RAJANI -HINDI-STORY |
Rajni : (Hindi Story) Mannu Bhandari
रजनी
: मन्नू भंडारी (कहानी)
रजनी
: मन्नू भंडारी (कहानी)
(मध्यवर्गीय परिवार के फ़्लैट का एक कमरा. एक महिला रसोई
में व्यस्त है. घंटी बजती है. बाई दरवाज़ा खोलती है. रजनी का प्रवेश.)
रजनी: लीला बेन कहां हो...बाज़ार नहीं
चलना क्या?
लीला:
(रसोई में से हाथ पोंछती हुई निकलती है) चलना तो था पर इस समय तो अमित आ रहा होगा
अपना रिज़ल्ट लेकर. आज उसका रिज़ल्ट निकल रहा है न. (चेहरे पर खुशी का भाव)
रजनी: अरे वाह! तब तो
मैं मिठाई खाकर ही जाऊंगी. अमित तो पढ़ने में इतना अच्छा है कि फ़र्स्ट आएगा और
नहीं तो सेकंड तो कहीं गया नहीं. तुमको मिठाई भी बढ़िया खिलानी पड़ेगी...सूजी के
हलवे से काम नहीं चलने वाला, मैं अभी से बता देती
हूं.
लीला:
(हंसकर ) नहीं –नहीं , मैं तुम्हें अच्छी मिठाई ही खिलाऊँगी .....मैंने पहले से ही
मँगवाकर राखी है- केसरिया रसमलाई i
अमित
को बहुत पसंद है न I
रजनी: देखा ऽऽऽ ! मुझे
अपने घर में ही केसर की सुगंध आ गई थी I
बाज़ार का तो मैं बहाना करके चली आई वरना तो मुझे काट ही देती i
लीला: कैसी
बात करती हो? मैं एक बार काट भी दूं ,लेकिन अमित ! अपने मुँह में डालने से पहले रस
मलाई लेकर तुम्हारे फ्लेट में दौड़ता I मैं कोई भी चीज घर में बनाऊं या बाहर से
लाऊं , अमित जब तक तुम्हारे भोग नहीं लगा लेता ,हम लोग खा थोड़े ही सकते हैं I रजनी
आंटी तो हीरो हैं उसकी I (दोनों खिलखिलाकर हंसती हैं)
रजनी : बहुत, मेधावी बच्चा है
अमित...तुम देखना तो, आगे क्या बनता है।
लीला : बस,
सब तुम्हारा ही आशीर्वाद है। (फिर घंटी बजती है। लीला
एक तरह से दौड़ते हुए दरवाजा खोलती है अमित का प्रवेश। रोज़ की तरह भारी बस्ते की
जगह एक हल्का सा थैला है।)
(अमित को बाँहों में भरने के
लिए दोनों बाँहें फैलाते हुए आगे बढ़ती है।।
रजनी : कांग्रेचुलेशंस अमित।
बधाई देने के लिए रजनी आंटी पहले से मौजूद हैं। (अमित का चेहरा उतरा हुआ है, पर दोनों में से अभी
तक उस पर किसी का ध्यान नहीं गया। अमित आँसू भरी आँखों से थैले में से रिपोर्ट निकालकर
माँ की ओर फेंकते हुए।)
अमित : लो...लो...देखो,
क्या हुआ है मेरे रिज़ल्ट का। मैंने कितना कहा था कि
मैथ्स में भी मेरी ट्यूशन लगवा दीजिए, वरना
मेरा रिज़ल्ट बिगड़ जाएगा। बस वही हुआ। मैथ्स में ही तो पूरे नंबर आ सकते हैं,
रिज़ल्ट बन-बिगड़ सकता है। रिपोर्ट रजनी देखने लगती
है। (लीला उसे अपनी बाँहों में भरकर)
लीला: पर तू तो सारे सवाल ठीक
करके आया था। यहाँ आकर पापा के सामने तूने फिर से किया था अपना सारा पेपर। सब तो
ठीक था। तेर पापा ने नहीं कहा था कि चार-पाँच नंबर भले ही काट ले सफ़ाई-वफ़ाई के
पर नाइंटी-फ़ाइव तो तेरे पक्के हैं।
रजनी : (रिपोर्ट देखते हुए) पर मिले तो कुल बहत्तर ही हैं। (फिर दूसरे
विषयोंके नंबर भी पढ़ने लगती है इंगलिश 86, हिस्ट्री 80, सिविक्स 88, हिंदी 82, ड्राइंग 90...सबसे कम मैथ्स में
ही।)
अमित : (गुस्से और दुख से) कम तो होंगे ही। ट्यूशन
नहीं लेने से मिलते हैं कहीं अच्छे नंबर? सर
तो बार-बार कहते ही थे कि ट्यूशन कर लो, ट्यूशन
कर लो वरना फिर बाद में मत रोना। (रो पड़ता है)
लीला :
(अपराधी की तरह सफाई देते हुए ) तुझे अंग्रेजी को लेकर
थोड़ी परेशानी थी सो अंग्रेजी में करवा दी थी ट्युशन। अब दो-दो विषयों की। टूयशन...फिर लंबी-चौड़ी फ़ीस। बेटे...( अपनी
आर्थिक मजबूरी की बात वह शब्दों से नहीं, चेहरे
से व्यक्त करती है।) पर यह तो अंधेर ही
हुआ कि सारा पेपर ठीक हो, फिर
भी नंबर काट लो।।
रजनी : (रजनी की भौंहों में एकाएक बल पड़ जाते हैं। वह रोते हुए अमित को
खींचकर अपने पास सटा लेती है) रोओ मत। ( उसके आँसू पोछते हुए) अमित रोएगा नहीं...समझे। मैं जो पूछती हूँ उसका जवाब
देना। बसा (कुछ देर रुककर) तुझे अच्छी तरह याद है कि तूने पूरा पेपर ठीक किया था? (अमित स्वीकृति में सिर
हिलाता है) पापा के पास द्वारा पेपर करने
से पहले दोस्तों से या किताबों से उन सवालों के जवाब तो नहीं देख लिए थे?
अमित :
नहीं। ज्यों-के-त्यों आकर कर दिए थे। हमको आते थे वा
सारे सवाल ।
रजनी : मैथ्स के सर कौन हैं?
अमित :
मिस्टर पाठक।
रजनी : कितने लड़के ट्यूशन लेते हैं उनसे?
अमित :
बाइस। साल के शुरू में तो आठ लेते थे...फिर पहले
टर्मिनल के बाद से पंद्रह हो गए थे। हाफ़-ईयरली के बाद सात लड़कों ने और लेना शुरू
कर दिया। मुझसे भी तभी से कह रहे थे।
लीला : हाफ़-ईयरली में तो इसके
नाइंटी-सिक्स नंबर आए थे...इसी ने बताया था कि क्लास में सबसे ज्यादा हैं।
रजनी : उसके बाद भी कहते थे कि ट्यूशन लो?
अमित :
हाँ! कॉपी लौटाते हुए कहा था कि तुमने किया तो अच्छा
है पर यह तो हाफ़-ईयरली है...बहुत आसान पेपर होता है इसका तो। अब अगर ईयरली में भी
पूरे नंबर लेने हैं तो तुरंत ट्यूशन लेना शुरू कर दी। वरना रह जाओगे। सात लड़कों
ने तो शुरू भी कर दिया था। पर मैंन जब मम्मी पापा से कहा,
हमेशा बस एक ही जवाब ( मम्मी की नकल उतारते हुए )
मैथ्स में तो तू वैसे ही बहुत अच्छा है, क्या
करेगा ट्यूशन लेकर? देख लिया अब?
सिक्स्थ पोजीशन आई है मेरी। जो आज तक कभी नहीं आई थी। (अमित की आँखों से फिर आँसू
टपक पड़ते हैं।)
रजनी : (डाँटते हुए) फिर आँसू। जानता नहीं, रोने वाले बच्चे रजनी आंटी को बिलकुल पसंद नहीं। मम्मी ने बिलकुल ठीक ही कहा
और ठीक ही किया। जिस विषय में तुम वैसे ही बहुत अच्छे हो, उसमें क्यों लोगे
ट्यूशन? ट्यूशन तो कमजोर बच्चे
लेते हैं।
अमित.: आप जानती नहीं
आंटी...अच्छे-बुरे की बात नहीं होती। अगर सर कहें और बार-बार कहें तो लेनी ही होती
है। वरना तो नंबर कम हो ही जाते हैं।
रजनी : पेपर अच्छा करो तब भी नंबर कम हो जाते हैं?
अमित : हाँ,
कितना ही अच्छा करो फिर भी कम हो जाते हैं..जैसे मेरे
हो गए।
रजनी : यानी कि अच्छा
पेपर करने पर भी कम आते हैं। सिर्फ इसलिए कि ट्यूशन नहीं ली थी! तो यह तो सर की
गलती नहीं, बदमाशी है और तू मम्मी
से लड़ रहा है। सर से जाकर लड़। (अमित इस भाव से सिर हिलाता है मानो कितनी बेकार
की बात कर रही हैं रजनी आंटी। लीला दो गिलासों में शिकंजी बनाकर लाती है। अमित
लेने के लिए हाथ नहीं बढ़ाता तो रजनी घुड़कती है।)
रजनी : चलो पियो
शिकंजी। देखते नहीं, चेहरा कैसे
पसीना-पसीना हो रहा है। (दोनों शिकंजी पीने लगते हैं। इस दौरान रजनी कुछ सोच रही
है। शिकंजी खत्म करके) कल आप नौ बजे तैयार रहिए अमित साहब...आपके स्कूल चलना है।
अमित : (अमित एकदम डर जाता है)
कल से तो छुट्टी है। पर आप अगर स्कूल जाकर कुछ कहेंगी तो सर मुझसे बहुत गुस्सा हो
जाएँगे...वहाँ मत जाइए...प्लीज़ वहाँ बिलकुल मत जाइए।
लीला:
हां रजनी तुम कुछ करोगी-कहोगी तो अगले साल कहीं और ज़्यादा परेशान न करें इसे. अब
जब रहना इसी स्कूल में है तो इन लोगों से झगड़ा.
रजनी: (बात को बीच में
ही काटकर ग़ुस्से से) यानी कि वे लोग जो भी जुलुम-ज़्यादती करें, हम लोग चुपचाप
बर्दाश्त करते जाएं? सही बात कहने में डर
लग रहा है तुझे, तेरी मां को! अरे जब
बच्चे ने सारा पेपर ठीक किया है तो हम कॉपी देखने की मांग तो कर ही सकते हैं...पता
तो लगे कि आखिर किस बात के नंबर काटे हैं?
अमित: (झुंझलाकर) बता
तो दिया आंटी. आप...
रजनी: (ग़ुस्से से)
ठीक है तो अब बैठकर रोओ तुम मां-बेटे दोनों.
लीला:
(दनदनाती निकल जाती है. दोनों के चेहरे पर एक असहाय-सा भाव.) अब यह रजनी कोई और
मुसीबत न खड़ी करे.
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
(स्कूल के हैडमास्टर का कमरा। बड़ी-सी टेबल। दीवार के सहारे
रखी काँच की अलमारी में बच्चों द्वारा जीते हुए कप और शील्ड्स जमे हुए रखे हैं।
दीवार पर कुछ नेताओं की तसवीरें, एक बड़ा-सा मैप लटका है। एक स्कूल के
हैडमास्टर के कमरे का वातावरण तैयार किया जाए। हैडमास्टर काम में व्यस्त है।
चपरासी बड़े अदब से एक चिट लाकर रखता है। हैडमास्टर कुछ क्षण उसे देखता रहता
है।)
हैडमास्टर : बुलाओ। (
रजनी का प्रवेश नमस्कार करती है।)
हैडमास्टर : बैठिए
(कुछ देर रुककर ) कहिए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?
रजनी : मैं सेंविथ
क्लास के अमित सक्सेना की मैथ्स की कॉपी देखना चाहती हूँ ( हैडमास्टर के चेहरे पर
ऐसा भाव जैसे वह कुछ समझा न हो) ईयरली
एक्जाम्स की, कल ही जिसका रिजल्ट
निकला है।
हैडमास्टर :
सॉरी मैडम, ईयरली
एक्जाम्स की कॉपियाँ तो हम लोग नहीं दिखाते हैं। :: जानती हूँ मैं. लेकिन बात यह
है कि अमित ने मैथ्स का पूरा पेपर ठीक किया था लेकिन उसे कुल बहत्तर नंबर ही मिले
हैं। कॉपी देखकर सिर्फ यह जानना चाहती हूँ कि अमित को अपने बारे में कुछ गलतफ़हमी
हो गई थी या ( एक-एक शब्द पर जोर देकर ) गलती एक्जामिनर की है।
हैडमास्टर: (सारी बात
को बहुत हलके ढंग से लेते हुए ) आप भी कमाल करती हैं बच्चे ने कहा और आपने मान
लिया। अरे, हर बच्चा घर जाकर यही कहता है कि उसने पेपर बहुत अच्छा
किया है और उसे बहुत अच्छे नंबर मिलेंगे। अगर हम इसी तरह कॉपियाँ दिखाने लग जाएँ
तो यहाँ तो पेरेंट्स की भीड़ लगी रहे सारे समय। इसीलिए तो ईयरली एक्जाम्स की
कॉपियाँ न दिखाने का नियम बनाया गया है स्कूलों में।
रजनी: (अपने गुस्से पर
काबू पाते हुए) देखिए आप चाहें तो अमित का पूरा रिज़ल्ट देख सकते हैं। मैथ्स में
हमेशा सेंट-परसेंट नंबर लेता रहा है। इस साल भी उसने पूरा पेपर ठीक किया है। (तैश
आ ही जाता है) कॉपी देखकर मैं सिर्फ यह जानना चाहती हूँ कि नंबर आखिर कटे किस बात
के हैं?
हैडमास्टर : आप
बहस करके बेकार ही अपना और मेरा समय बर्बाद कर रही हैं। मैंने कह दिया न कि इन
कॉपियों को दिखाने का नियम नहीं है और मैं नियम नहीं तोडूंगा।
रजनी: (व्यंग्य से) नियम!
यानी कि आपका स्कूल बहुत नियम से चलता है।
हैडमास्टर : (गुस्से
से) व्हॉट डू यू मीन?
रजनी: आई मीन व्हॉट आई
से। नियम का ज़रा भी खयाल होता तो इस तरह की हरकतें नहीं होती स्कूल में। कोई
बच्चा बहुत अच्छा है। किसी विषय में फिर भी उसे मजबूर किया जाता है कि वह टुयसन ले।
यह कौन-सा नियम है आपके स्कूल का?
हेडमास्टर: देखिए यह
टीचर्स और स्टूडेंट्स का अपना आपसी मामला है,
वो पढ़ने जाते हैं और वो
पढ़ाते हैं. इसमें न स्कूल आता है,
न स्कूल के नियम! इस बारे में
हम क्या कर सकते हैं?
रजनी: कुछ नहीं कर
सकते आप? तो मेहरबानी करके यह
कुर्सी छोड़ दीजिए. क्योंकि यहां पर कुछ कर सकने वाला आदमी चाहिए. जो ट्यूशन के
नाम पर चलने वाली धांधलियों को रोक सके...मासूम और बेगुनाह बच्चों को ऐसे टीचर्स
के शिकंजों से बचा सके जो ट्यूशन न लेने पर बच्चों के नंबर काट लेते हैं...और आप
हैं कि कॉपियां न दिखाने के नियम से उनके सारे गुनाह ढक देते हैं.
हेडमास्टर: (चीखकर)
विल यू प्लीज़ गेट आउट ऑफ दिस रूम. (शोर-शोर से घंटी बजाने लगता है. दौड़ता हुआ
चपरासी आता है) मेमसाहब को बाहर ले जाओ.
रजनी: मुझे बाहर करने
की ज़रूरत नहीं. बाहर कीजिए उन सब टीचर्स को जिन्होंने आपकी नाक के नीचे ट्यूशन का
यह घिनौना रैकेट चला रखा है. (व्यंग्य से) पर आप तो कुछ कर नहीं सकते, इसलिए अब मुझे ही कुछ
करना होगा और मैं करूंगी, देखिएगा आप. (तमतमाती
हुई निकल जाती है.) (हेडमास्टर चपरासी पर ही बिगड़ पड़ता है) जाने किस-किस को भेज
देते हो भीतर.
चपरासी: मैंने तो
आपको स्लिप लाकर दी थी साहब. (हेडमास्टर ग़ुस्से में स्लिप की चिंदी-चिंदी करके
फेंक देता है, कुछ इस भाव से मानो रजनी की ही चि्ांदियां बिखेर रहा हो.)
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
(रजनी का फ़्लैट. शाम का समय. घंटी बजती है. रजनी आकर
दरवाज़ा खोलती है. पति का प्रवेश. उसके हाथ से ब्रीफकेस लेती है.)
पति: ( जूते
खोलते हुए) तुम आज दिन में कहीं बाहर गई थी क्या?
रजनी : तुम्हें कैसे
मालुम ?
पति: फ़ोन किया था। एक
फाइल रह गई थी, सोचा चपरासी को भेजकर मंगवा लूं पर कोई घर में हो तब ना ( पति के चेहरे पर खीज भरा पुता हुआ है
) ।
रजनी : तुम फाइल भूल गए...और जिसके बारे में मुझे पता
भी नहीं। पर फिर भी उसके लिए मुझे पर
बैठना चाहिए। यह कौन सी बात हुई।
पति : (पारा शांत
होते हुए) अच्छा गई कहाँ थी?
रजनी : (एक स्कूल का नाम लेती
है)
पति : (स्कूल का नाम
दोहराता है )...तुम क्या करने गई थीं वहाँ?
रजनी : ( गदगद भाव से) पहले चाय
ले आऊँ, फिर बताती हूँ।
( कैमरा रजनी के साथ
किचन में। गुनगुनाते हुए रजनी खाने का भी कछ बना रही है। लगता है जो कुछ करके आई, उससे
बहुत प्रसन्न है।)
(दृश्य फिर बाहर के कमरे में। नाश्ते की प्लेट
काफी खाली हो चुकी है,जिससे लगे कि रजनी सारी बात बता चुकी है।)
रजनी : बोलती बंद कर दी हैडमास्टर साहब की। जवाब देते
नहीं बना तो चिल्लाने लगे। पर मैं क्या छोड़ने वाली हूँ इस बात को?
पति : अच्छा
मास्टर लोग ट्यूशन करते हैं या धंधा करते हैं,
पर तुम्हें अभी बैठे बिठाए
इससे क्या परेशानी हो गई? तुम्हारा बेटा तो अभी पढ़ने नहीं जा रहा है न?
रजनी : (एकदम भड़क जाती है )
यानी कि मेरा बेटा जाए तभी आवाज़ उठानी चाहिए...अमित के लिए नहीं उठानी चाहिए...और
जो इतने-इतने बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं, उनके लिए नहीं उठानी चाहिए। सब कुछ जानने के बाद भी नहीं उठानी चाहिए?
पति : ठेका
लिया है तुमने सारी दुनिया का?
रजनी: देखो, तुम मुझे फिर ग़ुस्सा
दिला रहे हो रवि...ग़लती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बर्दाश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता जैसे लीला बेन और कांति
भाई और हज़ारों-हज़ारों मां-बाप. लेकिन सबसे बड़ा गुनहगार तो वह है जो चारों तरफ़
अन्याय, अत्याचार और तरह-तरह
की धाँधलियों को देखकर भी चुप बैठा रहता है, जैसे तुम. (नकल उतारते हुए) हमें क्या करना है, हमने कोई ठेका ले रखा है दुनिया का. (ग़ुस्से और हिकारत से) माई फुट (उठकर
भीतर जाने लगती है. जाते-जाते मुड़कर) तुम जैसे लोगों के कारण ही तो इस देश में
कुछ नहीं होता, हो भी नहीं सकता!
(भीतर चली जाती है.)
पति: (बेहद हताश भाव
से दोनों हाथों से माथा थामकर) चढ़ा दिया सूली पर.
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
(डायरेक्टर ऑफ
एजुकेशन के ऑफ़िस का बाहरी कक्षा कमरे के बाहर उसके नाम और पद की तख्ती लगी है।
साथ ही मिलने का समय भी लिखा है। एक स्टूल पर चपरासी बैठा है। सामने की बेंच पर
रजनी और तीन-चार लोग और बैठे हैं-प्रतीक्षारत। रजनी के चेहरे से बेचैनी टपक रही
है। बार-बार घड़ी देखती है, मिलने
का समय समाप्त होता जा रहा है।)
रजनी : (चपरासी से )
कितनी देर और बैठना होगा?
चपरासी
: हम क्या बोलेगा...जब साहब घंटी मारेगा...बुलाएगा तभी तो ले जाएगा। बहुत बिज़ी
रहता न साहब।
रजनी : (अपने में ही
गुनगुनाते हुए) यह तो लोगों से मिलने का समय है, न जाने किसमें बिज़ी बनकर बैठ जाते हैं ( चपरासी दूसरी तरफ देखने लगता है।)
(कैमरा ऑफिस के अंदर
चला जाता है। साहब मेज़ पर पेपर-वेट घुमा रहा है। फिर घड़ी देखता है, फिर
घुमाने लगता है। बाहर एक आदमी आ अपने नाम की स्लिप के नीचे पाँच रुपए का एक नोट
रखकर देता चपरासी का कंधा थपथपाता है। चपरासी हँसकर भीतर जाता है। उस आदमी को
तुरंत अपने साथ ले जाता है। रजनी के चेहरे पर घूरकर चपरासी को देखती है। थोड़ी देर
में आदमी बाहर निकलता है। उठकर दनदनाती हुई भीतर जाने लगती है।)
चपरासी :
अरे...अरे...अरे...किधर कू जाता? अभी घंटी बजा क्या?
रजनी: : घंटी तो मिलने का समय
खत्म होने तक बजेगी भी नहीं। (दरवाजा रजनी धकेलकर भीतर चली जाती है)
अरे कैसी औरत है...सुनतीच नई। (वहाँ बैठे दो-तीन
लोग हँसने लगते हैं।)
(दृश्य कमरे के भीतर। निदेशक कुर्सी की पीठ से टिककर सिगरेट
पी रहा है।
रजनी को देखकर
आश्चर्य से।)
निदेशक : आपको स्लिप
भेजकर भीतर आना चाहिए न।। "
रजनी: (मुस्कराकर) स्लिप तो घंटे भर से आपके चपरासी की जेब में पडी है। और शायद
दो-चार दिन चक्कर लगवाने तक पड़ी ही रहेगी।
निदेशक : क्या
कह रही हैं आप?
रजनी: तो क्या यह सीधी-साफ़-सी
बात भी मुझे ही समझानी होगी आपको? खैर अभी छोड़िए इस बात
को, इस समय मैं आपके पास
किसी दूसरे ही काम से आई हूँ।
(निदेशक के चेहरे पर
रजनी को लेकर एक आश्चर्य मिश्रित कौतूहल का भाव उभरता है।)
निदेशक : कहिए।
रजनी": (थोड़ा सोचते हुए)
देखिए, मैं स्कूलों, विशेषकर प्राइवेट
स्कूलों और बोर्ड के आपसी रिलेशंस के बारे में कुछ जानकारी इकट्ठा कर रही हूँ।
निदेशक : कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? व्हेरी
इंटरेस्टिंग सब्जेक्ट।
रजनी : बस कुछ ऐसा ही
समझ लीजिए।
निदेशक : कहिए आप
क्या जानना चाहती है ?
रजनी : जिन प्राइवेट
स्कूलों को आप रिकगनाइज का लेते हैं उन्हें बोर्ड शायद 90% ग्रांट देता है। ।
निदेशक : ( जरा गर्व
से ) जी हाँ, देता
है। बोर्ड का काम ही यह है कि शिक्षा के
प्रचार प्रसार में जितना भी हो सके सहयोग करे। इट्स अवर ड्यूटी मैडम I
रजनी : जब इतनी बड़ी एड देते हैं तो आपका कोई कंट्रोल
भी रहता होगा स्कूलों पर I
निदेशक : ऑफकोर्स ।
बोर्ड के बहुत से ऐसे नियम हैं जो स्कूलों को मानने होते हैं, स्कूल
मानते हैं। सिलेबस बोर्ड बनाता है...फाइनल ईयर के एग्जामस बोर्ड, कंडक्ट
करता है।
रजनी : (निदेशक के चेहरे पर नजरें गड़ाकर) स्कूलों में
आजकल प्राइवेट ट्यूशंस का जो सिलसिला चला हुआ है, ट्यूशंस क्या बच्चों को लूटने का जो धंधा चला हुआ है, उसके बारे में आपका
बोर्ड क्या करता है?
निदेशक : (बड़े
सहज भाव से) इसमें धंध की क्या बात है?
जब किसी का बच्चा कमजोर होता
है तभी उसके माँ-बाप ट्यूशन लगवाते हैं। अगर लगे कि कोई टीचर लूट रहा है तो उस
टीचर से न लें ट्यूशन, किसी और के पास चले जाएँ...यह कोई मजबूरी तो
है नहीं।
रजनी : बच्चा
कमजोर नहीं, होशियार है...बहुत
होशियार...उसके बावजूद उसका टीचर लगातार उसे कोंचता रहता है कि वह ट्यूशन ले...वह ट्युशन
ले वरना पछताएगा। लेकिन बच्चे के माँ-बाप को ज़रूरी नहीं लगता और वे नहीं लगवाते।
जानते हैं क्या हुआ? मैथ्स का पूरा पेपर
ठीक करने के बावजूद उसे कुल 72 नंबर मिलते हैं, जानते हैं क्यों?. ..क्योंकि उसने टीचर के
बार-बार कहने पर भी ट्यूशन नहीं ली।
निदेशक
: वैरी सैड! हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए ऐसे टीचर के खिलाफ़।
रजनी : क्या खूब! आप
कहते हैं कि हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए...हैडमास्टर कहते हैं मैं कुछ नहीं कर
सकता, तब करेगा कौन? मैं पूछती हूँ कि
ट्यूशन के नाम पर चलने वाले इस घिनौने रैकेट को तोड़ने के लिए दखलअंदाजी नहीं करनी
चाहिए आपको, आपके बोर्ड को? (चेहरा तमतमा जाता है)
निदेशक
: लेकिन हमारे पास तो आज तक किसी पेरेंट से इस तरह की कोई शिकायत नहीं आई।
रजनी : यानी की शिकायत
आने पर ही आप इस बारे में कुछ सोच सकते हैं। वैसे शिक्षा के नाम पर दिन-दहाड़े
चलने वाली इस दुकानदारी की आपके ( बहुत ही व्यंग्यात्मक ढंग से) बोर्ड ऑफ एजुकेशन
को कोई जानकारी ही नहीं, कोई चिंता ही नहीं? निदेशक
: कैसी बात करती हैं आप? कितने इंपोर्टेट मैटर्स रहते हैं हम लोगों के
पास? अभी पिछले छह महीने से तो नई शिक्षा प्रणाली को लेकर ही
कितने सेमिनार्स ऑर्गनाइज़ किए हैं हमने?
रजनी : (व्यंग्य से)
ओह, इंपोर्टेट मैटर्स, नई शिक्षा प्रणाली।
अरे पहले इस शिक्षा प्रणाली के छेदों को तो रोकिए वरना बच्चों के भविष्य के साथ-साथ
आपकी नई शिक्षा प्रणाली भी छनकर गड्ढे में चली जाएगी।
निदेशक
: (थोड़े गुस्से के साथ) आप ही पहली महिला हैं, और
हो सकता है कि आखिरी भी हों, जो
इस तरह की शिकायत लेकर आई है।
रजनी : ठीक है तो फिर
आपके पास शिकायत का ढेर ही लगवाकर रहूँगी.
(झटके से उठकर बाहर चली जाती है,
निदेशक देखता रहता है. फिर कंधे उचका देता
है।)
(अब
मोंटाज में कुछ दृश्य दिखाए जाएँ। रजनी .फोन कर रही है। मेज़ पर पत्र रखे हैं और
रजनी एक रजिस्टर में उनके नाम पते उतार रही है. साथ में एक-दो महिलाएं और भी हैं.
फिर एक के बाद एक तीन-चार घरों में मां-बाप से मिल रही है उन्हें समझा रही है. साथ
में लीला बेन और तीन-चार महिलाएं और भी हैं.)
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
(किसी अख़बार का दफ्तर. कमरे में संपादक बैठे हैं, साथ
में तीन-चार स्त्रियों के साथ रजनी बैठी है.)
संपादक: आपने तो इसे
बाकायदा एक आंदोलन का रूप ही दे दिया. बहुत अच्छा किया. इसके बिना यहां चीज़ें
बदलती भी तो नहीं हैं. शिक्षा के क्षेत्र में फैली इस दुकानदारी को तो बंद होना ही
चाहिए.
रजनी: (एकाएक जोश में
आकर) आप भी महसूस करते हैं न ऐसा?... तो फिर साथ दीजिए
हमारा. अख़बार यदि किसी इश्यू को उठा ले और लगातार उस पर चोट करता रहे तो फिर वह
थोड़े से लोगों की बात नहीं रह जाती. सबकी बन जाती है...आंख मूंदकर नहीं रह सकता
फिर कोई उससे. आप सोचिए ज़रा अगर इसके खिलाफ़ कोई नियम बनता है तो (आवेश के मारे
जैसे बोला नहीं जा रहा है.) कितने पैरेंट्स को राहत मिलेगी...कितने बच्चों का
भविष्य सुधर जाएगा, उन्हें अपनी मेहनत का
फल मिलेगा, मां-बाप के पैसे का
नहीं, ...शिक्षा के नाम पर बचपन
से ही उनके दिमाग में यह तो नहीं भरेगा कि पैसा ही सब कुछ है...वे...वे...
संपादक
: (हँसकर) बस-बस मैं समझ गया आपकी सारी तकलीफ़, आपका
सारा गुस्सा।
रजनी : तो फिर दीजिए
हमारा साथ...उठाइए इस इश्यू को। लगातार लिखिए और धुआँधार लिखिए।
संपादक: इसमें आप
अख़बारवालों को अपने साथ ही पाएंगी. अमित के उदाहरण से आपकी सारी बात मैंने नोट कर
ली है. एक अच्छा-सा राइट-अप तैयार करके पीटीआई के द्वारा मैं एक साथ फ्लैश करवाता
हूं.
रजनी: (गद्गद होते
हुए) एक काम और कीजिए. 25 तारीख़ को हम लोग
पैरेंट्स की एक मीटिंग कर रहे हैं, राइट-अप के साथ इसकी
सूचना भी दे दीजिए तो सब लोगों तक ख़बर पहुंच जाएगी. व्यक्तिगत तौर पर तो हम
मुश्किल से सौ-सवा सौ लोगों से संपर्क कर पाए हैं... वह भी रात-दिन भाग-दौड़ करके
(ज़रा-सा रुककर) अधिक-से-अधिक लोगों के आने के आग्रह के साथ सूचना दीजिए.
संपादक: दी. (सब लोग
हंस पड़ते हैं.)
रजनी: ये हुई न कुछ
बात.
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
(मीटिंग का स्थान. बाहर कपड़े का बैनर लगा हुआ है. बड़ी
संख्या में लोग आ रहे हैं और भीतर जा रहे हैं,
लोग ख़ुश हैं, लोगों
में जोश है. विरोध और विद्रोह का पूरा माहौल बना हुआ है. दृश्य कटकर अंदर जाता है.
हॉल भरा हुआ है. एक ओर प्रेस वाले बैठे हैं,
इसे बाकायदा फ़ोकस करना है.
एक महिला माइक पर से उतरकर नीचे आती है. हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट. अब मंच पर
से उठकर रजनी माइक पर आती है. पहली पंक्ति में रजनी के पति भी बैठे हैं.)
बहनों और भाइयों,
इतनी बड़ी संख्या में
आपकी उपस्थिति और जोश ही बता रहा है कि अब हमारी मंजिल दूर नहीं है. इन दो महीनों
में लोगों से मिलने पर इस समस्या के कई पहलू हमारे सामने आए...कुछ अभी आप लोगों ने
भी यहां सुने. (कुछ रुककर) यह भी सामने आया कि बहुत से बच्चों के लिए ट्यूशन
ज़रूरी भी है. मांएं इस लायक नहीं होतीं कि अपने बच्चों को पढ़ा सकें और पिता
(ज़रा रुककर) जैसे वे घर के और किसी काम में ज़रा-सी भी मदद नहीं करते, बच्चों को भी नहीं
पढ़ाते. (ठहाका, कैमरा उसके पति पर भी
जाए) तब कमज़ोर बच्चों के लिए ट्यूशन ज़रूरी भी हो जाती है. (रुककर) बड़ा अच्छा
लगा जब टीचर्स की ओर से भी एक प्रतिनिधि ने आकर बताया कि कई प्राइवेट स्कूलों में
तो उन्हें इतनी कम तनख्वाह मिलती है कि ट्यूशन न करें तो उनका गुज़ारा ही न हो. कई
जगह तो ऐसा भी है कि कम तनख्वाह देकर ज़्यादा पर दस्तखत करवाए जाते हैं. ऐसे
टीचर्स से मेरा अनुरोध है कि वे संगठित होकर एक आंदोलन चलाएं और इस अन्याय का
पर्दाफ़ाश करें (हॉल में बैठा हुआ पति धीरे से फुसफुसाता है, लो, अब एक और आंदोलन का
मसाला मिल गया, कैमरा फिर रजनी पर)
इसलिए अब हम अपनी समस्या से जुड़ी सारी बातों को नज़र में रखते हुए ही बोर्ड के
सामने यह प्रस्ताव रखेंगे कि वह ऐसा नियम बनाए (एक-एक शब्द पर शोर देते हुए) कि
कोई भी टीचर अपने ही स्कूल के छात्रें का ट्यूशन नहीं करेगा. (रुककर) ऐसी स्थिति
में बच्चों के साथ शोर-ज़बरदस्ती करने, उनके नंबर काटने की
गंदी हरकतें अपने आप बंद हो जाएंगी. साथ ही यह भी हो कि इस नियम को तोड़ने वाले
टीचर्स के खिलाफ़ सख्त-से-सख्त कार्यवाही की जाएगी.... अब आप लोग अपनी राय दीजिए.
(सारा हॉल, एप्रूव्ड,
एप्रूव्ड की आवाजों और
तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है.)
दृश्य समाप्त
नया दृश्य
(रजनी का फ़्लैट. सवेरे का समय. कमरे में पति अख़बार पढ़
रहा है. पहला पृष्ठ पलटते ही रजनी की तस्वीर दिखाई देती है, जल्दी-जल्दी
पढ़ता है, फिर एकदम चिल्लाता है.)
पति: अरे रजनी...रजनी, सुनो
तो बोर्ड ने तुम लोगों का प्रस्ताव ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया.
रजनी: (भीतर से दौड़ती
हुई आती है. अख़बार छीनकर जल्दी-जल्दी पढ़ती है. चेहरे पर संतोष, प्रसन्नता और गर्व का
भाव.)
रजनी: तो मान लिया गया
हमारा प्रस्ताव...बिलकुल जैसा का तैसा और बन गया यह नियम. (ख़ुशी के मारे अख़बार
को ही छाती से चिपका लेती है.) मैं तो कहती हूं कि अगर डटकर मुक़ाबला किया जाए तो
कौन-सा ऐसा अन्याय है, जिसकी धज्जियां न
बिखेरी जा सकती हैं.
पति: (मुग्ध भाव से
उसे देखते हुए) आई एम प्राउड ऑफ़ यू रजनी...रियली,
रियली...आई एम वेरी प्राउड
ऑफ़ यू.
रजनी: (इतराते हुए)
हूं दो महीने तक लगातार मेरी धज्जियां बिखेरने के बाद. (दोनों हंसते हैं.)
(लीला बेन, कांतिभाई और अमित का प्रवेश)
लीला
बेन: उस दिन तुम्हारी जो रसमलाई रह गई, वह
आज खाओ.
कांतिभाई: और सबके
हिस्से की तुम्हीं खाओ.
(अमित दौड़कर अपने हाथ से उसे रसमलाई खिलाने जाता है पर
रजनी उसे अमित के मुंह में ही डाल देती है.)
(सब हंसते हैं. हंसी के साथ ही धीरे-धीरे दृश्य समाप्त हो
जाता है.)
शब्दार्थ
काट
देना-छोड़ देना। भोग लगाना-खाना।
मेधावी
होशियार। कांग्रेचुलेशंस-बधाई हो, मुबारक हो। सफाई-वफाई-लिखते समय होने वाली छोटी गलतियाँ व काट-छोट।
सफाई
देना-अपने बचाव में कहना। आर्थिक-धन संबंधी। अँधेर-अन्याय। बल पड़ना-तनाव आना।
स्वीकृति-मंजूरी। टर्मिनल-सत्र। हाफ-ईयरली-छमाही।
बदमाशी-मनमानी।
घुड़कना-डाँटना।
जुलुम-ज़्यादती-अन्याय-अत्याचार।
बर्दाश्त-सहन। दनदनाती-तेज कदमों से। असहाय-बेचारा। अदब-सम्मान। ईयरली-वार्षिक।
गलतफहमी-गलत
अनुमान। एकज़ामिनर-परीक्षक। तैश-क्रोध। व्हॉट डू यू मीन-क्या मतलब है आपका।
हरकत-गलत कार्य।
धाँधली-गलत
कार्य। बेगुनाह-बेकसूर। शिकजा-पकड़। घिनौना-सामाजिक दृष्टि से गलत काम।
रैकेट-गैरकानूनी काम करने वालों का समूह। चिदियाँ बिखेरना-छोटे-छोटे टुकड़े करके
फेंकना।
गदगद-प्रसन्न।
ठेका लेना-जिम्मेदारी लेना।
गुनहगार-दोषी।
हिकारत-उपेक्षा। माई फुट-तुच्छ समझना। हताश-निराश। सूली पर चढ़ाना-संकट में डालना।
डायरेक्टर-निदेशक। निज़ी-व्यक्तिगत।
कौतूहल-जिज्ञासा।
रिलेशंस-संबंध। रिसर्च-शोध। प्रोजेक्ट-कार्य।
रिकगनाइज़-मान्य।
ग्रांट-सरकारी अनुदान। एड-सहायता। कोंचता-तंग करना।
एक्शन-कार्यवाही।
दखलअंदाजी-हस्तक्षेप। दिन-दहाड़े-सरेआम। छेद-कमी। गड्ढे में जाना-नष्ट होना।
मोंटाज-टेलीविजन में दृश्यों व छवियों को एकत्रित करके जोड़ना।
बाकायदा-कायदे
के अनुसार। एकाएक-अचानक। इश्यू-मामला। आँख मूंदना-ध्यान न देना। आवेश-जोश।
राइट-अप-लिखित
विषय-सामग्री। पी.टी.आई-एक समाचार-एजेंसी। फोकस-ध्यान।
दस्तख्त-हस्ताक्षर।
पदाफाश-भेद खोलना। राय-मत। एपूल्ड-स्वीकृत।
धज्जियाँ
बिखेरना-फाड़कर फेंकना।
पाठ्यपुस्तक
से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1: रजनी ने अमित के मुददे को गंभीरता से लिया, क्योंकि-
(क) वह अमित से बहुत स्नेह करती थी।
(ख) अमित उसकी मित्र लीला का बटा था।
(ग) वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की
सामथ्य रखती थी।
(घ) उस अखबार की सुखियों में आने का शौक
था।
उत्तर- (ग) वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामथ्र्य रखती थी।
प्रश्न 2: जब किसी का बच्चा कमज़ोर होता है, तभी उसके माँ-बाप दयूशन लगवाते हैं।
अगर लगे कि कोई टीचर लूट रहा है, तो उस टीचर से न ले ट्यूशन, किसी और के पास चले जाएँ. यह कोई मजबूरी तो है नहीं-प्रसंग
का उल्लेख करते हुए बताएँ कि यह संवाद आपको किस सीमा तक सही या गलत लगता है, तर्क दीजिए।
उत्तर- रजनी ट्यूशन के रैकेट के बारे में निदेशक के पास जाती
है। उसे बताती है कि बच्चों को जबरदस्ती ट्यूशन करने के लिए कहा जाता है। ऐसे
लोगों के बारे में बोर्ड क्या कर रहा है? निदेशक ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। वे सहज भाव
से कहते हैं कि ट्यूशन करने में कोई मजबूरी नहीं है। कमजोर बच्चे को ट्यूशन पढ़ना
पड़ता है। अगर कोई अध्यापक उन्हें लूटता है तो वे दूसरे के पास चले जाएँ।
शिक्षा निदेशक का यह जवाब बहुत घटिया व गैरजिम्मेदाराना है। वे
ट्यूशन को बुरा नहीं मानते। उन्हें इसमें गंभीरता नज़र नहीं आती। वे बच्चों के
शोषण को नहीं रोकना चाहते। ऐसी बातें कहकर वह अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना
चाहता है।
प्रश्न 3: तो एक और आदोलन का मसला मिल गया-फुसफुसाकर कही गई यह बात-
(क) किसने किस प्रसंग में कही?
(ख) इससे कहने वाले की किस मानसिकता का
पता चलता है?
उत्तर-
(क) यह बात रजनी के पति रवि ने पेरेंट्स
मीटिंग के दौरान कही। रजनी ने कम वेतन पर काम करने वाले अध्यापकों को भी आंदोलन
करने के लिए कहती है। उन्हें एकजुट होकर अन्याय करनेवालों का पर्दाफाश करना चाहिए।
(ख) इस कथन से रवि की उदासीन मानसिकता
का पता चलता है। इस तरह के व्यक्ति अन्याय के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं
करता। ये स्वार्थी प्रवृत्ति के होते हैं तथा अपने तक ही सीमित रहते हैं।
प्रश्न 4: रजनी धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या क्या है? क्या होता अगर-
(क) अमित का पर्चा सचमुच खराब होता।
(ख) संपादक रजनी का साथ न देता।
उत्तर- रजनी धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या शिक्षा का
व्यवसायीकरण है। स्कूल के अध्यापक बच्चों को ज़बरदस्ती ट्यूशन पढ़ने के लिए विवश
करते हैं तथा ट्यूशन न लेने पर वे उनको कम अंक देते हैं।
(क) यदि अमित का पर्चा खराब होता तो यह
समस्या सामने नहीं आती और न ही रजनी इसे आंदोलन का रूप दे पाती। बच्चों और
अभिभावकों को ट्यूशन के शोषण से पीड़ित होना पड़ता।
(ख) यदि संपादक रजनी का साथ न देता तो
यह समस्या सीमित लोगों के बीच ही रह जाती। कम संख्या का बोर्ड पर कोई असर नहीं
होता। आंदोलन पूरी ताकत से नहीं चल पाता और सफलता संदिग्ध रहती।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1: गलती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बदश्त करने वाला भी कम गुनहगार
नहीं होता-इस संवाद के संदर्भ में आप सबसे ज्यादा किसे और क्यों गुनहगार मानते हैं?
उत्तर- इस संवाद के संदर्भ में हम सबसे ज्यादा, अत्याचार करनेवाले को दोषी मानते हैं, क्योंकि सामान्य रूप से चल रहे संसार
में भी बहुत से कष्ट, दुख और तकलीफें हैं। अत्याचारी उन्हें अपने कारनामों से और बढ़ा
देता है। वह स्वयं ऊपर से खुश दिखाई देता है, पर उसकी आत्मा तो जानती ही है कि वह गलती कर रहा है। उसके
द्वारा जिसे सताया जा रहा है वह भी कष्ट उठा रहा है और उसकी आत्मा भी कष्ट उठाती
है। इसलिए वह कष्ट से मुक्त होने के उपाय सोचता है, पर ऐसा कर नहीं पाती। ज्यादातर यही होता है। अतः अत्याचारी
ही कष्ट का प्रथम कारण होने की वजह से अधिक दोषी है।
प्रश्न 2: स्त्री के चरित्र की बनी बनाई धारणा से रजनी का चेहरा किन
मायनों में अलग है?
उत्तर- रजनी आम स्त्रियों से अलग है। आम स्त्री सहनशील होती है, वह डरपोक होती है। वह अन्याय का विरोध
नहीं करती तथा संघर्षों से दूर रहना चाहती है। रजनी इन सबके विपरीत जुझारू, संघर्षशील व बहादुर है। वह अपने सामने
हो रहे अन्याय को नहीं सहन कर सकती। वह अपने पति तक को खरी-खोटी सुनाती है तथा
अधिकारियों की खिंचाई करती है। यह ट्यूशन के विरोध में जन-आंदोलन खड़ा कर देती है।
प्रश्न 3: पाठ के अंत में मीटिंग के स्थान का विवरण कोष्ठक में दिया गया
है। यदि इसी दृश्य को फिल्माया तो आप कौन-कौन-से निर्देश देंगे?
उत्तर- इस दृश्य को फ़िल्माते समय हम निम्नलिखित निर्देश देंगे –
स्टेज के पीछे बैनर लगा हो तथा उस पर एजेंडा लिखा होना चाहिए।
स्टेज पर माइक व कुर्सी की व्यवस्था होनी चाहिए।
रजनी को संवाद याद होने चाहिए।
तालियाँ समयानुसार बजनी चाहिए।
प्रश्न 4: इस पटकथा में दृश्य-संख्या का उल्लेख नहीं है। मगर गिनती करें
तो सात दृश्य हैं। आप किस आधार पर इन दृश्यों को अलग करेंगे?
उत्तर- पटकथा में दृश्य-संख्या नहीं है, परंतु दृश्य अलग-अलग दिए गए हैं। हम
सभी दृश्यों को स्थान के आधार पर अलग-अलग करेंगे।
भाषा की बात
प्रश्न 1: निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित अंश में जो अर्थ निहित हैं
उन्हें स्पष्ट करते हुए लिखिए-
(क) वरना तुम तो मुझे काट ही देतीं।
(ख) अमित जब तक तुम्हारे भोग नहीं लगा
लता, हमलोग खा थोड़े ही
सकते हैं।
(ग) बस-बस मैं समझ गया।
उत्तर-
(क) यहाँ काट ही देतीं का अर्थ है-बुरी
तरह परेशान कर देतीं या जीना हराम कर देतीं। यह वाक्यांश शाब्दिक अर्थ से हटकर
अर्थ प्रकट कर रहा है।
(ख) भोग लगाना-अर्थात् अमित रजनी आंटी
का इतना मान रखता है, उन्हें इतना स्नेह-आदर देता है कि अपने घर में बननेवाली हर चीज़
सबसे पहले उन्हें खिलाकर आता है फिर स्वयं खाता है। अतः यह प्रयोग मान देने के
अर्थ में हुआ है। थोड़े ही अर्थात् खा नहीं सकते या खा नहीं पाते ! जिस प्रकार
भगवान को भोग लगाना और उसके बाद खाना हमारा स्वयं का ही बनाया हुआ नियम है, वैसे ही अमित रजनी आंटी को खिलाकर ही
खाता है।
(ग) इस वाक्य में बस-बस का अर्थ यह है
कि और अधिक बोलने की आवश्यकता नहीं है मैं सबकुछ समझ चुका हूँ। ज्यादा स्पष्टीकरण
नहीं चाहता।
कोड मिक्सिंग/कोड
स्विचिग
प्रश्न 1: कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? क्हेरी द्वटरेस्टिग सब्जेक्ट।
ऊपर दिए गए संवाद में दो पंक्तियाँ हैं पहली पंक्ति में
रेखांकित अंश हिंदी से अलग अंग्रेजी भाषा का है जबकि शेष हिंदी भाषा का है। दूसरा
वाक्य पूरी तरह अंग्रेजी में है। हम बोलते समय कई बार एक ही वाक्य में दो भाषाओं
(कोड) का इस्तेमाल करते हैं। यह कोड मिक्सिंग कहलाता है। जबकि एक भाषा में
बोलते-बोलते दूसरी भाषा का इस्तेमाल करना कोड स्विचिंग कहलाता है। पाठ में से कोड
मिक्सिंग और कोड स्विचिंग के तीन-तीन उदाहरण चुनिए और हिंदी भाषा में रूपांतरण
करके लिखिए।
उत्तर-
कोड मिक्सिंग
(क) नाइंटी फाइव तो तेरे पक्के हैं।
(ख) मैथ्स में ही पूरे नंबर आ सकते हैं।
(ग) सॉरी मैडम, ईयरली एक्जाम्स की कॉपियाँ तो हम नहीं
दिखाते हैं।
हिदी रूपांतरण
(क) पंचानवे तो तेरे पक्के हैं।
(ख) गणित में ही तो पूरे अंक आ सकते
हैं।
(ग) क्षमा कीजिए, बहन जी, वार्षिक परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाएँ तो हम लोग नहीं
दिखाते हैं।
कोड स्विचिंग
(क) आई मीन व्हॉट आई से। नियम का जरा भी
ख्याल होता तो इस तरह की हरकतें नहीं होतीं स्कूल में।
(ख) कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? व्हेरी इंटरेस्टिंग सब्जेक्ट।
(ग) विल यू प्लीज गेट आउट ऑफ दिस रूम। ….. मेमसाहब को बाहर ले जाओ।
हिंदी रूपां
(क) मैं जो कह रही हूँ वह सच है। नियम.।
(ख) कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? बहुत रोचक विषय है।
(ग) कृपया आप इस कमरे से बाहर चले जाए। …… मेमसाहब…… ।
अन्य हल प्रश्न
बोधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1: ‘रजनी’ पाठ का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर- यह पाठ शिक्षा के व्यवसायीकरण, ट्यूशन के रैकेट, अधिकारियों की उदासीनता तथा आम जनता
द्वारा अन्याय का विरोध आदि के बारे में बताता है। यह हमें अन्याय का विरोध करने
की प्रेरणा देता है। यह पाठ सिखाता है कि यदि अन्याय को नहीं रोका गया तो वह बढ़ता
जाएगा। अन्याय का विरोध समाज को साथ लेकर हो सकता है, क्योंकि आम आदमी की सहभागिता के बिना
सामाजिक, प्रशासनिक व
राजनैतिक व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है।
प्रश्न 2: गणित के टीचर के खिलाफ अन्य बच्चों ने आवाज क्यों नहीं उठाई?
उत्तर- गणित का अध्यापक बच्चों को जबरदस्ती ट्यूशन पर आने के
लिए कहता था। ऐसा न करने पर उनके अंक तक काट देता था। दूसरे बच्चों ने उसके खिलाफ
आवाज नहीं उठाई, क्योंकि
उन्हें लगता था कि ऐसा करने पर अगली कक्षाओं में भी उनके साथ भेदभाव किया जाएगा।
अध्यापक उनका भविष्य बिगाड़ देगा और उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। इस डर से अमित व उसकी
माँ भी रजनी को विरोध करने से रोकना चाहते थे।
प्रश्न 3: रजनी संपादक से क्या सहायता माँगती है?
उत्तर- रजनी संपादक को ट्यूशन की समस्या बताती है तथा उसे अखबार
में छापने का आग्रह करती है। वह उनसे कहती है कि 25 तारीख की पेरेंट्स मीटिंग की खबर भी प्रकाशित करें। इससे
सब लोगों तक खबर पहुँच जाएगी। व्यक्तिगत तौर पर हम कम लोगों से संपर्क कर पाएँगे।
प्रश्न 4: शिक्षा बोर्ड और प्राइवेट स्कूलों के बीच क्या संबंध होता है?
उत्तर- शिक्षा बोर्ड शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए प्राइवेट
स्कूलों को 90% सहायता
देकर मान्यता देता है। यह सहायता स्कूलों के रखरखाव, अध्यापक और विद्यार्थियों के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए दी
जाती है। शिक्षा बोर्ड के नियमों का पालन करना प्राइवेट स्कूल का कर्तव्य है।
शिक्षा बोर्ड सिलेबस बनाता है, वार्षिक परीक्षा बोर्ड करवाता है।
प्रश्न 5: सरकारी कार्यालयों की व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- सरकारी कार्यालयों में आम आदमी को परेशान किया जाता है।
यहाँ हर कदम पर भ्रष्टाचार है। अफसर अंदर खाली बैठे रहते हैं, परंतु बाहर ‘बिजी” होने का संदेश दिया जाता है। चपरासी भी रिश्वत लेकर ही
मुलाकातियों को साहब से मिलने भेजता है। अधिकारी का रवैया काम को टालने वाला होता
है। उसे जनता से कोई लेना-देना नहीं होता।
पाठ का सारांश
पटकथा यानी पट या स्क्रीन के लिए लिखी गई वह
कथा रजत पट अर्थात् फिल्म की स्क्रीन के लिए भी हो सकती है और टेलीविजन के लिए भी।
मूल बात यह है कि जिस तरह मंच पर खेलने के लिए नाटक लिखे जाते हैं, उसी
तरह कैमरे से फिल्माए जाने के लिए पटकथा लिखी जाती है। कोई भी लेखक अन्य किसी विधा
में लेखन करके उतने लोगों तक अपनी बात नहीं पहुँचा सकता, जितना
पटकथा लेखन द्वारा। इसका कारण यह है कि पटकथा शूट होने के बाद धारावाहिक या फिल्म
के रूप में लाखों-करोड़ों दर्शकों तक पहुँच जाती है। इसी कारण पटकथा लेखन की ओर
लेखकों का रुझान हुआ है। यहाँ मन्नू भंडारी द्वारा लिखित रजनी धारावाहिक की कड़ी
दी जा रही है। यह नाटक 20वीं सदी के नवें दशक का बहुचर्चित टी.वी.
धारावाहिक रहा है। यह वह समय था जब हमलोग और बुनियाद जैसे सोप ओपेरा दूरदर्शन का
भविष्य गढ़ रहे थे। बासु चटर्जी के निर्देशन में बने इस धारावाहिक की हर कड़ी
स्वयं में स्वतंत्र और मुकम्मल होती थी और उन्हें आपस में गूँथने वाली सूत्र रजनी
थी। हर कड़ी में यह जुझारन और इंसाफ-पसंद स्त्री-पात्र किसी-न-किसी सामाजिक-
राजनीतिक समस्या से जूझती नजर आती थी।
यहाँ रजनी धारावाहिक की जो कड़ी दी जा रही
है, वह
व्यवसाय बनती शिक्षा की समस्या की ओर समाज का ध्यान खींचती है।
पहला दृश्य
स्थान-लीला का घर
रजनी लीला के घर जाती है तथा उससे बाजार
चलने को कहती है। लीला उसे बताती है कि अमित का आज रिजल्ट आ रहा है। रजनी उसे
मिठाई तैयार रखने को कहती है, क्योंकि अमित बहुत होशियार है। अमित के लिए रजनी
आंटी हीरो है। तभी अमित स्कूल से आता है। उसका चेहरा उतरा हुआ है। वह रिपोर्ट
कार्ड माँ की तरफ फेंकते हुए कहता है कि मैंने पहले ही गणित में ट्यूशन लगवाने को
कहा था। ट्यूशन न करने की वजह से उसे केवल 72 अंक मिले,
लीला कहती है कि तूने सारे सवाल
ठीक किए थे। तुझे पंचानवे नंबर जरूर मिलने थे। रजनी कार्ड देखती है। दूसरे विषयों
में 86, 80, 88, 82, 90 अंक मिले। सबसे कम गणित में मिले। अमित गुस्से व
दुख से कहता है कि सर बार-बार ट्यूशन की चेतावनी देते थे तथा न करने पर परिणाम
भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी देते थे। लीला इसे अंधेरगर्दी कहती है। रजनी
अमित को तसल्ली देती है तथा सारी बातों की जाँच करती है। उसे पता चलता है कि
मिस्टर पाठक उन्हें गणित पढ़ाते हैं। वे हर बच्चे को ट्यूशन लेने के लिए कहते हैं।
अमित ने हाफ ईयरली में छियानबे नंबर लिए थे। अध्यापक ने फिर भी उसे ट्यूशन रखने का
आग्रह किया। अमित अपनी माँ पर इसका दोषारोपण किया। रजनी उसे समझाती है कि उसे
अध्यापक से लड़ना चाहिए। यह सारी बदमाशी उसकी है। रजनी अमित को कहती है कि वह कल
उसके स्कूल जाकर सर से मिलेगी। अमित डरकर उन्हें जाने से रोकता है। रजनी उसे
डाँटती है तथा अगले दिन स्कूल जाने का संकल्प लेती है।
दूसरा दृश्य
स्थान-हैडमास्टर का कमरा।
रजनी अमित के स्कूल के हैडमास्टर से मिलने
गई। उसने अमित सक्सेना की गणित की कापी देखने की अनुमति माँगी। हैडमास्टर ने
वार्षिक परीक्षा की कॉपियाँ दिखाने में असमर्थता दिखाई। रजनी कहती है कि अमित ने
मैथ्स में पूरा पेपर ठीक किया था, परंतु उसे केवल बहत्तर अंक मिले। वह देखना चाहती
है कि गलती किसकी है। हैडमास्टर फिर भी कॉपी न दिखाने पर अड़ा रहता है और अमित को
दोषी बताता है। रजनी कहती है कि अमित के पिछले रिजल्ट बहुत बढ़िया हैं। इस बार
उसके नंबर किस बात के लिए काटे गए। हैडमास्टर नियमों की दुहाई देते हैं तो रजनी
व्यंग्य करती है कि यहाँ होशियार बच्चों को भी ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया जाता
है। हैडमास्टर ट्यूशन को टीचर्स व स्टूडेंट्स का आपसी मामला बताता है। वे इनसे अलग
रहते हैं। रजनी उसे कुर्सी छोड़ने के लिए कहती है ताकि ट्यूशन के काले धंधे को
रोका जा सके। हैडमास्टर आग-बबूला होकर रजनी को वहाँ से चले जाने को कहता है।
तीसरा दृश्य
स्थान-रजनी का घर
शाम के समय रजनी के पति घर आते हैं। वह उनके
लिए चाय लाती है, फिर उन्हें अपने काम के बारे में बताती है। इस पर
रवि उसे समझाते हैं कि टीचर ट्यूशन करें या धधा। तुम्हें क्या परेशानी है।
तुम्हारा बेटा तो अभी पढ़ने नहीं जा रहा। इस बात पर रजनी भड़क जाती है और कहती है
कि अमित के लिए आवाज क्यों नहीं उठानी चाहिए। अन्याय करने वाले से अधिक दोषी
अन्याय सहने वाला होता है। तुम्हारे जैसे लोगों के कारण इस देश में कुछ नहीं होता।
चौथा दृश्य
स्थान-डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन का कार्यालय।
रजनी दफ्तर के बाहर बेंच पर बैठी अधिकारी से
मिलने की प्रतीक्षा कर रही है। वह बैचेन हो रही है। प्रतीक्षा करते-करते जब बहुत
देर हो जाती है तो वह बड़बड़ाने लगती है। तभी एक आदमी आता है तथा स्लिप के नीचे
पाँच रुपये का नोट रखकर देता है। चपरासी उसे तुरंत अंदर भेजता है। रजनी यह देखकर
क्रोधित होती है। वह चपरासी को धकेलकर अंदर चली जाती है। निदेशक उसे घंटी बजने पर
अंदर आने की बात कहता है। रजनी उसे खरी-खोटी सुनाती है। इस पर निदेशक उससे बात
करता है। रजनी प्राइवेट स्कूलों और बोर्ड के आपसी संबंधों के बारे में जानकारी
इकट्ठा कर रही है। निदेशक समझता है कि शायद वह कोई रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रही
है। वह बताता है कि बोर्ड मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों को 90%
ग्रांट देता है। इस ग्रांट के बदले वे स्कूलों पर नियंत्रण रखते हैं। स्कूलों को उनके
नियम मानने होते हैं। इस पर रजनी कहती है कि प्राइवेट स्कूलों में ट्यूशन के धंधे
के बारे में आपका क्या रवैया है। निदेशक कहता है कि इसमें धंधे जैसी कोई बात नहीं
है। कमजोर बच्चे के माँ-बाप उसे ट्यूशन दिलवाते हैं। यह कोई मजबूरी नहीं है। इस पर
रजनी उसे बताती है कि होशियार बच्चों को भी ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया जाता
है। अगर ट्यूशन न ली जाए तो उसके नंबर कम दिए जाते हैं। हैडमास्टर ऐसे टीचर के
खिलाफ एक्शन लेने से परहेज करता है। क्या आपको ऐसे रैकेट बंद करने के लिए
दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए? इस पर निदेशक कहता है कि आज तक कोई शिकायत नहीं
आई। रजनी व्यंग्य करती है कि बिना शिकायत के आपको कोई जानकारी नहीं होती। निदेशक
अपनी व्यस्तता का तर्क देता है तो रजनी उसे कहती है-मैं आपके पास शिकायतों का ढेर
लगवाती हूँ।
पाँचवाँ दृश्य
स्थान-अखबार का कार्यालय
रजनी संपादक के पास जाती है। संपादक उनके
कार्य की प्रशंसा करता है और कहता है कि आपने ट्यूशन के विरोध में बाकायदा एक
आंदोलन खड़ा कर दिया। यह जरूरी है। रजनी जोश में कहती है कि आप हमारा साथ दीजिए
तथा इसे अपने समाचार में स्थान दें। इससे यह थोड़े लोगों की बात नहीं रह जाती।
इससे अनेक अभिभावकों को राहत मिलेगी तथा बच्चों का भविष्य सँवर जाएगा।
संपादक रजनी की भावनाएँ समझकर साथ देने का
वादा करता है। उसने सारी बातें नोट की तथा एक समाचार भिजवाया। रजनी उसे बताती है
कि 25
तारीख को पेरेंट्स की मीटिंग की जा रही है। वे यह सूचना अखबार में जरूर दे दें तो
सब लोगों को सूचना मिल जाएगी।
छठा दृश्य
स्थान-बैठक-स्थल
एक हाल में पेरेंट्स की मीटिंग चल रही है।
बाहर बैनर लगा हुआ है। काफी लोग आ रहे हैं। अंदर हाल भरा हुआ है। प्रेस के लोग आते
हैं। रजनी जोश में संबोधित कर रही है-आपकी उपस्थिति से हमारी मंजिल शीघ्र मिल
जाएगी। कुछ बच्चों को ट्यूशन जरूरी है, क्योंकि कुछ माएँ पढ़ा नहीं सकतीं तो कुछ
पिता घर के काम में मदद जरूरी नहीं समझते। टीचर्स के एक प्रतिनिधि ने बताया कि
उन्हें कम वेतन मिलता है। अत: उन्हें ट्यूशन करना पड़ता है। कई जगह कम वेतन देकर
अधिक वेतन पर दस्तखत करवाए जाते हैं। इस पर हमारा कहना है कि वे संगठित होकर आदोलन
चलाएँ तथा अन्याय का पर्दाफाश करें। हम यह नियम बनाएँ कि स्कूल का टीचर अपने स्कूल
के बच्चों का ट्यूशन नहीं करेगा। इस नियम को तोड़ने वाले टीचर्स के खिलाफ सख्त
कार्यवाही की जाएगी। इससे बच्चों के साथ जोर-जबरदस्ती अपने-आप बंद हो जाएगी। सभा
में लोगों ने इस बात का समर्थन किया।
सातवाँ दृश्य
स्थान-रजनी का घर
रजनी के पति अखबार पढ़ते हुए बताते हैं कि
बोर्ड ने तुम्हारे प्रस्ताव को ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया। रजनी बहुत प्रसन्न
होती है। पति भी उस पर गर्व करते हैं। तभी लीला बेन,
कांतिभाई और अमित मिठाई लेकर
वहाँ आते हैं।
अर्थग्रहण संबंधी
प्रश्न
1. हाँ! कॉपी लौटाते हुए कहा था कि तुमने
किया तो अच्छा है पर यह तो हाफ़-ईयरली है.बहुत आसान पेपर होता है इसका तो। अब अगर
ईयरली में भी पूरे नंबर लेने हैं तो तुरंत ट्यूशन लेना शुरू कर दो। वरना रह जाओगे।
सात लड़कों ने तो शुरू भी कर दिया था। पर मैंने जब मम्मी-पापा से कहा, हमेशा बस एक ही जवाब (मम्मी की नकल
उतारते हुए) मैथ्स में तो तू वैसे ही बहुत अच्छा है, क्या करेगा ट्यूशन लेकर? देख लिया अब? सिक्स्थ पोज़ीशन आई है मेरी। जो आज तक कभी नहीं आई थी।
प्रश्न-उत्तर
1. अमित के अध्यापक ने उस क्या कहा? क्यों?
Ø अमित के अध्यापक ने उसे कहा कि हाफ़-ईयरली परीक्षा में
तुमने अच्छा किया है, परंतु अगर ईयरली में तुम्हें पूरे नंबर लेने हैं तो तुरंत
ट्यूशन लगवा लो। उसने ट्यूशन न लेने पर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। वह ऐसा इसलिए
कह रहे थे ताकि अमित भी उनके पास ट्यूशन पढ़ने आ जाए।
2. अमित की मम्मी ने गणित का ट्यूशन लगाने से
क्यों मना किया?
Ø अमित गणित में बहुत होशियार है। इस कारण उसकी मम्मी ने
गणित का ट्यूशन लगाने से मना कर दिया। इसके अलावा उन्हें अमित की प्रतिभा पर भी
भरोसा था।
3. अमित इस स्थिति में किसे दोषी मानता है? उसकी
यह सोच कितनी उचित है?
Ø अमित गणित में कम अंक आने की वजह ट्यूशन न लगाना मानता है।
वह अपने माता-पिता को इसके लिए दोषी मानता है। उसकी यह सोच तनिक भी उचित नहीं है, क्योंकि इसके लिए माँ-बाप को दोष देना
उचित नहीं है।
2. कुछ नहीं कर सकते आप? तो मेहरबानी करके यह कुर्सी छोड़
दीजिए। क्योंकि यहाँ पर कुछ कर सकने वाला आदमी चाहिए। जो ट्यूशन के नाम पर चलने
वाली धाँधलियों को रोक सके. मासूम और बेगुनाह बच्चों को ऐसे टीचर्स के शिकंजों से
बचा सके जो ट्यूशन न लेने पर बच्चों के नंबर काट लेते हैं. और आप हैं कि कॉपियाँ न
दिखाने के नियम से उनके सारे गुनाह ढक देते हैं।
1. वक्ता का यह कथन ‘कुछ
कर सकने. ‘ कहाँ तक उचित हैं?
Ø वक्ता का कथन पूर्णतया सत्य और उचित है, क्योंकि प्रधानाचार्य का पद जिम्मेदारी
का पद है। जो उस पद की जिम्मेदारी नहीं ले सकता, उसे पद पर रहने का अधिकार नहीं है।
2. ट्यूशन के नाम पर क्या हो रहा है?
Ø ट्यूशन के नाम पर बच्चों का शोषण किया जाता है। उन्हें
डराया-धमकाया जाता है। जो बच्चे ट्यूशन नहीं पढ़ते, उन्हें कम अंक दिए जाते हैं जैसा अमित के साथ हुआ।
3. कॉपियाँ न दिखाने का नियम कहाँ तक उचित है?
Ø स्कूलों में वार्षिक परीक्षा की कॉपियाँ न दिखलाने का नियम
सर्वथा अन्यायपूर्ण है। इस नियम के नाम पर अंकों की गड़बड़ी को ढका जाता है तथा
दोषी अध्यापक अपनी मनमानी करके बच्चों का शोषण करते हैं।
3. मुझे बाहर करने की ज़रूरत नहीं। बाहर
कीजिए उन सब टीचर्स को जिन्होंने आपकी नाक के नीचे ट्यूशन का यह घिनौना रैकेट चला
रखा है। (व्यग्य से) पर आप तो कुछ कर नहीं सकते, इसलिए अब मुझे ही कुछ करना होगा और मैं करूंगी, देखिएगा आप। (तमतमाती हुई निकल जाती
है) (हैंडमास्टर चपरासी पर ही बिगड़ पड़ता है) जाने किस-किस को भेज देते हो भीतर।
1. वक्ता क्या करने की बात कहती हैं?
Ø वक्ता ने हैडमास्टर को कहा कि आपको उन सभी टीचर्स को बाहर
करना चाहिए जिन्होंने ट्यूशन का घिनौना रैकेट चला रखा है। वे बच्चों का शोषण कर
रहे हैं तथा उनका भविष्य खराब कर रहे हैं।
2. वक्ता क्या धमकी देती हैं?
Ø वक्ता हैडमास्टर को धमकी देती है कि आपने तो ट्यूशन करने
वाले अध्यापकों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। अब मुझे ही इस गलत काम को रोकने के
लिए कार्रवाई करनी होगी।
3. प्रधानाचार्य किस पर बिगड़ा और क्या कहा तथा
क्यों?
Ø प्रधानाचार्य चपरासी पर क्रोधित होता है। वह कहता है कि
तुम किस तरह के लोगों को अंदर भेज देते हो। उसने ऐसा इसलिए कहा ताकि वक्ता का
गुस्सा उस निरीह चपरासी पर उतार सके।
4. देखो, तुम मुझे फिर गुस्सा दिला रहे हो रवि. गलती करने वाला तो
है ही गुनहगार, पर उसे
बर्दाश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता जैसे लीला बेन और कांति भाई और
हज़ारों-हज़ारों माँ-बाप। लेकिन सबसे बड़ा गुनहगार तो वह है जो चारों तरफ अन्याय, अत्याचार और तरह-तरह की धाँधलियों को
देखकर भी चुप बैठा रहता है, जैसे तुम। (नकल उतारते हुए) हमें क्या करना है, हमने कोई ठेका ले रखा है दुनिया का।
(गुस्से और हिकारत से) माई फुट (उठकर भीतर जाने लगती हैं। जाते-जाते मुड़कर) तुम
जैसे लोगों के कारण ही तो इस देश में कुछ नहीं होता, हो भी नहीं सकता! (भीतर चली जाती है।
1. गलती सहने वाला गुनहगार कैसे होता है?
Ø गलती सहने वाला गुनहगार होता है, क्योंकि इससे अन्याय करने वाले को साहस
मिलता है। वह अपने काम को सही मानकर और अधिक अत्याचार करने लगता है।
2. यहाँ किस-किसे गुनहगार कहा गया है तथा क्यों?
Ø यहाँ दो प्रकार के लोगों को गुनहगार माना गया है-
(क) गुनाह करने वाले।
(ख) गुनाह को सहने वाले।
3. वक्ता के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
Ø ये दोनों ही गुनहगार हैं। गुनाहगार गलती करता है तथा उसे
सहने वाला उसे बढ़ावा देता है।
वक्ता समाजसेविका है। वह किसी के ऊपर हो रहे अत्याचार को सहन
नहीं करती। वह अपने पति तक को दोषी मानती है। वह स्पष्ट वक्ताँ है।
5. निदेशक : वैरी सैड! हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए। ऐसे टीचर
के खिलाफ।
रजनी : क्या खूब! आप कहते हैं कि हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए… हैडमास्टर कहते हैं मैं कुछ नहीं कर
सकता, तब करेगा कौन? मैं पूछती हूँ कि ट्यूशन के नाम पर
चलने वाले इस घिनौने रैकेट को तोड़ने के लिए दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए आपको, आपके बोर्ड को? (चहरा तमतमा जाता हैं)
निदेशक : लेकिन हमारे पास तो आज तक किसी पेरेंट से इस तरह की
कोई शिकायत नहीं आई।
रजनी : यानी की शिकायत आने पर ही आप इस बारे में कुछ सोच सकते
हैं। वैसे शिक्षा के नाम पर दिन-दहाड़े चलने वाली इस दुकानदारी की आपके (बहुत ही
व्यग्यात्मक ढंग से) बोर्ड ऑफ एजुकेशन को कोई जानकारी ही नहीं, कोई चिंता ही नहीं?
1. रजनी निदेशक के पास क्यों गई?
Ø रजनी ट्यूशन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करवाना चाहती
है। वह जानना चाहती है कि शिक्षा बोर्ड के पास स्कूलों पर नियंत्रण के अधिकार हैं
या नहीं।
2. ‘क्या
खूब ‘ में निहित व्यग्य स्पष्ट करें।
Ø इस में शिक्षा-व्यवस्था पर करारा व्यंग्य है। अध्यापक
ट्यूशन के नाम पर बच्चों का शोषण करते हैं, हैडमास्टर उनके खिलाफ एक्शन नहीं लेते तथा अधिकारी
हैडमास्टर को जिम्मेदारी सिखाते हैं या लिखित शिकायत चाहते हैं। हर व्यक्ति अपनी
जिम्मेदारी से भागना चाहता है।
3. शिक्षा बोड की कार्यशैली पर टिप्पणी करें।
Ø शिक्षा बोर्ड भी अन्य सरकारी विभागों की तरह अकर्मण्यशील
है। वह शिकायत पर ही कोई कार्रवाई करता है अन्यथा उसे किसी बात की कोई जानकारी
नहीं होती। वे स्कूलों में हो रहे शोषण से अवगत तो रहते हैं पर उसके खिलाफ कुछ
नहीं करते।
6. (एकाएक जोश में आकर) आप भी महसूस करते
हैं न ऐसा?. तो फिर साथ
दीजिए हमारा। अखबार यदि किसी इश्यू को उठा ले और लगातार उस पर चोट करता रहे तो फिर
वह थोड़े से लोगों की बात नहीं रह जाती। सबकी बन जाती है. आँख मूँदकर नहीं रह सकता
फिर कोई उससे। आप सोचिए ज़रा अगर इसके खिलाफ कोई नियम बनता है तो (आवेश के मारे
जैसे बोला नहीं जा रहा है) कितने पेरेंट्स को राहत मिलेगी. कितने बच्चों का भविष्य
सुधर जाएगा, उन्हें अपनी
मेहनत का फल मिलेगा, माँ-बाप के
पैसे का नहीं. शिक्षा के नाम पर बचपन से ही उनके दिमाग में यह तो नहीं भरेगा कि
पैसा ही सब कुछ है. वे. वे.
1. वक्ता किससे कब बात कर रहा है?
Ø वक्ता यानी रजनी अखबार के कार्यालय में संपादक से ट्यूशन
के विषय में बात कर रही है। वह उन्हें ट्यूशन के कुप्रभावों के बारे में महसूस
कराती है तथा उनसे समर्थन माँगती है।
2. अखबार किसी बात को व्यापक कैसे बना देता हैं?
Ø जब अखबार किसी बात को उठाता है तो उसका प्रचार-प्रसार पूरे
समाज में हो जाता है। सभी लोग उस मुद्दे पर अपना विचार प्रस्तुत करते हैं साथ ही
इससे जनमत तैयार होता है। फलस्वरूप अन्याय या शोषण के खिलाफ लोग खड़े हो जाते हैं।
3. रजनी संपादक को ट्यूशन रोकने के क्या-क्या लाभ गिनाती हैं?
Ø संपादक को ट्यूशन रोकने के निम्नलिखित लाभ
गिनवाए गए-
(क) इससे प्रभावित अनगिनत बच्चों व उनके
माता-पिताओं को ट्यूशन की समस्या से राहत मिलेगी।
(ख) बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा।
(ग) उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलेगा।
(घ) वे शिक्षा को बड़ा मानेंगे न कि
पैसे को।
7. (रुककर) बड़ा अच्छा लगा जब टीचर्स की ओर
से भी एक प्रतिनिधि ने आकर बताया कि कई प्राइवेट स्कूलों में तो उन्हें इतनी कम
तनख्वाह मिलती है कि ट्यूशन न करें तो उनका गुज़ारा ही न हो। कई जगह तो ऐसा भी है
कि कम तनख्वाह देकर ज्यादा पर दस्तखत करवाए जाते हैं। ऐसे टीचर्स से मेरा अनुरोध
है कि वे संगठित होकर एक आंदोलन चलाएँ और इस अन्याय का पर्दाफाश करें (हॉल में
बैठा हुआ पति धीरे से फुसफुसाता है, लो, अब एक और आदोलन का मसाला मिल गया, कैमरा फिर रजनी पर) इसलिए अब हम अपनी समस्या से जुड़ी सारी
बातों को नज़र में रखते हुए ही बोंड के सामने यह प्रस्ताव रखेंगे कि वह ऐसा नियम
बनाए (एक-एक शब्द पर जोर देते हुए) कि कोई भी टीचर अपने ही स्कूल के छात्रों का
ट्यूशन नहीं करेगा।
(रुककर) ऐसी स्थिति में बच्चों के साथ
ज़ोर-ज़बरदस्ती करने, उनके नंबर काटने की गंदी हरकतें अपने आप बंद हो जाएँगी। साथ ही
यह भी हो कि इस नियम को तोड़ने वाले टीचर्स के खिलाफ सख्त-से-सख्त कार्यवाही की
जाएगी..।
1. प्राइवेट स्कूल के अध्यापकों की कौन-कौन-सी
समस्याएँ सामने आई?
Ø प्राइवेट स्कूल के अध्यापकों की मुख्य रूप से दो समस्याएँ
सामने आईं-
(क) अध्यापकों को बेहद कम तनख्वाह मिलती
है। इस कारण गुज़ारा करने के लिए उन्हें ट्यूशन करना पड़ता है।
(ख) कई जगह उन्हें अधिक वेतन पर
हस्ताक्षर करने पड़ते हैं तथा वेतन कम दिया जाता है।
2. वक्ता ने प्राइवेट स्कूल के अध्यापकों की
समस्या का क्या समाधान बताया?
Ø वक्ता रजनी है। उसने प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों को कहा
कि वे संगठित होकर आंदोलन चलाएँ और कम वेतन की धाँधलेबाजी का पर्दाफाश करें।
3. ट्यूशन के बारे में सभा में कौन-सा प्रस्ताव
रखा गया?
Ø ट्यूशन के बारे में सभा में एक प्रस्ताव रखा गया कि बोर्ड
यह नियम बनाए कि कोई भी टीचर अपने ही स्कूल के छात्रों को ट्यूशन नहीं करेगा। यदि
वह ऐसा करे तो उस टीचर्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
"Your time is
limited, so don't waste it living someone
else's life. ...
RAJANI -HINDI-STORY-BY-MANNU-BHANDARI |
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