किसके काम आये है
असली सबक तो इंसान को, ठोकरों ने सिखाये है।
किताबी इल्म तो कब, कहाँ ,किसके काम आये है।
*************************************
जिनको राह दिखाते है , राह के रोड़े बने पाते हैं ।
वे गैरों सा करते सलूक , अपने होकर भी पराये है।
*************************************
मुश्किलात में जिनका साथ देते हैं , वे घात देते हैं ।
हमें फूलों की चाहत होती ,वे काँटों को बिछाये है।
*************************************
अब तो ये जुनून है ,प्यार के अहसासों का खून हैं।
अब स्वार्थ में डूबा इंसान,मतबल से रिश्ते बनाये है।
*************************************
आँगन में खड़ी हो रही है ,बंटवारे की ऊंची दिवारें ।
फिर भी झूठे ही खुश होकर,परिवार दिवस मनाऐ हैं।
*************************************
इस दमघोटू हवा में रहने के, आदी हो गये सब पंछी,
रिहा होते ही नहीं कोई, जब भी पिंजरे से उडाये हैं।
*******************×******************
बहुत मुश्किल हैं, ज़िन्दगी की हर शै से रूबरू होना।
ज़िन्दगी ने वक्त बेवक्त, न जाने कितने नाच नचाये है ?
*************************************
वफ़ा के बदले में दुनिया से,जब जफा के सिले पाए।
ये दुनियादारी के सलीके ,हमे भी तब ही तो आये है।
*************************************
इंसान अब देह से जिन्दा हैं, पर आत्मा से मर गया।
इंसानियत जिन्दा है जिनमें"महेश"वो ही अश्क बहाए है ।
कुमार महेश (15-05-20)
*व्यथित मन का सृजन*
इल्म- ज्ञान/ सलूक -तौर तरीका/ शै-चीज/सिले-बदले/जफा-जुल्म / रिहा -मुक्त /अश्क- आँसू
realitiy of life |
0 comments:
Post a Comment