Ram-Lakshman-Parshuram-SamvadRam-Lakshman-Parshuram-Samvadसभी प्रकार के प्रश्नोत्तर |
Ram-Lakshman-Parshuram-Samvad |
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.”नाथ संभुधनु
भंजनिहारा” में ‘नाथ’ शब्द का प्रयोग हुआ है (क) राम के लिए। (ख) जनक के लिए। (ग) परशुराम के लिए। (घ) विश्वामित्र के लिए। 2. परशुराम ने लक्ष्मण को काल के वश बताया क्योंकि (क) वह उनको देखकर मुस्करा रहे थे। (ख) वह शिव के धनुष को धनुषियों के समान बता रहे थे (ग) वह परशुराम को चुनौती दे रहे थे। (घ) वह शिव के धनुष पर ममता का कारण पूछ रहे थे। 3. परशुराम विश्व में प्रसिद्ध थे (क) बाल ब्रह्मचारी के रूप में । (ख) अत्यंत क्रोधी के रूप में (ग) महान मुनि के रूप में। (घ) क्षत्रियों के शत्रु के रूप में। 4. लक्ष्मण ने परशुराम के वचनों को बताया (क) शान्त और शुभ । (ख) शास्त्र के विरुद्ध । (ग) आनन्ददायक। (घ) करोड़ों वज्रों के समान कठोर।। 5. लक्ष्मण के अनुसार परशुराम को शोभा नहीं दे रहा था (क) अपनी प्रशंसा स्वयं करना (ख) अस्त्र-शस्त्र धारण करना। (ग) गालियाँ देना (घ) मारने की धमकियाँ देना। 6. सभा के सभी लोगों ने अनुचित बताया (क) परशुराम को क्रोध करना (ख) लक्ष्मण का अपशब्द बोलना । (ग) विश्वामित्र का लक्ष्मण को न टोकना । (घ) जनक का चुप रहना। 7. ‘भृगुसुत’ से तात्पर्य है (क) परशुराम (ख) विश्वामित्र (ग) लक्ष्मण (घ) राम। 8. ‘रघुकुले भानु’ संज्ञा किस पात्र के लिए आया है (क) राम (ख) लक्ष्मण (ग) विश्वामित्र (घ) परशुराम। उत्तर
:1. (ग), 2. (ख), 3. (घ), 4. (घ), 5. (ग), 6. (ख) 7. (क),8. (क) । अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न
1. “होइहि केउ
एक दास तुम्हारा” राम ने इस पंक्ति में ‘दास’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है? उत्तर: राम ने ‘दास’ शब्द का प्रयोग अपने लिए किया
है क्योंकि वही धनुष को तोड़ने वाले हैं। प्रश्न
2. परशुराम ने
धनुष तोड़ने वाले को अपना सेवक क्यों नहीं माना? उत्तर: क्योंकि
सेवक वह होता है जो सेवा करता है। गुरु के धनुष को तोड़ने वाला सेवक नहीं शत्रु
है। प्रश्न
3. “ऐहि धनु पर
ममता केहि हेतू” लक्ष्मण के यह पूछने पर परशुराम को क्रोध क्यों आया? उत्तर: परशुराम के
क्रोध का कारण यह था कि लक्ष्मण साधारण धनुषियों से उनके गुरु शिव के धनुष की
तुलना कर रहे थे। प्रश्न
4. लक्ष्मण ने
धनुष के टूट जाने का क्या कारण बताया? उत्तर: लक्ष्मण ने कहा कि राम ने तो धनुष को नया जानकर परखा था, परन्तु वह तो राम के छूते ही
टूट गया। प्रश्न
5. परशुराम ने
लक्ष्मण को अपने स्वभाव के बारे में क्या बताया? उत्तर: परशुराम ने
कहा कि वह बहुत क्रोधी और क्षत्रियों को अपना शत्रु मानने वाले हैं। प्रश्न
6. परशुराम ने
ब्राह्मणों को बार-बार क्या दिया था? उत्तर: परशुराम ने
अपने पराक्रम से क्षत्रिय राजाओं का संहार करके उनकी भूमि बार-बार ब्राह्मणों को
दान की थी। प्रश्न
7. परशुराम ने
अपने फरसे की क्या विशेषता बताई? उत्तर: परशुराम ने
लक्ष्मण से कहा कि वह राजा सहस्रबाहु की हजार भुजाओं को काटने वाले फरसे को ध्यान
से देख लें। प्रश्न
8. परशुराम
द्वारा बार-बार फरसा दिखाए जाने पर लक्ष्मण ने क्या कहा? उत्तर: लक्ष्मण ने
कहा कि उन्हें बार-बार फरसे का डर दिखाकर परशुराम फेंक से पहाड़ उड़ाने की चेष्टा
कर रहे हैं। प्रश्न
9.“इहाँ
कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं ” कहने से लक्ष्मण का आशय क्या है? उत्तर: लक्ष्मण का
आशय यह है कि वह कोई डरपोक व्यक्ति नहीं हैं जो किसी की जरा-सी धमकी देने पर घबरा
जायेंगे। प्रश्न
10. लक्ष्मण ने
अपने कुल रघुवंश की क्या परम्परा बताई?” उत्तर: लक्ष्मण ने
कहा कि उनके वंश में देवताओं, ब्राह्मणों, भगवान के भक्तों और गायों पर वीरता दिखाने की परम्परा नहीं है। प्रश्न
11. “मारतहुँ पा
परिअ तुम्हारें लक्ष्मण ने परशुराम से ऐसा क्यों कहा? उत्तर: ऐसा कहने का
कारण यह था कि परशुराम ब्राह्मण थे। उनको मारने से पाप लगता और हारने पर अपयश
मिलता। प्रश्न
12. परशुराम ने
विश्वामित्र से क्या अनुरोध किया? उत्तर: परशुराम ने
विश्वामित्र से कहा कि वह उनका प्रताप, बल और क्रोध कैसा है, यह बताकर लक्ष्मण को समझा दें। प्रश्न
13. लक्ष्मण ने
शूरवीरों का क्या लक्षण बताया? उत्तर: लक्ष्मण ने
कहा कि शूरवीर शत्रु को रणभूमि में सामने देखकर अपने पराक्रम का परिचय दिया करते
हैं, बातें नहीं
बनाते। प्रश्न
14. परशुराम ने
विश्वामित्र को क्या उलाहना दिया? उत्तर: परशुराम ने
कहा कि वह निष्ठुर और क्रोधी हैं। उनके सामने उनके गुरु को अपराधी निरंतर विवाद कर
रहा है फिर भी वह उसे उनका (विश्वामित्र का) लिहाज करके नहीं मार रहे हैं। प्रश्न
15. परशुराम पर
किसका ऋण बाकी था और वह उसे कैसे चुकाना चाह रहे थे? उत्तर: परशुराम पर
गुरु का ऋण बाकी था, जिसे वह लक्ष्मण का वध करके चुकाना चाह रहे थे। प्रश्न
16. सभा के सभी
लोगों ने किस बात को अनुचित बताया? उत्तर: सभी लोगों
ने लक्ष्मण के द्वारा परशुराम के लिए कहे जाने वाले कठोर और अशिष्ट शब्दों को
अनुचित बताया। प्रश्न
17.शिव धनुष
भंग होने पर कौन कुपित हुआ? उत्तर: शिव के धनुष
के भंग होने पर परशुराम कुपित हुए। प्रश्न
18.प्रसंग में ‘गाधिसुत’ किसके लिए प्रयोग किया गया है ? उत्तर: प्रसंग में
गाधिसुत विश्वामित्र के लिए प्रयोग किया गया है। प्रश्न
19. परशुराम
लक्ष्मण को मंदबुद्धि क्यों कह रहे हैं? उत्तर: लक्ष्मण
अपने व्यंग्यपूर्ण वचनों से परशुराम को क्रोधित करके, अपने कुल का विनाश करा सकते
हैं। इस कारण परशुराम उन्हें मंदबुद्धि बता रहे हैं। प्रश्न
20. जनक दरबार
में बैठी सभा ‘हाय-हाय’ क्यों करने लगी? उत्तर: लक्ष्मण के
अपमानजनक कटुवचनों से क्रुद्ध होकर, उन्हें मारने के लिए जब परशुराम ने अपना फरसा हाथ में
लिया तो सभा रक्तपात के भय से हाय-हाय करने लगी। लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न
1. राम और
परशुराम के बीच क्या बातें हुईं? ‘लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ पाठ के आधार लिखिए। उत्तर: जब परशुराम
ने स्वयंवर-सभा में आकर पूछा कि यह शिव का धनुष किसने तोड़ा है, तो राम ने उत्तर दिया कि धनुष
तोड़ने वाला उनका (परशुराम का) कोई दास ही होगा। यह सुनकर परशुराम क्रोधित हो गए
और कहा कि सेवक तो सेवा करने वाला होता है। धनुष तोड़ने वाला तो उनका शत्रु है। अत:
वह राजाओं के बीच से अलग खड़ा हो जाए, अन्यथा सारे राजा मारे जाएँगे। प्रश्न
2. लक्ष्मण ने
परशुराम की अवज्ञा करते हुए, धनुष तोड़े जाने के बारे में क्या कहा और परशुराम ने क्रोधित होकर
क्या उत्तर दिया? उत्तर: लक्ष्मण ने
परशुराम का उपहास करते हुए कहा कि उन्होंने बचपन में अनेक धनुषियाँ तोड़ डाली थीं
तब परशुराम ने क्रोध क्यों नहीं किया? इस धनुष से उनको इतनी ममता क्यों है। इस पर परशुराम
क्रुद्ध होकर बोले-अरे राजकुमार! तू बिना सोचे-समझे बोल रहा है। लगता है तू काल के
वशीभूत हो गया है। भला सारे संसार में प्रसिद्ध शिव का धनुष उन साधारण धनुषियों के
समान हो सकता है? प्रश्न
3.लक्ष्मण ने
राम के बचाव में क्या कहा और परशुराम पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? उत्तर: लक्ष्मण ने
कहा कि एक पुराने धनुष के तोड़ देने से न तो किसी की हानि हुई है न किसी को लाभ
हुआ। राम ने इसे नया जानकर इसे परखना चाहा था परन्तु यह तो उनके छूते ही टूट गया। “हे मुनि आप बिना बात के इतना
क्रोध क्यों कर रहे हैं?” यह सुनते ही परशुराम ने क्रोधित होकर लक्ष्मण से कहा कि वह उन्हें
कोई साधारण मुनि समझने की भूल न करें। साथ ही उन्होंने अपने बल, अपनी विजयों और यश का बखान करना
आरम्भ कर दिया। प्रश्न
4. लक्ष्मण ने
परशुराम को देखकर अभिमानपूर्ण बातें करने का क्या कारण बताया और परशुराम से किस
कारण क्षमा माँगने का दिखावा किया? उत्तर: लक्ष्मण ने
परशुराम से कहा कि उन्हें फरसा और धनुषबाण धारण किए देखकर उन्हें क्षत्रिय समझा, इस कारण कुछ अभिमानपूर्ण बातें
कह दीं। अब पता चला कि वह भृगवंशी ब्राह्मण हैं। इसीलिए वह उनकी बातें क्रोध को
रोककर सहन कर रहे हैं। रघुवंशी लोग देवताओं, ब्राह्मणों, भक्तों और गायों पर वीरता नहीं दिखाते। अत: आप से युद्ध
करना उचित नहीं है। आपको मारने से पाप लगेगा और हार जाने पर अपयश मिलेगा। इसलिए
मेरे अनुचित वचनों को आप क्षमा कर दें। आप तो महान मुनि और धैर्यवान हैं। प्रश्न
5. लक्ष्मण की
उपहासपूर्ण क्षमायाचना को सुनकर, परशुराम ने विश्वामित्र से क्या कहा? उत्तर: परशुराम ने
कहा-“विश्वामित्र
जी ! यह लड़का बुद्धिहीन और कुटिल स्वभाव वाला है। यह मूर्ख काल के वश में है और
अपने साथ अपने कुल का भी नाश कराएगा। यह तो सूर्यवंशरूपी चन्द्रमा में कलंक के
समान है, साथ ही पूर्णत: स्वच्छंद, मूर्ख और निडर भी है। यह क्षणभर में मेरे हाथों मारा
जाएगा। यदि आप इसे बचाना चाहते हैं तो इसे हमारे प्रताप, बल और क्रोध के बारे में बताकर
अनर्गल प्रलाप करने से रोक लें ।” प्रश्न
6. विश्वामित्र
द्वारा अपना प्रताप और बल लक्ष्मण को समझाने की बात पर लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या
व्यंग्य किया? उत्तर: लक्ष्मण ने
परशुराम की धमकी की हँसी उड़ाते हुए कहा कि-‘मुनिवर ! आपके यश का वर्णन भला आप से बढ़कर और कौन कर
सकता है। आपने अपने मुँह से अपनी करनी का वर्णन अब तक अनेक बार और कई प्रकार से
किया है। यदि अब भी आपको संतोष नहीं हुआ हो तो और कुछ बताइए। आप अपने क्रोध को
दबाकर, मन में कष्ट
मत पाइए। वैसे आप वीर, धीर और शान्त स्वभाव वाले हैं। अतः आप गाली देते शोभा नहीं पाते हैं। प्रश्न
7. परशुराम ने
लक्ष्मण को वध किए जाने योग्य क्यों माना? उत्तर: लक्ष्मण ने
परशुराम को कायर बताया। उनकी बातों की हँसी उड़ाई। यह देख कर परशुराम आपे से बाहर
हो गए। वह कहने लगे कि अब लोग उन्हें दोष नहीं दें। यह कड़वा और अशिष्ट बोलने वाला
लड़का, मारे जाने
योग्य ही है। अब तक इसे बच्चा समझकर मैं इसे बचाता रहा। अब तो यह सच में ही मरने
वाला है। प्रश्न
8. विश्वामित्र
ने परशुराम से क्या आग्रह किया और परशुराम ने उत्तर में क्या कहा? उत्तर: जब परशुराम
का क्रोध सीमा से बाहर होने लगा तो विश्वामित्र ने उनसे कहा कि वह लक्ष्मण का
अपराध क्षमा कर दें क्योंकि सज्जन लोग बच्चों के दोषों और गुणों पर अधिक ध्यान
नहीं देते। इस पर परशुराम ने कहा कि उनके हाथ में पैना फरसा है और वह बड़े दयाहीन
तथा क्रोधी हैं। उनके गुरु का अपराधी सामने खड़ा अपशब्द बोले जा रहा है, फिर भी वह उसे बिना मारे छोड़
रहे हैं। इसका कारण विश्वामित्र का लिहाज ही है। प्रश्न
9. लक्ष्मण के
आचरण को सभा के लोगों ने अनुचित क्यों बताया? उत्तर: परशुराम
द्वारा विश्वामित्र के आग्रह का मान रखने की बात सुनकर लक्ष्मण ने मर्यादा की सीमा
लाँघने जैसा आचरण किया। उन्होंने परशुराम के शील की हँसी उड़ाई, माता-पिता के ऋण चुकाने को लेकर
उन पर तीखा व्यंग्य किया। ब्राह्मण होने के कारण वह बचे हुए हैं, ऐसा अपमानजनक आक्षेप किया। उनकी
वीरता और यश को चुनौती दी। सभा के लोगों को लगा कि लक्ष्मण सीमा के बाहर जा रहे
हैं। छोटा मुँह बड़ी बात जैसा दृश्य सामने आ रहा है। रक्तपात हो सकता है। इसी कारण
सभी लोगों ने लक्ष्मण के आचरण को अनुचित बताया। प्रश्न
10. लक्ष्मण-परशुराम
संवाद’ प्रसंग में
कविवर तुलसी की किस काव्यगत विशेषता के दर्शन होते हैं? संक्षेप में लिखिए। उत्तर: लक्ष्मण-परशुराम
संवाद’ प्रसंग
कविवर तुलसीदास की काव्यगत प्रतिभा का अनूठा उदाहरण है। इस प्रसंग में कवि ने
संवादपरक वर्णन शैली में अपनी कुशलता का पूरा प्रमाण दिया है। संवादों की भाषा
पात्रों और परिस्थिति के अनुरूप है। संवाद बड़े सटीक और चुटीले हैं। संवादों से
पात्रों के चरित्र पर पूर्ण प्रकाश पड़ा है। संवादों की रोचक योजना ने इस प्रसंग
को बड़ा नाटकीय बना दिया है। प्रश्न
11.‘लक्ष्मण-परशुराम
संवाद’ के तीनों
पात्रों-राम, लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव की एक-एक विशेषता बताइए। उत्तर: इस प्रसंग
के पात्र राम शान्त और संयत स्वभाव वाले हैं। वह उत्तेजित नहीं होते। शिष्ट और
विनम्रतापूर्ण भाषा को प्रयोग करते हैं। मर्यादाओं का पालन करते हैं। इनके विपरीत
स्वभाव लक्ष्मण का है। वह उग्र स्वभाव के युवक हैं। उनकी वाणी में व्यंग्य और
आक्रामकता रहती है। तीसरे पात्र परशुराम अहंकारी स्वभाव वाले हैं। वह आत्मप्रशंसा
करने वाले और अपने सामने सभी को तुच्छ समझने वाले हैं। प्रश्न
12. लक्ष्मण-परशुराम
संवाद’ के आधार पर
लक्ष्मण के व्यवहार का मूल्यांकन कीजिए। उत्तर: काव्यांश के
आधार पर लक्ष्मण एक वीर, चतुराईपूर्ण तुरंत उत्तर देने में निपुण और सहज ही उत्तेजित हो जाने
वाले युवक सिद्ध होते हैं। परशुराम के बड़बोलेपन और धमकियों पर वह निरंतर व्यंग्य
बाणों की वर्षा करते दिखाई देते हैं। लक्ष्मण का यह व्यवहार कुछ समय तक तो रोचक
लगता है लेकिन अति उत्साह में आकर जब वह परशुराम पर तीखे, कटु और शिष्टता का उल्लंघन करने
वाले व्यंग्य करने लगते हैं तो सभी सभासद इसे अनुचित कहने लगते हैं और राम को भी
उन्हें चुप हो जाने का संकेत करना पड़ता है। प्रश्न
13. लक्ष्मण को
परशुराम को मारने पर पाप और अपयश की सम्भावना क्यों थी? उत्तर: परशुराम
ब्राह्मण थे। वह अपनी अहंकारपूर्ण बातों और धमकियों से लक्ष्मण को उत्तेजित करना
चाह रहे थे। परन्तु लक्ष्मण उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे क्योंकि यदि परशुराम
मारे जाते तो लक्ष्मण पर ब्रह्महत्या का पाप लगता और यदि पराजित हो जाते तो उन्हें
अपयश झेलना पड़ता। प्रश्न
14. मुनि
विश्वामित्र के कथन “मुनिहि हरिअरइ सूझ” का आशय क्या था? उत्तर: इसका आशय यह
था कि परशुराम अपने अहंकार के कारण परिस्थिति की कठोर सच्चाई को नहीं समझ पा रहे
थे। उन्हें पहले की भाँति हरा ही हरा सूझ रहा था। वह समझते थे कि वह लक्ष्मण और
राम पर सहस्रबाहु आदि की तरह विजय पा लेंगे जबकि राम और लक्ष्मण अवतारी पुरुष और
वीर योद्धा थे। प्रश्न
15. शिव धनुष
भंग होने पर परशुराम क्यों कुपित हो रहे थे ? उत्तर: महाराज जनेक
द्वारा आयोजित धनुष यज्ञ में जिस धनुष को राम ने तोड़ा, वह परशुराम के गुरु भगवान शिव
का धनुष था। गुरु के धनुष के तोड़े जाने को परशुराम ने गुरु का अपमान माना। इसी
कारण परशुराम अत्यन्त कुपित थे और धनुष को तोड़ने वाले को शत्रु के समान मानते हुए, उसे दण्ड देना चाहते थे। प्रश्न
16. शिव का धनुष
कैसे टूट गया था? उत्तर: लक्ष्मण के
अनुसार वह धनुष बहुत पुराना और जीर्ण (कमजोर) था। राम ने तो उसे नया समझकर, उस पर डोरी चढ़ाकर और उसे
खींचकरं परखना चाहा था, किन्तु वह तो राम के छूने मात्र से ही टूट गया। राम का उसे तोड़ने का
कोई इरादा नहीं था। प्रश्न
17. “इहाँ
कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं” पंक्ति से लक्ष्मण की कौन-सी विशेषता का पता चलता है ? उत्तर: परंशुराम
लक्ष्मण को डराने के लिए बार-बार फरसा दिखा रहे थे और धमका रहे थे। लक्ष्मण ने इस
पंक्ति द्वारा परशुराम को बता दिया कि वह उनकी धमकियों से डरने वाले व्यक्ति नहीं
हैं। इस पंक्ति से ज्ञात होता है कि लक्ष्मण एक निर्भीक वीर पुरुष हैं। उन्हें कोई
गर्जन-तर्जन करके दबा अथवा डरा नहीं सकता। प्रश्न
18. लक्ष्मण-परशुराम संवाद प्रसंग’ के आधार पर परशुराम के चरित्र
की किन्हीं दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। उत्तर: लक्ष्मण-परशुराम
संवाद प्रसंग’ में परशुराम के चरित्र की दो प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षित होती
हैं-उनका क्रोधी होना और आत्मप्रशंसा करना। वह स्वयं कहते हैं कि वह अकरुण और
क्रोधी हैं। राजसभा में आते ही वह राम को, राजाओं को और लक्ष्मण को धमकाना आरम्भ कर देते हैं। वह
अपनी वीरता और विजयों को अपने ही मुख से बार-बार बखान करते हैं। लक्ष्मण भी कहते
हैं-‘अपने मुँह
तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।’ निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न
1. लक्ष्मण
परशुराम संवाद’ को कथासार अपने शब्दों में लिखिए। उत्तर: महाराज ज़नक
ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर में भगवान शिव के प्राचीन धनुष पर प्रत्यंचा
चढ़ाने वाले वीर के साथ सीता का विवाह किए जाने की शर्त रखी। अनेक राजाओं ने
चेष्टा की किन्तु कोई धनुष को उठा न सका। तब राम ने धनुष पर डोरी चढ़ाकर उसे खींचा
तो धनुष बीच से टूट गया। इसी
समय सूचना पाकर मुनि परशुराम उस सभा मंडप में आ पहुँचे। धनुष टूटने का पता चलने पर
वह बहुत क्रुद्ध हो गए। वह उनके गुरु भगवान शिव का धनुष था। उन्होंने राजा जनक से
पूछा कि धनुष किसने तोड़ा। राम ने उनका क्रोध शांत करने के। लिए कहा कि धनुष को
तोड़ने वाला उनको कोई दास ही होगा। यह सुनकर परशुराम भड़क गए। वह कहने लगे कि यह
काम सेवक का नहीं शत्रु का है। धनुष तोड़ने वाला राजाओं के बीच से निकलकर अलग खड़ा
हो जाय नहीं तो सभी राजा मारे जायेंगे। यह
सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने बचपन में अनेक धनुषियाँ (छोटे धनुष) तोड़ी थीं
तब तो मुनि ने क्रोध नहीं किया था। इस धनुष से इतना प्रेम क्यों है? गुरु के धनुष की तुलना साधारण
धनुषियों से किए जाने पर परशुराम बहुत क्रोधित हो गए। लक्ष्मण । ने कहा कि धनुष तो
राम के छूते ही टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं है। मुनि अनावश्यक ही इतना क्रोध
कर रहे हैं। – यह सुनते ही परशुराम ने लक्ष्मण को फटकराते हुए कठोर वचन कहे। अपने
को क्षत्रियों का शत्रु बताते हुए अपनी वीरता का बखान किया। लक्ष्मण ने कहा-“आप तो फैंक से पहाड़ उड़ाना
चाहते हैं। हम कोई छुई-मुई का पौधा नहीं जो आपके उँगली उठाने से डर जायेंगे। आप
ब्राह्ममण हैं इसलिए मैं अपने क्रोध को रोक रहा हूँ।” यह
सुनकर परशुराम क्रोध से भर गए। उन्होंने विश्वामित्र से कहा कि वह इस मूर्ख लड़के
को हमारा प्रताप और बल बताकर । समझा दें। इस पर लक्ष्मण ने कहा कि शूरवीर शत्रु के
सामने वीरता दिखाते हैं। कायर लोग ही व्यर्थ का प्रलाप किया करते हैं। यह सुनते ही
परशुराम ने अपना फरसा हाथ में ले लिया और बोले कि यह कड़वा बोलने वाला बालक मारने
योग्य है। विश्वामित्र में उन्हें शांत करना चाहा, किन्तु लक्ष्मण ने और कठोर और अपमानजनक बातें कहनी
प्रारम्भ कर दीं। सभा में बैठे लोगों ने इसे अनुचित बताया। राम ने नेत्रों के
संकेत से लक्ष्मण को चुप कराया और परशुराम की क्रोधाग्नि को शांत करने के लिए शीतल
। वचनों में कुछ निवेदन करने लगे। प्रश्न
2. लक्ष्मण-परशुराम
संवाद’ की भाषा की
विशेषताएँ बताइए। उत्तर: लक्ष्मण-परशुराम
संवाद’ साहित्यिक
अवधी भाषा में रचित है। यह अंश कवि तुलसीदास के महाकाव्य रामचरित मानस से संकलित
है। इस अंश को पढ़ने से ज्ञात होता है कि अवधी भाषा पर कवि का पूर्ण अधिकार है।
कवि का शब्द चयन बड़ा सटीक है। पात्र, परिस्थिति और भावानुकूल शब्द चुनने में तुलसी बहुत कुशल
हैं। आपने तत्सम, तद्भव तथा आंचलिकइन सभी शब्द-रूपों का सफलता से प्रयोग किया है।
अर्भक, अरि, रिपु, धनुष, क्षत्रियकुल द्रोही, मृदु आदि तत्सम, कोही परसु, लखन, रोस, बिस्व, अपकीरति आदि तद्भव तथा
कुम्हड़बतिया जैसे आंचलिक शब्द इस अंश में उपस्थित हैं। यह
प्रसंग संवाद शैली में रचित है। संवादों की भाषा कसी हुई, प्रवाहपूर्ण तथा पात्रों के
चरित्र पर प्रकाश डालने वाली है। चौपाई, छंद के चरणों के अंतिम वर्गों को दीर्घान्त (दीर्घ
मात्रा वाले) बनाकर गेयता (गाए जाने योग्य) बढ़ाई गई है। कथन को प्रभावशाली बनाने
के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग हुआ है। ‘चहत उड़ावन फँकि पहारू’, ‘कालकवल होइहि’, ‘हरिअरइ सूझ’, ‘माथे काढ़ा’ आदि मुहावरे तथा इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि डरि जाहीं।’ बिधे पाप अपकीरति हारें’, ‘सूर समर करनी करहिं कहि न
जनावहिं आप’, ‘अय मय खाँड न ऊख मय’, ‘द्विज देवता घरहि के। बाढ़े’ आदि लोकोक्तियाँ इसका उदाहरण हैं। इस
प्रकार इस काव्यांश की भाषा सब प्रकार से प्रसंग के अनुरूप वातावरण बनाने में
समर्थ है। प्रश्न
3. “लक्ष्मण-परशुराम
संवाद” एक अत्यन्त
रोचक व्यंग्यमयी काव्य रचना है-इस कथन को उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए। उत्तर: यह संवादपरक
काव्यांश कवि तुलसीदास जी की विलक्षण कल्पना, संवाद-कौशल और काव्य-प्रतिभा का अनोखा नमूना है। भगवान
शिव के धनुष के भंग हो जाने पर परशुराम बड़े क्रोधित होते हैं। वह धनुष तोड़ने
वाले का पता लगाने की धमकी भरी घोषणा करते हैं कि धनुष भंग करने वाला राजा सामने आ
जाए अन्यथा सारे राजा उनके हाथों मारे जाएँगे, परशुराम की यह अहंकारपूर्ण घोषणा सुनकर लक्ष्मण उन पर
व्यंग्य करना प्रारम्भ कर देते हैं। परशुराम और भी क्रुद्ध होकर लक्ष्मण को धमकाने
लगते हैं। वह बार-बार अपने बल-पराक्रम और क्षत्रियों पर विजय की दर्प भरी बातें
बखानने लगते हैं। परशुराम जितना भड़कते हैं लक्ष्मण उतने ही चुभने वाले और सटीक
व्यंग्य करके उन्हें चिढ़ाते जाते हैं। लक्ष्मण के व्यंग्य बड़े पैने और मनोरंजक
हैं। बहु
धनुहीं तोरी लरिकाई। कबहूँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥ सुनहु
देव सब धनुष समाना॥ छुअत
टूट रघुपतिहु ने दोसू॥ पुनि-पुनि
मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू॥ इहाँ
कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरज़नी देखि डरि जाहीं ॥ कोटि
कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥ बीरब्रती
तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावह सोभा॥ भृगुबर
परसु देखावह मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही ॥ मिले
न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े॥ प्रश्न
4. “लक्ष्मण
परशुराम संवाद” नामक काव्यांश में लक्ष्मण और परशुराम दोनों ही मर्यादाओं का उल्लंघन
करते हुए दिखाई देते हैं-इस कथन पर अपना मत लिखिए। उत्तर: इस प्रसंग
के पात्र लक्ष्मण एक वीर, निर्भीक और सहज ही उत्तेजित हो जाने वाले क्षत्रिय राजकुमार हैं।
दूसरी ओर परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रियों जैसा आचरण करने वाले अति क्रोधी
और अहंकारी व्यक्ति हैं। दोनों के बीच विवाद प्रारम्भ होने का कारण शिव के धनुष का
टूटना था। परशुराम
के द्वारा धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति के विषय में पूछे जाने पर राम बड़े विनम्र भाव
से उत्तर दे रहे थे किन्तु लक्ष्मण बिना भाई या गुरु से अनुमति लिए परशुराम से
विवाद में सामने आ गए। यह विवाद कुछ समय तक तो उपस्थित लोगों को रोचक लगा किन्तु
शीघ्र ही इसने अतिवादी रूप ले लिया। लक्ष्मण के व्यंग्य तीखे हुए और शिष्टता के
स्तर से नीचे आ गए। लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि वे वीरव्रती, धैर्यवान और क्रोध न करने वाले
होकर गाली देते हुए शोभा नहीं पा रहे। किन्तु
स्वयं लक्ष्मण ने भी उनके प्रति गाली जैसे ही शब्दों का प्रयोग किया। “विप्र विचारि बचऊँ नृपद्रोही।” और “मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े।
द्विज देवता घरहि के बाढ़े।” तो क्या परशुराम ने कायर और बलहीन क्षत्रियों पर विजय पाई थी? इसी प्रकार परशुराम भी अपने
मुनिवेश, आयु और परिस्थिति को न देखकर, बार-बार अपने बल, प्रताप और विजयों का बखान करते जा रहे थे। वह राजाओं और
लक्ष्मण को मार डालने की धमकियाँ दे रहे थे। यदि दुर्योगवश दोनों में युद्ध हो जाता
तो लोग वयोवृद्ध और मुनिवेशधारी परशुराम पर भी आक्षेप करते। अतः कवि ने समर्थ
लोगों को अतिवादी होने से बचने का संदेश देने के लिए इस प्रसंग की रचना की है। प्रश्न
5. लक्ष्मण ने
परशुराम के बड़बोलेपन को लक्ष्य बनाकर क्या-क्या व्यंग्य किए हैं? संकलित अंश के आधार पर लिखिए। उत्तर: परशुराम
अपने पराक्रम के अहंकार में लक्ष्मण को केवल एक वाचाल क्षत्रिय बालक मात्र मानकर, उनको अपनी वीरता, गुरुभक्ति, आतंक आदि की बातों से डराना
चाहते हैं। लक्ष्मण तनिक भी प्रभावित हुए बिना उनको सटीक व्यंग्यमयी भाषा-शैली में
उत्तर देते हैं। लक्ष्मण राम द्वारा धनुष तोड़े जाने का बचाव करते हुए कहते हैं कि
धनुष तो उनके छूते ही टूट गया। इसमें राम का कोई दोष नहीं। यह सुनते ही परशुराम
उबल पड़े और अपने पराक्रम का बखान करने लगे। कहा
कि लक्ष्मण को बालक समझकर नहीं मार रहे हैं। लक्ष्मण ने व्यंग्य किया-हे मुनि! आप
सचमुच बहुत बड़े योद्धा हैं। आप मुझे फरसा दिखाकर डराना चाह रहे हैं, लेकिन हम भी कोई छुई-मुई नहीं
है जो अँगुली छूते ही मुरझा जाए। वह भी उनको भृगुवंशी और ब्राह्मण समझ कर, उनके कठोर वचन सुन रहे हैं।
आपसे हारे तो अपयश मिलेगा और मार दिया तो पाप लगेगा।” परशुराम ने कहा कि वह
विश्वामित्र जी का लिहाज करके लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहे हैं। लक्ष्मण
ने व्यंग्य किया – “हे मुनि ! आप कितने शीलवान हैं, इसे सारा संसार जानता है। आपने माता-पिता का ऋण कितने
अच्छे ढंग से चुकाया है। अब गुरु का ऋण ही आपको चुकाना है। वह ऋण आपने लगता
है-मेरे माथे मढ़ दिया है। जल्दी से कोई जानकार बुलाइए। मैं तुरन्त थैली खोलकर
आपका ऋण चुका हूँगा।” इस प्रकार लक्ष्मण ने परशुराम पर बड़े सटीक और चुभने वाले व्यंग्य
किए हैं। प्रश्न
6. “लक्ष्मण-परशुराम
संवाद” प्रसंग की
काव्यगत विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। उत्तर: इस प्रसंग
का कलापक्ष और भावपक्ष दोनों कविवर तुलसीदास के काव्य-कौशल का प्रशंसनीय परिचय
कराते हैं। शिल्पगत
विशेषताओं में प्रसंग की भाषा को देखें तो यह साहित्यिक अवधी है जो पात्र, परिस्थिति और भावों के अनुकूल
है। कवि ने सटीकै शब्दों का चयन करते हुए प्रसंग को बड़ा रोचक बना दिया है।
लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग ने भाषा को प्रभावशाली बनाया है। पूरे प्रसंग
में संवादपरक नाटकीय शैली का प्रयोग हुआ है। पात्रों के कथन और उत्तर-प्रत्युत्तर
उनके मनोभावों को व्यक्त करने के साथ ही उनके चारित्रिक गुणों-अवगुणों पर भी
प्रकाश डालते हैं। पूरे
प्रसंग में वीर और रौद्र रस की सफल आयोजना हुई है। कवि ने पात्रों के अनुभावों
द्वारा रस संचार को प्रभावी बनाया है। प्रसंग में अलंकारों का प्रयोग रचना को रोचक
बना रहा है। “अरि करनी करि करिअ लराई”, “सठ सुनेहि सुभाउ” तथा “भुजबल भूमि भूप” आदि में अनुप्रास अलंकार “मात-पितहि उरिन भए नीके” में वक्रोक्ति, “पुनिपुनि” में पुनरुक्ति प्रकाश, सहसबाहु सम सो रिपु मोरा”, “लखन उतर आहुति सरिस” तथा “जल सम बचन” में उपमा और “भृगुबंसमनि”, “भानुबंस राकेस कलंकू’ में रूपक अलंकार है। प्रसंग
का भावपक्ष भी पुष्ट है। कवि ने संवादों और पात्रों की चेष्टाओं द्वारा उनके
चरित्रों को निरूपित किया है। राम का शांत, शिष्ट और सौम्य स्वरूप, लक्ष्मण का अवेिशमय उत्साही, वाचाल स्वरूप और परशुराम का
क्रोध, अहंकार और
बड़बोलेपन । से युक्त स्वरूप चित्रित करने में कवि पूर्ण सफल रहा है। कवि ने इस
प्रसंग द्वारा यह संदेश भी दिया है कि जीवन में अतिवादी बने रहने से व्यक्ति और
समाज दोनों कुप्रभावित होते हैं। अशांति और हिंसा को बढ़ावा मिलता है। अत: व्यक्ति
को मध्यमार्गी बनना चाहिए और सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन की मर्यादाओं का सम्मान
करना चाहिए। इस प्रकार लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ सभी काव्यगत विशेषताओं से पूर्ण रचना है। प्रश्न
7. ‘लक्ष्मण-परशुराम
संवाद’ काव्यांश के
आधार पर बताइए कि तुलसीदास ‘संवाद योजना’ में बड़े निपुण हैं। उत्तर: लक्ष्मण
परशुराम संवाद’ कवि तुलसीदास की संवाद-रचना में निपुणता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस
अंश में प्रमुख संवाद लक्ष्मण और परशुराम के बीच हुए हैं। इस प्रसंग का प्रारम्भ
राम के संवाद से होता है। राम बड़ी विनम्र वाणी में क्रोधित परशुराम से निवेदन
करते हैं “नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।” तो
परशुराम तुरन्त आरोप लगाते हैं “सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअलराई।।” तुम
सेवक कैसे हो सकते हो। सेवक तो वह होता है जो सेवा करता है। तुमने तो लड़ाई का काम
किया है। परशुराम
कहते हैं “धनुही सम त्रिपुरारि धनु, बिदित सकल संसार।” शिव
जगत प्रसिद्ध धनुष भला एक धनुषिया के समान हो सकता है। लक्ष्मण नहले पर दहला मारते
हुए कहते हैं “लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।” लक्ष्मण
पर कोई प्रभाव न पड़ते देख परशुराम ने कहा “सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।” अरे
राजकुमार सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को ध्यान से देख ले।
लक्ष्मण कब पीछे रहने वाले थे। बोले “पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू।” मुनि
जी ! बार-बार मुझे फरसा क्या दिखा रहे हो ! आप तो फैंक से पहाड़ उड़ाना चाह रहे
हो। इस
प्रकार संवाद और प्रतिसंवाद की लड़ी सजाकर कवि ने अपने काव्य-कौशल का परिचय दिया
है। “समय और शिक्षा का सही उपयोग ही
व्यक्ति को सफल बना देता है l" प्रश्नोत्तर की पूरी फाइल Download करें .. नीचे के लिंक Download पर क्लिक करके |
0 comments:
Post a Comment