ना बैठो यूं किनारों पे ------------
अगर तुम चूमना चाहो , फलक चाँद सितारों के ,
मोजों से लड़ना ही होगा ,ना बैठो यूं किनारों पे I
गुलों से गुलशन में खुशबू , यूँ ही नहीं आती ,
तमाम रात पीनी पड़ती है , शबनम बहारों में I
मिट्टी रोंदी जाती है, मिट्टी कुचली जाती है ,
पात्र मिट्टी से बनाने का ,हुनर सीखो कुम्हारों से I
कुछ बनना है तो ,दर्द तो सहना ही होगा ,
पत्थर देवता बना है ,चोटों से ,प्रहारों से I
सत्ता “ जिसकी लाठी, उसी की भैंस” होती हैं,
नारे झुँठे ,जुमले होते है , ना जाओ नारों पे I
मुसीबत जब भी आती है,इंसा तनहा होता है,
खुशी मोंजों ही, मिलते है, झमेले यारों के I
रहनुमा मिला है कोई ,निवाला मुंह में देने को,
कब तलक फोड़ोगे सर , मंदिर के द्वारों पे I
बेड़ियाँ तोड़ों गुलामी की , जमीर जिन्दा करो,
कब तलक नाचते रहोगे ,ओरों के इशारों पे I
विजेता वे ही कहलाते है, जो समर में जंग लड़ते है,
अपाहिज कहलाते है वो ,जो जीते है सहारों पे I
कुमार
महेश
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