Chapter 14 –“आखिरी चट्टान”
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
लेखक-परिचय
प्रश्न 1. मोहन राकेश का जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्य-सेवा का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर- जीवन-परिचय-मोहन राकेश जन्म 8 जनवरी, 1925 को अमृतसर में हुआ था। आपके पिता करमचन्द वकील थे। आपने पंजाब विश्वविद्यालय से हिन्दी तथा अँग्रेजी में एम.ए. किया। कुछ विद्वानों का कहना है कि मोहन राकेश ने लाहौर के ओरियण्टल कॉलेज से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण की थी। बाद में संस्कृत तथा हिन्दी में एम. ए. किया था। आपने लाहौर, शिमला, मुम्बई, जालंधर, दिल्ली आदि स्थानों पर अध्यापन कार्य किया। कुछ समय तक आप ‘सारिका’ (कहानी की प्रसिद्ध पत्रिका) के सम्पादक रहे। बाद में आपने स्वतन्त्र रहकर लेखन कार्य किया। 3 दिसम्बर, 1972 को दिल्ली में आपका असामयिक देहावसान हो गया।
साहित्यिक परिचय-मोहन राकेश नई कहानी आन्दोलन के सशक्त हस्ताक्षर हैं। नाटक रचना में भी आपका महत्वपूर्ण योगदान है। ‘आषाढ़ का एक दिन’ तथा ‘आधे-अधूरे’ नाटकों के लिए आपको संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित और पुरस्कृत किया जा चुका है। आपने अन्य विधाओं में भी साहित्य रचना की है। राकेश की भाषा साहित्यिक सरस तथा तत्सम प्रधान है। आपने वर्णनात्मक, चित्रात्मक, भावनात्मक आदि शैलियों को अपनाया है।
कृतियाँ-अँधेरे बन्द कमरे, अन्तराल, न आने वाला कल (उपन्यास)। आषाढ़ का एक दिन, आधे अधूरे, लहरों के राजहंस, अंडे के छिलके (नाटक)। क्वार्टर, पहचान, वारिस (कहानी-संग्रह)। परिवेश बकलम खुद (निबन्ध)। आखिरी चट्टान (यात्रावृत्त)। समय-सारथी (जीवनी) तथा मृच्छकटिकम्, शाकुन्तलम् (नाट्य-रूपान्तर) आदि आपकी प्रमुख रचनायें हैं।
पाठ-सार
प्रश्न 1. ‘आखिरी चट्टान’ पाठ का सारांश लिखिए।
उत्तर- पाठ-परिचय-‘आखिरी चट्टान’ मोहन राकेश द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तान्त है। कन्याकुमारी के सूर्यास्त तथा सूर्योदय का अत्यन्त सूक्ष्म वर्णन इसकी विशेषता है। इसमें प्रकृति का सजीव चित्रांकन हुआ है। पाठक को लगता है कि वह भी मोहन राकेश के साथ ही यात्रा कर रहा है। मानव मनोविज्ञान तथा सामाजिक संरचना की सूक्ष्म समझ के कारण यह यात्रा-वृत्तान्त भौतिक विवरण और आन्तरिक मनोदशा का उदाहरण बन गया है।
कन्याकुमारी-कन्याकुमारी पहले सूर्योदय तथा सूर्यास्त का दर्शन कराने वाली भूमि है। लेखक कन्याकुमारी के केप। होटल के सामने एक काली चट्टान पर खड़े होकर भारत के स्थल भाग की आखिरी चट्टान को देख रहा था। उसके सामने। अरब सागर, बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर के संगम की विशाल जलराशि फैली थी। लहरें बल खाती हुई बार-बार उठ रही थीं और चट्टानों से टकराकर बिखर रही थीं। जलराशि के सुन्दर दृश्य में खोया लेखक स्वयं को विस्मृत कर चुका था। उसको होश आया तो उसे पता चला कि उसकी चट्टान जलराशि से घिर चुकी थी। किसी प्रकार अन्य चट्टानों को फाँदता हुआ वह किनारे पर पहुँचा।
सूर्यास्त का दृश्य-लोग सूर्यास्त का दृश्य देखने जा रहे थे। कुछ मिशनरी युवतियों के पीछे चलकर लेखक सैंड हिल नामक टीले पर पहुँचा। उसके आगे अनेक टीले थे। उनको पार करता हुआ वह आखिरी टीले पर पहुँचा। उस टीले से सूर्यास्त का दृश्य स्पष्ट दिखाई दे रहा था। अस्त होते हुए सूर्य की सुनहरी किरणें पड़ने से रेत चमक रही थी। सूर्य का गोला पानी की सतह की ओर बढ़ रहा था। उसके निकट आने के कारण पानी का रंग बदल रहा था। पहले वह सुनहरा हुआ फिर लाल और बैंगनी होता हुआ अन्त में काला हो गया।
वापस लौटना-सूर्यास्त देखने में लीन लेखक को ध्यान ही नहीं रहा कि वापस भी जाना है। धीरे-धीरे अँधेरा घिर रहा। था। रास्ते के सभी टीलों को पार करके पुनः सैण्ड हिल पहुँचना सम्भव नहीं था। तब लेखक उस टीले से नीचे उतरकर समुद्र के तट पर आ गया। यहाँ उसने विविध रंगों की रेत देखी। वह उन रंगों में खोया था कि एक लहर आकर उसके पैरों को भिगो गई। अब उसे खतरे का अहसास हुआ। वह जूतों को हाथ में लेकर दौड़ने लगा। एक चट्टान पर चढ़ गया। तब तक वह पानी से घिर गई थी। पानी में उतरकर अगली चट्टान तक जाने का उसका साहस न था। उस चट्टान के दूसरी ओर तट की विस्तृत भूमि थी।
लेखक का अन्तर्द्वन्द्व-केप होटल के लान में बैठे लेखक को याद आया कि उसने कनानोर के सेवाय होटल में सत्रह दिन रहकर जो अस्सी-नब्बे पन्ने लिखे थे, उनको वह वहीं भूल आया है। कन्याकुमारी का मनोरम स्थल उसे बहुत पसन्द आया था। वह वहाँ रहना चाहता था परन्तु अब कनानोर लौटना भी जरूरी था। उसके मन में सबेरे जाने वाली बसों का टाइम-टेबल प्रकट हो रहा था।
विवेकानन्द चट्टान से सूर्योदय-लेखक विवेकानन्द चट्टान पर बैठा था। वह युवकों से बातें कर रहा था। एक ग्रेजुएट युवक उसको बता रहा था कि अनेक शिक्षित युवक वहाँ बेकार बैठे थे। इस चट्टान से लेखक ने सूर्योदय का सुंदर दृश्य देखा। लौटते समय वह दूसरे मार्ग से आया। उसकी नाव लहरों में फंस गई। वह डूबते-डूबते बचा। हारकर उसको पुराना मार्ग ही अपनाना पड़ा। लौटकर लेखक कन्याकुमारी के मन्दिर तथा भक्तों को देख रहा था।
कनानोर वापसी-एक शाम और रुककर लेखक कनानोर लौटा। उसके अपने पन्ने मिल तो गए मगर चौकीदार ने उसको मोड़कर कॉपी बना ली थी और उन पर दूसरी ओर खाली स्थान पर हिसाब लिख लिया था। लेखक के पन्ने लौटाकर वह उसी तरह निराश हुआ। जिस तरह कन्याकुमारी में अपने सूटकेस में अपने लिखे पन्ने न पाकर लेखक निराश हुआ था।
पाठ के कठिन शब्द और उनके अर्थ।
स्याह = काली। संगम = मिलने का स्थान। समाधि लगाना = ध्यानमग्न होना। क्षितिज = वह स्थान जहाँ धरती-आकाश मिले दिखाई देते हैं। छोर = किनारा। सिहरना = रोमांचित होना। मोक्ष = जन्म-मरण से मुक्ति। लबादा = एक प्रकार का भारी व लंबा पहनावा।
रेशम = रेशमी वस्त्र। विस्तार = फैलाव। ओट = छिपाव, आड़। सर करना = जीतना। झुरमुट = घने समूह, झुंड। टहनी = डाल। उन्मुक्त = निर्बाध। रति = प्रेम। श्रृंखला = पंक्ति। बीहड़ = जंगल। वीरान = निर्जन। बेबसी = अधिकार हीनता। लई = खून, लाल रंग।
ख्याल = विचार। धुंधले = अस्पष्ट। आकृति = बनावट, शरीर। बेहतर = अधिक अच्छा। सुरमई = सुरमा के रंग की, कुछ नीली। अनाम = जिनका कोई नाम न हो। सम्मिश्रण = मिली-जुली वस्तु। खतरा = संकट।
बेचैन = व्याकुल। हिमाकत = भूल, गलती। कम्पाउंड = सामने का खुला स्थान। साँझ = शाम। जिद्दी = हठी। टाइम-टेब्रल = समय बताने वाला विवरण-पत्र। हिन्दसे = अंक। (अंकों की खोज हिंद में होने के कारण अरबी भाषा के अंकों को हिंद से कहा जाता है।) चर्वी = चक्र। ग्रेजुएट = स्नातक। अर्जियाँ = प्रार्थना-पत्र।
ओट = आड़, पीछे से। अर्घ्य देना = जल अर्पित करना। मेहमान = अतिथि। स्थानीय = उसी स्थान की निवासी। बाइनाक्यूलर = दूर की वस्तु को स्पष्ट दिखाने वाला यंत्र। आँकड़े = संख्या। कडल-काक = समुद्री पक्षी। बेलाग = अप्रभावित। करीब = निकट। इशारा = संकेत। सरसरी तौर पर = गम्भीरतापूर्वक सोचे बिना ही। तय = निश्चित। फासला = दूरी। बाकी = शेष। भंवर = पानी के गोल घूमने से बनने वाला गड्ढा। चेतना = समझ।
इरादा = विचार। मंडली = समूह, दलन पाल = नावों पर लगाया जाने वाला एक प्रकार का पर्दा। सूटकेस = कपड़ा आदि रखने का एक तरह का बॉक्स।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. कन्याकुमारी के समुद्र तट पर स्थित चट्टान पर समाधि लगाने वाले थे
(क) स्वामी दयानन्द (ख) स्वामी श्रद्धानन्द
(ग) स्वामी विवेकानन्द (घ) रामकृष्ण परमहंस
2. कन्याकुमारी में संगम हुआ है
(क) हिन्दमहासागर और अरब सागर का (ख) अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का
(ग) बंगाल की खाड़ी और हिन्द महासागर का (घ) हिन्दमहासागर, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी का
3. अस्त होते सूर्य के बिम्ब का स्पर्श होते ही समुद्र का जल हो गया
(क) सुनहरा (ख) लाल
(ग) बैंगनी (घ) काला
4. समुद्र तट का पानी से बाहर का हिस्सा था सिर्फ
(क) एक-दो फुट (ख) तीन-चार फुट
(ग) चार-पाँच फुट (घ) तीन-तीन, चार-चार फुट।
5. लेखक को खतरे का अहसास हुआ तो
(क) वह सोचने लगा (ख) वह दौड़ने लगा
(ग) वह कुछ देर खड़ा रहा (घ) वह जल्दी-जल्दी चलने लगा।
6. लेखक कन्याकुमारी में जिस होटल में ठहरा था, उसका नाम था
(क) सेवाय होटल (ख) केप होटल
(ग) गवर्नमेंट गैस्ट हाउस (घ) टूरिस्ट होम।
7. कनानोर के सेवाये होटल में लेखक भूल आया था
(क) अपना सुनहरा कलम (ख) लिखे हुए पन्ने
(ग) अपना चश्मा (घ) अपनी डायरी।
8. सूर्योदय हो रहा था
(क) समुद्र में बिखरी चट्टानों की ओट से (ख) समुद्रतट के रेतीले टीलों के पीछे से
(ग) तट पर उगे नारियल के पेड़ों के पीछे से (घ) केप होटल के पास वाले मकानों के पीछे से।
9. मोहन राकेश ने किस पत्रिका के संपादक के रूप में काम किया था?
(क) धर्म युग। (ख) हिन्दुस्तान साप्ताहिक
(ग) सारिका (घ) सरिता।
10. अरबी भाषा में ‘अंक’ को कहते हैं
(क) हिन्दवी (ख) हिन्दसे
(ग) हिन्दुसे (घ) हिन्दवे।
11. मोहन राकेश ने किस कहानी पत्रिका को सम्पादन किया
(क) सारिका (ख) दिनमान
(ग) धर्मयुग (घ) कल्पना
प्रश्न 12. सुनहले सूर्योदय और सूर्यास्त की भूमि है
(क) हिन्द महासागर (ख) अरब सागर
(ग) बंगाल की खाड़ी (घ) कन्याकुमारी
उत्तर: (ग)(घ)(ख)(क)(घ)(घ)(ख)(ख)(क)(ग)(ख) (क) (घ)
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. आखिरी चट्टान किस गद्य विधा की रचना है?
उत्तर; ‘आखिरी चट्टान’ हिन्दी गद्य की यात्रा वृत्तान्त विधा की रचना है।
प्रश्न 2. कन्याकुमारी में लेखक क्या देखता रहा?
उत्तर: कन्याकुमारी में समुद्र में उभरी एक चट्टान पर खड़े होकर लेखक भारत के स्थल भाग की आखिरी चट्टान को देर तक देखता रहा।
प्रश्न 3. पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित पीले रेत के टीले का क्या नाम था?
उत्तर: पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित पीले रेत के टीले का नाम ‘सैंड हिल’ था।
प्रश्न 4. लेखक ने सूर्यास्त का दृश्य सैंड हिल से क्यों नहीं देखा?
उत्तर: लेखक सूर्यास्त का दृश्य पूरे विस्तार की पृष्ठभूमि में देखना चाहता था। सैंड हिल के आगे कुछ रेत के टीले इसमें बाधक थे। इसलिए लेखक ने सूर्यास्त का दृश्य सैंड हिल से नहीं देखा।
प्रश्न 5. “पानी पर दूर तक सोना ही सोना ढुल आया” कहने से लेखक का तात्पर्य क्या है?
उत्तर: लेखक कहना चाहता है कि सूर्य के गोले के समुद्र के पानी की सतह को छूते ही समुद्र का पानी सुनहरा हो गया।
प्रश्न 6. समुद्र तट पर किस रंग की रेत थी?
उत्तर: समुद्र तट पर अनेक रंगों की रेत थी। उन रंगों को कोई नाम देना सम्भव नहीं था।
प्रश्न 7. लेखक जूता हाथ में लेकर समुद्र तट पर क्यों दौड़ रहा था?
उत्तर: समुद्र का तट उठने वाली लहरों के कारण पानी में डूबने वाला था। आत्मरक्षा के लिए वहाँ से दौड़कर आगे जाने में जूते बाधा डाल रहे थे। इसलिए लेखक जूता हाथ में लेकर समुद्र तट पर दौड़ रहा था।
प्रश्न 8. होटल में पहुँचने पर लेखक का मन बेचैन क्यों था?
उत्तर; लेखक कनानोर के सेवाय होटल में अपने लिखे हुए अस्सी-नब्बे पन्ने भूल आया था। अतः वह ज्यादा दिन रुककर समुद्र तट का सौन्दर्य नहीं देख सकता था। इसलिए होटल में पहुँचने पर लेखक का मन बेचैन था।
प्रश्न 9. कन्याकुमारी की आबादी कितनी थी?
उत्तर: कन्याकुमारी की आबादी आठ हजार थी।
प्रश्न 10. घाट पर लोग क्यों एकत्रित थे?
उत्तर; घाट पर लोग उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए एकत्रित थे।
प्रश्न 11. ग्रेजुएट युवक की किस बात की ओर लेखक का ध्यान नहीं था तथा क्यों?
उत्तर: ग्रेजुएट युवक बता रहा था कि चट्टान पर एक नवयुवती ने आत्महत्या की थी। उस समय लेखक नाव तथा घाट के बीच की दूरी का अनुमान लगा रहा था। इसलिए उसका ध्यान ग्रेजुएट युवक की बात की ओर नहीं था।
प्रश्न 12. समुद्र के पानी में पड़ने वाली भंवर से नाव कैसे बाहर निकली?
उत्तर: नाव समुद्र के पानी में पड़ने वाली भंवर से स्वयं ही बाहर आ गई या मल्लाहों की कोशिशों के कारण-यह लेखक नहीं जान पाया।
प्रश्न 13. कन्याकुमारी में किन तीन सागरों का संगम होता है?
उत्तर: कन्याकुमारी में अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिन्द महासागर का संगम होता है।
प्रश्न 14. विवेकानन्द ने कहाँ समाधि लगाई थी?
उत्तर: विवेकानन्द ने कन्याकुमारी में सागरों के संगम में स्थित चट्टान पर समाधि लगाई थी।
प्रश्न 15. लेखक को किन पेड़ों के झुरमुट दिखाई दिए?
उत्तर: लेखक को नारियल के पेड़ों के झुरमुट दिखाई दिए।
प्रश्न 16.कनानोर के होटल में लेखक क्या भूल आया था?
उत्तर: कनानोर के होटल में लेखक मोहन राकेश अपने लिखे हुए अस्सी-नब्बे पन्ने भूल आए थे।
प्रश्न 17.कन्याकुमारी भारत के किस राज्य में है?
उत्तर: कन्याकुमारी भारत के तमिलनाडु राज्य में है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.लेखक मोहन राकेश के कथन “मैं कुछ देर भूला रहा कि मैं मैं हूँ, एक जीवित व्यक्ति, दूर से आया यात्री, एक दर्शक’-को भाव स्पष्ट कीजिए।
अथवा लेखक अपना अस्तित्व क्यों भूल गया था?
उत्तर:कन्याकुमारी स्थित समुद्र में उभरी एक चट्टान पर खड़े होकर लेखक (मोहन राकेश) देर तक भारत के स्थल भाग की आखिरी चट्टान देखता रहा। वह अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिन्द महासागर के संगम पर स्थित थी। इसी चट्टान पर स्वामी विवेकानन्द ने समाधि लगाई थी। तीनों तरफ क्षितिज तक पानी ही पानी था।
सागर के जल के विस्तार का ओर-छोर नहीं था। लहरें समुद्र में उभरी चट्टानों से टकराकर बिखर रही थीं। समुद्र के तीनों ओर फैले विस्तार को देखने में मग्न लेखक को कुछ देर के लिए अपने अस्तित्व का ही विस्मरण हो गया। वह उस दृश्य में खो गया और दूर से आये हुए एक पर्यटक के रूप में अपनी उपस्थिति को उसे ध्यान ही नहीं रहा।
प्रश्न 2.“यात्रियों की टोलियाँ उस दिशा में जा रही थीं।”-यात्रियों की टोलियाँ कहाँ जा रही थीं तथा क्यों?
उत्तर:यात्रियों की टोलियाँ समुद्र तट पर स्थित पीले रेत के एक ऊँचे टीले की ओर जा रही थीं। उस टीले का नाम सैंड हिल था। यात्री वहाँ पहुँचकर अस्त होते हुए सूर्य का दृश्य देखना चाहते थे। सैंड हिल के सामने खुली विस्तृत जलराशि थी तथा वहाँ से सूर्यास्त का दृश्य स्पष्ट दिखाई देता था।
प्रश्न 3.टीले का नाम ‘सैंड हिल’ रखे जाने का क्या कारण है?
उत्तर:रेत के टीले का नाम ‘सैंड हिल’ था। वह पीली रेत से निर्मित था तथा बहुत ऊँचा था। रेत से बने होने तथा ऊँचा होने के कारण उसको ‘सैंड हिल’ नाम से पुकारा जाता था।
प्रश्न 4.“मैं ज्यादा देर अपनी जगह स्थिर नहीं रह सको।” लेखक सैंड हिल पर क्यों नहीं रुका?
उत्तर: लेखक (मोहन राकेश) भी सूर्यास्त देखने सैंड हिल पहुँचा। कुछ मिशनरी युवतियाँ वहाँ थकी-सी बैठी थीं।
वहाँ पहुँचकर लेखक देर तक नहीं रुका। वह सूर्यास्त का दृश्य ऐसे स्थान से देखना चाहता था, जहाँ से समुद्र का निर्बाध विस्तार हो। सैंड हिल के आगे एक अन्य टीला था। लेखक वहाँ जाकर सूर्यास्त देखने के लिए आगे बढ़ गया।
प्रश्न 5. अस्त होते हुए सूर्य की किरणों के कारण रेत कैसी लग रही थी?
उत्तर; अस्त होते हुए सूर्य की सुनहरी किरणें रेत पर पड़ रही थीं। इस कारण पीली रेत को एक नया रंग प्राप्त हो रही था। उस रंग में वह अभी-अभी नई निर्मित-सी लग रही थीं। ऐसा लग रहा था कि उसे हाल ही में बनाकर वहाँ तट पर डाला गया था।
प्रश्न 6.“लगा जैसे रेत का कॅवारापंन पहली बार उन निशानों से दूर हो”-इस कथन का आशय क्या है?
उत्तर:- सैंड हिल के आगे अनेक टीले थे। उनको पार करके लेखक सूर्योदय देखने एक ऐसे रेतीले टीले पर पहुँचा था जिसके आगे समुद्र की विशाल जलराशि का निर्बाध विस्तार दिखाई दे रहा था। लोग सैंड हिल से ही सूर्योदय का दृश्य देखकर लौट जाते थे। लेखक उस टीले पर पहुँचने वाला पहला व्यक्ति था। वहाँ रेत पर उसके पैरों के चिह्न बने थे। पहली बार उस रेत पर बने अपने पैरों के चिह्नों को देखकर लेखके रोमांचित हो उठा।
प्रश्न 7.“पहले जहाँ सोना बह रहा था, वहाँ अब लहू बहता नजर आने लगा” में क्या भाव निहित है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: जब सूर्य के गोले ने समुद्र की जलराशि की सतह को स्पर्श किया तो जल सुनहरा हो गया। ऐसा लग रहा था कि पानी में सोना घोल दिया गया हो। परन्तु पानी का रंग बार-बार तथा जल्दी-जल्दी बदल रहा था। पहले उसका रंग सुनहरा था तो कुछ समय बाद ही उसका रंग रक्त के रंग जैसा अर्थात् लाल हो गया।
प्रश्न 8. सूर्यास्त के पश्चात् समुद्र तट का चित्रण कीजिए।
उत्तर: सूर्यास्त होने के पश्चात् समुद्र की विशाल जलराशि, जो पहले क्रमशः सुनहरी, लाल और बैंगनी दिखाई दे रही थी, काली पड़ गई। आसपास का पूरा दृश्य अँधेरे में डूबने से काला हो गया था। दूर खड़े वृक्षों के झुरमुट स्याह पड़ गये थे। दूर स्थित सैंड हिल की आकृतियाँ भी स्पष्ट नजर नहीं आ रही थीं। चारों ओर का दृश्य धुंधला हो गया था। टीलों का रेत भी पीले से स्याह हो गया था।
प्रश्न 9. लेखक ने अनेक रेतीले टीलों को पार कर एक दूरस्थ टीले से सूर्यास्त का क्या दृश्य देखी। इस कारण वहाँ से लौटने में उसको क्या कठिनाई हुई? यदि लेखक के स्थान पर आप होते तो क्या करते?
उत्तर: दर्शक सैंड हिल से ही सूर्यास्त का दृश्य देख रहे थे। कुछ अधिक खुले विस्तार से सूर्यास्त का दृश्य देखने के विचार से लेखक सैंड हिल के आगे वाले अनेक टीलों को पार करके एक टीले पर पहुँचा। यह टीला दूर था। सूर्य अस्त होने के बाद अँधेरा छाने लगा था और समुद्र तट पानी में डूबने लगा था।
लौटने का कोई सुरक्षित मार्ग भी नहीं था। अतः वापसी में लेखक को बहुत कठिनाई उठानी पड़ी। उसने इसके बारे में सोचा ही नहीं था। यदि मैं लेखक के स्थान पर होता तो अन्य दर्शकों के साथ सैंड हिल से ही सूर्यास्त का दृश्य देखता और जोखिम नहीं उठाता।
प्रश्न 10.टीले से नीचे फिसलकर समुद्रतट पर पहुँचने पर लेखक ने बढ़ते हुए अँधेरे की बात क्यों भुला दी?अथवा समुद्र तट पर लेखक ने जो रेत देखी, वह कैसी थी?
उत्तर: समुद्र तट पर पहुँचने पर लेखक को स्मरण नहीं रही कि अँधेरा बढ़ता जा रहा था और वहाँ से जल्दी लौटना जरूरी था। कारण यह था कि उसका ध्यान किनारे की रेत की ओर था। उस रेत के जैसे रंगों वाली रेत उसने पहले कभी नहीं देखी थी।
एक-एक इंच पर एक-दूसरे से अलग रंग की रेत थी। एक ही रंग में अनेक रंगों की झलक थी। वहाँ अनेक अनाम रंग थे। ऐसे रंगों की रेत देखकर लेखक बहुत रोमांचित था। वह उस रेत को हाथों से मसल रहा था तथा पैरों से रौंद रहा था।
प्रश्न 11.“सहसा मुझे खतरे का अहसास हुआ”-लेखक को किस कारण खतरे का अहसास हुआ और तब उसने क्या किया?
उत्तर: सूर्य छिपने पर तट पर अँधेरा छाने लगा था। समुद्र में पानी बढ़ रहा था। तट का सिर्फ तीन-तीन चार-चार फुट हिस्सा ही पानी से बाहर था। तट की चौड़ाई धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। अचानक एक लहर आई और लेखक का पैर भीग गया तो सहसा उसको खतरे का अहसास हुआ। उसको लगा कि तट का शेष भाग भी जल्दी ही पानी में डूब जायेगा। खतरा भाँपकर पहले वह तेज-तेज चलने लगा, फिर दौड़ने लगा। उसने जूता उतार कर हाथ में ले लिया ताकि दौड़ने में बाधा न उत्पन्न हो।
प्रश्न 12. रात में केप होटल के लॉन में बैठे हुए लेखक के मन में बेचैनी होने का क्या कारण था?
उत्तर: कन्याकुमारी लेखक को अच्छा लगा था तथा वह वहाँ कई सप्ताह रहना चाहता था। परन्तु अपने भुलक्कड़पन के कारण वह अपने लिखे हुए अस्सी-नब्बे पन्ने कनानोर के सेवाय होटल में मेज की दराज में छोड़ आया था। अब उसे तुरन्त वहाँ लौट जाना था। उसके मन की बेचैनी का कारण यह था कि वह तय नहीं कर पा रहा था कि कन्याकुमारी के समुद्र तट पर रुके अथवा कनानोर लौट जाये।
प्रश्न 13. “गीत के स्वर विलीन हो गये और मन में केवल हिन्दसों की चर्बी चलती रह गयी”-कथन से लेखक की किस मनोदशा का परिचय मिलता है?
उत्तर: होटल के कम्पाउंड में एक बस आकर रुकी। उसमें बैठी लड़कियाँ अँग्रेजी में एक गीत गा रही थीं। इस गीत से लेखक की कन्याकुमारी में रुकने की इच्छा को बल मिल रहा था। यद्यपि उसके दिमाग में वहाँ से सबेरे ही कनानोर लौट जाने का विचार बार-बार उठ रहा था।
एक ओर वह वहाँ रुककर समुद्र तट के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखना चाहता था तो दूसरी ओर अपने लिखे हुए पन्नों को पाना भी चाहता था। गीत के स्वरों के साथ उसके दिमाग में बसों का टाइम-टेबल भी उभर रहा था। बस चली गई, गीत का स्वर बन्द हो गया परन्तु लेखक के मन में बसों के आने-जाने के समय पुनरावृत्ति होती रही।
प्रश्न 14. कन्याकुमारी के सम्बन्ध में ग्रेजुएट युवक ने लेखक को क्या बताया?
उत्तर: ग्रेजुएट युवक ने बताया कि कन्याकुमारी की आबादी आठ हजार थी। इनमें चार-पाँच सौ शिक्षित तथा बेकार युवक थे। इनमें लगभग सौ युवक ग्रेजुएट थे। वे नौकरियों के लिए अर्जियाँ देते थे तथा आपस में दार्शनिक सिद्धान्तों पर बहस करते थे। वे छोटे-मोटे काम करते थे। ग्रेजुएट युवक फोटो-अलबम बेचता था।
प्रश्न 15. सूर्योदय के दृश्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर: कन्याकुमारी में समुद्र में छोटे-छोटे द्वीपों की तरह स्याह चट्टानें बिखरी थीं। उनकी ओर से सूर्य उदय हो रहा था। उसके कारण पानी और आकाश रंग-बिरंगे हो गये थे। घाट पर अनेक लोग सूर्य को अर्घ्य देने के लिए उपस्थित थे। बैरे सरकारी मेहमानों को काफी पिला रहे थे। मेहमान शंख और मालाएँ बेचने वाली नवयुवतियों से मोल-भाव कर रहे थे और बाइनाक्यूलर्स से सूर्योदय का दृश्य देख रहे थे। बहुत से कडलकाक पानी में तैर रहे थे।
प्रश्न 16. लेखक के साथी नाव को किस रास्ते से लौटाकर ले जाना चाहते थे? मल्लाह इसके लिए तैयार क्यों नहीं थे?
उत्तर: लेखक के साथी लौटते समय नाव को घाट की तरफ से घुमाकर ले जाना चाहते थे। मल्लाह इस रास्ते से होकर लौटने को तैयार नहीं थे। वह रास्ता बहुत खतरनाक था। उसमें समुद्र की लहरों के कारण भंवरें पड़ती थीं। नाव के किसी भंवर में फंसकर डूबने का डर था। वहाँ समुद्र के पानी में तेज ऊँची-ऊँची लहरें भी खतरे का कारण थीं।
प्रश्न 17. समुद्र के पानी में पैदा हुई भंवर के कारण नाव तथा उसमें सवार लेखक की क्या दशा हुई?
उत्तर: एक लहर ने लेखक की नाव को ऐसा धक्का दिया कि वह उलटते-उलटते बची। आगे तीन-चार चट्टानों के बीच पानी में भंवर पड़ रहा था। नाव एक तरफ से भंवर में घुसी तथा दूसरी तरफ से निकल गई। मल्लाहों के उसे बचाने से पहले ही वह पुनः भंवर में पड़ गई और उसमें चक्कर काटने लगी।
कुछ समय तक लेखक को ध्यान भंवर और उसमें घूमती हुई नाव के अलावा किसी अन्य बात की ओर नहीं गया। तीचार चक्कर खाकर नाव भंवर से बाहर आ गई। लेखक को नहीं पता कि नाव मल्लाहों के प्रयत्न से भंवर से बाहर आई या स्वयं ।
प्रश्न 18.घाट की ओर नाव से लौट रहे लेखक ने क्या देखा? वह क्या सोच रहा था?
उत्तर: घाट की ओर नाव से लौट रहे लेखक ने देखा कि कन्याकुमारी के मन्दिरों की घंटियाँ बज रही थीं। भक्तों की मण्डली अन्दर जाने से पहले उसे प्रणाम कर रही थी। सरकारी मेहमान गैस्ट हाउस की ओर लौट रहे थे। किनारे की हल्की धूप में नावों के पाल तथा कडल काकों के पंख चमक रहे थे। लेखक आँखों से बीच की दूरी नाप रहा था और बसों के टाइम-टेबलं के बारे में सोच रहा था।
प्रश्न 19. कनानोर में सेवाय होटल के चौकीदार को निराशा क्यों हुई?
उत्तर: लेखक कन्याकुमारी से अगले दिन सबेरे ही कनानोर लौट गया। वहाँ होटल पहुँचने पर उसको अपने लिखे हुए कागज मिल गए। लेकिन उस समय तक चौकीदार ने उनको मोड़कर कापी बना ली थी और उन पन्नों के पीछे खाली स्थान पर हिसाब लिख लिया था। जब लेखक ने उससे वह कॉपी ली तो उसको बड़ी निराशा हुई । जिस प्रकार अपने लिखे कागजों के खोने की आशंका से लेखक निराश हुआ था, उसी प्रकार कॉपी को लिए जाने से चौकीदार भी निराश था।
प्रश्न 20. लेखक मोहन राकेश को कन्याकुमारी के समुद्र तट का प्राकृतिक सौन्दर्य अच्छा लगा था किन्तु उससे भी अधिक उन्हें कनानोर में भूल से छूट गए लिखे हुए पन्ने प्रिय थे-‘आखिरी चट्टान’ यात्रा संस्मरण के आधार पर उपर्युक्त कथन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: लेखक को कन्याकुमारी के समुद्र तट का प्राकृतिक सौन्दर्य अच्छा लगा था। वह वहाँ के समुद्र में उठती लहरों तथा सूर्योदय-सूर्यास्त के मनोरम दृश्यों को बार-बार देखना चाहता था। वह वहाँ कुछ दिन और रुकना चाहता था। परन्तु उसके लिखे हुए अस्सी-नब्बे पन्ने कनानोर में ही छूट गये थे। वह उनको पुन: प्राप्त करने के लिए बेचैन था।
उसके मन में सबेरे जाने वाली बसों का टाइम-टेबल घूम रहा था तो दूसरी ओर कन्याकुमारी का प्राकृतिक सौन्दर्य उसे अपनी ओर खींच रहा था। परन्तु वह अगली सुबह ही कनानोर चला गया। उसको अपने लिखे पन्ने अधिक प्रिय थे तथा उनको पाने की उसके मन में अधिक चिन्ता थी।
प्रश्न 21.“निर्णय तुरन्त करना था-लेखक को कौन-सा निर्णय तुरन्त करना था तथा क्यों?
उत्तर: सूर्य अस्त हो गया था। समुद्र तट पर अँधेरा होने लगा था। समुद्र तट के तीन-चार फुट जलहीन स्थल के पानी में डूबने का खतरा पैदा हो गया था। लहरें आकर लेखक के पैरों को भिगो चुकी थीं। लेखक अनेक रेतीले टीलों को पार करके आया था।
वह उसी रास्ते से लौटे अथवा समुद्र तट के रास्ते से यह निर्णय तुरन्त करना आवश्यक था। क्योंकि घनघोर अँधेरा होने से पहले इतने टीलों को पार करके जाना सम्भव नहीं लग रहा था। जल्दी ही समुद्र का तट भी पानी में डूब सकता था।
प्रश्न 22. लेखक अपने लिखे हुए पन्ने कनानोर में भूल आने के कारण बेचैन था। कोई व्यक्ति अपनी प्रिय वस्तु वस्तु भूल आवे और इसका ध्यान भी उसको न आये। ऐसी एक काल्पनिक घटना लिखिए।
उत्तर: लेखक अपने लिखे हुए पन्ने कनानोर में भूल आया था परन्तु उसे सूटकेस खोलने पर अपनी भूल पता चल गई थी। मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जो अपने दूधमुंहे बच्चे को गाड़ी में लिटाकर घुमाने ले गया।
शराबघर सामने पाकर वह सड़क पर ही बच्चे को गाड़ी में छोड़ गया। संयोग से बच्चे की माँ वहाँ से गुजरी और बच्चे को अकेला गाड़ी में पाकर उसे घर ले आई। एक घण्टे बाद वह व्यक्ति घर पहुँचा और पत्नी से पूछा कि उसने क्या खाना बनाया है? उसे बच्चे के बारे में कुछ भी याद नहीं था।
प्रश्न 23. लेखक कन्याकुमारी का समुद्रतट छोड़कर कनानोर वहाँ भूल से छूट गए अपने लिखे हुए पन्ने लेने गया। यदि आप अपने लिखे पन्ने भूल आये होते तो क्या करते?
उत्तर; लेखक अगली सुबह ही अपने लिखे हुए पन्ने लेने कनानोर चला गया। उसे पन्ने मिल भी गए। यदि मैं अपने लिखे हुए पन्ने कहीं भूल आया होता तो अपने प्रिय मनोरंजक स्थान को छोड़कर वहाँ नहीं जाता। मैं प्राकृतिक सौन्दर्य का भरपूर आनन्द उठाता। मैं पुनः उस विषय पर लेखन करता। इस प्रकार मैं प्राकृतिक सौन्दर्य देखने से वंचित न होता और अपने लिखे हुए पन्नों को पाने के लिए व्याकुल भी नहीं होता।
प्रश्न 24.“इस चट्टान से इतनी प्रेरणा तो हमें मिलती ही है-यह कथन किसका है तथा क्यों कहा गया है?
उत्तर; “इस चट्टान से इतनी प्रेरणा तो हमें मिलती ही है-यह कथन ग्रेजुएट नवयुवक का है। नवयुवक ने लेखक को बताया कि कन्याकुमारी में पाँच सौ शिक्षित युवकों में लगभग सौ ग्रेजुएट हैं। वे बेरोजगार हैं। छोटे-मोटे काम करके गुजारा करते हैं।
वे नौकरियों के लिए अर्जियाँ देते हैं और दार्शनिक सिद्धान्तों पर बहस करते हैं। समुद्र की लहरों का टकरावझेलती विवेकानन्द-शिला उनको बेरोजगारी के समय संघर्षशील बनने की प्रेरणा देती है। वे उच्च दार्शनिक सिद्धान्तों में अपने मन को लगाकर बेरोजगारी के यथार्थवादी संकट से अपना मन हटाने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 25. सूर्यास्त के समय समुद्र के पानी का किन विविध रंगों में परिवर्तन हुआ?
उत्तर: सूर्यास्त के समय समुद्र का पानी सुनहरा हो गया। बाद में उसके रंग में परिवर्तन हुआ। वह पहले लाल, फिर बैंगनी तथा अन्त में काला हो गया। इस प्रकार सूर्य के प्रभाव से समुद्र के पानी का रंग बार-बार बदलता रहा।
प्रश्न 26. सूर्यास्त के बाद लेखक के मन में क्या डर समाया?
उत्तर: सूर्यास्त होने पर समुद्र तट पर अँधेरा फैलने लगा। लेखक जिस टीले पर था वहाँ से अनेक रेतीले टीलों को पारकर वापिस लौटना था। लेखक को भय हुआ कि इन टीलों को पार करने से पूर्व ही अँधेरा हो जायगा और वह रेतीले टीलों में ही भटकता रह जायगा। उसे रास्ता नहीं मिलेगा।
प्रश्न 27. सूर्योदयकालीन क्षणों में लेखक ने क्या देखा?
उत्तर: सूर्योदय हो रहा था। लेखक ने देखा कि पानी और आकाश में तरह-तरह के रंग मिल-मिलकर उठे थे। अनेक स्याह चट्टानें छोटे-छोटे द्वीपों की तरह बिखरी थीं। उनकी ओट से सूर्य उदय हो रहा था। अनेक लोग घाट पर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए उपस्थित थे। वे गेस्ट हाउस के मेहमानों को काफी पिला रहे थे। वे शंख और मालाएँ देखकर बेचने वाली महिलाओं से मोल-भाव करने के साथ सूर्योदय देख रहे थे।
प्रश्न 28. ग्रेजुएट नवयुवक से लेखक की क्या बातचीत हुई?
उत्तर: ग्रेजुएट नवयुवक ने लेखक को कन्याकुमारी के शिक्षित युवकों की बेकारी के बारे में बताया। इन चार-पाँच सौ शिक्षित युवकों में लगभग सौ ग्रेजुएट थे। वे नौकरियों के लिए अर्जियाँ देते थे तथा आपस में दार्शनिक सिद्धान्तों पर बहस करते थे। वे कोई छोटा-मोटा काम करते थे। घाट के पास की चट्टान पर आत्महत्याएँ बहुत होती थीं।
निबंधात्मक प्रश्नप्रश्न 1.हिन्दी गद्य की यात्रावृत्त’ विधा का परिचय ‘आखिरी चट्टान’ पाठ के आधार पर दीजिए।
उत्तर: आधुनिक हिन्दी गद्य में अनेक विधाओं में लेखन किया जाता है। ‘यात्रावृत्त’ विधा भी उनमें से एक है। जब कोई. लेखक अपनी की गई यात्रा का विवरण स्थलों और घटनाओं के साथ प्रस्तुत करता है, तो उस रचना-विधा को यात्रावृत्त कहते हैं। इसमें लेखक चित्रात्मक शैली में अपनी यात्रा का अनुभव पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है। इससे जिस पाठक ने उस स्थान की यात्रा नहीं की है, वह भी उसका ज्ञान और आनन्द प्राप्त कर लेता है।
पाठक उस स्थान के प्राकृतिक वातावरण, रीति-रिवाजों, वेश-भूषा खान-पान आदि से परिचित हो जाता है।‘आखिरी चट्टान’ मोहन राकेश द्वारा रचित यात्रावृत्त है। इसमें कन्याकुमारी के समुद्र तट की प्राकृतिक सुषमा का चित्रण आत्मकथन तथा शब्दचित्र शैलियों में हुआ है।
समुद्र तट के प्राकृतिक सौन्दर्य, विस्तृत जलराशि और उठती लहरों के साथ सूर्योदय तथा सूर्यास्त का मनोरम चित्र भी इस यात्रावृत्ते की विशेषता है।अनुभव तथा स्मृति पर आधारित यात्रावृत्त आत्मपरक होता है, जो प्रायः आत्मकथन शैली में लिखा जाता है। राकेश जी ने भारत के उत्तर में स्थित हिमालय तथा दक्षिण में स्थित समुद्र का सुन्दर चित्रण किया है।
प्रश्न 2.“मैं देख रहा था और अपनी पूरी चेतना से महसूस कर रहा था-शक्ति का विस्तार, विस्तार की शक्ति’-मोहन राकेश क्या देख और महसूस कर रहे थे?
उत्तर: लेखक मोहन राकेश कन्याकुमारी के समुद्र में उभरी एक चट्टान पर खड़े होकर आखिरी चट्टान को देख रहे थे। वहाँ बंगाल की खाड़ी, अरब सागर तथा हिन्द महासागर का संगम हो रहा था। तीनों दिशाओं में क्षितिज तक सागर की विस्तृत जलराशि थी। हिन्द महासागर की ओर यह विस्तार और ज्यादा था। ऐसा लगता था जैसे इस विस्तार का कहीं अंत नहीं था।
लेखक सागर के इस अनन्त विस्तार को मुग्ध तथा तल्लीन होकर देख रहा था।सागर की विस्तृत जलराशि में लहरें उठ रही थीं। वे समुद्र में स्थित चट्टानों से टकरा रही थीं। नुकीली चट्टानों से टकराकर जब वे अनेक बूंदों के रूप में बिखरती थीं। तो एक सुन्दर जाली-सी बन जाती थी।
वे बार-बार आकर चट्टानों से टकराती थीं। वे ऐसी प्रतीत हो रही थीं जैसे विस्तृत सागर की शक्तिशाली भुजाएँ हों। वे सागर के विस्तार की शक्ति की प्रतीक थीं।मोहन राकेश सागर के विस्तार और उसमें बार-बार उठती शक्तिशाली लहरों को देख रहे थे तथा अपनी चेतना में उसे महसूस भी कर रहे थे।
परश्न 3.‘आखिरी चट्टान’ पाठ के आधार पर समुद्र तट के प्राकृतिक सौन्दर्य को वर्णन कीजिए।
उत्तर;‘आखिरी चट्टान’ शीर्षक यात्रावृत्त में मोहन राकेश ने भारत के दक्षिणी प्रदेश कन्याकुमारी के समुद्र तट की प्राकृतिक सुषमा का चित्रण किया है। वहाँ बंगाल की खाड़ी, अरब सागर तथा हिन्द महासागर का संगम होता है। तीनों दिशाओं में सागर की विशाल विस्तृत जलेराशि दिखाई देती है। इस जलराशि में उठने वाली तेज लहरें सागर में स्थित चट्टानों से टकराती हैं।
नुकीली चट्टानों से टकराने के कारण वे बिखर जाती हैं तथा उनकी चूरा बूंदों से एक जाली-सी बन जाती है।समुद्र तट पर अनेक स्याह चट्टानें हैं।वहाँ पीले रेत के अनेक टीले भी हैं। इनमें अधिक ऊँचा टीला सैंड हिल कहलाता है। लोग वहाँ से सूर्योदय तथा सूर्यास्त के दृश्य देखते हैं। वहाँ नारियल के पेड़ों की झुरमुट हैं जो देखने में सुन्दर दिखाई देते हैं। समुद्र तट का विशाल फैलाव है।
समुद्र तट पर अनेक अनाम रंगों की रेत पाई जाती है, जो अत्यन्त आकर्षक है।कन्याकुमारी को सूर्योदय तथा सूर्यास्त का दृश्य अत्यन्त सुन्दर होता है। सागर का जल, रेत तथा पेड़-पौधे सूर्य की किरणें पड़ने से चमक उठते हैं तथा सुनहरे और अन्य रंगों में रंग जाते हैं। सूर्य वहाँ समुद्र के जल से उगता तथा उसमें डूबता हुआ प्रतीत होता है। घाट पर स्थित मन्दिर की घंटियों की ध्वनि मधुरे लगती है।
प्रश्न 4. ‘आखिरी चट्टान’ यात्रा वृत्तान्त के सूर्योदय’ तथा ‘सूर्यास्त’ के दृश्यों का चित्रण अपने शब्दों मेंकीजिए। आपको इनमें से कौन-सा दृश्य अधिक प्रभावशाली लगता है?
उत्तर:‘आखिरी चट्टान’ मोहन राकेश द्वारा लिखित यात्रा वृत्तांत है। लेखक ने इसमें कन्याकुमारी स्थित समुद्र के
एक्सीलैण्ट हिन्दी विस्तार में उदय और अस्त होते सूर्य का दृश्य चित्रित किया है।
सूर्योदय:
समुद्र में छोटे-छोटे द्वीपों के समान अनेक स्याह चट्टानें बिखरी थीं। उनकी ओट से सूर्य उदित हो रहा था। सूर्य के प्रकाश के कारण आकाश तथा समुद्र के जल में तरह-तरह के रंग दिखाई दे रहे थे। घाट पर अनेक लोग उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए उपस्थित थे। सरकारी अतिथि बाइनाक्यूलर्स से सूर्योदय देख रहे थे। तट पर स्थित मन्दिर की घंटियाँ पूँज रही थीं। कडल-काक पानी में तैर रहे थे।
सूर्यास्त:
लेखक सूर्यास्त देखने के लिए रेत के टीले पर उपस्थित था। सूर्य के गोले ने समुद्र के पानी की सतह को स्पर्श किया। पानी का रंग सुनहरा हो गया। सूर्य का गोला बेबसी में पानी में डूबता जा रहा था। धीरे-धीरे वह पूरा डूब गया। अब पानी को सुनहरा रंग परिवर्तित होकर लाल हो गया। पानी का रंग जल्दी-जल्दी बदल रहा था।
लाल से बैंगनी, फिर वह काला हो गया। अंधकार बढ़ने पर रेत के टीले, नारियल के पेड़ तथा तट के आस-पास का पूरा वातावरण धुंधला पड़ गया। सूर्योदय तथा सूर्यास्त के दृश्यों में मुझको सूर्यास्त के दृश्य का चित्रण अधिक प्रभावशाली लगता है। वह अत्यन्त आकर्षक बन पड़ा है। उसकी भाषा लाक्षणिक तथा शैली शब्द-चित्रात्मक है।
प्रश्न 5.मोहन राकेश ने यात्रायें कीं और उनको अपनी लेखनी का विषय बनाया। अनेक लोग पर्यटन करते हैं लेकिन उसको लिखते नहीं। आपको पर्यटन का अवसर मिला तो किसका अनुसरण करेंगे?
उत्तर: मोहन राकेश को पर्यटन प्रिय था। आपने अनेक यात्रायें कीं और उनको शब्दों में बाँधा। हिन्दी गद्य की ‘यात्रावृत्त’ विधा के लेखन में राकेश जी का महत्वपूर्ण योगदान है। राकेश जी ने दक्षिण के समुद्र तट तथा उत्तर के हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य को अपने यात्रावृत्तों में अंकित किया है।पर्यटन के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है। लोग देश-विदेश की यात्रायें करते हैं किन्तु उनको लिखते नहीं।
लिखना सबके बस का काम नहीं होता है।यदि मुझको पर्यटन को अवसर मिला तो मैं मोहन राकेश जी का अनुसरण करूंगा। मैं चाहूँगा कि अपने अनुभवों को शब्द प्रदान कर उनको लोगों तक पहुँचाऊँ। ‘यात्रावृत्तों को पढ़कर लोगों को पर्यटन योग्य स्थानों का पता चलता है। यात्रावृत्त के लेखक के अनुभवों का लाभ वे अपनी यात्राओं में उठा सकते हैं। अतः मैं अपनी यात्राओं के वृत्त लिखेंगा।
प्रश्न 6.“मैं देर तक बैठा सामने देखता रहा-जैसे कि पौधे की टहनियों या उनके हाशिये में बन्द महासागर के पानी से मुझे अपनी समस्या का हल मिल सकता है।”-मोहन राकेश की समस्या क्या थी? यदि आपसे कहा जाता तो आप इस समस्या को किस प्रकार हल करते?
उत्तर: लेखक केप होटल के कम्पाउंड में बैठा था। उसका मन द्वन्द्व में पड़ा था। उसको कन्याकुमारी को सूर्यास्त, समुद्र तट और तट की रेत बहुत आकर्षक लगे थे। वह कई दिन, कई सप्ताह वहाँ रुकना चाहता था।
किन्तु अपना सूटकेस खोलने पर उसको याद आया कि उसके लिखे हुए अस्सी-नब्बे पन्ने केनानोर के सेवाय होटल में ही छूट गये थे। वह वहाँ जाना तथा उनको प्राप्त करना चाहता था। सामने अँधेरे में हिन्द महासागर को काटती कुछ स्याह लकीरें-एक पौधे की टहनियाँ थीं।
वह सोच रहा था कि पौधे की टहनियों तथा हिन्द महासागर के पानी से क्या उसकी समस्या हल हो सकती थी?. मोहन राकेश की समस्या थी कि वह किसे चुनें? वह समुद्र तट पर रुकें अथवा कनानोर जाएँ? यदि मुझसे इस समस्या को हल करने को कहा जाता, तो मैं इसको आसानी से हल करता। मैं मोहन जी को कन्याकुमारी में रुककर समुद्र तट के सौन्दर्य का आनन्द लेने को कहता और स्वयं कनानोर जाकर उनके लिखे पन्ने ले आता।
प्रश्न 7. “मैं टीले पर बैठ गया-ऐसे जैसे वह टीला संसार की सबसे ऊँची चोटी हो, और मैंने सिर्फ मैंने, उस चोटी को पहली बार सर किया हो”आखिरी चट्टान पाठ के आधार पर बताइये कि लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर: लेखक सूर्यास्त देखने सैंड हिल पहुँचा। वह और अधिक खुले हुए विस्तार से सूर्यास्त का दृश्य देखना चाहता था। सैंड हिल के आगे एक रेतीला टीला था। वह वहाँ पहुँचा। उसके आगे के अनेक टीले पार करके वह एक टीले पर पहुँचा। पर्यटक प्रायः सैंड हिल से ही सूर्यास्त देखकर लौट जाते थे। लेखक पहला और अकेला व्यक्ति था जो अनेक टीलों को पार कर इस टीले पर पहुँचा था। सूर्य नीचे समुद्र की सतह की ओर गिर रहा था।
लेखक अपने प्रयत्न की सफलता पर प्रसन्न था। वह वहाँ टीले पर बैठ गया। . टीले पर पहुँचने वाला एकमात्र व्यक्ति होने के कारण लेखक को लग रहा था कि वह टीला न होकर संसार की सबसे ऊँची-पहाड़ी चोटी थी और उस पर चढ़ने में सफल होने वाला सिर्फ वही अकेला व्यक्ति था। ऐसा आभास होने के कारण लेखक ने उपर्युक्त बात कही है।
प्रश्न 8. नवलेखन में बहुतायत अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग हो रहा है? क्या आप इसे सही मानते हैं? इसे पाठ में जिन अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग हुआ है, उसकी सूची बनाएँ।
उत्तर: नवलेखन में अँग्रेजी शब्दों का प्रयोग बहुत हो रहा है। आवश्यकतानुसार तथा उपयुक्त हिन्दी शब्द उपलब्ध न होने पर अँग्रेजी शब्द का प्रयोग करना तो उचित है। लोक प्रचलित अँग्रेजी के शब्दों यथा, स्टेशन, बस, स्कूल, होटल आदि का प्रयोग अनुचित नहीं है। हिन्दी लेखन में अँग्रेजी शब्दों के अनावश्यक प्रयोग को मैं सही नहीं मानता।
‘आखिरी चट्टान’ यात्रावृत्तान्त में प्रयुक्त अँग्रेजी शब्द निम्नलिखित हैंकेप होटल, बाथ टैंक, मिशनरी, सैंड हिल, गवर्नमेंट, गेस्ट हाउस, कॉफी, कैनवस, इंच, फुट, लॉन, टार्च, सूटकेस, कान्वेंट, कम्पाउंड, बस, टाइम-टेबुल, ग्रेजुएट, फोटो-अलबम, बैरे, बाइनाक्यूलर, कडल-काक आदि।
प्रश्न 9.“भारत प्रकृति का खूबसूरत उपहार हैं’ -पाठ के आलोक में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: जयशंकर प्रसाद ने भारत के बारे में लिखा है-‘प्रकृति का रहा पालना यही ।’ तात्पर्य यह है कि हमारा देश भारतवर्ष प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से विश्व में अनुपम है। उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम तक हमारे देश में प्रकृति की सुषमा का भण्डार भरा पड़ा है। इसकी प्राकृतिक मनोरमा मन को मोहित करने वाली है।
मोहन राकेश ने भारत के दक्षिणी समुद्रतट पर स्थित कन्याकुमारी के मनोरम प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है। वहाँ हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी का संगम स्थल है। सर्वत्र उसकी विशाल जलराशि बिखरी दिखाई देती है। तट पर छोटे-छोटे द्वीपों के समान अनेक स्याह चट्टानें हैं। उनसे टकराकर सागर की लहरें बिखरकर चूर-चूर हो जाती हैं।कन्याकुमारी में लोग सैंड हिल से सूर्योदय तथा सूर्यास्त का मनोरम दृश्य देखने जाते हैं।
चट्टानों की ओट से उदय होते सूर्य का दृश्य अत्यन्त मनोरम होता है। लोग उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य के प्रकाश में समुद्र तट सुन्दर दिखाई देता है। सूर्य अस्त होता है तो उसका गोला जल को जैसे ही स्पर्श करता है, वैसे ही जल सुनहरा हो जाता है फिर रंग बदलते हुए वह लाल, बैंगनी और काला हो जाता है। समुद्र तट के पेड़-पौधे, चट्टानें आदि स्याह हो जाती हैं। समुद्र तट की रेत भी विविध रंगों की होती है। यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को देखने वाला अपनी सुध-बुध भूल जाता है।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या।
(1)
हिन्द महासागर की ऊँची-ऊंची लहरें मेरे आसपास की स्याह चट्टानों से टकरा रही थीं। बलखाती लहरें रास्ते की नुकीली चट्टानों से कटती हुई आती थीं जिससे उनके ऊपर चूरा बूंदों की जालियाँ बन जाती थीं। मैं देख रहा था और अपनी पूरी चेतना से महसूस कर रहा था-शक्ति का विस्तार, विस्तार की शक्ति। तीनों तरफ से क्षितिज तक पानी-ही-पानी था, फिर भी सामने का क्षितिज, हिन्द महासागर का, अपेक्षया अधिक दूर और अधिक गहरा जान पड़ता था। लगता था कि उस ओर दूसरा छोर है ही नहीं। तीनों ओर के क्षितिज को आँखों में समेटता मैं कुछ देर भूला रहा कि मैं मैं हूँ, एक जीवित व्यक्ति, दूर से आया यात्री, एक दर्शक। उस दृश्य के बीच में जैसे दृश्य का एक हिस्सा बनकर खड़ा रहा-बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच एक छोटी-सी चट्टान जब अपना होश हुआ, तो देखा कि मेरी चट्टान भी तब तक बढ़ते पानी में काफी घिर गयी है।
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘आखिरी चट्टान’ शीर्षक पाठ से उधृत है। इसके लेखक मोहन राकेश हैं। लेखक कन्याकुमारी पर्यटन के लिए पहुँचा। कन्याकुमारी के समुद्रतट पर सूर्योदय तथा सूर्यास्त का मनोरम दृश्य उसने देखा। वह केप होटल में ठहरा था। होटल के बाथ टैंक के बायीं तरफ समुद्र में उभरी एक चट्टान पर खड़े होकर वह भारत के स्थल भाग की आखिरी चट्टान को देखता रहा। इस चट्टान पर विवेकानन्द ने समाधि लगाई थी।
व्याख्या-लेखक बता रहा है कि वह जिस चट्टान पर खड़ा था उसके आस-पास की चट्टानों से हिन्द महासागर में उठने वाली लहरें टकरा रही थीं। बलखाती लहरें जब रास्ते की नुकीली चट्टानों से टकराती थीं तो चूर-चूर होकर बिखर जाती थीं। उनकी छोटी-छोटी बूंदों से चट्टानों के ऊपर एक जाली-सी बन जाती थी। लेखक को सागर का अनन्त विस्तार दिखाई दे रहा था। अनन्त लहरें सागर की शक्तिशाली भुजाओं जैसी थीं। लेखक को क्षितिज तक फैला सागर का जल ही जल दिखाई दे रही थी। विस्तृत सागर के साथ ही शक्तिशाली लहरें भी दूर तक उठती दिखाई दे रही थीं।
सागर और लहरों के इस विस्तार और शक्ति को लेखक देख रहा था और अनुभव भी कर रहा था। तीन दिशाओं में क्षितिज तक सागर की जलराशि फैली थी। सामने वाला हिन्द महासागर का क्षितिज अपेक्षाकृत ज्यादा दूर और गहरी जान पड़ता था। ऐसा लगता था कि उस तरफ उसका दूसरा छोर नहीं था। लेखक अपनी आँखों से तीनों तरफ के क्षितिज को देख रहा था। वह इस दृश्य में तल्लीन हो गया था तथा अपना अस्तित्व भी भूल गया था।
उस विस्तृत जलराशि को देखने में वह ऐसे ध्यानमग्न था कि उसे पता ही नहीं था कि वह दूर से समुद्र में सूर्यास्त देखने आया हुआ एक पर्यटक था। वह एक जीवित मनुष्य और दर्शक था। वह स्वयं को उस दृश्य का एक हिस्सा समझ रहा था। वहाँ स्थित बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच एक छोटी चट्टान के समान वह उस दृश्य का अंग बन गया था। उसका ध्यान उस समय टूटा जब उसने देखा कि वह जिस चट्टान पर खड़ा था वह समुद्र के बढ़ते हुए पानी से घिर चुकी थी।
विशेष-
(i) विवेकानन्द शिला के पास के समुद्र का प्राकृतिक सौन्दर्य उद्घाटित हुआ है।
(ii) विशाल जलराशि के आकर्षण में पड़ा हुआ लेखक अपने अस्तित्व को ही भूल गया है।
(iii) भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण तथा विषयानुरूप है।
(iv) शैली वर्णानात्मक तथा चित्रात्मक है।
(2)
जल्दी-जल्दी चलते हुए मैंने एक के बाद एक कई टीले पार किये। टाँगें थक रही थीं, पर मन थकने को तैयार नहीं था। हर अगले टीले पर पहुँचने पर लगता कि शायद अब एक ही टीला और है, उस पर पहुँचकर पश्चिमी क्षितिज का खुला विस्तार अवश्य नजर आ जाएगा, और सचमुच एक टीले पर पहुँचकर क्ह खुला विस्तार सामने फैला दिखाई दे गया-वहाँ से दूर तक रेत की लम्बी ढलान थी, जैसे वह टीले से समुद्र में उतरने का रास्ता हो। सूर्य तब पानी से थोड़ा ही ऊपर था। अपने प्रयत्न की सार्थकता से सन्तुष्ट होकर मैं टीले पर बैठ गया-ऐसे जैसे वह टीला संसार की सबसे ऊँची चोटी हो, और मैंने, सिर्फ मैंने, उस चोटी को पहली बार सर किया हो।
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘आखिरी चट्टान’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक मोहन राकेश हैं। लेखक कन्याकुमारी के समुद्रतट पर सूर्यास्त देखने पहुँचा। वह सैंड हिल पहुँचा जहाँ अनेक दर्शक उपस्थित थे। मगर वह किसी ज्यादा खुले हुए विस्तार से सूर्यास्त देखना चाहता था। सैंड हिल से आगे एक टीला था। लेखक वहाँ पहुँचा, फिर उसके आगे के अनेक टीलों को पार करके वह एक ऐसे टीले पर पहुँचा जहाँ से सागर का स्पष्ट विस्तार दिखाई देता था।
व्याख्या-लेखक कहता है कि वह जल्दी-जल्दी चल रहा था। स्पष्ट विस्तार की खोज में वह एक के बाद एक टीले को पार कर रहा था। अनेक टीलों को पार करके आगे बढ़ते रहने के कारण उसकी टाँगें थक गई थीं। परन्तु उसके मन में थकान नहीं थी। जब वह आगे वाले टीले पर पहुँचता था तो उसको लगता था कि अभी एक टीला आगे और है जहाँ पहुँचकर खुले क्षितिज का स्पष्ट विस्तार जरूर देखा जा सकता था। अन्त में ऐसा ही हुआ। वह एक टीले पर पहुँचा। वहाँ से खुला विस्तार सामने फैला दिखाई दिया। वहाँ से दूर तक रेत का लम्बा ढाल था। वह टीले से समुद्र में उतरने के लिए बने रास्ते जैसा लग रहा था। उस समय सूर्य पानी की सतह से थोड़ा ऊपर ही था। लेखक का प्रयत्न सफल हुआ। वह सन्तुष्ट था। वह टीले पर बैठ गया। उसको ऐसा लग रहा था कि वह टीला रेत का टीला न होकर कोई ऊँची पर्वत-चोटी हो जिस पर चढ़ने में सफल होने वाला वही एकमात्र व्यक्ति हो।
विशेष-
(i) भाषा सुबोध और विषयानुकूल है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) लेखक एक ऐसे स्थान की खोज में था जहाँ से सूर्यास्त देखने में कोई रुकावट न हो।
(iv) अन्त में अनेक रेतीले टीले पार करने पर उसे एक इच्छित टीला मिल ही गया।
(3)
सूर्य का गोला पानी की सतह से छू गया। पानी पर दूर तक सोना-ही-सोना ढुल आया। पर वह रंग इतनी जल्दी बदल रहा था कि किसी भी एक क्षण के लिए उसे एक नाम दे सकना असम्भव था। सूर्य का गोला जैसे एक बेबसी में पानी के लावे में डूबता जा रहा था। धीरे-धीरे वह पूरा डूब गया और कुछ क्षण पहले जहाँ सोना बह रहा था, वहाँ अब लहू बहता नजर आने लगा। कुछ और क्षण बीतने पर वह लहू भी धीरे-धीरे बैजनी और बैजनी से काला पड़ गया। मैंने फिर एक बार मुड़कर दायीं तरफ पीछे देख लिया। नारियलों की टहनियाँ उसी तरह हवा में ऊपर उठी थीं, हवा उसी हवा तरह गूंज रही थी, पर पूरे दृश्यपट पर स्याही फैल गयी थी। एक-दूसरे से दूर खड़े झुरमुट, स्याह पड़कर, जैसे लगातार सिर धुन रहे थे और हाथ-पैर पटक रहे थे।
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘आखिरी चट्टान’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक मोहन राकेश हैं। रचना यात्रावृत्त गद्य-विधा का श्रेष्ठ उदाहरण है। लेखक मोहन राकेश कन्याकुमारी के समुद्र तट के एक रेतीले टीले पर पहुँचे। वहाँ से सागर का तीनों दिशाओं में विस्तार स्पष्ट दिखाई दे रहा था। वहाँ वह सूर्यास्त के मनोरम दृश्य को देखना चाहते थे।
व्याख्या-लेखक कहते हैं कि सूर्य का गोला सागर के जल की ओर नीचे उतर रहा था। वह जल की सतह से छु। गया। सूर्य का स्पर्श होते ही समुद्र का पानी सुनहरा हो गया। ऐसा लगा जैसे उसमें सोना घोल दिया गया हो। पानी का रंग इतनी जल्दी बदल रहा था कि उस रंग का नाम बताना मुश्किल था। सूर्य का गोला ज्वालामुखी के लावे जैसे पानी में डूबने के लिए बेबस था। फिर वह पानी में पूरी तरह डूब गया। तब पानी का रंग बदलकर लाल हो गया। ऐसा प्रतीत हुआ कि जिस पानी में पहले सोना बह रहा था अब वहाँ रक्त बह रह्म था। कुछ क्षण बीतने पर पानी का खून जैसा लाल रंग बदल कर बैंजनी हो गया।
और बैंजनी से काला हो गया। लेखक ने एक बार फिर दाहिनी दिशा में देखा वहाँ नारियल के पेड़ों की डालियाँ हवा में ऊपर की ओर उठी हुई थीं तथा हवा से पहले जैसी ही पूँज उठ रही थी। लेकिन पूरा दृश्य-पटल काला पड़ गया था। वहाँ कालापन छा गया था। वृक्षों के जो झुरमुट एक-दूसरे से दूर थे, उन पर भी कालिमा छा गई थी और वे सूर्य के प्रकाश के न रहने पर सिर पीट रहे थे और पछता रहे थे।
विशेष-
(i) समुद्र तट पर सूर्यास्त के प्राकृतिक दृश्य का भव्य चित्रण हुआ है।
(ii) सूर्यास्त के समय समुद्र के जल तथा वातावरण में बदलते रंगों का वर्णन आकर्षक है।
(iii) भाषा सरल, सजीव तथा प्रवाहमयी है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा शब्द चित्रात्मक है।
(4)
अचानक खयाल आया कि मुझे वहाँ से लौटकर भी जाना है। इस ख्याल से ही शरीर में कँपकँपी भर गयी। दूर सैंड हिल की तरफ देखा। वहाँ स्याही में डूबे कुछ धुंधले रंग हिलते नजर आ रहे थे। मैंने रंगों को। पहचानने की कोशिश की, पर उतनी दूर से आकृतियों को अलग-अलग कर सकना सम्भव नहीं था। मेरे और उन रंगों के बीच स्याह पड़ती रेत के कितने ही टीले थे। मन में डर समाने लगा कि क्या अँधेरा होने से पहले मैं उन सब टीलों को पार करके जा सकेंगा? कुछ कदम उस तरफ बढ़ा भी। पर लगा कि नहीं। उस रास्ते से जाऊँगा, तो शायद रेत में ही भटकता रह जाऊँगा। इसलिए सोचा बेहतर है नीचे समुद्र-तट पर उतर जाऊँ-तट का रास्ता निश्चित रूप से केप होटल के सामने तक ले जाएगा।
संदर्भ एवं प्रसंग-उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संग्रहित मोहन राकेश द्वारा रचित यात्रावृत्त “आखिरी चट्टान से लिया गया है। सैंड हिल से बहुत आगे अनेक रेतीले टीले पार करके लेखक सूर्यास्त का दृश्य देखने पहुँचा था। सूर्यास्त के मनोरम दृश्य में वह डूबा हुआ था कि चारों ओर अँधेरा छाने लगा। वहाँ से लौटने के लिए उन अनेक टीलों को पार करना था जिनसे होकर वह यहाँ आया था।
व्याख्या-लेखक को अचानक ध्यान आया कि उसको लौटकर जाना भी है। इस विचार से ही उसका शरीर काँप उठा। उसने सैंड हिल की ओर देखा, जो वहाँ से दूर था। अँधेरे के कारण कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। पूरा दृश्य धुंधला पड़ गया था। सैंड हिल पर उपस्थित लोग हिलते दिखाई दे रहे थे परन्तु उतनी दूर से उनको अलग-अलग साफ-साफ देखना और पहचानना सम्भव नहीं था। लेखक जिस टीले पर था उसके तथा सैंड हिल के बीच अनेक रेतीले टीले थे जिनकी रेत प्रकाश के अभाव में काली-सी हो गई थी।
अब लेखक के मन में यह भय उत्पन्न हुआ कि क्या वह पूरी तरह अँधेरा होने से पहले उन टीलों को पार करके वापस जा सकेगा। उसने कुछ कदम बढ़ाकर चलने की कोशिश की परन्तु उसे लगा कि उन टीलों को पार करना सम्भव नहीं है। उसे रास्ते से लौटने पर टीलों की रेत में ही भटकते रह जाने की आशंका थी। अतः लेखक ने सोचा कि टीले से नीचे समुद्र तट पर उतरकर तट के रास्ते से वापस लौटना अधिक अच्छा रहेगा। वह रास्ता उसको केप होटल तक पहुँचा देगा।
विशेष-
(i) सूर्यास्त के पश्चात् पूरा दृश्य-पटल प्रकाश के अभाव में धुंधला पड़ गया था।
(ii) सूर्यास्त के पश्चात् के दृश्य का सफल चित्रण हुआ है।
(iii) भाषा विषयानुकूल, सुबोध तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक, सजीव तथा चित्रात्मक है।
(5)
समुद्र में पानी बढ़ रहा था। तट की चौड़ाई धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। एक लहर मेरे पैरों को भिगो गयी, तो सहसा मुझे खतरे का एहसास हुआ। मैं जल्दी-जल्दी चलने लगा। तट का सिर्फ तीन-तीन चार-चार फुट हिस्सा पानी से बाहर था। लग रहा था कि जल्दी ही पानी उसे भी अपने अन्दर समा लेगा। एक बार सोचा कि खड़ी रेत से होकर फिर ऊपर चला जाऊँ। पर वह स्याह पड़ती रेत इस तरह दीवार की तरह उठी थी कि उस रास्ते ऊपर जाने की कोशिश करना ही बेकार था। मेरे मन में खतरा बढ़ गया। मैं दौड़ने लगा। दो-एक और लहरें पैरों के नीचे तक आकर लौट गयीं। मैंने जूता उतारकर हाथ में ले लिया। एक ऊँची लहर से बचकर इस तरह दौड़ा जैसे सचमुच वह मुझे अपनी लपेट में लेने आ रही हो। सामने एक ऊँची चट्टान थी, वक्त पर अपने को सँभालने की कोशिश की, फिर भी उससे टकरा गया।
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘आखिरी चट्टान’ शीर्षक यात्रावृत्त से लिया गया है। इसके लेखक मोहन राकेश हैं। लेखक ने वापस लौटने के लिए समुद्रतट के रास्ते को चुना, लेकिन वह भी खतरों से भरा था। ‘
व्याख्या-लेखक कहता है कि समुद्र तट पर पानी बढ़ने लगा था और उसकी चौड़ाई धीरे-धीरे घटती जा रही थी। अचानक एक लहर आई और उसका पैर भीग गया। तब उसको ध्यान आया कि खतरा है। वह जल्दी-जल्दी चलने लगा। समुद्र-तट का तीन-तीन चार-चार फुट हिस्सा ही पानी से बाहर था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पानी बढ़ेगा और जल्दी ही उसे डुबा देगा।
एक बार उसने सोचा कि वह टीले की खड़ी रेत से होकर वापस लौटे परन्तु रेत प्रकाश के अभाव में काली पड़ चुकी थी तथा दीवार की तरह सीधी खड़ी थी। उस रास्ते से लौटना उचित नहीं था। खतरा बढ़ रहा था। लेखक अब दौड़ने लगा था। दो-एक लहरें आकर उसके पैरों को पुन: भिगो गई थीं। दौड़ने में सरलता के विचार से उसने जूते उतारे और हाथ में उठा लिए। वह नंगे पैरों से ही दौड़ रहा था। एक लम्बी लहर आती दिखाई दे रही थी। लहर से बचने के लिए वह तेजी से दौड़ा। सामने एक ऊँची चट्टान दिखाई दी। लेखक ने संभलने का प्रयत्न किया परन्तु उससे टकरा गया।
विशेष-
(i) सूर्यास्त के बाद तट पर अँधेरा छाने लगा था। तट के सँकरे रास्ते का समुद्र के पानी में डूबने का डर था।
(ii) लेखक तेजी से दौड़कर वहाँ से निकल जाने का प्रयास कर रहा था।
(iii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है। शब्द चित्र सजीव बन पड़ा है।
(6)
पानी और आकाश में तरह-तरह के रंग झिलमिलाकर, छोटे-छोटे द्वीपों की तरह समुद्र में बिखरी स्याह चट्टानों की चोट से सूर्य उदित हो रहा था। घाट पर बहुत-से लोग उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए एकत्रित थे। घाट से थोड़ा हटकर गवर्नमेंट गेस्ट हाउस के बैरे सरकारी मेहमानों को सूर्योदय के समय की कॉफी पिला रहे थे। दो स्थानीय नवयुवतियाँ उन्हें अपनी टोकरियों से शंख और मालाएँ दिखला रही थीं। वे लोग दोनों काम साथ-साथ कर रहे थे-मालाओं का मोल-तोल और अपने बाइनाक्युलर्ज से सूर्य-दर्शन। मेरा साथी अब मोहल्ले-मोहल्ले के हिसाब से मुझे बेकारी के आँकड़े बता रहा था। बहुत-से कडल-काक हमारे आसपास तैर रहे थे-वहाँ की बेकारी की समस्या और सूर्योदय की विशेषता, इन दोनों से बे-लाग।
संदर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘आखिरी चट्टान’ शीर्षक यात्रावृत्त से लिया गया है। इसके रचयिता मोहन राकेश हैं। लेखक कन्याकुमारी के समुद्रतट से सूर्योदय तथा सूर्यास्त के सुन्दर प्राकृतिक दृश्य देखना चाहता था। वह सबेरे घाट पर उपस्थित था। सूर्योदय होने ही वाला था। इस गद्यांश में लेखक ने सूर्योदय का वर्णन किया है।
व्याख्या-लेखक कहता है कि समुद्र में अनेक काले रंग की चट्टानें थीं जो छोटे-छोटे द्वीपों की तरह जान पड़ती थीं। उन चट्टानों की ओर से सूर्य उदित हो रहा था। सूर्य के उदय होने के कारण आकाश में अनेक रंग दिखाई देने लगे थे तथा समुद्र का पानी भी अनेक रंगों में रँग गया था। दृश्य अत्यन्त सुन्दर था। घाट पर अनेक लोग उपस्थित थे। वे उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देना चाहते थे। गवर्नमेंट गेस्ट हाउस (राजकीय अतिथि गृह) के बैरे राजकीय अतिथियों को सबेरे की काफी पिला रहे थे। वहाँ दो नवयुवतियाँ भी थीं।
उनके पास टोकरियों में शंख और मोतियों की मालायें थीं। अतिथिगण उनकी वे चीजें देख रहे थे और मोलभाव कर रहे थे। वे अपने बाइनाक्युलर्ज से सूर्य को देख भी रहे थे। यह स्थान घाट से कुछ दूर था। लेखक का साथी ग्रेजुएट युवक उसे हर मुहल्ले के बेरोजगार नवयुवकों के आँकड़े बता रहा था। अनेक कडल-काक नामक पक्षी उनके पास ही पानी में तैर रहे थे। उनको वहाँ के लोगों की बेकारी का ज्ञान नहीं था, न वे सूर्योदय की विशेषता और सुन्दरता को जानते-समझते थे।
विशेष-
(i) भाषा सरल और सजीव है।
(ii) शैली वर्णनात्मक तथा चित्रात्मक है।
(iii) सूर्योदय का सजीव चित्रांकन हुआ है।
(iv) प्रात:कालीन गतिविधियों का भी वर्णन किया गया है।
(7)
एक लहर ने नाव को इस तरह धकेल दिया कि मुश्किल से वह उलटते-उलटते बची। आगे तीन-चार चट्टानों के बीच एक भंवर पड़ रहा था। नाव अचानक एक तरफ से भंवर में दाखिल हुई और दूसरी तरफ से निकल आयी। इससे पहले कि मल्लाह उसे सँभाल पाते, वह फिर उसी तरह भंवर में दाखिल होकर घूम गयी। मुझे कुछ क्षणों के लिए भंवर और उससे घूमती नाव के सिवा और किसी चीज की चेतना नहीं रही। चेतना हुई जब भंवर में तीन-चार चक्कर खा लेने के बाद नाव किसी तरह उससे बाहर निकल आयी। यह अपने-आप या मल्लाहों की कोशिश से, मैं नहीं कह सकता।
संदर्भ व प्रसंग-उपर्युक्त गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘आखिरी चट्टान’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसकी रचना मोहन राकेश ने हिन्दी गद्य की यात्रावृत्त विधा के अन्तर्गत की है। २. लेखक समुद्र तट पर प्रात:कालीन सूर्य को उदित होते देखने के लिए उपस्थित था। वह तथा उसके साथी नाव द्वारा घाट की ओर लौट रहे थे। समुद्र में तेज लहरें उठ रही थीं। उनके कारण नाव डगमगा रही थी।
व्याख्या-लेखक कहता है कि अचानक एक तेज लहर आई और उसके धक्के से नाव इस तरह डगमगाई कि वह उलटते-उलटते बची। आगे तीन-चार चट्टानें थीं। उनके बीच पानी में भंवर पड़ रहा था। नाव अचानक एक और भंवर में घुसी और चक्कर काटकर दूसरी ओर से उससे बाहर निकल आई। मल्लाहों ने नाव को भंवर से बचाने की कोशिश की परन्तु उससे पहले ही वह पुनः भंवर में पड़कर चक्कर काटने लगी। उस समय लेखक को भंवर तथा उसमें फँसकर घूमती हुई नाव के अतिरिक्त किसी बात का ध्यान नहीं था। उसकी चेतना उस समय वापस आई जब नाव तीन-चार चक्कर काटने के बाद भंवर से बाहर निकल आई। यह कैसे हुआ, इसका ध्यान लेखक को नहीं था। नाव मँवर से अपने आप बाहर निकली अथवा मल्लाहों ने कोशिश करके उसे बाहर निकाला यह बताना सम्भव नहीं है।
विशेष-
(i) नावे के भंवर में हँसने तथा चक्कर काटने का वर्णन है।
(ii) नाव को भंवर में पड़ा देखकर लेखक की जो मनोदशा हुई उसका चित्रण सफलतापूर्वक हुआ है।
(iii) भाषा प्रवाहपूर्ण, सरल तथा विषयानुरूप है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा सजीव है।
(8)
कन्याकुमारी के मन्दिर में पूजा की घंटियाँ बज रही थीं। भक्तों की एक मंडली अन्दर जाने से पहले मन्दिर की दीवार के पास रुककर उसे प्रणाम कर रही थी। सरकारी मेहमान गेस्ट-हाउस की तरफ लौट रहे थे। हमारी नाव और किनारे के बीच हल्की धूप में कई एक नावों के पाल और कडलकाकों के पंख एक-से चमक रहे थे। मैं अब भी आँखों से बीच की दूरी नाप रहा था और मन में बसों का टाइम-टेबल दोहरा रहा था। तीसरी बस नौ चालीस पर, चौथी…………………।
संदर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक के आखिरी चट्टान’ शीर्षक यात्रावृत्त से उधृत है। इसके लेखक मोहन राकेश हैं। लेखक सूर्योदय का दृश्य देखने कन्याकुमारी के समुद्र तट पर गया था। सूर्योदय तथा घाट का दृश्य अत्यंत आकर्षक था। परन्तु लेखक का मन दुविधाग्रस्त था। वह कनानोर लौटने का विचार कर रहा था।
व्याख्या-लेखक कहता है कि सबेरे कन्याकुमारी के मंदिर में पूजा की घंटियाँ बज रही थीं। वहाँ उपस्थित भक्तों का एक दल मंदिर में प्रवेश करने से पहले मंदिर की दीवारों के पास रुककर मंदिर को प्रणाम कर रहा था। सरकारी अतिथि गवर्नमेंट गेस्ट हाउस की ओर लौटकर जा रहे थे। लेखक की नाव तथा समुद्र के तट के बीच हल्की धूप फैली थी। उस धूप में नावों के पाल तथा कडलकाक पक्षियों के पंख चमक रहे थे। लेखक आँखों ही आँखों में अपनी नाव से समुद्र के किनारे की दूरी का अनुमान लगा रहा था। वह कनानोर लौटना चाहता था। वह मन ही मन सबेरे वहाँ जाने वाली बसों की समय-सारिणी पर विचार कर रहा था-तीसरी बस नौ चालीस पर जायेगी और चौथी बस ………..।
विशेष-
(i) घाट के प्रात:कालीन वातावरण का चित्रण हुआ है।
(ii) लेखक का मन कनानोर जाने के विचार में पड़ा था।
(iii) भाषा बोधगम्य तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है।
कोशिश के बावजूद हो जाती है कभी हार
होके निराश मत बैठना ऐ यार
बढ़ते रहना आगे हो जैसा भी मौसम
पा लेती मंजिल चींटी भी… गिर गिर कर कई बार
आपके उज्जवल भविष्य की कामना .....................................
साधनारत -------
महेश कुमार बैरवा
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