*मजदूर*
मन में नहीं संकीर्णता हृदय में विशालता,व्यापकता।
इनका आचरण नहीं छद्म, होती सदा वास्तविकता।
रहते सदा स्वेद से सिचिंत, पर दाने दाने को मजबूर।
अन्न उगाने खेतखलियानो में, ये मेहनतकश मजदूर।।
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उधोगो, कल-कारखानो का इनसे ही चलता चक्र।
ज़िन्दगी इनकी रहती सदा ,विषम-विकट व वक्र।
सच पाषाण हृदयी,निर्मोही आभाव सहते भरपूर।
देश की अर्थव्यवस्था की नींव,ये मेहनतकश मजदूर।।
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कोठियो ,महलो, गगनचुम्बी इमारतों के ये निर्माता ।
फाकाकशी में गुजर बसर ,इनसे रूठा हुआ विधाता।
गंदे मैले कुचले वस्त्र देख, संभ्रांतजन रहते उनसे दूर।
झुग्गीयो, छप्परों में बसते, ये मेहनतकश मजदूर।।
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सदियों से पाषाण मूर्ति गढते, देवो को देते आकार।
देव तमाम पत्थर ही ठहरे, करते कहाँ सपने साकार।
अपने वज्र प्रहारो से, मुसीबतों को करते चकनाचूर।
तन और मन से तपस्या करते, ये मेहनतकश मजदूर।।
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सदियों से दुनिया में "मजदूर दिवस" मनाते आ रहे हैं।
श्रमिकों के अच्छे दिन" के सब्जबाग दिखाते आ रहे हैं।
जब ये मेहनती हाथ रुक गये ,हमारा टुट जायेगा गरुर।
नमन करें इन कर्मवीरो को,दानवीर ये,याचक न मजदूर।।
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कुमार महेश (01/05/20)
🙏सभी श्रमिकों, कामगारों, किसानों को मजदूर दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏
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