छूना भी मजाल है.............
आई बीमारी यह कैसी भारी सारे जग का बुरा हाल है।
काल के जाल में फंसा हैं मानुष, बडा ही निढाल हैं।।
यह बात है बिल्कुल सच,विपदा लाता इंसानी लालच,
बुद्धि विपरीत जब हो जाती , आता विनाश काल है।I
सूक्ष्म कोरोना वायरस का असर, दिनोदिन रहा पसर,
कोविड-19 के रूप में साक्षात, ये आदमखोर बबाल है।I
कल तक गले में डाले हार, करते थे जो सबको प्यार,
अब कोई ,किसी को कैसे छू ले, छूना भी मजाल है।I
दूर बुजुर्गों से रहते बच्चे, हुए रिश्तों के धागे कच्चे,
अपने ही घर में एकाकी जीवन, जीना अब मुहाल हैII
मत पूछो उनके फसाने, गए जो रोजी-रोटी कमाने,
अच्छे दिन आये कभी ना , जिन्दगी बदहाल है II
तरसा रोजी रोटी को मजदूर,है पैदल चलने पर मजबूर,
काल के गाल में जीवन उनका, अब जीवन में भूचाल हैं।I
घर के पूत सडक पर चले नंगे,बन गये जैसे भिखमंगे,
“वंदे भारत” लेकर आया विदेशी, उनकी सार संभाल हैं।I
बुहत बड़ी जिनकी है चादर ,बड़े हुए है देश को खाकर ,
पेट बड़ा है इनका आखिर , ये तो निपट कंगाल हैII
आम ही आम के आंसू पौछे,खास लोग ना उनकी सोचे,
भाग्यविधाता बनाया जिनको, औढी भेडिए की खाल हैं।I
बहुत फ्रिकमंद हैं शासन, भाषण से पहुँचा अब राशन,
कर्ज लेना है बडा ही मुश्किल,राहत पैकेज भी जाल हैं।I
जिसके पास दौलत की गंगा, बना हुआ हैं वही चंगा,
मौज शौक में जीवन उनका , जिसके पास माल है।।
बडे सकुन में भ्रष्टाचारी,गरीबो पर तुने नजर न मारी,
दीनदयाल है परवरदिगार तू ,तू भी बडा ही कमाल है।I
निर्मल मन से तुझको पूजा,तेरे सिवा ना जीनका दूजा,
उनसे तेरा यूँ मुँह मोडना, हम सबको बडा मलाल है।I
बुरे के संग बुरा होगा, अच्छों के संग अच्छा होगा,
धीरज रख “व्यथित ह्रदय” ये बुरे दिनन की चाल हैं।I
कुमार महेश (२१-०५ -२०२०)
व्यथित मन का सृजन
(स्वरचित और मौलिक रचना
बहुत ही सुंदर और मन को छूने वाली पंक्तियां
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