अंगुली उठाना मुनासिब नहीं..................
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मसीहाओं की मैली नियत,सच बताना मुनासिब नहीं।
आस्तिनों के साँपों पे ,अंगुली उठाना मुनासिब नहीं।।
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चर्चे हो रहे हैं आजकल , इन्हीं के टीवी अखबारो में ।
अपरिचित होना असम्भव,कोई बहाना मुनासिब नहीं।।
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कुछ अय्यार चीख रहे हैं, झूठ को सच बनाने के लिए।
नगमे हमारे सच्चे हैं, पर हमारा गाना मुनासिब नहीं।।
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शिद्दत से उगाये जा रहे हैं, काँटे नफरत के चमन में ।
खींच गई अग्निरेखा सी,बेधडक जाना मुनासिब नहीं।।
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बहुमत के लिए मत के खेल का प्यादा है आम आदमी,
आम आदमी का जीवन आम,उसे बचाना मुनासिब नहीं।
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घुटघुट कर सिसक रहे हो तुम,हो खुदखुशी पे आमादा।
हद से ज्यादा सितम सहना,हर दर्द पचाना मुनासिब नहीं।।
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आओ उखाड डाले छद्म मुखौटे,हमारे नकली हमदर्दों के,
चार दिन की ज़िन्दगी में , लड़ना-लड़ाना मुनासिब नहीं।।
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कुमार महेश (02/05/2020)
व्यथित मन का सृजन
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