हो अब दरबदर गया.........
उसने वादे भी किये और हमेशा मुकर गया,
दोस्तो का काम-तमाम कर के निखर गया।
अपनी शाहीन बातों में उलझा कर छल गया,
इल्जाम हमेशा दूसरो पे लगा के बिफर गया।
आह ,आँसू से वो पिघला नहीं, "पत्थर दिल",
विश्वासों का कत्ल करते-करते हो पत्थर गया।
पत्थरों के शहर में अब, रहते नहीं मोम दिल,
पत्थर दिल मिलने लगे,वक्त उसका गुजर गया।
वक्त के साथ साथ हुनर उसका कम हो गया,
अब उसके फरेब चलते नहीं,शायद असर गया।
बँगला गाडी, धन दौलत जोड़ने की जिद्द में,
दोस्त क्या रह पाता जो इंसानियत से मर गया।
पत्थरो से सर फोडता अब ,नजरों से उतरकर,
बेबस ,बेचैन,तन्हाई में , हो अब दरबदर गया।
कुमार महेश (25-04-20)
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