रकार के फूल खिलने लगते हैं। और उन फूलों
की खुशबू से सारा वातावरण महक उठता हैं। प्रकृति की सुंदरता उस समय देखने लायक
होती हैं।
प्रश्न
5 .इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –“उत्साह” और “अट
नहीं रही हैं ” , दोनों ही कविताओं में मानवीकरण अलंकार का
प्रयोग किया है। “उत्साह” कविता में
उन्होंने बादल का मानवीकरण कर उससे “गरज
गरज कर बरसने” को कहते हैं। तो दूसरी कविता “अट
नहीं रही हैं” में वह फाल्गुन माह का मानवीकरण कर उसकी
सुंदरता का बखान करते हैं।
कविता में अनुप्रास , रूपक , यमक
, उपमा आदि अलंकारों का शानदार तरीके से प्रयोग किया गया है।
कविता को लयबद्ध कर गीत शैली में लिखा
गया है।
दोनों कविताओं में खड़ी हिंदी का प्रयोग
हुआ है।
कविता में तत्सम शब्दों का प्रयोग भी
बहुत खूबसूरती से किया गया है।
“उत्साह” और “अट
नहीं रही हैं ” , दोनों कविताओं में कवि ने प्रकृति का ही चित्रण
किया है। और प्रकृति के माध्यम से ही अपने मनोभावों को प्रकट करने की कोशिश की है।
प्रश्न
6 .होली के आसपास प्रकृति में
जो परिवर्तन दिखाई देते हैं उन्हें लिखिए ?
उत्तर –होली फागुन माह
में आती हैं जो अंग्रेजी कैलेंडर के आधार पर फरवरी या मार्च का महीना होता
है। और ठीक इसी माह भारत में ऋतुराज बसंत
का आगमन भी होता है। और ऋतुराज बसंत के आगमन से प्रकृति एक बार फिर से सजने संवरने
लगती है।
बाग बगीचे , खेत खलिहानों
में चारों तरफ धीरे-धीरे फूल खिलने लगते हैं। आम , लीची जैसे अनेक
पेड़ों में बौंर आनी शुरू हो जाती है। गुन-गुन करते भौंरे एक फूल से दूसरे फूल पर
मंड़राते लगते हैं। पेड़ हरे , लाल व पीले रंग के पत्तों से लदने शुरू
हो जाते हैं। काफी लंबी ठिठुरन भरी ठंड के
बाद इस माह धरती का तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। और लोगों को ठंड से राहत मिली
शुरू हो जाती है।
एक तो हाड़ कांपती ठंड से छुटकारा , ऊपर से चारों तरफ खूबसूरत प्राकृतिक
सौंदर्य , जिससे लोगों का मन प्रसन्नता व उमंग से भर जाता है। और ठीक इसी समय
मौज-मस्ती , उमंग व रंगो का त्यौहार होली भी आता है जो
लोगों के खुशियों में चार चांद लगा देता है।
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की कविता -“उत्साह”
अट नहीं रही है कविता का वीडियो देखें
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