अच्छे दिन आये ,तो सर धुन रहे हो ............
अच्छे दिन आये |
अच्छे
दिन आये तो ,अब सर धुन रहे हो..........
झूठ के सिवाए , कभी कुछ बोला नहीं है I
अपने मन को, कभी भी टटोला नहीं है II
उससे “मन की
बातें” सालों से सुन रहे हो I
अच्छे दिन आये तो ,अब सर धुन रहे हो II
फ़कीर नहीं मदारी है ,झूंठे के झोले में झोला है I
तानाशाह है,सैर-पसंद है ,ख़रीदा उड़नखटोला है II
विरोध पर प्रतिशोध करें ,गलत ही गलत चुन रहे हो I
अच्छे दिन आये तो ,अब सर धुन रहे हो II
आवाम में सदा नफरत का जहर ही घोला है I
जख्मे-मरहम के बदले दिया,घाव और फफोला है II
अंध-भक्त बने रहो,अब क्यूँ जल-भुन रहे हो I
अच्छे दिन आये तो ,अब सर धुन रहे हो II
हवाई-चप्पलें,हवाई-जहाज की सैर को बोला है II
रेल,गेल,सेल बेचे,ओढा चौकीदार का चोला है II
चोकीदार चोर है?,मन ही मन कर गुन-गुन रहे हो II
अच्छे दिन आये तो ,अब सर धुन रहे हो II
“गोदी मीडिया”,को सत्ता का बनाया हिंडोला है II
तिल का ताड़,ताड़ का झाड,खूब मचाया रोळॉ है II
गोबर ही है यकीनन, जो देख-सुन रहे हो II
अच्छे दिन आये तो ,अब सर धुन रहे हो II
जो बीबी का नहीं तो तुम्हारा कैसे होगा ? तोला है ?
जड़-बुद्धि बने रहो,कब अंतर्मन का पर्दा खोला है ?
होती अंधी-बहरी सरकारें ,मौत के फंदे क्यूँ बुन रहे हो I
अच्छे दिन आये तो ,अब सर धुन रहे हो II
“व्यथित मन का सृजन”
कुमार महेश, राजस्थान
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