CAMRE ME BAND APAHIJ-Raghuveer Sahay |
रघुवीर सहाय का जीवन परिचय – Raghuveer Sahay ka Jeevan Parichay
रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसम्बर 1929 को तथा मृत्यु 30 दिसम्बर 1990 को हुई थी l वे हिंदी के साहित्यकार वा पत्राकार थे l इनका जन्म
लखनऊ में हुआ था, इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में
एम. ए. किया था l
Raghuveer sahay |
इन्होंने पत्रकारिता की शुरूआत दैनिक नव जीवन से की l जिसमें वे
उप संपादन तथा संस्कृति संवाददाता के पद पे रहे l जिसके बाद वे दिल्ली आ गए l कुछ दिन तक
प्रतीक के सम्पादक रहे और फिर आकाश वाणी के समाचार विभाग में उप सम्पादक रहे l
इनके साहित्य में पत्रकारिता की साफ झलक मिलती है l इनकी
कविताओं में 60 के दशक के बाद के भारत की तस्वीर समग्र रूप से दिखती है
l इनकी
कविताओं में मुख्य रूप से सामाजिक और लोकतांत्रिक में व्याप्त असमानता, शोषण, हत्या, आत्महत्या, विषमता, दासता, राजनीतिक
संप्रभुता, जाति धर्म से बंटते समाज की कोइ जगह नहीं है l
इनकी मुख्य कृतियाँ, दूसरा सप्तक, सीढियों पर धूप में,
आत्महत्या के विरूद्ध, हंसो जल्दी हंसो, रास्ता इधर से है l भाषा रूपांतरण, बाराह हंगरी
कि कहानियां, विवेकानंद इत्यादि हैं l लोग भूल गए हैं, के लिए इनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला था l
कैमरे में बंद अपाहिज कविता का
सारांश- CAMRE ME BAND
APAHIJ POEM SHORT SUMMARY
कैमरे में बंद अपाहिज कविता एक ऐसी कविता है जिसमें
दूरदर्शन के संचालक गण अपने आप को बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली बताते हैं एवं औरों को
वह कमजोर समझते हैं। इतना ही नहीं यह दूरदर्शन के संचालक विकलांगों से जाकर पूछते
हैं कि क्या आप सचमुच अपाहिज हैं और यदि आप अपाहिज है तो क्यों है? कैमरे में
बंद अपाहिज कविता “लोग भूल गए हैं” काव्य संग्रह से लिया गया है।
यह एक व्यंगात्मक कविता है। दूरदर्शन के संचालक जिस
तरीके से अपाहिज लोगों के समक्ष जाकर उनके दुख का मजाक उड़ाते हैं। उनके विकलांगता
पर प्रश्न करते हैं, ऐसे प्रश्न विकलांग लोगों को और भी कमजोर बना देते हैं।
यह कविता इन्हीं सब बातों पर आधारित है।
कैमरे में बंद अपाहिज का भावार्थ CAMRE ME BAND APAHIJ POEM LINE BY LINE EXPLANATION
काव्यांश 1.
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं ?
तो आप क्यों अपाहिज हैं ?
आपका अपाहिजपन तो दु:ख देता होगा
देता है ?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दु:ख क्या है
जल्दी बताइए वह दु:ख बताइए
बता नहीं पाएगा।
भावार्थ –
यहां पर “हम” शब्द का प्रयोग दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक के
लिए किया गया है। जिसे कवि सामर्थ्यवान व शक्तिवान बता रहे हैं।
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि दूरदर्शन के
कार्यक्रम का संचालक अपने आप को बहुत सामर्थ्यवान व शक्तिवान समझता है। इसीलिए वह
दर्शकों से कहता है कि हम आपको एक ऐसे व्यक्ति का साक्षात्कार दिखाएंगे जो अपंग है
, कमजोर
हैं।
हम दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उसका
साक्षात्कार लेंगे और उससे प्रश्न पूछेंगे कि “क्या आप अपाहिज हैं ?” । जबकि कार्यक्रम का संचालक यह जानता है कि वह
व्यक्ति अपंग है फिर भी वह इस तरह का प्रश्न पूछेगा ।
फिर संचालक उस व्यक्ति से अगला प्रश्न पूछेगा कि “तो आप क्यों अपाहिज हैं ? “। जैसे तो
वह व्यक्ति अपनी खुशी से अपाहिज हैं। फिर संचालक का तीसरा सवाल होगा “आपका अपाहिजपन तो दु:ख देता
होगा ?” ।
संचालक के इन बेतुके सवालों का वह व्यक्ति कोई जवाब नहीं
दे पायेगा क्योंकि उसका मन पहले से ही दुखी होगा । इन सवालों को सुनकर वह और दुखी
हो जायेगा। और उसके चेहरे पर उसकी लाचारी व आंखों में दर्द उभर आएगा। जिसे दर्शकों
को दिखाने के लिए कार्यक्रम का संचालक कैमरामैन से कहेगा कि इसे बड़ा कर दर्शकों को
दिखाओ। ताकि दर्शकों का मन करुणा से भर जाए और उसका कार्यक्रम खूब सफल व लोकप्रिय
हो जाय।
कवि आगे कहते हैं कि कार्यक्रम के संचालक को उस अपंग
व्यक्ति के चेहरे व आँखों में उसकी पीड़ा साफ़-साफ़ दिखाई देगी। बाबजूद इसके वह उससे
एक और बेतुका सवाल करेगा “हाँ तो बताइए आपका दु:ख क्या है
, जल्दी बताइए , वह दु:ख बताइए” यानि आप जल्दी- जल्दी अपना दुख बताइए। क्योंकि
हमारे पास सीमित समय हैं।
दरअसल टेलीविजन वालों के पास हर कार्यक्रम के लिए एक
निश्चित समय होता हैं। फिर लगभग व्यंग करते हुए वह कहेगा कि “यह नहीं बता पायेगा”।
काव्यसौंदर्य –
1. काव्यांश में साहित्यक खड़ी बोली का प्रयोग किया
है।
2. भाषा एकदम सहज और सरल है।
3. काव्यांश में नाटकीय शैली का प्रयोग किया हैं।
4. यह छंद मुक्त कविता हैं जबकि कविता व्यंग्य प्रधान
है।
काव्यांश 2 .
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
( हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा ? )
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे ?
)
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक
बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने
का
करते हैं ?
(यह प्रश्न नही पूछा जायेगा )
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि कार्यक्रम
का संचालक उस शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति से सवाल करता हैं की “सोचिए , बताइए आपको
अपाहिज होकर कैसा लगता है”। यानि सोचकर बताइये कि आप अपाहिज होकर कैसा महसूस करते
है। इससे ज्यादा अमानवीय क्या होगा कि एक अपाहिज व्यक्ति से पूछा जा रहा हैं कि
उसे अपाहिज होकर कैसा लग रहा है।
संचालक का यह प्रश्न उस व्यक्ति को और अधिक दुखी कर देता
है जिस कारण वह कुछ बोल नहीं पाता है। लेकिन संचालक को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
है। उसे तो अपने कार्यक्रम को सफल बनाना है। इसीलिए वह उस व्यक्ति से कहता है कि
वह इशारा करके उसे बताएगा कि उसे अपने आप को कैमरे के सामने कैसा दिखाना हैं या
कैसा महसूस करना है।
इसके बाद संचालक “सोचिए , बताइए , थोड़ी कोशिश और करिये” कहकर उस व्यक्ति को जबाब देने के लिए उकसाता है।
अगली पंक्तियों में अपाहिज व्यक्ति से संचालक बार-बार
जबाब देने को कह कर उसे उसके अपाहिज होने का एहसास दिला रहा हैं।और उसे बोलने व
रोने को मजबूर कर रहा है। उसे समझा रहा है कि अपनी अपंगता व अपने दुख को दुनिया के
सामने लाने का यही बेहतर मौका है।
और अगर इस वक्त वो नही बोलेगा तो टेलीविजन के माध्यम से
अपना दुःख दुनिया को बताने का सुनहरा अवसर उसके हाथ से निकल जाएगा।
कवि कहते है कि साक्षात्कार देने वाला वह अपाहिज व्यक्ति
शायद अपनी शाररिक दुर्बलता से इतना परेशान न भी हो मगर साक्षात्कार लेने वाला
व्यक्ति प्रश्न पूछ-पूछ कर , उसे बार-बार उसकी अपंगता का एहसास दिलाकर उसे रोने को
मजबूर कर देगा। और दर्शक भी उसके रोने का ही इंतजार करेंगे। क्योंकि कार्यक्रम का
संचालक यही तो चाहता हैं कि वह रोये , अपना दुःख लोगों के सामने प्रदर्शित करे ताकि उसका
कार्यक्रम रोचक बन सके , सफल हो सके।
काव्यशैली –
1. काव्यांश में साहित्यक खड़ी बोली का प्रयोग किया
गया है।
2. भाषा एकदम सहज और सरल है।
3. काव्यांश में बातचीत की शैली हैं।
4. यह छंद मुक्त कविता हैं जबकि कविता व्यंग्य प्रधान
है।
काव्यांश 3 .
फिर हम परदे पर दिखलाएंगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
( आशा हैं आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे )
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
( कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है )
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से
युक्त कार्यक्रम
( बस थोड़ी ही कसर रह गई )
धन्यवाद !
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि कार्यक्रम
के संचालक ने तरह-तरह के प्रश्न पूछ कर उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने का प्रयास
किया ताकि उसकी पीड़ा उसके आंखों में व उसके होठों की बैचेनी में दिखाई पड़े। और
फिर कार्यक्रम का संचालक उस अपंग व्यक्ति की फूली हुई आंखों व उसके होठों की
बैचेनी (कसमसाहट) की तस्वीर को टेलीविजन के पर्दे पर बड़ा करके दर्शकों को दिखायेगा
। और फिर दर्शकों से कहेगा कि इसे ही आप इस व्यक्ति की पीड़ा समझिये।
कवि आगे कहते हैं कि उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने की एक
और कोशिश करते हुए कार्यक्रम का संचालक दर्शकों से कहता हैं कि आप लोग धीरज रखिए।
देखिए हमें दोनों को एक साथ रुलाने वाले हैं यानि उस अपाहिज व्यक्ति को और दर्शकों
को।
लेकिन कार्यक्रम के संचालक के अनेक तरह के उटपटांग सवाल
पूछने के बाबजूद भी जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता हैं तो संचालक महोदय कैमरा मैन
से कैमरा बंद करने को कहते है और साथ ही उस अपाहिज व्यक्ति को पर्दे पर वक्त की
कीमत का एहसास भी करा देते है। उसे लगता हैं कि उस व्यक्ति को अपनी पीड़ा एक
निर्धारित समय के भीतर ही व्यक्त करनी थी।
इसके बाद वह अपने कार्यक्रम को खत्म करते हुए कहता हैं
कि “अब
हम मुसकुराएँगे और आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम , धन्यवाद “। लेकिन संचालक महोदय को कही
अंदर ही अंदर लगता हैं कि थोड़ी सी कस्रर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग
रुला ही दिया था।
काव्यशैली –
1. काव्यांश में साहित्यक खड़ी बोली का प्रयोग किया
गया है।
2. भाषा एकदम सहज और सरल है।
3. काव्यांश में बातचीत शैली व मुक्त छंद का प्रयोग
किया हैं जबकि कविता व्यंग्य प्रधान है।
4. कोष्टक में कथन होने के कारण कविता प्रभावशाली बन
गई है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
कविता के साथ
प्रश्न 1.कविता में कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी गई हैं-आपकी समझ से इनका
क्या औचित्य है?
उत्तर:कवि
ने कुछ पंक्तियाँ कोष्ठकों में रखी हैं। ये कोष्ठक कवि के मुख्य भाव को व्यक्त
करते हैं। इनमें लिखी पंक्तियों के माध्यम से अलग-अलग लोगों को संबोधित किया गया
है। ये एक तरह से संचालन करने के लिए हैं; जैसे-
कैमरा
मैन के लिए-
कैमरा
दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा
कैमरा
……. की
कीमत है।
दर्शकों
के लिए
हम
खुद इशारे से बताएँगे क्या ऐसा?
यह
प्रश्न पूछा नहीं जाएगा
अपंग
व्यक्ति को
वह
अवसर खो देंगे ?
बस
थोड़ी कसर रह गई।
ये
कोष्ठक कविता के मुख्य उद्देश्य को अभिव्यक्त करने में सहायक होते हैं।
प्रश्न 2.‘कैमरे में बंद अपाहिज’
करुणा के मुखौटे
में छिपी क्रूरता की कविता है-विचार कीजिए। ‘कैमरे
में बंद अपाहिज’ में निहित क्रूरता को उजागर कीजिए।
उत्तर:यह
कविता मानवीय करुणा तो प्रस्तुत करती ही है साथ ही इस कविता में उन लोगों की बनावटी
करुणा का वर्णन भी मिलता है जो दुख दरिद्रता को बेचकर यश प्राप्त करना चाहते हैं।
एक अपाहिज व्यक्ति के साथ झूठी सहानुभूति जताकर उसकी करुणा का सौदा करना चाहते
हैं। एक अपाहिज की करुणा को पैसे के लिए टी.वी. पर दर्शाना वास्तव में क्रूरता की
चरमसीमा है।
प्रश्न 3.हम समर्थ शक्तिवान और हम एक दुर्बल को लाएँगे’ पंक्ति के माध्यम से कवि ने क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:‘हम समर्थ शक्तिमान’ पंक्ति के
माध्यम से मीडिया की ताकत व कार्यक्रम संचालकों की मानसिकता का पता चलता है।
मीडिया कमी या मीडिया-संचालक अपने प्रचार-प्रसार की ताकत के कारण किसी का भी मजाक
बना सकते हैं तथा किसी को भी नीचे गिरा सकते हैं। चैनल के मुनाफ़े के लिए संचालक
किसी की करुणा को भी बेच सकते हैं। कार्यक्रम का निर्माण व प्रस्तुति संचालकों की
मर्जी से होता है।
‘हम एक दुर्बल को लाएँगे’पंक्ति में लाचारी का भाव है।
मीडिया के सामने आने वाला व्यक्ति कमजोर होता है। मीडिया के अटपटे प्रश्नों से
संतुलित व्यक्ति भी विचलित हो जाता है। अपंग या कमजोर व्यक्ति तो रोने लगता है। यह
सब कुछ उसे कार्यक्रम-संचालक की इच्छानुसार करना होता है।
प्रश्न 4.यदि शारीरिक रूप से चुनौती का सामना कर रहे व्यक्ति और दर्शक दोनों
एक साथ रोने लगेंगे? तो उससे प्रश्नकर्ता का कौन-सा
उद्देश्य पूरा होगा?
उत्तर:यदि
साक्षात्कार देने वाला अपंग व्यक्ति और दर्शक दोनों एक साथ रो देंगे तो
प्रश्नकर्ता सहानुभूति प्राप्त करने में सफल हो जाएगा। उसका यह भी उद्देश्य पूरा
हो जाएगा कि हमने सामाजिक कार्यक्रम दिखाया है। एक ऐसा कार्यक्रम जिसमें अपंग
व्यक्ति की व्यथा का मार्मिक चित्रण हुआ है। उस व्यक्ति की सोच और वेदना का
हू-ब-हू चित्र हमने दिखाया है।
प्रश्न 5.‘परदे पर वक्त की कीमत है’ कहकर
कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति अपना नजरिया किस रूप में रखा है?
उत्तर:इस
पंक्ति के माध्यम से कवि ने पूरे साक्षात्कार के प्रति व्यावसायिक नजरिया प्रस्तुत
किया है। परदे पर जो कार्यक्रम दिखाया जाता है, उसकी कीमत समय के अनुसार होती है। दूरदर्शन व
कार्यक्रम-संचालक को जनता के हित या पीड़ा से कोई मतलब नहीं होता। वे अपने
कार्यक्रम को कम-से-कम समय में लोकप्रिय करना चाहते हैं। अपंग की पीड़ा को कम करने
की बजाय अधिक करके दिखाया जाता है ताकि करुणा को ‘नकदी’ में बदला जा सके। संचालकों की सहानुभूति भी बनावटी
होती है।
कविता के आसपास
प्रश्न 1.यदि आपको शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे किसी मित्र का परिचय
लोगों से करवाना हो, तो किन शब्दों में करवाएँगी।
उत्तर:मुझे
यदि किसी शारीरिक चुनौती का सामना कर रही अपनी मित्र का परिचय करवना है तो मैं
उसकी अपंगता का मजाक नहीं उड़ाऊँगी और न ही उस अपंग लड़की को उसकी अपंगता का एहसास
दिलाने की कोशिश करूंगी। मैं तो लोगों से यही कहूँगी कि यह मेरी परम मित्र है। हम
बचपन से एक साथ पढ़ती आई हैं। यह लड़की मुझसे ज्यादा होशियार है। यद्यपि चलने में
इसे कुछ कठिनाई होती है, लेकिन पढ़ाई और स्कूल की अन्य गतिविधियों में यह सबसे आगे
रहती है। इसलिए हर साल यह प्रथम स्थान प्राप्त करती है। इसने अपनी मजबूरी को
मजबूती बना लिया है।
प्रश्न 2.‘सामाजिक उद्देश्य से युक्त’ ऐसे
कार्यक्रम को देखकर आपको कैसा लगेगा?
अपने विचार
संक्षेप में लिखें।
उत्तर:सामाजिक
उद्देश्य से युक्त ऐसे कार्यक्रम को देखकर मुझे बहुत दुख होगा। ऐसे कार्यक्रम किसी
की सहायता नहीं करते। ये सिर्फ़ अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाहते हैं ताकि वे
अधिक-से-अधिक धन कमा सकें। ऐसे कार्यक्रम बनाने वालों का उद्देश्य समाज-सेवा नहीं
होता। वे मात्र संवेदना बेचना जानते हैं। ऐसे कार्यक्रमों पर तुरंत रोक लगानी
चाहिए। दर्शकों को भी ऐसे कार्यक्रमों को सिरे से नकार देना चाहिए।
प्रश्न 3.यदि आप इस कार्यक्रम के दर्शक हैं तो टी.वी. पर ऐसे सामाजिक
कार्यक्रम को देखकर एक पत्र में अपनी प्रतिक्रिया दूरदर्शन निदेशक को भेजें।
उत्तर:आदरणीय
निदेशक दूरदर्शन पिछले वीरवार को आपके चैनल पर दिखाया गया अपाहित व्यक्ति के
साक्षात्कार कार्यक्रम देखा। ऐसे कार्यक्रम को देखकर बहुत दुख हुआ। ऐसा लगा मानो
आपने मानवीयता को ताक पर रख दिया हो। अपाहिज व्यक्ति से जिस तरह के प्रश्न पूछे जा
रहे थे उससे यही लगा कि दूरदर्शन अब केवल पैसा कमाने का माध्यम भर रह गया है। आपने
यह साक्षात्कार दिखाकर पूरी मानवीयता को शरमिंदा किया है। आशा है भविष्य में आप
ऐसे कार्यक्रम नहीं दिखाएँगे। राम मीरगंज, इलाहाबाद
प्रश्न 4.नीचे दिए गए खबर के अंश को पढ़िए और बिहार के इस बुधिया से एक
काल्पनिक साक्षात्कार कीजिए।
उत्तर:
साक्षात्कार
रवि
(प्रश्नकर्ता)-सर्वप्रथम आपको बधाई, इस अद्भुत कारनामे के लिए! आपकी उम्र क्या है?
बुधिया-पाँच
साल।
रवि-आपकी
यह विकलांगता कब से है?
बुधिया-जन्म
से।
रवि-इस
समय आप कहाँ पढ़ रहे हैं?
बुधिया-नवरसना
एकेडमी, बेउर में।
रवि-विकलांग
होने से आपको चलने में परेशानी होती है?
बुधिया-होती
थी, परंतु
अब आदत हो गई है।
रवि-आपको
यह कारनामा करने की प्रेरणा किससे मिली ?
बुधिया-जी, उड़ीसा के
बुधिया जी से जो 65 किलोमीटर दौड़ चुके हैं।
रवि-आपका
सपना क्या है?
बुधिया-मैं
कश्मीर से कन्याकुमारी तक की दूरी पैदल तय करना चाहता हूँ।
रवि-हमारी
शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं।
बुधिया-बहुत-बहुत
धन्यवाद! .
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रश्नकर्ता क्या सोचता है?
उत्तर:प्रश्नकर्ता
सोचता है कि यदि अपंग व्यक्ति के साथ-साथ दर्शक भी रो देंगे तो उनकी सहानुभूति
हमारे चैनल को मिल जाएगी। तब हम इसी प्रकार के और कार्यक्रम दिखाया करेंगे, जिस कारण
हमें खुब फायदा मिलेगा। हमारा चैनल दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करता जाएगा। लोग
हर समय हमारे चैनल को देखेंगे।
प्रश्न 2.प्रश्नकर्ता अपाहिज व्यक्ति को उसके अपाहिजपन का अहसास क्यों
दिलाना चाहता है?
उत्तर:प्रश्नकर्ता
चाहता है कि वह रो दे ताकि उसका रोना देखकर लोगों की करुणा जाग उठे। यदि ऐसा हो
गया तो कार्यक्रम निश्चित रूप से सफल हो जाएगा। इसीलिए वह अपाहिज व्यक्ति को उसके
अपाहिजपन का अहसास दिलाता है।
प्रश्न 3.कवि ने किस क्रूरता का चित्रण किया है?
उत्तर:कवि
ने इस कविता के माध्यम से मानवीय क्रूरता का चित्रण किया है। वह क्रूरता जो करुणा
के मुखौटे में छिपी है। यही मुखौटा ओढ़कर टी.वी. वाले अपाहिज तक का मजाक उड़ाते
हैं। उससे झूठी सहानुभूति रखते हैं। उससे ऐसे-ऐसे प्रश्न पूछते हैं कि मानवीयता भी
शर्मसार हो जाए।
प्रश्न 4.यह अवसर खो देंगे’
पंक्ति से क्या
आशय है?
उत्तर:प्रश्नकर्ता
अपाहिज व्यक्ति से कई तरह के प्रश्न करता है। यह उससे पूछता है कि आपको अपाहिज
होकर कैसा लगता है। इस प्रश्न का उत्तर सोचकर बताइए। यदि आपने इस समय इस प्रश्न का
उत्तर नहीं दिया तो आप लाखों दर्शकों के सामने अपना अनुभव बताने का सुनहरा अवसर खो
देंगे।
प्रश्न 5.ऐसे कार्यक्रम समाज को क्या संदेश देते हैं?
उत्तर:ऐसे
कार्यक्रम समाज को कोई संदेश नहीं देते। उल्टे, ऐसे कार्यक्रम देखकर लोगों के मन में विरोध और
क्रोध की भावना भर जाती है। लोग अपाहिज व्यक्ति के प्रति तो सहानुभूति रखते हैं, लेकिन
प्रश्नकर्ता के प्रति वे घृणा का भाव रखते हैं। वे समझ जाते हैं कि केवल पैसा
कमाने के लिए ही ये लोग अपंग व्यक्ति का सनसनीखेज साक्षात्कार दिखाते हैं। उन्हें
उसकी अपंगता से या मानवीयता से कोई मतलब नहीं है।
प्रश्न 6.“हम दूरदर्शन …
कमरे में’ का काव्य-सौंदर्य बताइए।
उत्तर:पहला
पद कविता के मूल भाव को स्पष्ट करता है। ‘हम’ शब्द का प्रयोग करके कवि ने इसके काव्य सौंदर्य में
अभिवृद्धि की है। यद्यपि कवि ने कुछ विशेष शब्दों का विशेष अर्थों में प्रयोग किया
तब भी भाषा में कठिनता नहीं है। ‘हम’ शब्द के माध्यम से कवि ने पत्रकारों और मीडिया के लोगों
की जमात का वर्णन किया है। इस पद का प्रत्येक शब्द अर्थ की गंभीरता लिए हुए है।
खड़ी बोली है। मुक्त छंद है।
प्रश्न 7.इस कविता में किन अलंकारों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर:कवि
ने इस कविता में अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, प्रश्न, उदाहरण आदि अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है।
कोई भी अलंकार थोपा हुआ प्रतीत नहीं होता। कवि ने भावों के अनुकूल अलंकारों का
सुंदर एवं सार्थक प्रयोग किया है। अलंकार योजना की दृष्टि से कविता अनूठी बन पड़ी
है।
प्रश्न 8.किस पद में करुण रस चरम पर जा पहुँचा है? तर्क सहित उत्तर दें।
उत्तर:जिस
पद में प्रश्नकर्ता यह बताता है कि हम अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उसे
रुला देंगे अथवा रोने के लिए मजबूर कर देंगे। उस पद में करुण रस चरम पर जा पहुँचा
है आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते हम पूछ पूछकर उनको रुला देंगे।
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का करते हैं?” ।
प्रश्न 9.कवि ने इस कविता में उर्दू शब्दावली का प्रयोग किया है? सोदाहरण लिखें।
उत्तर:कवि
ने कविता को अधिक अर्थवान बनाने के लिए उर्दू शब्दावली का प्रयोग किया है, उदाहरण
देखिए हम खुद इशारे से बताएंगे कि क्या ऐसा? थोड़ी कोशिश कीजिए। इंतज़ार करते हैं आप सभी उसके
रो पड़ने का एक और कोशिश। परदे पर वक्त की कीमत है।
प्रश्न 10.‘सोचिए’, ‘बताइए’ आदि शब्दों के प्रयोग से कविता का सौंदर्य बढ़ा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:‘सोचिए’ और ‘बताइए’ शब्दों के
प्रयोग से कविता और अधिक अर्थवान हो गई है। कवि ने अपने भावों को और अधिक प्रभावी
ढंग से प्रस्तुत किया है। ये शब्द न केवल प्रश्नकर्ता की मानसिकता बताते हैं बल्कि
अपाहिज व्यक्ति की मजबूरी भी दिखाते हैं।
“‘निंदा’ से
घबराकर अपने “लक्ष्य” को
ना छोड़े
क्योंकि ‘लक्ष्य’ मिलते
ही “निंदा” करने
वालों की
राय बदल जाती है l”
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