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आत्मा का ताप -सैयद अहमद रजा (आत्मकथा)

aatma ka taap class-11 hindi
aatma-ka-taap 

कक्षा - 11 "हिंदी - आरोह"  पाठ - आत्मा का ताप 

लेखक परिचय

जीवन परिचय- सैयद हैदर रज़ा का जन्म 1922 ई में मध्य प्रदेश के बाबरिया गाँव में हुआ। इन्होंने स्कूली शिक्षा नागपुर बोर्ड से पास की। उन्होंने गोंदिया में ड्राइंग टीचर की नौकरी की। इन्होंने चित्रकला की शिक्षा नागपुर स्कूल ऑफ आर्ट व सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई से प्राप्त की। इन्होंने भारत में अपनी कला की अनेक प्रदर्शनियाँ आयोजित कीं। इसके बाद 1950 ई. में वे फ्रांसीसी सरकार की छात्रवृत्ति पर फ्रांस गए और वहाँ चित्रकला का अध्ययन किया। इन्होंने आधुनिक भारतीय कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया। इन्हें ग्रेड ऑव ऑफ़िसर ऑव द आर्डर ऑव आटर्स ऐंड लेटर्सअवार्ड से सम्मानित किया गया।

रचना-सैयद हैदर रज़ा कलाकार तो हैं ही, साथ ही अच्छे लेखक भी हैं। इनके द्वारा लिखी हुई पुस्तक का नाम है-आत्मा का ताप’ (आत्मकथा)।

विशेषताएँ-आधुनिक भारतीय चित्रकला को जिन कलाकारों ने नया और आधुनिक मुहावरा दिया, उनमें सैयद हैदर रज़ा का नाम महत्वपूर्ण है। रज़ा सिर्फ इसी वजह से कला की दुनिया में आदरणीय नहीं हैं, बल्कि वे हुसैन व सूज़ा के समान महान कलाकार हैं जिन्होंने भारतीय चित्रकला को प्रसिद्ध दिलाई।

इनमें हुसैन घुमक्कड़ी स्वभाव के कारण भारत में ही रहे। सूज़ा न्यूयार्क चले गए और रज़ा पेरिस में जाकर बस गए। इस तरह रज़ा की कला में भारतीय व पश्चिमी कला दृष्टियों का मेल हुआ। वे लंबे समय तक पश्चिम में रहे तथा वहाँ की कला की बारीकियों का अध्ययन किया। वे ठेठ रूप से भारतीय कलाकार हैं। बिंदु उनकी कला-रचना के केंद्र में है। उनकी कई कलाकृतियाँ बिंदु का रूपकार है। यह बिंदु केवल रूपकार नहीं है, बल्कि पारंपरिक भारतीय चिंतन का केंद्र बिंदु भी है। केंद्र बिंदु की तरफ इनका झुकाव इनके स्कूली शिक्षक नंदलाल झरिया ने कराया था।

रज़ा की कला और व्यक्तित्व में उदारता है। इनकी कला में रंगों की व्यापकता और अध्यात्म की गहराई है। इनकी कला को भारत सहित दूसरे देशों में सराहा गया है। इन पर रुडॉल्फ वॉन लेडेन, पियरे गोदिबेयर, गीति सेन, जाक लासें, मिशेल एंबेयर आदि ने मोनोग्राफ लिखे हैं।

पाठ का सारांश

यह पाठ रज़ा की आत्मकथात्मक पुस्तक आत्मा का ताप का एक अध्याय है। इसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद मधु बी. जोशी ने किया है। इसमें रज़ा ने चित्रकला के क्षेत्र में अपने आरंभिक संघर्षों और सफलताओं के बारे में बताया है। एक कलाकार का जीवन-संघर्ष और कला-संघर्ष, उसकी सर्जनात्मक बेचैनी, अपनी रचना में सर्वस्व झोंक देने का उसका जुनून ये सारी चीजें रोचक शैली में बताई गई हैं।

लेखक को स्कूल की परीक्षा के दस में नौ विषयों में विशेष योग्यता मिली तथा वह कक्षा में प्रथम आया। पिता जी के रिटायर होने के कारण उसे गोंदिया में ड्राइंग टीचर की नौकरी की। शीघ्र ही उन्हें बंबई (मुंबई) के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की सरकारी छात्रवृत्ति सितंबर 1943 में मिली। पद से त्यागपत्र देने के बाद वह बंबई पहुँचा तो दाखिला बंद हो चुका था। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की, परंतु वह वापस नहीं लौटा और मुंबई में ही रहने लगा। यहाँ एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी की तथा साल भर की मेहनत के बाद स्टूडियो के मालिक जलील व मैनेजर हुसैन ने उसे मुख्य डिजाइनर बना दिया।

दिन भर काम करने के बाद वह पढ़ने के लिए मोहन आर्ट क्लब जाता। वह जेकब सर्कल में टैक्सी ड्राइवर के घर सोता था। वह ड्राइवर रात में टैक्सी चलाता था तथा दिन में सोता था। इस तरह इनका काम चलता था। एक रात नौ बजे वह कमरे पर पहुँचा तो वहाँ पुलिसवाला खड़ा था। पता चला कि यहाँ हत्या हुई है। वह घबरा गया तथा तुरंत पुलिस स्टेशन जाकर उसने कमिश्नर से मिलकर सारी बात बताई। कमिश्नर ने बताया कि टैक्सी में किसी ने सवारी की हत्या कर दी थी। अगले दिन जलील साहब ने सारी कहानी सुनने के बाद उसे आर्ट डिपार्टमेंट में कमरा दे दिया।

जलील साहब ने कई दिनों तक लेखक को देर रात तक स्केच बनाते हुए देखा था। जिससे प्रभावित होकर उन्होंने अपने फ्लैट का एक कमरा लेखक को दे दिया।

लेखक पूरी तरह काम में डूब गया और 1948 ई. में उसे बॉम्बे सोसाइटी का स्वर्ण पदक मिला। इस पुरस्कार को पाने वाला यह सबसे कम आयु का कलाकार था। दो वर्ष बाद इन्हें फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति मिली। नवंबर, 1943 में आट्र्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में लेखक के दो चित्र प्रदर्शित हुए। अगले दिन टाइम्स ऑफ इंडिया में कला समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने लेखक के चित्रों की तारीफ की। दोनों चित्र 40-40 रुपये में बिक गए। ये पैसे उसकी महीने भर की कमाई से अधिक थे।

लेखक को प्रोत्साहन देने वालों में वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लैंगहैमर भी थे। उन्होंने उसे काम करने के लिए अपना स्टूडियो दे दिया। वे द टाइम्स ऑफ इंडियामें आर्ट डायरेक्टर थे। लेखक दिन में बनाए हुए चित्र उन्हें दिखाता। उसका काम निखरता गया। लैंगहैमर उसके चित्र खरीदने लगे। 1947 ई. में वह जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट का नियमित छात्र बन गया।

19471948 के वर्ष बहुत कठिन थे। पहले लेखक की माता व फिर पिता का देहांत हो गया। देश में आजादी का उत्साह था, परंतु विभाजन की त्रासदी थी। लेखक युवा कलाकारों के साथ रहता था। उन्हें लगता था कि वे पहाड़ हिला सकते हैं। सभी अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार बढ़िया काम करने में जुट गए।

लेखक 1948 ई. में श्रीनगर जाकर चित्र बनाए। तभी कश्मीर पर कबायली हमला हुआ। हालांकि लेखक ने भारत में रहने का फैसला किया। वह बारामूला तक गया जिसे घुसपैठियों ने ध्वस्त कर दिया था। लेखक के पास कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का सिफारिश पत्र था जिसके आधार पर वह यात्रा कर सका। इस यात्रा में उसकी भेंट प्रख्यात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ से हुई। उसने लेखक की चित्रों की प्रशंसा की, परंतु उनमें रचना का अभाव बताया। उसने सेजाँ का काम देखने की सलाह दी। लेखक पर इसका गहरा प्रभाव हुआ। मुंबई आकर उसने अलयांस फ्रांसे में फ्रेंच भाषा सीखी। 1950 ई. में फ्रेंच दूतावास में सांस्कृतिक सचिव से हुए वार्तालाप के बाद उसे दो वर्ष की छात्रवृत्ति मिली।

लेखक 2 अक्टूबर, 1950 को फ्रांस के मार्सेई पहुँचा। बंबई में उसमें काम करने की इच्छा थी। आत्मा का चढ़ा ताप लोगों को दिखाई देता था। लोग सहायता करते थे। वह युवा कलाकारों से कहता है कि चित्रकला व्यवसाय नहीं, आत्मा की पुकार है। इसे अपना सर्वस्व देकर ही कुछ ठोस परिणाम मिल पाते हैं। केवल जहरा जफरी को काम करने की ऐसी लगन मिली। वह दमोह शहर के आसपास के ग्रामीणों के साथ काम करती हैं। लेखक यह संदेश देना चाहता है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहो-खुद कुछ करो। अच्छे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं करते, जबकि उनमें तमाम संभावनाएँ हैं।

लेखक बुखार से छटपटाता-सा अपनी आत्मा को संतप्त किए रहता है। उसकी बात कोई बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, परंतु उसमें काम करने का संकल्प है। गीता भी कहती है कि जीवन में जो कुछ है, तनाव के कारण है। जीवन का पहला चरण बचपन एक जागृति है, लेकिन लेखक के लिए बंबई का दौर ही जागृति चरण था। वह कहता है पैसा कमाना महत्वपूर्ण होता है, अंतत: वह महत्वपूर्ण नहीं होता। उत्तरदायित्व पूरे करने के लिए पैसा जरूरी है।

आत्मा का ताप की सीख

अगर आपको सफलता प्राप्त करनी है तो आपको उसके लिए कड़ी मेहनत और कभी न हार मानने की जिद्द अपने अन्दर पैदा करनी होगी .निरंतर कड़ी मेहनत से आप हर वो चीज हासिल कर सकते है .जिसके सपने आप देखा करते है .हमेशा कुछ नया सिखने की चाह ,कामयाबी हासिल करने का एक बेहतर विकल्प है .

शब्दार्थ

पृष्ठ संख्या 12o

रिटायर-कार्य से मुक्त। पेशकश-प्रस्ताव करना। गैलरियाँ-चित्र प्रदर्शनी की जगह। डिजाइनर-नए रूप बनाने वाला। दौर-सिलसिला।

पृष्ठ संख्या 121

वारदात-घटना। संदिग्ध-संदेह से मुक्त। अक्ल गुम होना-बुद्ध नष्ट होना। रामकहानी-घटना संबंधी सभी बातें। स्केच-रेखाओं से बने चित्र। ठिकाना-रहने का स्थान। गलीज-गंदा। उदघाटन-शुरुआत करना।

पृष्ठ संख्या 122

प्रतिभा-कला-शक्ति। संयोजन-मेल। दक्ष-कुशल। संग्राहक-इकट्ठा करने वाला। विश्लेषण-जाँचना-परखना। त्रासदी-दुखद घटना। सामथ्र्य-शक्ति।

पृष्ठ संख्या 123

क्रूर-कठोर। आत्मसात-मन में ग्रहण करना। उबर-मुक्त होकर। ध्वस्त-नष्ट। स्थानीय-वहीं का रहने वाला। शहराती-शहर में रहने वाला।

पृष्ठ संख्या 124

वार्तालाप-बातचीत। जीनियस-प्रतिभाशाली। ऊर्जा-शक्ति। ताप-जोश। सर्वस्व-सब कुछ। ठोस-वास्तविक।

पृष्ठ संख्या 125

धृष्टता-बिना किसी लिहाज के। हाथ पर हाथ धरना-कुछ न करना। संपन्न-धनी। चित्त-हृदय। संतप्त-दुखी। आजीविका-रोजी-रोटी। उत्तरदायित्व-जिम्मेदारी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मैंने अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया। जब तक मैं बंबई पहुँचा तब तक जे.जे. स्कूल में दाखिला बंद हो चुका था। दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा न हो पाता। छात्रवृत्ति वापस ले ली गई। सरकार ने मुझे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की। मैंने तय किया कि मैं लौटूँगा नहीं, बंबई में ही अध्ययन करूंगा। (पृष्ठ-120)

प्रश्न

1.            लेखक ने नौकरी से त्यागपत्र क्यों दिया?

2.            लेखक की छात्रवृत्ति वापिस लेने का कारण बताइए।

3.            सरकार ने उन्हें क्या पेशकश की?

उत्तर-

1.            लेखक को मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्टस में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की सरकार की तरफ से छात्रवृत्ति मिली। इस कारण उन्होंने अमरावती के गवर्नमेंट नॉर्मल स्कूल से त्यागपत्र दे दिया।

2.            लेखक को जे.जे. स्कूल में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति मिली, परंतु त्यागपत्र देने व अन्य कारणों से वह मुंबई देर से पहुँचा। तब तक इस स्कूल में दाखिले बंद हो गए थे। यदि दाखिला हो भी जाता तो उपस्थिति का प्रतिशत पूरा नहीं हो पाता। अत: दाखिला न लेने के कारण छात्रवृत्ति वापस ले ली गई।

3.            लेखक ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और उसे जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला भी नहीं मिला। अब वह बेरोजगार था। अत: सरकार ने उसे अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की।

2. इस सम्मान को पाने वाला मैं सबसे कम आयु का कलाकार था। दो बरस बाद मुझे फ्रांस सरकार की छात्रवृत्ति मिल गई। मैंने खुद को याद दिलाया: भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं। मेरे पहले दो चित्र नवंबर 1943 में आट्र्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया की प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुए। उद्घाटन में मुझे आमंत्रित नहीं किया गया, क्योंकि मैं जाना-माना नाम नहीं था। अगले दिन मैंने द टाइम्स ऑफ़ इंडियामें प्रदर्शनी की समीक्षा पढ़ी। (पृष्ठ-121)

प्रश्न

1.            लखक को कौन-सा सम्मान मिला तथा क्यों?

2.            ‘भगवान के घर दर हैं अधर नहीं”-यह कथन किसस, किस सदर्भ में कहा?

3.            लखक ने प्रदर्शनी की समीक्षा में क्या पढ़ा?

उत्तर-

1.            लेखक को 1948 ई. में बॉम्बे ऑट्र्स सोसाइटी का स्वर्ण पदक मिला। वह पुरस्कार पाने वाला सबसे कम आयु का कलाकार था।

2.            यह कथन लेखक ने उस समय कहा जब बॉम्बे ऑट्र्स सोसाइटी द्वारा स्वर्ण पदक मिला।

3.            लेखक ने प्रदर्शनी की समीक्षा द टाइम्स ऑफ इंडियामें पढ़ी जिसमें कला समीक्षक रुडॉल्फ वॉन लेडेन ने लिखा था कि एस.एच. रज़ा के नाम के छात्र के एक-दो जलरंग लुभावने हैं। उनमें संयोजन और रंगों के दक्ष प्रयोग की जबरदस्त समझदारी दिखती है।

3. भले ही 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हों, मेरे लिए वे कठिन बरस थे। पहले तो कल्याण वाले घर में मेरे पास रहते मेरी माँ का देहांत हो गया। पिता जी मेरे पास ही थे। वे मंडला लौट गए। मई 1948 में वे भी नहीं रहे। विभाजन की त्रासदी के बावजूद भारत स्वतंत्र था। उत्साह था, उदासी भी थी। जीवन पर अचानक जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा। हम युवा थे। मैं पच्चीस बरस का था, लेखकों, कवियों, चित्रकारों की संगत थी। हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं। और सभी अपने-अपने क्षेत्रों में, अपने माध्यम में सामथ्र्य भर-बढ़िया काम करने में जुट गए। देश का विभाजन, महात्मा गांधी की हत्या क्रूर घटनाएँ थीं। व्यक्तिगत स्तर पर, मेरे माता-पिता की मृत्यु भी ऐसी ही क्रूर घटना थी। हमें इन क्रूर अनुभवों को आत्मसात करना था। हम उससे उबर काम में जुट गए। (पृष्ठ-122–123)

प्रश्न

1.            19471948 में कौन-कौन-सी महत्वपूर्ण घटनाएँ हुई?

2.            लेखक के साथ व्यक्तिगत रूप से कौन-सी दुखद घटनाएँ घटीं?

3.            घटनाओं को आत्मसात करने से लखक का क्या अभिप्राय हैं?

उत्तर-

1.            1947 में वर्षों की गुलामी के बाद भारत अंग्रेजों से आज़ाद हुआ। भारत का विभाजन कर दिया गया था। 1948 ई. में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी। ये दोनों घटनाएँ राष्ट्र पर गहरा प्रभाव डालने वाली थीं।

2.            लेखक की माता की मृत्यु 1947 में हुई। उसके पिता साथ रहते थे, परंतु माता की मृत्यु के बाद वे मंडला चले गए। 1948 ई. में उनकी भी मृत्यु हो गई। अत: सारी जिम्मेदारियाँ लेखक के कंधों पर अचानक आ पड़ीं।

3.            1947 में देश को आज़ादी मिली, परंतु विभाजन की पीड़ा के साथ। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। लेखक के ऊपर भी जिम्मेदारियाँ आ गई, क्योंकि माता-पिता दोनों का अचानक निधन हो गया। घर व देश दोनों जगह अव्यवस्था थी। अत: इन सभी घटनाओं को आत्मसात यानी चुपचाप सहन करके ही आगे बढ़ा जा सकता था।

4. 1948 में मैं श्रीनगर गया, वहाँ चित्र बनाए। ख्वाज़ा अहमद अब्बास भी वहीं थे। कश्मीर पर कबायली आक्रमण हुआ, तब तक मैंने तय कर लिया था कि भारत में ही रहूँगा। मैं श्रीनगर से आगे बारामूला तक गया। घुसपैठियों ने बारामूला को ध्वस्त कर दिया था। मेरे पास कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का पत्र था, जिसमें कहा गया था कि यह एक भारतीय कलाकार हैं, इन्हें जहाँ चाहे वहाँ जाने दिया जाए और इनकी हर संभव सहायता की जाए। एक बार मैं बस से बारामूला से लौट रहा था या वहाँ जा रहा था तो स्थानीय कश्मीरियों के बीच मुझ पैंटधारी शहराती को देखकर एक पुलिसवाले ने मुझे बस से उतार लिया। मैं उसके साथ चल दिया। उसने पूछा, ‘कहाँ से आए हो? नाम क्या है?” मैंने बता दिया कि मैं रज़ा हूँ, बंबई से आया हूँ। शेख साहब की चिट्ठी उसे दिखाई। उसने सलाम ठोंका और परेशानी के लिए माफी माँगता हुआ चला गया। (पृष्ठ-123)

प्रश्न

1.            1948 ई में कश्मीर में क्या घटना घटी?

2.            लेखक ने क्या तया किय?

3.            रज़ा को मिले पत्र में क्या लिखा था?

उत्तर-

1.            1948 ई. में कश्मीर पर कबायली हमला हुआ। उन्होंने बारामूला को तहस-नहस कर दिया था। उस समय रज़ा श्रीनगर में था।

2.            कबायली हमले को देखकर रज़ा ने निर्णय किया कि वह पाकिस्तान के बजाय भारत में रहेगा। वह देश विभाजन के पक्ष में नहीं था।

3.            रज़ा को तत्कालीन कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला का पत्र मिला था। इसमें लिखा था कि यह एक भारतीय कलाकार हैं, इन्हें जहाँ चाहे वहाँ जाने दिया जाए और इनकी हर संभव सहायता की जाए।

5. श्रीनगर की इसी यात्रा में मेरी भेंट प्रख्यात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ से हुई। मेरे चित्र देखने के बाद उन्होंने जो टिप्पणी की वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण रही है। उन्होंने कहा, ‘तुम प्रतिभाशाली हो, लेकिन प्रतिभाशाली युवा चित्रकारों को लेकर मैं संदेहशील हूँ। तुम्हारे चित्रों में रंग है, भावना है, लेकिन रचना नहीं है। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि चित्र इमारत की ही तरह बनाया जाता है-आधार, नींव, दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह टिकता है। मैं कहूँगा कि तुम सेज़ाँ का काम ध्यान से देखो।इन टिप्पणियों का मुझ पर गहरा प्रभाव रहा। बंबई लौटकर मैंने फ्रेंच सीखने के लिए अलयांस फ्रांसे में दाखिला ले लिया। फ्रेंच पेंटिंग में मेरी खासी रुचि थी, लेकिन मैं समझना चाहता था कि चित्र में रचना या बनावट वास्तव में क्या होगी। (पृष्ठ-123)

प्रश्न

1.            श्रीनगर में लेखक की मुलाकात किससे हुई? वह लेखक के लिए महत्वपूर्ण कैसे थी?

2.            लखक की चित्रकला में क्या कमी थी?

3.            लेखक को श्रीनगर की यात्रा से क्या प्रेरणा मिली ?

उत्तर-

1.            श्रीनगर में लेखक की मुलाकात फ्रेंच फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए ब्रेसाँ से हुई। उसने लेखक के चित्रों को देखा तथा उन पर टिप्पणी की। उसने कहा कि तुम प्रतिभाशाली हो, परंतु उसमें निखार नहीं आया है। तुम्हारे चित्रों में रंग, भावना है, परंतु रचना नहीं है। तुम्हें सेज़ाँ का काम देखना चाहिए।

2.            लेखक की चित्रकला में रचना पक्ष की कमी थी। जिस प्रकार इमारत की रचना में आधार, नींव, दीवार, बीम, छत आदि की भूमिका होती है, उसी प्रकार लेखक के चित्रों में आधार की कमी थी।

3.            लेखक को श्रीनगर की यात्रा से यह प्रेरणा मिली कि उसने बंबई लौटते ही अलमांस फ्रांसे में दाखिला लिया ताकि फ्रेंच भाषा सीख सके। उसे फ्रेंच पेंटिंग में खासी रुचि थी, परंतु वह बनावट या रचना को समझना चाहता था।

6. मैंने धृष्टता से उन्हें बताया कि बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीखामेरे मन में शायद युवा मित्रों को यह संदेश देने की कामना है कि कुछ घटने के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहो-खुद कुछ करो। जरा देखिए, अच्छे-खासे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं कर रहे, जबकि उनमें तमाम संभावनाएँ हैं। और यहाँ हम बेचैनी से भरे, काम किए जाते हैं। मैं बुखार से छटपटाता-सा, अपनी आत्मा, अपने चित्त को संतप्त किए रहता हूँ। मैं कुछ ऐसी बात कर रहा हूँ जिसमें खामी लगती है। यह बहुत गजब की बात नहीं है, लेकिन मुझमें काम करने का संकल्प है। भगवद् गीता कहती है, ‘जीवन में जो कुछ भी है, तनाव के कारण है।बचपन, जीवन का पहला चरण, एक जागृति है। लेकिन मेरे जीवन का बंबईवाला दौर भी जागृति का चरण ही था। (पृष्ठ-125)

प्रश्न

1.            लेखक युवा मित्रों को क्या सर्देश देता है?

2.            लेखक अपने चित्त को क्यों सतपत किए रहता हैं?

3.            भगवद् गीता का सर्देश क्या है?

उत्तर-

1.            लेखक युवा मित्रों के संदेश देता है कि उन्हें काम करना चाहिए। उन्हें कुछ घटने का इंतजार नहीं करना चाहिए। हाथ पर हाथ धरे रखना मूर्खता है।

2.            लेखक सच्चा कलाकार है। उसकी आत्मा निरंतर नया करने के लिए व्याकुल रहती है। उसका कलाकार मन बुखार से पीड़ित व्यक्ति की तरह छटपटाता है।

3.            भगवद्गीता का संदेश है-जीवन में जो कुछ भी है, तनाव के कारण है। अर्थात् संघर्ष के बिना उन्नति नहीं हो सकती। अगर जीवन में उन्नति और सफलता का स्वाद चखना है तो उसे संघर्ष के पथ पर चलना ही होगा।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

प्रश्न 1:रजा ने अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी की पेशकश क्यों नहीं स्वीकार की?

उत्तर-लेखक को मध्य प्रांत की सरकार की तरफ से बंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आट्र्स में दाखिला लेने के लिए छात्रवृत्ति मिली। जब वे अमरावती के गवर्नमेंट नार्मल स्कूल से त्यागपत्र देकर बंबई पहुँचा तो दाखिले बंद हो चुके थे। सरकार ने छात्रवृत्ति वापस ले ली तथा उन्हें अकोला में ड्राइंग अध्यापक की नौकरी देने की पेशकश की। लेखक ने यह पेशकश स्वीकार नहीं की, क्योंकि उन्होंने बंबई शहर में रहकर अध्ययन करने का निश्चय कर लिया था। उन्हें यहाँ का वातावरण, गैलरियाँ व मित्र पसंद आ गए। चित्रकारी की गहराई को जानने-समझने के लिए बंबई (अब मुंबई) अच्छी जगह थी। चित्रकारी सीखने की इच्छा के कारण उन्होंने यह पेशकश ठुकरा दी।

प्रश्न 2:बंबई में रहकर कला के अध्ययन के लिए रज़ा ने क्या-क्या संघर्ष किए?

उत्तर-बंबई में रहकर कला के अध्ययन के लिए रज़ा ने कड़ा संघर्ष किया। सबसे पहले उन्हें एक्सप्रेस ब्लाक स्टूडियो में डिजाइनर की नौकरी मिली। वे सुबह दस बजे से सायं छह बजे तक वहाँ काम करते थे फिर मोहन आर्ट क्लब जाकर पढ़ते और अंत में जैकब सर्कल में एक परिचित ड्राइवर के ठिकाने पर रात गुजारने के लिए जाते थे। कुछ दिन बाद उन्हें स्टूडियो के आर्ट डिपार्टमेंट में कमरा मिल गया। उन्हें फर्श पर सोना पड़ता था। वे रात के ग्यारह-बारह बजे तक चित्र व रेखाचित्र बनाते थे। उनकी मेहनत देखकर उन्हें मुख्य डिजाइनर बना दिया गया। कठिन परिश्रम के कारण उन्हें मुंबई आट्र्स सोसाइटी का स्वर्ण पदक मिला।

1943 ई. में उनके दो चित्र आट्र्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में रखे गए, किंतु उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। उनके चित्रों की प्रशंसा हुई। उनके चित्र 40-40 रुपये में बिक गए। वेनिस अकादमी के प्रोफेसर वाल्टर लैंगहैमर ने उन्हें अपना स्टूडियो दिया। लेखक दिनभर मेहनत करके चित्र बनाता तथा लैंगहैमर उन्हें देखते तथा खरीद भी लेते। इस प्रकार लेखक नौकरी छोड़कर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट का नियमित छात्र बना।

प्रश्न 3:भले ही 1947 और 1948 में महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी हों, मेरे लिए वे कठिन बरस थे-रजा ने ऐसा क्यों कहा?

उत्तर-रज़ा ने इन्हें कठिन बरस इसलिए कहा, क्योंकि इस दौरान उनकी माँ का देहांत हो गया। पिता जी की मंडला लौटना पड़ा तथा अगले साल उनका देहांत हो गया। इस प्रकार उनके कंधों पर सारी जिम्मेदारियाँ आ पड़ीं।

1947 में भारत आज़ाद हुआ, परंतु विभाजन की त्रासदी भी थी, गांधी की हत्या भी 1948 में हुई। इन सभी घटनाओं ने लेखक को हिला दिया। अत: वह इन्हें कठिन वर्ष कहता है।

प्रश्न 4:रजा के पसंदीदा फ्रेंच कलाकार कौन थे?

उत्तर-रज़ा के पसंदीदा फ्रेंच कलाकारों में सेज़ाँ, वॉन गॉज, गोगाँ पिकासो, मातीस, शागाल और ब्रॉक थे। इनमें वह पिकासो से सर्वाधिक प्रभावित थे।

प्रश्न 5: तुम्हारे चित्रों में रंग है, भावना है, लेकिन रचना नहीं है। तम्हें मालूम होना चाहिए कि चित्र इमारत की ही तरह बनाया जाता है-आधार, नींव, दीवारें, बीम, छत और तब जाकर वह टिकता है-यह बात

(क) किसने, किस संदर्भ में कही?

(ख) रज़ा पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?

 

उत्तर- (क) यह बात प्रख्यात फोटोग्राफर हेनरी कार्तिए-ब्रेसाँ ने श्रीनगर की यात्रा के दौरान सैयद हैदर रज़ा के चित्रों को देखकर कही थी। उनका मानना था कि चित्र में भवन-निर्माण के समान सभी तत्व मौजूद होने चाहिए। चित्रकारी में रचना की जरूरत होती है। उसने लेखक को सेज़ाँ के चित्र देखने की सलाह दी।

(ख) फ्रेंच फोटोग्राफर की सलाह का रज़ा पर गहरा प्रभाव पड़ा। मुंबई लौटकर उन्होंने फ्रेंच सीखने के लिए अलयांस फ्रांस में दाखिला लिया। उनकी रुचि फ्रेंच पेंटिंग में पहले ही थी। अब वे उसकी बारीकियों को समझने का प्रयास करने लगे। इस कारण उन्हें फ्रांस जाने का अवसर भी मिला।

पाठ के आस-पास

प्रश्न 1: रज़ा को जलील साहब जैसे लोगों का सहारा न मिला होता तो क्या तब भी वे एक जाने-माने चित्रकार होते? तर्क सहित लिखिए।

उत्तर- रज़ा को जलील साहब जैसे लोगों का सहारा न मिला होता तो भी वे एक जाने-माने चित्रकार होते। इसका कारण है-उनके अंदर चित्रकार बनने की अदम्य इच्छा। लेखक बचपन से ही प्रतिभाशाली था। उसे आजीविका का साधन मिल गया था, परंतु उसने सरकारी नौकरी छोड़कर चित्रकला सीखने के लिए कड़ी मेहनत की। मेहनत करने वालों का साथ कोई-न-कोई दे देता है। जलील साहब ने भी उनकी प्रतिभा, लगन व मेहनत को देखकर सहायता की। लेखक के उत्साह, संघर्ष करने की क्षमता, काम करने की इच्छा ही उसे महान चित्रकार बनाती है।

प्रश्न 2: चित्रकला व्यवसाय नहीं, अंतरात्मा की पुकार हैं-इस कथन के आलोक में कला के वर्तमान और भविष्य पर विचार कीजिए।

उत्तर- लेखक का यह कथन अक्षरश: सही है। जो व्यक्ति इस कला को सीखना चाहते हैं, उन्हें व्यावसायिकता छोड़नी होती है। व्यवसाय में व्यक्ति अपनी इच्छा से अभिव्यक्ति नहीं कर सकता। वह धन के लालच में कला के तमाम नियम तोड़ देता है तथा ग्राहक की इच्छानुसार कार्य करता है। उसकी रचनाओं में भी गहराई नहीं होती। ऐसे लोगों का भविष्य कुछ नहीं होता। जो कलाकार मन व कर्म से इस कला में काम करते हैं, वे अमर हो जाते हैं। उनकी कृतियाँ कालजयी होती हैं; उन्हें पैसे की कमी भी नहीं रहती, क्योंकि उच्च स्तर की रचनाएँ बहुत महँगी मिलती हैं। वर्तमान दौर में भी चित्रकला का भविष्य उज्ज्वल है।

प्रश्न 3: हमें लगता था कि हम पहाड़ हिला सकते हैं-आप किन क्षणों में ऐसा सोचते हैं?

उत्तर- जब व्यक्ति में कुछ करने की क्षमता व उत्साह होता है तब वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाता है। मेरे अंदर इतना आत्मविश्वास तब आता है जब कोई समस्या आती है। मैं उस पर गंभीरता से विचार करता हूँ तथा उसका सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश करता हूँ। ऐसे समय में मैं अपने मित्रों व सहयोगियों का साथ लेता हूँ। समस्या के शीघ्र हल होने पर हमें लगता है कि हम कोई भी कार्य कर सकते हैं।

प्रश्न 4: राजा रवि वर्मा, मकबूल फिदा हुसैन, अमृता शेरगिल के प्रसिदध चित्रों का एक अलबम बनाइए। सहायता के लिए इंटरनेट या किसी आर्टगैलरी से संपर्क करें।

उत्तर- विद्यार्थी स्वयं करें।

भाषा की बात

प्रश्न 1: जब तक मैं बबई पहुँचा, तब तक जे जे. स्कूल में दाखिला बद हो चुका था-इस वाक्य को हम दूसरे तरीके से भी कह सकते हैं। मेरे बबई पहुँचने से पहले जे जे स्कूल में दाखिला बद हो चुका था। -नीचे दिए गए वाक्यों को दूसरे तरीके से लिखिए-

(क) जब तक मैं प्लेटफॉर्म पहुँचती तब तक गाड़ी जा चुकी थी।

(ख) जब तक डॉक्टर हवेली पहुँचता तब तक सेठ जी की मृत्यु हो चुकी थी।

(ग) जब तक रोहित दरवाजा बंद करता तब तक उसके साथी होली का रंग लेकर अंदर आ चुके थे।

(घ) जब तक रुचि कैनवास हटाती तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी।

उत्तर-

(क) मेरे प्लेटफॉर्म पर पहुँचने से पहले गाड़ी जा चुकी थी।

(ख) डॉक्टर के हवेली पहुँचने से पहले सेठ जी की मृत्यु हो चुकी थी।

(ग) रोहित के दरवाजा बंद करने से पहले उसके साथी होली का रंग लेकर अंदर आ चुके थे।

(घ) रुचि के कैनवास हटाने से पहले बारिश शुरू हो चुकी थी।

प्रश्न 2: आत्मा का तापपाठ में कई शब्द ऐसे आए हैं जिनमें ऑ का इस्तेमाल हुआ है; जैसे-ऑफ, ब्लॉक, नॉर्मल। नीचे दिए गए शब्दों में यदि ऑ का इस्तेमाल किया जाए तो शब्द के अर्थ में क्या परिवर्तन आएगा? दोनों शब्दों का वाक्य-प्रयोग करते हुए अर्थ के अंतर को स्पष्ट कीजिए

हाल, काफी, बाल

उत्तर-

1.            हाल-दशा-मोहन का हाल खराब है।

हॉल-बड़ा कमरा-हमारे स्कूल के हॉल में प्रदर्शनी लगी है।

2.            काफी-पर्याप्त-मेरे लिए इतना खाना काफी है।

कॉफी-सर्दियों में पिया जाने वाला एक पेय-सुमन, मेरे लिए एक कप कॉफी बना देना।

3.            बाल-केश-सुंदरमती के बाल बहुत चमकीले व बड़े हैं।

बॉल-गेंद-सचिन ने हर बॉल पर रन लिए।

अन्य हल प्रश्न

बोधात्मक-प्रश्न

प्रश्न 1: कश्मीर के प्रधानमंत्री ने लेखक को कैसा पत्र दिया था? उसका उसे क्या फायदा हुआ?

उत्तर- कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने उन्हें एक पत्र दिया जिसमें लिखा था कि यह एक भारतीय कलाकार है, इन्हें जहाँ चाहे वहाँ जाने दिया जाए और इनकी हर संभव सहायता की जाए। एक बार लेखक बस से बारामूला से लौट रहा था। वहाँ पुलिसवाले ने शहरी आदमी को देखकर उन्हें बस से उतार लिया। पुलिस वाले ने पूछताछ की तो लेखक ने उसे शेख साहब की चिट्ठी उसे दिखाई। पुलिसवाले ने सलाम ठोंका और परेशानी के लिए माफी माँगी। प्रश्न

प्रश्न 2: लेखक को ऑटर्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की प्रदर्शनी में आमंत्रित क्यों नहीं किया गया?

उत्तर- 1943 में ऑट्र्स सोसाइटी ऑफ इंडिया की तरफ से मुंबई में एक चित्र प्रदर्शनी आयोजित की गई। इसमें सभी बड़े-बड़े नामी चित्रकारों को आमंत्रित किया गया। लेखक उन दिनों सामान्य कलाकार था। वह प्रसिद्ध नहीं था। इसलिए उसे आमंत्रित नहीं किया गया। हालाँकि उनके दो चित्र उस प्रदर्शनी में रखे गए थे।

प्रश्न 3: प्रोफेसर लैंगहेमर कौन थे? उन्होंने रज़ा की कैसे सहायता की?

उत्तर- प्रोफेसर लैंगहैमर वेनिस अकादमी में प्रोफेसर थे। रज़ा के चित्र देखकर उन्होंने प्रशंसा की तथा काम करने के लिए उसे अपना स्टूडियो दे दिया। वे द टाइम्स ऑफ इंडिया में आर्ट डायरेक्टर थे। लेखक दिन में उनके स्टूडियो में चित्र बनाता तथा शाम को उन्हें चित्र दिखाता। प्रोफेसर उन चित्रों का बीरीकी से विश्लेषण करते। धीरे-धीरे वे उसके चित्र खरीदने भी लगे। इस प्रकार उन्होंने रज़ा को आगे बढ़ने में सहयोग दिया।

प्रश्न 4: कला के विषय में रज़ा के विचारों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- रज़ा का मत है कि चित्रकला व्यवसाय नहीं, बल्कि अंतरात्मा की पुकार है। इसे अपना सर्वस्व देकर ही कुछ ठोस परिणाम मिल पाते हैं। वे कठिन परिश्रम को महत्वपूर्ण मानते हैं। उन्हें हैरानी है कि अच्छे संपन्न परिवारों के बच्चे काम नहीं कर रहे, जबकि उनमें तमाम संभावनाएँ हैं। युवाओं को कुछ घटने का इंतजार नहीं करना चाहिए तथा खुद नया करना चाहिए।

प्रश्न 5: धन के बारे में हैदर रज़ा की क्या राय है?

उत्तर- लेखक धन को जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका मानना है कि उत्तरदायित्व होते हैं, किराया देना होता है, फीस देनी होती है, अध्ययन करना होता है, काम करना होता है। वे धन को प्रमुख मानते हैं। उनका मानना है कि पैसा कमाना महत्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 6: आत्मा का तापपाठ का प्रतिपाद्य बताइए।

उत्तर- यह पाठ रज़ा की आत्मकथात्मक पुस्तक आत्मा का ताप का एक अध्याय है। इसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद मधु बी. जोशी ने किया है। इसमें रज़ा ने चित्रकला के क्षेत्र में अपने आरंभिक संघर्षों और सफलताओं के बारे में बताया है। एक कलाकार का जीवन-संघर्ष और कला-संघर्ष, उसकी सर्जनात्मक बेचैनी, अपनी रचना में सर्वस्व झोंक देने का उसका जुनून ये सारी चीजें रोचक शैली में बताई गई हैं।

बहुविकल्पी प्रश्न उत्तर

1. 'आत्मा का ताप' पाठ के रचयिता है

(A) सैयद हैदर रज़ा                            (B) सैयद अहमद रज़ा

(C) सैयद जलाल रज़ा                         (D) सैयद मुहम्मद रज़ा।

उत्तर-सैयद हैदर रज़ा

2. आत्मा का ताप' साहित्य की किस विधा से संबंधित है ?                                                                                         

(A) कहानी                                             (B) आत्मकथा

(C) जीवनी                                             (D) रेखाचित्र।

उत्तर-आत्मकथा।

3. कहाँ के स्कल में लेखक ने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था?

(A) मुंबई                                               (B) जबलपुर

(C) नागपुर                                            (D) जाम नगर।

उत्तर-नागपुर।

4. लेखक कहाँ ड्राइंग का अध्यापक बन गया था ?

(A) रायपुर                                             (B) गोंदिया

(C) चंद्रपुर                                             (D) अकोला।

5. 'जे० जे० स्कूल ऑफ आर्ट' में अध्ययन के लिए मध्य प्रांत की कौन-सी छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी?

(A) सरकारी                                           (B) गैर सरकारी

(C) औपचारिक                                      (D) अनौपचारिक

उत्तर-सरकारी।

6. सरकार ने कहाँ ड्राइंग अध्यापक देने की पेशकश की थी ?

(A) चंद्रपुर                                             (B) नागपुर

(C) अकोला                                            (D) गोंदिया।

उत्तर-अकोला।

7. लेखक ने कहाँ रहने का निश्चय किया था ?

(A) कोलकाता                                       (B) दिल्ली

(C) चेन्नई                                             (D) मुंबई।

उत्तर-मुंबई।

8. लेखक को रहने का स्थान किस ड्राइवर ने दिया था ?

(A) ट्रक                                                  (B) टैक्सी

(C) बस                                                  (D) थ्री व्हीलर।

उत्तर-टैक्सी।

9.टैक्सी ड्राइवर का क्या नाम था?                   

(A) गाल्फ़                                             (B) राल्फ

(C) गोल्फ़                                              (D) रोल्फा

उत्तर-राल्फा

10. सन् 1948 में बांबे आर्ट्स सोसाइटी का कौन-सा पदक मिला था

(A) रजत                                               (B) स्वर्ण

(C) कांस्य                                              (D) कोई भी नहीं।

उत्तर-स्वर्ण।

11. किस सरकार ने लेखक को छात्रवृत्ति दी थी?

(A) अमेरिका                                         (B) इंग्लैंड

(C) रूस                                                (D) फ्रांस।

उत्तर-फ्रांस।

12. रुडाल्फ वैन लेडेन की कला समीक्षा कहाँ छपी थी?

(A) हिंदुस्तान टाइम्स                         (B) द हिंदू

(C) टाइम्ज़ ऑफ़ इंडिया                     (D) नैशनल हैरल्ड।

उत्तर-टाइम्ज़ ऑफ़ इंडिया।

13. रजा के दोनों चित्र कितने रुपए के बिके थे?

(A) 30-30                                              (B) 40-40

(C) 50-50                                              (D) 60-60

उत्तर-40-401

14. लेखक कब जे० जे० स्कूल ऑफ आर्ट्स का नियमित छात्र बना?

(A) 1946                                               (B) 1947

(C) 1948                                                (D) 1949.

उत्तर-19471

15. लेखक फ्रांस के लिए किस महीने में निकला ?

(A) मार्च                                                (B) अप्रैल

(C) जुलाई                                              (D) सितंबर।

उत्तर-सितंबर।

16. चित्रकला किस की आवाज़ है?

(A) समाज की                                      (B) पेट की

(C) दिमाग की                                      (D) अंतरात्मा की।

उत्तर-अंतरात्मा की।

17. किस में कहा गया है-जीवन में जो कुछ भी है, तनाव के कारण है।

(A) रामायण                                          (B) रामचरितमानस

(C) गीता                                                (D) उपनिषद्।

उत्तर-गीता।

18. लेखक ने एक्सप्रेस ब्लॉक स्टूडियो में किस पद पर कार्य किया ?

(A) राइटर                                             (B) फोटोग्राफर

(C) डिज़ाइनर                                        (D) पेंटर।

उत्तर-डिज़ाइनर ।

19. प्रोफ़ेसर वाल्टर लैंगहैमर किस अकादमी के प्रोफ़ेसर थे?

(A) वेनिस                                             (B) पेरिस

(C) वियना                                             (D) बर्लिन।

उत्तर-वेनिस ।

20. लेखक के पिता का देहांत कब हुआ?

(A) मई 1947 में                                  (B) मई 1948 में

(C) मई 1949 में                                  (D) मई 1950 में।

उत्तर-20 मई, 1948 में।

21. सन् 1948 में लेखक ने कहाँ जाकर चित्र बनाए थे ?

(A) मनाली                                            (B) नैनीताल

(C) श्रीनगर                                            (D) महाबलेश्वर।

उत्तर-श्रीनगर।

22. हेनरी कार्टिए-बेसाँ कहाँ का प्रसिद्ध फोटोग्राफ़र था ?

(A) जर्मनी                                             (B) इटली

(C) रूस                                                (D) फ्रांस।

उत्तर-फ्रांस

23. लेखक के जीवन का कहाँ का दौर जागृति का चरण था ?

(A) पेरिस                                              (B) बंबई

(C) गोंदिया                                            (D) अकोला।

उत्तर-बंबई।

24. लेखक ने जीनियस किसे कहा है ?

(A) मातीस को                                     (B) शागाल को

(C) पिकासो को                                    (D) सेज़ाँ को।

उत्तर-पिकासो को।

25. सैयद हैदर रज़ा का जन्म कब हुआ था ?

(A)1920                                                (B) 1921

(C) 1922                                                (D) 1923.

उत्तर-1922

 

 


“If You Are Working On Something That You Really Care About, You Don’t Have To Be Pushed. The Vision Pulls You.”

 Steve Jobs  


आत्मा का ताप
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कुमार MAHESH

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