फूल बने हम ..................
भूलकर न किसी की राहों के शूल बने हम ,
सदा हँसते सुंगंध बिखेरते हुए फूल बने हम I
पत्थर को माथे पर सजाता नहीं कोई ,
इसके लिए तो पावन स्वर्णिम धूल बने हम I
धरा संग न बहे ,न हीं प्रतिरोध करें उसका ,
बढ़ने के लिय सदा ही उसके अनुकूल बने हम I
बेकार है यूँ ही उसूलों के उपदेश देना ,
अनुसरण सब करें स्वयं ऐसा उसूल बने हम I
समय आने पर यह कण कण सहायक बनेगा ,
किसी के क्यूँ भला फिर प्रतिकूल बने हम I
न तो इधर की सुनें न उधर की ही कहे ,
केवल समीपता बांटने वाले बस फूल बने हम I
यह प्रण लेना ही बहुत है बिखरने के लिए ,
भविष्य में अब न कभी भी कोई भूल बने हम I
कुमार महेश ०२१-०८-२३
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