बने
फिर से सोनचिरैयां भारत,आओ ऐसा करे जतन ......................................
बने फिर से सोनचिरैयां भारत,आओ ऐसा करे जतन .
घर
घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
हिन्दू
,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई , भारत में न धर्म अनेक हो.
हो
भारतीय ही धर्म सभी का , मन हम सबका नेक
हो .
पैगम्बरों
पर लड़ना छोड़े , इस मातृभूमि को ही करे
नमन.
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
ब्राहमण,
छत्रिय, वैश्य और शुद्र ,इन सब वर्णों का तर्पण हो .
भेदभाव
की जड़ है सब वर्ण , केवल इंसानी दर्पण हो.
आरक्षण
का कर भक्षण , मानवता के पोषण का ही करें जतन .
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
सच्चा
हो हर वादा ,ना हो थोथे नारे ,ना थोथे
भाषण हो.
विपक्ष
भी हो राष्ट्रहीत में , मजबूत देशहीत में शासन हो .
सत्तामद
में हो चूर ना नेता ,द्वेषपूर्ण ना हो राजनीतिक चलन.
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
जात पांत से ऊपर उठकर , लोकतान्त्रिक मतदान हो.
चुने जिसे भी जनता , उसका धर्म जनसेवा - कल्याण हो.
देश की सेवा में वो निरत हो, करे ना वो खुद का
भरन .
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
हर
नारी की रक्षा हो ,बहन बेटियों की सुरक्षित लाज हो .
मुफ्त
की बंदर बांट बंद हो ,हर हाथ को काम काज
हो .
विश्वपटल
पर फिर से गुरु बने, हर नागरिक हो अनमोल रतन .
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
आँगन-
प्रागण हो साफ़ सफाई ,स्वच्छ हमारा आचरण हो,
भ्रष्टाचार,हत्याचार,
दुराचार मिटाने का जन जागरण हो,
अंधकार
का हो उन्मूलन ,ज्ञान की रोशनी का हो चलन.
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
महंगाई पर लगे लगाम , श्रेष्टतम अर्थव्यवस्था
हो ,
हर सर को हो छत नसीब,रोटी की सबको सुलभता हो .
भाव हो जिओ और जीने दो ह्रदय में ,घृणा ,द्वेष का हो गलन .
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
पूजनीय हो गीता कुरान ,पर सबसे ऊँचा नज़रों में संविधान हो ,
त्वरित न्याय मिले सबको , ऐसा खरा न्यायिक
विधान हो .
अधिकार जाने पर कर्तव्य भी ना भूले, इनका सबको हो
मनन,
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
इक दूजे की खुशियों में हो सरीक ,आपस में
वफादारी हो.
अमीर गरीब की खाई पाटे , छोटे बड़े की ना लाचारी
हो .
हर मुसीबत में हो हम साथी ,आँसू पूछने बढे चरण
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
आंच अगर आये सरहद पर ,हर घर से सैनिक-जवान हो.
शिक्षा दीक्षा हो नैतिक , हर बालक -बालिका महान
हो .
देशभक्त बने हम ऐसे ,हो मिट्टी का कर्ज चुकाने की चुभन
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
वसुधेवकुटुम्बकम धरा पर जिओ और जीने दो का
मन्त्र हो.
रामराज हो
फिर से देश में , स्वच्छ
प्रशासनिक तंत्र हो.
अच्छाईयों के बीज लगाये ,बुराईयों का करे दमन .
घर घर में खुशियाली होगी , होगा अपना खुशहाल वतन
अगर
आप को देश से प्यार है ,तो क्या ऐसा करने
को तैयार हो.
हैं
उपदेशक कुशल बहुतेरे. कर्म करें ऐसा ,कहावत ये बेकार
हो .
नव
निर्माण की हो अब सोच , हो ना
हमारे संस्कारों का पतन .
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
तो आओ कालकूट हलाहल , विष पीकर अमृत बाटें .
नफरत दिलों की जलाकर .ऊँचनीच की खाई पाटे .
स्वार्थ ,इर्ष्या , जलन ,मक्कारी ,का करें मन
से खनन .
घर घर में खुशियाली हो, हो अपना खुशहाल वतन .
प्रण करे अब से सब , की मानवता के हम फूल हो .
मन- वचन- कर्म सभी से, देश धर्म के अनुकूल हो .
अगर ऐसा आपने कर लिया तो आप सब को नमन .
गर तू अच्छा हो गया तो , होगा अच्छों का ही जनन
.
घर घर में खुशियाली होगी , होगा अपना खुशहाल वतन .
(कुमार महेश १५-०३-२०२०)
नोट – ये मेरे अपने मोलिक विचार है, इन का अन्यथा अर्थ ना निकाले .
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