Class 11 Hindi - Antra Chapter 12 Poet-Dev
हँसी की चोट, सपना, दरबार
कवि परिचय
:
रीतिकाल
में रीति काव्यधारा के प्रमुख कवि देव का जन्म इटावा (उत्तर प्रदेश) में सन् 1673 ई. में
हुआ था। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। महाकवि देव किसी एक आश्रयदाता राजा के
पास अधिक समय तक नहीं टिके। केवल राजा भोगीलाल के दरबार में अधिक समय तक टिके।
इनका निधन सन् 1767 ई. में
हुआ।
रीतिकालीन
कवियों में देव का विशिष्ट स्थान था। ये रसवादी कवि थे। राजदरबार में आश्रयदाताओं
के पास रहने के कारण इनके काव्य में जीवन के विविध दृश्यों का अभाव है। किन्तु
प्रेम और सौन्दर्य का मार्मिक वर्णन आपने किया है। अलंकारों में अनुप्रास और यमक
के प्रति देव को विशेष आकर्षण था। उनके काव्य में सुन्दर ध्वनि-चित्र मिलते हैं।
श्रृंगार वर्णन बहुत आकर्षक है। देव ने कवित्त-सवैया में काव्य रचना की। आपने
साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया।
भाषा में
लाक्षणिकता और व्यंजना शब्द शक्ति का सहजता से प्रयोग हुआ है। भाव, भाषा और
शिल्प की दृष्टि से देव) श्रेष्ठ कवि हैं। देव कृत रचनाओं की संख्या 52 से 72 तक मानी
जाती है। इनके प्रमुख ग्रन्थ रसविलास, भावविलास, भवानी
विलास, अष्टयाम, प्रेम
दीपिका आदि हैं।
पाठ-परिचय
:
'अंतरा' पाठ्यपुस्तक
के काव्य खण्ड में 'देव' की तीन
कविताएँ संकलित हैं, जिनमें दो
सवैया और एक कवित्त छन्द का प्रयोग किया गया है।
1. हँसी की
चोट - नायक और नायिका के मनोभावों का वर्णन करते हुए कवि देव नायिका की विषम
स्थिति का चित्रण कर रहे हैं। नायक ने नायिका की ओर देखा और फिर मुख फेर कर हँस
दिया और चला गया। नायक की इस हँसी की चोट ने नायिका के मन पर बड़ी गहरी चोट की है।
उसके शरीर के पाँचों तत्व उसका साथ छोड़कर पलायन कर रहे हैं। साँसों द्वारा वायु, आँसुओं के
रूप में जल, अग्नि का
तेज गुण क्षीण हो गया और पृथ्वी तत्त्व देह को दुबला करके चला गया, केवल नायक
से मिलने की क्षीण-सी आशा के कारण आकाश तत्त्व रह गया है। इस प्रकार नायक ने हँसकर
नायिका को अपनी ओर आकृष्ट तो किया, लेकिन पश्चात् उपेक्षा से मुँह फेरकर
नायिका का इतना अपमान किया कि वह मरणासन्न हो गई।
2. सपना - इस
कवित छन्द में कवि कह रहा है कि नायिका गहरी नींद में स्वप्न देख रही है कि घने
बादल आकाश में घिर आये और बूंदों की झड़ी प्रारम्भ हो गई है। नायक श्याम ने नायिका
को झूलने चलने का निमन्त्रण दिया। इस आमन्त्रण ने नायिका की खुशी इतनी बढ़ा दी कि
वह उसके अंगों में समा नहीं रही थी। लेकिन जैसे ही इस मनुहार को पूरा करने के लिए
नायिका उठी तो उसकी नींद भी टूट गई। इस जागने ने नायिका के भाग्य को मानो सुला ही
दिया। क्योंकि आँख खोलते ही देखा तो वहाँ न तो बादल थे, न नायक
घनश्याम थे बल्कि उसकी आँखों के आँसू ही बूंदें बन गई थीं। नायिका की वियोग दशा का
स्वप्न दर्शन द्वारा वर्णन किया गया है।
3. दरबार
रीतिकाल के अधिकांश कवि आश्रयदाता राजाओं के दरबार में संवेदनहीन, फूहड़ और
अ-रसिक लोगों के बीच कविता पाठ करने को विवश होते थे। दरबारों के इसी हृदयहीनता
युक्त वातावरण का और दरबारी कलाकारों की लाचारी का वर्णन किया है। राजा घमण्ड में
अंधा हो रहा है, उसके
अधिकारी हाँ में हाँ मिलाने वाले गूंगे के समान हैं, सभासद अपनी ही धुन में हैं अतः काव्य
श्रवण नहीं करते, काव्य का
रस नहीं लेते, ऐसे कठिन
स्थान पर भटका हुआ कलाविद् भी डूब जाता है, असहाय हो जाता है। लोग काव्य-रचना की
भावभूमि और कलाशिल्प को नहीं समझते। अतः कवि की स्थिति एक भ्रमित कलाकर (नट) जैसी
हो जाती है, जो सारी
रात नाचकर भी अपनी कला के प्रति लोगों के हृदय में रुचि पैदा करने में असफल हो
जाता है।
काव्यांशों
की सप्रसंग व्यारख्याएँ -
छंद 1
हँसी की
चोट
साँसनि ही
सौं समीर गयो अरु, आँसुन ही सब नीर गयो ढरि।
तेज गयो
गुन लै अपनो, अरु भूमि गई तन की तनुता करि।।
'देव' जियै मिलिबेही
की आस कि, आसहू पास अकास रह्यो भरि।
जा दिन तै
मुख फेरि हरै हँसि, हेरि हियो जु लियो हरि जू हरि।।
शब्दार्थ
:
- साँसन = साँसों
द्वारा।
- सौं = से।
- समीर = वायु।
- ढरि = बहना।
- तेज = अग्नि तत्व।
- तनुता = दुबलापन।
- आस = आशा में।
- हरिजू = कृष्ण।
- हरि = हरण कर लिया।
संदर्भ -
प्रस्तुत सवैया अंतरा भाग-1 के 'हँसी की
चोट' नामक अंश
से उद्धृत है। इसके रचयिता रीतिकालीन कवि 'देव' हैं।
प्रसंग -
कृष्ण ने गोपी को देखा और फिर मुँह फेरकर हँस दिए। इससे गोपी की विरह वेदना बढ़
गई। यहाँ गोपी या नायिका की विरह-अवस्था का वर्णन हुआ है।
व्याख्या
- एक बार कृष्ण (नायक) ने गोपी (नायिका) की ओर मुस्करा कर देखा और मुँह फेर लिया
और हँसकर चले गए। पहले गोपी उनकी मुस्कराहट देखकर भाव विभोर हो गई, किन्तु
उनकी उपेक्षां देखकर जाती रही। विरह के कारण उसकी देह के पाँचों तत्व एक-एक करके
पलायन करने लगे। वह विरह में जल्दी-जल्दी आह भरी लम्बी साँसें लेती है और इससे
उसका वायु तत्व समाप्त होता जा रहा है अर्थात् धीरे-धीरे उसके प्राण निकल रहे हैं।
वियोग के
कारण आँखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होती है, इससे शरीर का जल तत्व समाप्त होता जा
रहा है। गोपी (नायिका) के शरीर का तेज (गर्मी या अग्नि तत्व) भी अपना गुण खो चुका
है। अर्थात् शरीर धीरे-धीरे तेजहीन होकर शान्त हो रहा है। उसके सौन्दर्य का तेज भी
तिरोहित हो रहा है। शरीर से अग्नि तत्व चला गया है। वियोग के कारण शरीर दुर्बल
होता जा रहा है जिससे शरीर का पृथ्वी तत्व ही समाप्त हो गया है। इस प्रकार शरीर के
पाँचों तत्व भूमि, जल, वायु, अग्नि और
आकाश समाप्त हो गए हैं।
देव कहते
हैं कि उस उपेक्षिता का आकाश तत्व ही शेष रह गया है। केवल आकाश तत्व के सहारे
अर्थात् मिलने की जीवित है। उसका जीवन आशा पर ही टिका है। जिस दिन से कृष्ण (नायक)
ने उसकी ओर देखकर तथा मुँह फेरकर हँस दिया था और उसके हृदय का हरण कर लिया, अर्थात्
प्रेम का अंकुर बो दिया, उसी दिन
से गोपी (नायिका) कृष्ण (नायक) से मिलने को व्याकुल हो रही है। उसकी हँसी गायब हो
गई है।
विशेष :
- विरह विधुरा नायिका
की दशा का वर्णन है। केवल आशा तत्व शेष है।
- सवैया छन्द है, ब्रजभाषा का प्रयोग
है। माधुर्य गुण है।
- हरिजू हरि में यमक
अलंकार है।
- तन की तनुजा, आसहू पास अकास, हरै हँसि, हेरि हिये में
अनुप्रास अलंकार है।
- श्रृंगार रस है।
वियोग शृंगार है।
- मुँख फेर लेना
मुहावरे का प्रयोग है।
छंद 2
सपना
झहरि-झहरि झीनी बूंद हैं परति मानो,
घहरि-घहरि
घटा घेरी है गगन में।
आनि कयो
स्याम मो सौं 'चलौ
झूलिबे को आज'
फूली न
समानी भई ऐसी हौं मगन मैं।।
चाहत
उठ्योई उठि गई सो निगोड़ी नींद,
सोए गए
भाग मेरे जानि वा जगन में।
आँख खोलि
देखौं तौ न घन हैं न घनश्याम,
वेई छाई
बूंर्दै मेरे आँसु है दृगन में।।
शब्दार्थ
:
- झहरि-झहरि = वर्षा
की बूंदों की झड़ी लगना।
- झीनी = छोटी, नन्हीं।
- परति = पड़ रही
हैं।
- घहरि-घहरि =
घुमड़-घुमड़ कर।
- घेरी = घिरना।
- फूली न समानी =
अत्यन्त प्रसन्न होना।
- मगन = आनन्दित
होना।
- निगोड़ी = निर्दय।
- सोए गए भाग =
दुर्भाग्य, भाग्य सो जाना।
- जानि = जानकर।
- जगन = जागना।
- घनश्याम = कृष्ण, बादल के से रंग
वाले कृष्ण।
संदर्भ -
रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि देव का रचा हुआ यह कवित्त है। यह अंतरा भाग-1 के
काव्य-खण्ड में संकलित है।
प्रसंग -
गोपी की स्वप्नावस्था का चित्रण है। नायिका स्वप्न में देखती है कि वर्षा की
बूंदों के बीच में कृष्ण झूला झूलने का निमंत्रण देते हैं, उसकी
प्रसन्नता बढ़ जाती है। तभी उसकी नींद खुल जाती है और स्वप्न की प्रसन्नता दुख में
बदल जाती
व्याख्या
- एक गोपी या नायिका निद्रामग्न है और स्वप्न देख रही है कि आकाश में चारों ओर से
उठी काली-काली घटाओं ने उमड़-घुमड़ कर गर्जना के साथ सारे आकाश को ढक लिया है और
वर्षा की नन्हीं-नन्हीं फुहारों की झड़ी लग गई है। वह स्वप्न में देखती है कि
कृष्ण उसके पास आये हैं और उसे झूला झूलने का निमंत्रण दिया। कृष्ण के इस आह्वान
से वह अत्यन्त प्रसन्नता से गद्गद हो गई। उसने अपने भाग्य को सराहा।
वह कृष्ण
का प्रस्ताव स्वीकार करके उनके साथ चलने को तैयार हुई। दुर्भाग्य यह कि जैसे ही वह
कृष्ण के साथ उठकर चलने को तैयार हुई वैसे ही उसकी नींद खुल गई, वह जाग
गई। उसे वास्तविकता का आभास हो गया कि वह स्वप्न देख रही थी। इस जागने के साथ ही
मानो उसका भाग्य सो गया। उसने कृष्ण मिलन का जो सुख स्वप्न में अनुभव किया था। वह
समाप्त हो गया। 'देव' गोपी कहती
है कि जैसे ही वह जागी तब उसने देखा कि न तो वहाँ बादल थे और न कृष्ण ही थे। केवल
उसकी आँखों में आँसू थे। स्वप्न में जो वर्षा की बूंदें झर रही थीं वे ही आँखों
में आँसू बनकर झर रही थीं। अर्थात् स्वप्न की संयोगावस्था जागने पर वियोगावस्था
में बदल गई। वह जागकर अपने भाग्य को दोष देने लगी कि मेरे भाग्य में कृष्ण-मिलन
लिखा ही नहीं है। वह पश्चात्ताप के आँसू बहाने लगी।
विशेष :
- संयोग और वियोग
अवस्थाओं का एक साथ वर्णन है।
- ठेठ ब्रजभाषा के
शब्दों का प्रयोग है।
- निगोड़ी नींद, घहरि-घहरि घटा घेरी
में अनुप्रास अलंकार है। न धन है न घनश्याम में यमक अलंकार है।
- फूली न समानी
मुहावरे का उपयोग है।
- सोए गए भाग में
लक्षणा शब्द शक्ति है। माधुर्य गुण है।
छंद 3
दरबार
साहिब अंध, मुसाहिब मूक, सभा बहिरी, रंग रीझ को माच्यो।
भूल्यो
तहाँ भटक्यो घट औघट बूढ़िबे को काहू कर्म न बाच्यो।
भेष न
सूझयो, कह्यो समझ्यो न, बतायो सुन्यो न, कहा रुचि राच्यो।
'देव' तहाँ निबरे नट की बिगरी मति को सगरी
निसि नाच्यो।।
शब्दार्थ
:
- साहिब = स्वामी।
- मुसाहिब = मुँह लगे
कर्मचारी, सेवक, दरबारी।
- मूक = गूंगे।
- बहिरी = कानों से
बधिर, न सुनने वाला।
- भटक्यौ = भटक गया, भ्रमित हो गया।
- घट = मन, बुद्धि।
- औघर = दुर्गम
मार्ग।
- बूढ़िबे = डूबने के
लिए।
- बच्यो = बचा हुआ।
- राच्यो = मग्न हुआ, अनुरक्त।
- निबरे नट = कला से
भ्रमित कलाकार।
- सगरी = सम्पूर्ण, सारी।
- नाच्यो = नाचा।
संदर्भ -
प्रस्तुत सवैया रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि देव का है जो अंतरा भाग-1 में 'दरबार' शीर्षक से
संकलित है।
प्रसंग - महाकवि
देव अनेक आश्रयदाताओं के दरबार में कवि के रूप में रहे हैं। उन्होंने दरबार में
रहकर सामंती व्यवस्था में व्याप्त कला के प्रति अरुचि का अनुभव किया था। उनके
मस्तिष्क पर उसकी जो प्रतिक्रिया हुई है, उसी का वर्णन इस . सवैया में किया है।
व्याख्या
- आश्रयदाता कलाकारों को बुलाकर उनका सम्मान करते हैं। पर यह सब दिखावा मात्र है।
अपने युग के राजाओं के दरबारी वातावरण पर व्यंग्य करते हुए देव कवि कहते हैं कि
दरबार में राजा अन्धा होता है। कला के सम्बन्ध में उसे कुछ ज्ञान नहीं होता, वह
ज्ञान-शून्य होता है। मंत्री गूंगा होता है। वह राजा की हाँ में हाँ मिलाता है। वह
सच्ची बात कहकर राजा को यथार्थ का ज्ञान नहीं कराता। दरबारी. लोग मौन धारण किए
रहते हैं। वहाँ सभी राग-रंग में डूबे रहते हैं।
अपने-अपने
स्वार्थ की पूर्ति में लगे रहते हैं। ऐसे नीरस वातावरण में यदि कोई कलाकार भूल से
फँस जाता है तो उसकी स्थिति मार्ग से भटके हुए व्यक्ति के समान हो जाती है। उसे
डूबने के लिए किसी गुणी व्यक्ति के हृदय की गहराई नहीं मिलती। वह उथले व्यक्तियों
के बीच भटकता रहता है। उस दरबार का वातावरण कला के प्रदर्शन के उपयुक्त नहीं होता।
राजदरबार में कोई योग्य व्यक्ति को नहीं पहचानता। यदि कोई सही मार्ग बताता है तो
उसे कोई सुनता नहीं और न ही कोई समझता है जिसकी जिसमें रुचि है वह उसी में मस्त
रहता है।
देव कवि
कहते हैं ऐसे राजाओं के नीरस दरबार में किसी योग्य कलाकार की स्थिति वैसी ही हो
जाती है जैसे किसी बुद्धिमान नट की जो रातभर नाच कर अपनी कला का प्रदर्शन करता है
लेकिन उसके नृत्य की, उसकी कला
की कोई प्रशंसा नहीं करता। उनकी कला के प्रति किसी को रुचि नहीं होती।
विशेष :
- राज दरबारों की
नीरसता का वर्णन है।
- ब्रज भाषा है और
प्रसाद गुण है।
- रुचि राच्यो, निसि नाच्यो में
अनुप्रास अलंकार है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न – उत्तर
प्रश्न 1. हँसी की
चोट' सवैये में
कवि ने किन पंच तत्त्वों का वर्णन किया है तथा वियोग में वे किस प्रकार विदा होते।
हैं?
उत्तर
:भारतीय दर्शन में मानव देह का निर्माण पाँच तत्वों से माना गया है। 'हँसी की
चोट' सवैये में
इन्हीं
- वायु तत्व
- जल तत्व
- अग्नि तत्व
- पृथ्वी तत्व
- आकाश तत्व का वर्णन
हुआ है।
कवि देव
ने भी वियोग की अवस्था में शरीर से इन पाँच तत्वों के पलायन का वर्णन किया है।
साँसों के चलने में वायु तत्व पलायन कर रहा है। आँसुओं की अविरल धारा के रूप में
जल तत्व जा रहा है। शरीर का तेज (ताप) नष्ट होने से अग्नि तत्व विदा हो रहा है।
शारीरिक दुर्बलता के रूप में पृथ्वी तत्व जा रहा है। केवल आकाश तत्व इसलिए बचा हुआ
है कि प्रियतम से मिलने की आशा शेष है।
प्रश्न 2. नायिका
सपने में क्यों प्रसन्न थी और वह सपना कैसे टूट गया ?
उत्तर
:नायिक स्वप्न में देखती है कि आकाश में बादल छाये हैं, नन्हीं-नन्हीं
बँदें गिर रही हैं। प्रियतम कृष्ण सामने खड़े हैं और उससे झूला झूलने के लिए साथ
चलने का आग्रह करते हैं। वह प्रसन्न हो जाती है और चलने को तैयार होकर जैसे ही
उठना चाहती है वैसे ही उसकी आँख खुल जाती है। सपना टूट जाता है। वहाँ न तो बादल थे
और न कृष्ण। उसका दुख बढ़ जाता है। आँखों से आँसू बहने लगते हैं। सपने में मिलन के
कारण प्रसन्न थी, नींद
खुलने के कारण वियोग की स्थिति थी। स्वप्न में सुख था जागने पर दुख था।
प्रश्न 3. 'सपना' कवित्त का
भाव-सौन्दर्य लिखिए।।
उत्तर
:सौन्दर्य के कवि देव ने 'सपना' कवित्त
में संयोग और वियोग श्रृंगार का अनूठा संगम प्रस्तुत किया है। प्रकृति का वर्णन
संयोग श्रृंगार में उद्दीपन का कार्य कर रहा है। आकाश में बादल घिर आए हैं, नन्हीं-नन्हीं
बूंदें गिर रही हैं। गोपी के मन में उद्दीपन हुआ है। ऐसे में कृष्ण स्वप्न में आकर
झूला झूलने का आग्रह करते हैं। वह प्रसन्न होती है। यह संयोग पक्ष है। किन्तु नींद
टूटने पर वियोग पक्ष की स्थिति है। प्रसन्नता दुख में बदल जाती है। श्रृंगार के
संयोग-वियोग पक्ष का एक साथ सवैये में वर्णन उसके भाव--सौन्दर्य में चार चाँद लगा
देता है।
प्रश्न 4.'दरबार' सवैये में
किस प्रकार के वातावरण का वर्णन किया गया है ?
उत्तर : 'देव' अनेक
आश्रयदाता राजाओं के दरबार में रहे थे। वहाँ रहकर उन्हें दरबारी संस्कृति का जो
अनुभव हुआ उसका यथार्थ चित्रण उन्होंने अपने सवैये में किया है। राजदरबार कला के
प्रति संवेदनशील नहीं होते थे। राजा भोग-विलास के कारण ज्ञान-शून्य थे, दरबारी, राजा की
हाँ में हाँ मिलाने वाले और दरबारी कला से अनभिज्ञ होने के कारण गूंगों की
भाँति चुप बैठे रहते थे। कोई दुख-सुख की सुनने वाला नहीं है और कोई राजा को सही
मार्ग दिखाने वाला भी नहीं था। कला की परख करने वाला कोई नहीं था। राजदरबारों में
कवि और कलाकारों की स्थिति उस पागल नर्तक की सी थी जो रात भर अपनी कला का प्रदर्शन
करता है, नाचता है
पर कोई भी दर्शक उसकी कला की प्रशंसा नहीं करता। दरबारों की पतनशीलता और
संवेदनहीनता का वर्णन है।
प्रश्न 5. दरबार में
गुणग्राहकता और कला की परख को किस प्रकार अनदेखा किया जाता है ?
उत्तर : रीतिकालीन
कवि देव ने तत्कालीन राजाओं और राजदरबारों का यथार्थ चित्रण किया है। कला की परख
हृदय से होती है। लेकिन दरबारी संस्कृति में सभी हृदयहीन हो जाते हैं। वहाँ
चाटुकारिता ही देखने को मिलती है। वहाँ गुणों की कद्र करने वाला कोई नहीं होता।
हृदयहीनता के कारण कला की परख करने वालों का भी अभाव होता है। राजा कवि और
कलाकारों को दरबार में रखते हैं, उन्हें धन भी देते हैं, किन्तु
उनकी कला को कोई महत्त्व नहीं देते। राजा अपनी प्रशंसा की कविता सुनना अधिक पसन्द
करते हैं। दरबार में कला और कलाकार तथा कवि और कविता का कोई महत्व नहीं है। केवल
अपनी प्रशस्ति की कविता सुनकर राजा प्रसन्न होते हैं।
प्रश्न 6. भाव
स्पष्ट कीजिए -
(क) हेरि
हियो जुलियो हरि जू हरि।
(ख) सोए
गये भाग मेरे जानि वा जगन में।
(ग) वेई
छाई बूंदै मेरे आँसु द्वै दृगन में।
(घ) साहिब
अंध, मुसाहिब
मूक, सभा
बहिरी। .
उत्तर :
(क) प्रथम
दर्शन में प्रेम का प्रादुर्भाव किस प्रकार होता है? इस प्रक्रिया को समझाते हुए कवि ने कहा
है कि नायक ने नायिका की ओर प्रेमपूर्ण दृष्टि से देखा और उसी के साथ नायिका के
हृदय का हरण कर लिया अर्थात् नायक की हँसी ने नायिका के हृदय में प्रेम जाग्रत कर
दिया।
(ख) नायिका
ने सपने में वर्षा के साथ नायक का आगमन देखा जो कि उसे झूलने चलने का निमन्त्रण दे
रहे थे। जैसे ही नायिका उठकर चलने को तैयार होती है कि उसकी नींद टूट जाती है, स्वप्न
भंग हो गया। इस प्रकार नायिका का सौभाग्य जोकि नायक के मिलने से जागा था अचानक जाग
जाने से दुर्भाग्य में बदल गया, उसका भाग्य एक तरह से सो गया। फिर
वियोगावस्था की स्थिति बन गई।
(ग) नायिका
स्वप्न देख रही थी। स्वप्न का दृश्य बड़ा सुखदायक था। घटाएँ घिरी हुई थीं और
भीगी-भीगी बूंदें बरस रही थीं। श्रीकृष्ण के झूलने को चलने के प्रस्ताव को सुनकर
वह उठने को हुई, उसकी नींद
टूट गई। सपना भी टूट गया। अब न कहीं बादल थे न कृष्ण। यह देख नायिका की आँखों से आँसू
गिरने लगे। लगता था सपने में झरती बूंदें ही अब उसकी आँखों से आँसू बनकर झर रही
थीं।
(घ) कवि
संवेदनहीन दरबार का वर्णन कर रहा है। जहाँ दरबार का मालिक राजा विलास प्रेम और कला
की उपेक्षा करने वाला हो, उसके
दरबारी कविता का अर्थ समझने की चेष्टा न करके मौन-मूक बैठे रहते हों, वे राजा
को काव्यानन्द के लिए प्रेरित नहीं करते हो। सभी सभासद बहिरों जैसा आचरण करते हों, अर्थात
सुनकर भी न सुनने का ढोंग रचकर वे राजा को प्रसन्न करना चाहते हों, उन्हें
कवि को काव्य-कला में कोई आनन्द नहीं आता हो तो वहाँ कवि या कलाकार घोर उपेक्षा और
अपमान होता है। लेकिन धन और पद प्राप्ति की अभिलाषा उसे नचाती रहती है।
प्रश्न 7. देव ने
दरबारी चाटकारिता और दंभपूर्ण वातावरण पर किस प्रकार व्यंग्य किया है?
उत्तर
:रीतिकाल मे एक नई दरबारी-संस्कृति पनप रही थी। मुगल काल का मध्यवर्ती युग शान्ति
का युग था। राजाओं का जीवन भोग-विलास में बीत रहा था। उनके दरबारी भी उसी का
अनुकरण कर रहे थे। अंत: कलाकार का सम्मान करने के स्थान पर उसकी उपेक्षा और अपमान
हो रहा था। कवि देव भी दरबारों में कवि के रूप में रहे थे। उन्होंने अनुभव किया कि
दरबारों में राजा विलासी हो गये थे। मिथ्या दंभ के कारण वे किसी कवि को दरबार में
स्थान तो दे देते थे, लेकिन न
तो उसकी कला को समझने की उनमें योग्यता ही थी और न ही उनकी इच्छा। सभी दरबारी भी
राजा की हाँ में हाँ मिलाते थे। सभासद भी इसी का अनुकरण कर रहे थे। अतः सच्ची कला
उसी तरह उपेक्षित और अपमानित हो रही थी जैसे कोई नट पूरी रात नाचे लेकिन दर्शक एक
भी न हो। कला का इस प्रकार से घोर अपमान हो रहा था।
प्रश्न 8. निम्नलिखित
पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए -
(क) साँसनि
ही..."तनुता करि।
(ख)
झहरि..."गगन में।
(ग) साहिब
अंध..."बाच्यो।
उत्तर
:सप्रसंग व्याख्या को पढ़ कर इनकी व्याख्या करें।
प्रश्न 9. देव के
अलंकार प्रयोग और भाषा-प्रयोग के कुछ उदाहरण पठित पदों से लिखिए।
उत्तर
:देव की कविताओं में से अग्रलिखित उदाहरण लिए जा सकते हैं साँसनि ही सौं समीर, तन की
तनुता, आसह पास
अकास, हरे हँसि, हेरि हियो, हरि जू
हरि आदि में अनुप्रास हरि में यमक, झहरि झहरि घहरि-घहरि में पुनरुक्ति
प्रकाश बूंद है परति मानों में उत्प्रेक्षा अलंकार हैं।
भाषा-प्रयोग
की दृष्टि से झहरि-झहरि और घहरि-घहरि घटा घेरी आदि में वर्णमैत्री और ध्वनि साम्य
तथा भाषा का नाद-सौन्दर्य दर्शनीय है।
योग्यता
विस्तार -
प्रश्न 1. 'दरबार' सवैये को
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक 'अंधेर नगरी' के समकक्ष
रखकर विवेचना कीजिए।
उत्तर
:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'अंधेर नगरी' नाटक में
एक राजा की न्याय व्यवस्था के माध्यम से समस्त राज्य को अंधेर नगरी सिद्ध किया है।
उस नाटक में बाजार का दृश्य है, जिसमें हर दुकानदार एक ही पंक्ति को
दोहराते हैं - अंधेर नगरी, अनबूझ
राजा, टका सेर
भाजी, टका सेर
खाजा (एक मिठाई) राजा के राज्य में सब्जी और मिठाई एक ही भाव बिक रही है। बकरी
दीवार के नीचे दबकर मर जाती है उसके बदले फाँसी की सजा घोषित हो जाती
है। फाँसी के समय जब अपराधी के गले में फाँसी का फंदा बड़ा होता है तो फंदे के
उपयुक्त मोटी गर्दन की तलाश होती है। अंत में राजा स्वयं अपने गले में फंदा डाल
लेता है। इस प्रकार 'अंधेर
नगरी' नाटक की
पृष्ठभूमि के अनुसार ही कवि देव ने दरबारी कविता लिखी है, जिसमें
अंधेर नगरी जैसा ही माहौल है।
प्रश्न 2. खुद ही हल
करें।
अन्य
महत्वपूर्ण प्रश्न –उत्तर
बहुविकल्पीय
प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1. नायिका का
वायु तत्व निकल गया -
(क) आँसू
बनकर
(ख) साँस
बनकर
(ग) तन की
दुर्बलता बनकर
(घ) मन की
मुग्धता बनकर
उत्तर :(ख) साँस
बनकर
प्रश्न 2.
झूलने
चलने की बात सुनकर नायिका -
(क) हँसने
लगी
(ख) अवाक्
रह गई
(ग) फूली
नहीं समाई
(घ)
श्रृंगार करने लगी।
उत्तर :(ग) फूली
नहीं समाई
प्रश्न 3. नींद
टूटने पर नायिका ने देखा -
(क)
घनश्याम को
(ख) घन को
(ग) झूले
को
(घ) इनमें
से कोई नहीं
उत्तर :(घ) इनमें
से कोई नहीं
प्रश्न 4. 'दरबार' छंद में
कवि ने अंधा बताया है -
(क) नट को
(ख) सभा को
(ग) स्वयं
को
(घ) राजा
को
उत्तर :(क) नट को
प्रश्न 5. दरबार में
रातभर नाचा -
(क) एक
मुसाहिब
(ख) साहिब
(ग) नट
(घ) एक
नर्तक
उत्तर :(ग) नट
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1. नायिका के
शरीर से वायुतत्व किस रूप में समाप्त हो गया था?
उत्तर
:नायिका प्रिय वियोग में निरंतर दुख भरी साँसें ले रही थी। इस कारण उसके शरीर से
वायु तत्व घटता जा रहा था।
प्रश्न 2.कवि ने
नायिका के शरीर का जल तत्व किसे बताया है?
उत्तर
:कवि ने नायिका के नेत्रों से बहते आँसुओं को नायिका के शरीर का जल तत्व बताया है।
प्रश्न 3. नायिका के
शरीर से अग्नि तत्व किस रूप में समाप्त हो गया?
उत्तर
:दुर्बलता के कारण नायिका के शरीर का तेज समाप्त हो गया था। तेज और अग्नि दोनों का
गुण एक ही माना गया है।
प्रश्न 4. 'तन की
तनुता' का आशय
क्या है? उससे
नायिका के शरीर का कौन सा तत्व समाप्त हो गया?
उत्तर :
'तन की
तनुता' का अर्थ
है- शरीर की दुर्बलता। शरीर दुर्बल हो जाने से उसका भार कम होता जा रहा था। भूमि
ही से शरीर में भार उत्पन्न होता है।
प्रश्न 5. नायिका
तत्वों के निकल जाने पर भी नायिका जीवित कैसे बनी हुई थी?
उत्तर
:नायिका तत्वों के निकलते जाने पर भी इस कारण जीवित थी कि उसे अपने प्रिय के मिलने
की आशा बनी हुई थी।
प्रश्न 6. नायिका की
इस अवस्था का कारण क्या था?
उत्तर :एक
दिन नायक ने नायिका को आँख भर देखा और फिर वह मुँह फेरकर हँस दिया और चला गया।
नायिका के हृदय में उसकी हँसी ऐसी बस गई कि वह निरंतर क्षीण होती चली गई।
प्रश्न 7. नायिका ने
सपने में क्या देखा?
उत्तर
:नायिका ने देखा कि आकाश में उमड़-घुमड़ कर घटाएँ घिर गई हैं और नन्हीं-नन्हीं बूंदें
झकोरों के साथ बरस रही हैं।
प्रश्न 8. स्वप्न
में श्रीकृष्ण (नायक) ने गोपिका (नायिका) से क्या कहा?
उत्तर
:स्वप्न में श्रीकृष्ण ने गोपी से कहा कि चलो दोनों झूलने चलते हैं।
प्रश्न 9. नायिका के
भाग्य कैसे सो गए ?
उत्तर :जब
कृष्ण का आमंत्रण सुनकर वह चलने को उठी तो सपना भंग हो गया। उसका जागना ही उसका
दुर्भाग्य बन गया। जागने पर न बादल थे न कृष्ण।
प्रश्न 10.कवि देव
ने साहिब, मुसाहिब
और सभा को कैसा बताया है?
उत्तर
:कवि ने साहिन्न को अंधा, मुसाहिबों
को. गूंगा और सभा को बहरी. बताया है।
प्रश्न 11. राज दरबार
का वातावरण कैसा था?
उत्तर
:दरबार में कवि या कलाकार की कला को सुनने और समझने वाला कोई न था।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1. 'हँसी की
चोट' सवैये में
कवि ने श्रृंगार के किस पक्ष को व्यक्त किया है?
उत्तर :'हँसी की
चोट' सवैये में
कवि ने संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार दोनों पक्षों का एक ही छन्द में
चामत्कारिक प्रयोग किया है। संयोग की स्थिति में नायक श्रीकृष्ण हँसकर मुँह फेर
लेते हैं और चले जाते हैं। इससे गोपी वियोग का अनुभव करती है और वियोग के कारण ही
उसके शरीर के पाँचों तत्व एक-एक कर शरीर को त्याग देते हैं। इस प्रकार संयोग और
वियोग दोनों ही पक्षों का वर्णन कर कवि ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।
प्रश्न 2. 'हँसी की
चोट' सवैये की
अंतिम पंक्ति में यमक और अनुप्रास.का प्रयोग करके कवि क्या मर्म अभिव्यंजित करना
चाहता है ?
उत्तर
:सवैये की अन्तिम पंक्ति इस प्रकार है.... 'जा दिन तै मुख फेरि हरै हँसि, हेरि हियो
जु लियो हरि जू हरि।' उपर्युक्त
पंक्ति में हरै, हँसि, हेरि, हरि जू
हरि में 'ह' वर्ण की
आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है। हरि जू हरि में यमक अलंकार है। दोनों
अलंकारों के प्रयोग से अभिव्यक्ति में चमत्कार उत्पन्न हो गया है और अर्थ में
सौन्दर्य की वृद्धि हो गई है। कवि यह अभिव्यंजित करना चाहता है कि नायिका (गोपी)
कृष्ण को अपना हृदय दे चुकी है और वे हँसकर मुँह फेर कर चले गए। उनकी उपेक्षा से
नायिका (गोपी) दुखी है। वह व्याकुलता में क्षीण होती जा रही है।
प्रश्न 3. 'सपना' नामक
कविता में कवि ने संयोग श्रृंगार का सुन्दर चित्रण किया है, स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर
:काव्य सौन्दर्य के लिए काव्य को भावपक्ष और कलापक्ष की दृष्टि से परखा जाता है
सपना कविता में कवि ने स्वप्न द्वारा संयोग श्रृंगार का एक चामत्कारिक दृश्य
उपस्थित किया है। नायिका एक सपना देखती है कि छोटी-छोटी बूंदें झड़ रही थीं, चारों ओर
घटाएँ घिरी हुई थीं। नायक ने उसे झूलने के लिए चलने की बात कही। वह बड़ी प्रसन्नता
से उठकर उनके साथ जाने को तैयार होती है, लेकिन जैसे ही वह उठने का प्रयास करती
है, उसकी नींद
टूट जाती है और उसकी आँखों के आँसू ही वे बूंदें थीं जिन्होंने उसे वर्षा ऋतु का
आभास दिया था। वास्तव में कवि देव ने चामत्कारिक रूप से संयोग शृंगार का वर्णन
किया है।
प्रश्न 4. भाषा-प्रयोग
की दृष्टि से कवि देव की कविताओं का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर
:कवि देव की काव्य भाषा ब्रजभाषा है। ब्रजभाषा के माधुर्य से प्रभावित होकर ही
अधिकांश रीतिकालीन कवियों ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। देव की भाषा में सरलता, सरसता एवं
प्रवाहपूर्णता का गुण मिलता है। उन्होंने शब्दों के द्वित्व प्रयोग द्वारा भाषा को
आकर्षक बनाया है। कवि देव की भाषा को टकसाली ब्रज भाषा कहा जा सकता है। विरोधाभासी
कथनों द्वारा कवि ने भाषा पर अपने अधिकार का पूर्ण परिचय दिया है। यथा- “चाहत
उठ्यो, उठि गई सो
निगोड़ी नींद, सोए गए
भाग मेरे जानि वा जगन में।"
प्रश्न 5. अलंकार
विधान की दृष्टि से कवि देव रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि हैं। कवि देव के अलंकार विधान
पर अपना मत दीजिए।
उत्तर
:कवि देव रीतिकाल के आचार्य कवि हैं, उनके द्वारा रचित लक्षण ग्रन्थों में
अनेक अलंकारों का वर्णन एवं लक्षण दिये गये हैं। उनके काव्य में भी अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि
शब्दालंकारों की छटा दर्शनीय है। झहरि-झहरि झीनी, घहरि घहरि घट घेरी में बहुत लम्बे
अनुप्रास का प्रयोग किया गया है, इससे काव्य में ध्वनि सौन्दर्य आ गया
हैं। "आसहू पास अकास'' में
अनुप्रास का सुन्दर प्रयोग है तथा कवि ने बड़ी चतुराई से 'अकास' की
शून्यता का अर्थ आशा की शून्यता से जोड़कर श्लेष का चमत्कार भी व्यक्त कर दिया है।
"जागि वा जगन" में भी श्लेष का चमत्कार है, एक ओर
भाग्य का जागना और दूसरी ओर नींद से जागना अद्भुत चमत्कार द्वारा कवि ने अपने आपको
रीतिकाल का प्रतिभासम्पन्न कवि सिद्ध कर दिया है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1. 'दरबार' नामक
कविता में कवि ने राजा और उनके दरबारियों के दंभ का वर्णन किया है। यदि दरबार में
इससे उलटा होता तो कवि कैसा महसूस करता? कल्पना के आधार पर बताइए।
उत्तर
:दरबार में राजा कवियों का सम्मान करने वाला और समय-समय पर प्रशंसा करने वाला होता
तो उसके दरबारी और सभासद भी कवि का आदर करते। सभी लोग कवि की कविता को ध्यान से
सुनते, बीच-बीच
में तालियाँ बजाकर या वाह-वाह कहकर उनके काव्य की सराहना करते। कवि को राजा की ओर
से पुरस्कार दिया जाता। सभी सभासद इसकी प्रशंसा करते। कवि को उसकी रचना का सही
मूल्यांकन होने के कारण सन्तोष होता। हर कवि यही चाहता है कि लोग उसके काव्य को
समझें, उसका भाव
ग्रहण करें तथा सम्मान करें। यदि दरबार में ऐसा होता तो राज्याश्रय में रहने वाले
कवि उच्च कोटि के साहित्य का सृजन कर सकते।
प्रश्न 2. कवि देव
दरबारी कवि थे, फिर भी
उन्होंने दरबार की निंदा की है, क्यों? कारण सहित बताइए।
उत्तर
:महाकवि देव रीतिकाल के एक प्रतिभाशाली कवि थे। उन्होंने अपने युग में श्रेष्ठ
काव्य की रचना की। उन्होंने अनेक राजाओं के दरबार में रहकर अपने काव्य का सृजन
किया। अत: उन्हें राजाओं और नवाबों के दरबारों का कटु अनुभव भी हुआ। औरंगजेब के
पुत्र से लेकर वे अनेक छोटे राजाओं के दरबार में रहे। धीरे-धीरे करके सामंती
संस्कृति का पतन हो रहा था। कवि ने अपनी आँखों से उस पतन को देखा। अतः दु:खी होकर
ही उन्होंने कहा कि शासक अंधे, दरबारी गूंगे और सभासद बहरे हो गए हैं
और कवि की श्रेष्ठ कविता सुनकर भी सराहना नहीं करते। अतः कवि का दुःखी होना
स्वाभाविक है। इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि राजाओं के दंभी
स्वभाव ने कवि देव को निराश कर दिया था, अतः उन्होंने दुखी होकर दरबारी
संस्कृति के पतन का चित्र खींचते हुए उसकी निंदा की है।
प्रश्न 3. "दरबार
कविता में कवि देव के स्वयं के उद्गार छिपे हैं।" इस कथन के आधार पर कविता का
काव्य-सौन्दर्य व्यक्त कीजिए।
उत्तर
:दरबार' नामक
कविता कवि के हृदय की टीस को अभिव्यक्त करती है। कवि वास्तव में एक दरबारी कवि के
रूप में ही प्रसिद्ध रहा है। यही उसकी आजीविका का साधन था। लेकिन दरबारों की
उठा-पटक एक-दूसरे को नीचा दिखाना, राजाओं की उपेक्षा का भाव कवि को
व्यथित कर देते हैं इसलिए उन्हें कहना पड़ता है दरबारों में राजा तो अंधे होते हैं, दरबारी
गूंगे होते हैं और पूरी सभा बहरी है जो किसी की नहीं सुनती। ऐसी सभा में कोई भी
योग्य कवि अपना जीवन-यापन सम्मान के साथ नहीं कर सकता, उसकी
स्थिति उस नट के समान है जो पागलों की भ! रात रचता है लेकिन उसकी कला की सराहना
करने वाला कोई न हो। यह कवि की स्वयं अनुभूत एक मार्मिक कविता है। जो भाव की
दृष्टि से समृद्ध कविता है।
कला पक्ष
की दृष्टि से यह सवैया छंद में लिखी गई रचना है। भाषा के नये-नये प्रयोग किये गये
हैं। अन्त में नट का सांगरूपक कविता को आकर्षक बना देता है। ब्रजभाषा का
प्रवाहपूर्ण प्रयोग तथा यमक अलंकार अनुप्रास की छवि दर्शनीय है। प्रसाद गुण एवं
वैदर्भी रीति का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 4. 'हँसी की
चोट' कविता का
काव्य-सौन्दर्य अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
:कवि देव की कविता 'हँसी की
चोट' में प्रेम
का अनुभावसम्मत चित्र प्रस्तुत किया है। यह वियोग श्रृंगार का एक चामत्कारिक
प्रयोग है। कवि ने चित्र प्रस्तुत किया है कि हरि अर्थात् नायक ने नायिका की ओर
देखा और हँसकर मुँह फेर लिया। इस चेष्टा ने नायिका के मन में विरह की आग लगा दी
परिणामस्वरूप उसके शरीर के पाँचों तत्व अर्थात् साँसों द्वारा जल, तेज अपने
गुण के साथ, तन का
दुबलापन भू-तत्व और आशा के साथ आकाश तत्व चला गया।
इस प्रकार
वियोग की अन्तिम दशा 'मरण' की स्थिति
तक आ पहुँची। कवि ने काव्य चमत्कार पैदा करके वियोग की दशा का वर्णन किया कला पक्ष
की दृष्टि से कवि ने 'सवैया' छन्द का
प्रयोग किया है। प्रवाहपूर्ण ब्रजभाषा का आकर्षक प्रयोग किया गया है। विविध प्रकार
के अलंकारों में अनुप्रास और यमक को देखा जा सकता है। साँसनि ही सों समीर गयो-अरु, तन की
तनुता, आसहू-पास
अकास आदि में चमत्कार है। प्रसाद गुण, वैदर्भी रीति और व्यंजना शब्द शक्ति
है।
प्रश्न 5. "कवि देव
प्रतिभाशाली कवि थे" उनकी कविताओं के आधार पर उनकी छंद-योजना पर अपने विचार
व्यक्त कीजिए। .
उत्तर
:रीतिकाल के श्रेष्ठ कवि एवं आचार्य 'देव' एक प्रतिभाशाली कवि थे। इस कथन के
प्रमाणस्वरूप यह कहा जा सकता है कि शाह आलम मुगल सम्राट से लेकर वे अनेक छोटे-मोटे
राजाओं के दरबार में रहे, पर उनका
मन कहीं भी नहीं रमा। अन्य कवि आजीविका के लोभ में एक ही राजा के यहाँ पूरी उम्र
बिता देते थे पर देव अपनी प्रतिभा के बल पर राजा के दरबार में सम्मान पाते थे और
स्वाभिमान पर चोट होते ही छोड़कर चल देते थे।
आचार्य
होने के नाते उन्होंने अनेक लक्षण ग्रन्थ लिखे। इन ग्रन्थों के माध्यम से वे अपने
शिष्यों को शिक्षित भी करते थे। अत: इस दृष्टि से कवि ने प्रायः सभी प्रकार के
मात्रिक एवं वर्णिक छन्दों का प्रयोग किया है लेकिन अन्य रीतिकालीन कवियों की
भाँति ही आपने कवित्त और सवैया छन्द में अधिकांश रचनाएँ की हैं। कवित्त एक मुक्त
वर्णिक छन्द है इसमें 31 वर्णों का
स्वतन्त्र प्रयोग होता है। अतः अधिकांश कवियों का यह प्रिय छंद है। सवैया गणपूर्ति
वाला वर्णिक छन्द है। इसके अनेक प्रकार हैं। कवि देव ने इस छंद को अपनाया है।
प्रश्न 6. कवि देव
के काव्य में शब्द-चित्रों की चित्रात्मकता देखने ही बनती है। बिम्ब किसे कहते हैं? क्या यह
शब्द-चित्र ही है? इस धारणा
को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
:बिम्ब का शाब्दिक प्रतिच्छवि से है। जो चित्रात्मकता का ही प्रतीक है। कवियों ने
अपने काव्य में शब्द-चित्रों के माध्यम से काव्य के सौन्दर्य में आकर्षण उत्पन्न
किया है। कवि देव एक ऐसे ही शब्द चितेरे हैं जो अपने शब्द-चित्रों द्वारा काव्य को
चमत्कारिक बना देते हैं जब वे कहते हैं कि "साँसनि ही सौं समीर गयों 'अरु', आँसुनि ही
सब नीर गयो ढरि" तो पाठक को नायिका के शरीर से एक-एक करके जा रहे तत्वों का
चित्र साकार सा दिखाई देने लगता है। बूंदों का पड़ना, घटाओं का
घिरना आदि में सुन्दर शब्द चित्रों का विधान किया गया है। "निबरे नट की बिगरी
मति को सिगरी निसि नाच्यौ" में एक नट को नाचते दिखाया गया है। इस शब्द-चित्र
में एक मूर्ख नट पूरी रात नाचता रहा जबकि वहाँ दरबार में उसके नृत्य की सराहना
करने वाला कोई नहीं था। नट के नृत्य का उन्होंने अपने काव्य-रचना के रूप में विम्ब
प्रस्तुत किया है। इस प्रकार कवि देव विम्ब विधान के श्रेष्ठ कवि हैं।
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