सामाजिक चेतना गीत
आजादी मिली हमेशा, कलम और तलवार से,
सिंहासन कम्पित हुए है ,क्रांति की ललकार
से।।
अहित हमारा करे जो शासन,डरे ना बहिष्कार
से।
संघर्ष हमारा अब प्रबल हो, हरेक तिरस्कार
से।
जंजीर गुलामी की तोडो , क्यों रहे सदा
गुलाम से
इज्जत कभी मिल ना ,जी हजूरी और सलाम से,
नई इबारते लिखे आओ ,अपने-अपने कलाम से,
अपना पतन ही हो रहा हैं ,आपस की तकरार से,
आजादी मिली हमेशा, कलम और तलवार से,
सिंहासन कम्पित हुए है ,क्रांति की ललकार
से।।
दुर्व्यसन हैं दीमक की भाँति,मिटेगें ये
सब ज्ञान से,
कुप्रथाऐं त्याग दे हम तो, रहेगें सब
सम्मान से,
फिर से अवतरित होगें घर घर, बाबा भीम महान
से,
शिक्षा की गर अलख जगेगी,होगी मुक्ति
अंधकार से।
आजादी मिली हमेशा, कलम और तलवार से,
सिंहासन कम्पित हुए है ,क्रांति की ललकार
से।।
तुमने अब तक पूजा उनको प्रसादो व प्रसुनो
से,
अभागो तुम रहे सदा चोटील,रक्तरंजित खूनों
से।
माँगने से अधिकार मिले ना,मिले सदा जुनूनो
से।
बनो भाग्यविधाता खुद के छोडो याचना दरबार
से।
आजादी मिली हमेशा, कलम और तलवार से,
सिंहासन कम्पित हुए है ,क्रांति की ललकार
से।।
दमन चक्र अब जोरो पर है कदम बढाओ ध्यान से
,
मन में गैरत जिन्दा है तो ,उबलो तुम अपमान
से,
तुम किसी से कम नहीं हो, जिओ स्वाभिमान
से।
संघर्ष का जज्बा पैदा हो हरेक चोट से
प्रहार से।
आजादी मिली हमेशा, कलम और तलवार से,
सिंहासन कम्पित हुए है ,क्रांति की ललकार
से।।
वक्त कभी ना माफ करेगा जो निकले ना घर बार
से,
नफरत के बदले में घृणा, प्यार का बदला
प्यार से,
सद्भावना में जहर घोले जो,लो मार का बदला
मार से,
जंग लडो कानूनी सारी, संवैधानिक अधिकार
से,
आजादी मिली हमेशा, कलम और तलवार से,
सिंहासन कम्पित हुए है ,क्रांति की ललकार
से।।
गद्दार हम में छिपे जो, परहेज करेना
जयचन्दों की मुक्ति से,
निश्चित सफलता ही मिलेगी ,यदि काम करे जो
युक्ति से,
प्रेरणा ले "शिक्षित बनो,संघर्ष
करो,संगठित रहो" उक्ति से,
ज्ञात रखो रावण की लंका जली है, घर के ही
असरार से।
आजादी मिली हमेशा, कलम और तलवार से,
सिंहासन कम्पित हुए है ,क्रांति की ललकार
से।।
कुमार महेश (20-05-20)
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