बादल को घिरते देखा है
कवि परिचय :
नागार्जुन
का जन्म सतलखा जिला दरभंगा बिहार में सन् 1911 ई. में हुआ। उनकी प्रारम्भिक
शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे वाराणसी और
कोलकाता गये। सन् 1936 में श्रीलंका गए और वहाँ बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। आप फक्कड़पन
और घुमक्कड़ी प्रकृति के थे। राजनीतिक कार्य-कलापों के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा।
सन् 1998 ई. में स्वर्ग सिधार गए।
आप
प्रगतिशील और जनवादी आन्दोलन के अग्रज रहे। आपकी रचनाओं में दरिद्रों के प्रति
सहानुभूति के प्रबल स्वर रहे हैं। आपने सन् 1935 में 'दीपक' (मासिक) और 1942-43
में विश्वबन्धु
(साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। आपने 'यात्री' नाम से मैथिली में रचना की।
आपके 'चित्र' कविता-संग्रह से मैथिली की नवीन
भावबोध की रचनाओं का प्रारम्भ माना जाता है। नागार्जुन ने संस्कृत और बंगला में भी
काव्य-रचना की। आपकी रचनाओं ने ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों को समूह तक सम्मान
पाया है। आपने छन्द बद्ध और छन्दमुक्त दोनों प्रकार की रचनाएँ की हैं। युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहों वाली, मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा, भस्मांकुर आदि प्रमुख रचनाएँ
हैं। पत्रहीन नग्न गाछ (मैथिली कविता-संग्रह) पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
उन्हें भारत-भारती पुरस्कार, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार और राजेन्द्र प्रसाद
पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पाठ-परिचय :
कवि
ने प्रकृति को निकट से देखकर उसके कोमल और कठोर दोनों रूपों का चित्रण किया है।
हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों पर स्थित कैलाश-मानसरोवर के आस-पास घिरते हुए
बादलों को कवि ने देखा है। उसका मनमोहक वर्णन कवि ने किया है।
मानसरोवर झील में
कमलों पर ओस की बूंदें मोती जैसी लगती हैं। झीलों में हंस तैर रहे हैं। बसन्त की
प्रभातकालीन किरणों से चमकते शिखरों के आस-पास मानसरोवर की काई पर चकवा-चकवी की
प्रणय-लीला को देखा है। मृग चौकड़ी भर रहे हैं। पर्वत-शिखरों पर बादल मँडरा रहे
हैं। कवि ने किन्नर-किन्नरियों के जीवन को देखा है और उसका भी वर्णन किया है। कवि
ने बादलों की अनेक झाँकियों को उकेरा है।
काव्यांशों
की सप्रसंग व्यारव्याएँ -
बादल
को घिरते देखा है
1. अमल
धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल
को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे
मोती जैसे
उसके
शीतल तुहिन कणों को,
मानसरोवर
के उन स्वर्णिम
कमलों
पर गिरते देखा है।
बादल
को घिरते देखा है।
शब्दार्थ
:
- अमल =
स्वच्छ।
- धवल = श्वेत, बर्फ से ढके।
- गिरि =
पर्वत।
- शिखर = चोटी।
- शीतल = ठंडे।
- तुहिन-कण =
ओस की बूंदें।
- मानसरोवर =
हिमाच्छादित चोटियों के बीच स्थित एक पुराण प्रसिद्ध झील। (किंवदन्ती के
अनुसार मानसरोवर झील में तैरते श्वेत हंस जल में तैरते मोतियों को चुगते
हैं)।
- स्वर्णिम =
सुनहरे।
संदर्भ
- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' के काव्यखण्ड से कवि नागार्जुन के
काव्य-संग्रह 'युगधारा' की 'बादल को घिरते देखा है' शीर्षक से संकलित कविता से अवतरित है।
प्रसंग
- यायावर कवि नागार्जुन कैलास-मानसरोवर का प्रत्यक्ष दर्शन करते हैं। यात्रा के
दौरान उन्होंने हिमाच्छादित चोटियों के बीच जिस प्राकृतिक सुषमा का अवलोकन किया है, उसका वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि
व्याख्या
- स्वच्छ-श्वेत-हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों पर उन्होंने बादलों को उमड़-घुमड़कर
घिरते देखा है। उसके साथ ही बादलों से गिरती हुई छोटी-छोटी श्वेत जल की बूंदें
मोती जैसी सुन्दर दिखाई देती हैं। वे बूंदें मानसरोवर झील के नीले शीतल जल में
उत्पन्न होने वाले सुनहरे कमलों की कोमल पंखुड़ियों पर अपनी सतरंगी छटा छिटका रही
हैं। इस प्रकार कवि इस अद्भुत प्राकृतिक परिदृश्य में बादलों को घिरते देखते हैं।
विशेष
:
1. कवि के चित्रात्मक वर्णन से यह आभासित
होता है कि यह कविता उनके प्रत्यक्ष अनुभव की साक्षी है। कैलास के पास स्थित
मानसरोवर-झील का प्रत्यक्ष दर्शक ही ऐसा करने में समर्थ हो सकता है।
2. संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली का प्रयोग किया
गया है।
3. भाषा में लाक्षणिकता है।
4. 'मोती जैसे तुहिन कणों में' उपमा अलंकार है।
5. 'छोटे-छोटे' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
6. प्रकृति का आलंबन रूप में वर्णन है।
2. तुंग
हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी
कई झीलें हैं
उनके
श्यामल नील सलिल में
समतल
देशों से आ-आकर
पावस
की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर
विसतंतु खोजते
हंसों
को तिरते देखा है।
बादल
को घिरते देखा है।
शब्दार्थ
:
- तुंग =
ऊँची-ऊँची।
- हिमालय के
कंधों पर = हिमालय की चोटियों के बीच।
- झीलें = जल
के भण्डार।
- श्यामल =
साँवले।
- नील = नीले।
- सलिल = जल।
- समतल =
मैदानी।
- पावस = वर्षा
ऋतु।
- ऊमस = वर्षा
ऋतु में वाष्पीकरण के कारण होने वाली घटन।
- आकल = परेशान, व्याकुल।
- तिक्त-मधर =
तीखे लेकिन मीठे।
- विसतंत = कमल
की डंडी के अंदर मिलने वाला कोमल तंतु या रेशा।
- तिरते =
तैरते।
संदर्भ - प्रस्तुत
काव्यांश 'अंतरा' काव्यखण्ड में संकलित कवि नागार्जुन के
'युगधारा' काव्य संकलन से 'बादल को घिरते देखा है' कविता से लिया गया है।
प्रसंग
- कवि हिमालय स्थित मानसरोवर झील में तैरते हुए तथा अपना भोजन कमल के पुष्पों की
डंडी में तलाशते हुए हंसों को देखकर कह रहे हैं।
व्याख्या
- हिमालय की ऊँची-ऊँची हिममण्डित चोटियों के बीच अनेक छोटी-बड़ी झीलें हैं। उनमें
से ही एक मानसरोवर है। इन झीलों में मनोहारी नीला और साँवला-सा जल भरा हुआ है। उस
स्वच्छ, निर्मल
जल में कई मैदानी क्षेत्रों से हंस पक्षी जल-क्रीड़ा करने के निमित्त आते रहते
हैं। उनका यहाँ आगमन एक प्राकृतिक घटना है, क्योंकि वे मैदानों की उमसभरी घुटन से
युक्त वर्षा के मौसम से राहत पाने के लिये यहाँ आकर कुछ दिवस शीतलता का अनुभव करते
आकर्षक सन्दर, प्राकृतिक
झीलों में उत्पन्न होने वाले कमल उन्हें मौन निमंत्रण देते हैं, क्योंकि इन कमलों की जड़ों से जुड़ी
कमल-नाल ही उन्हें प्रिय भोजन प्रदान करती है। तीखे और मीठे विसतंतु को अपना प्रिय
भोजन बनाने के लिये वे हंस इन झीलों की ओर प्रस्थान करते हैं और स्थान-स्थान पर
जल-क्रीड़ा करते हैं।
विशेष
:
1. कवि ने इन झीलों में जल-क्रीड़ा करते
तथा तैरते हुए हंसों का मनोहर चित्र प्रस्तुत किया है।
2. भाषा सहज, सरल, संस्कृतनिष्ठ तत्सम प्रधान खड़ी बोली
है।
3. लाक्षणिकता और मुहावरों का सफल प्रयोग
किया गया है।
4. गीत शैली में गेयात्मक मुक्त छन्द का
सुन्दर प्रयोग हुआ है।
5. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
6. प्रकृति का आलंबन रूप में वर्णन है।
3. ऋतु
वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद
था अनिल बह रहा
बालारुण
की मृद किरणें थीं
अगल-बगल
स्वर्णिम शिखर थे
एक
दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग
रहकर ही जिनको
सारी
रात बितानी होती,
निशा
काल से चिर-अभिशापित
बेबस
उस चकवा-चकई का
बंद
हुआ क्रंदन, फिर
उनमें
उस
महान सरवर के तीरे
शैवालों
की हरी दरी पर
प्रणय-कलह
छिड़ते देखा है।
बादल
को घिरते देखा है।
शब्दार्थ
:
- सुप्रभात =
सुन्दर प्रात:काल।
- मंद-मंद =
धीरे-धीरे।
- अनिल बह रहा
= वायु चल रही थी।
- बालारुण (बाल
+ अरुण) = प्रात:कालीन सूर्य बिंब।
- मृदु = कोमल।
- अगल-बगल =
आस-पार।
- स्वर्णिम =
सुनहले रंग में रेंगे।
- शिखर = पर्वत
चोटी।
- विरहित =
वियोगी, अलग-अलग।
- निशाकाल =
रात्रि में।
- चिर-अभिशापित
= सदैव से शापग्रस्त, अभागे, दुखी।
- बेबस =
मजबूर।
- चकवा-चकई =
एक प्रकार के पक्षी जो रात्रि में अलग हो जाते हैं और दिन में साथ रहते हैं।
- क्रंदन =
चीख-पुकार।
- सरवर = तालाब, झील।
- तीरे =
किनारे पर।
- शैवाल = काई
जैसी घास।
- हरी-दरी =
हरियाली भूमि।
- प्रणय =
प्रेम।
- कलह = झगड़ा
(प्रेम का झगड़ा अर्थात् प्रेम-क्रीड़ा)।
- छिड़ना =
शुरू होना।
संदर्भ
- 'अंतरा' काव्यखण्ड पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि नागार्जुन की प्रसिद्ध
कविता 'बादल
को घिरते देखा है' से
यह काव्यांश अवतरित है।
प्रसंग
- हिमाच्छादित-शिखरों के बीच नीले जल की आकर्षक झील मानसरोवर का नैसर्गिक सौन्दर्य
वर्णन करते हुए कवि चकवा-चकई पक्षियों की प्रेम-क्रीड़ा का चित्ताकर्षक दृश्य
प्रस्तुत कर रहा है।
व्याख्या
- बसंत ऋतु की सुन्दर प्रभात वेला में मंद-मंद वायु चल रही थी : दूसरी ओर उस महान
सरोवर मानसरोवर झील के आस-पास के हिम-शिखरों पर प्रभातकालीन सूर्य बिंब से छिटकने
वाली सुनहरी-आभा स्वर्णिम रंग से रँग रही थी। ऐसे सुन्दर वातावरण में चिरकाल से
रात्रि में बिछुड़ने वाले चकवा-चकवी पक्षी प्रात:कालीन सुनहरी किरणों के साथ ही
अपनी करुण पुकार भूलकर आस-पास बिछी हरी शैवाल से युक्त तट की नाम पर प्रेम क्रीड़ा
में मग्न थे। कवि इस सुन्दर दृश्य का प्रत्यक्ष दृष्टा बनकर वहाँ घिरने वाले
बादलों को देख रहा है।
विशेष
:
1. किंवदंती के अनुसार चकवा और चकवी पक्षी
रात्रि में बिछुड़ जाते हैं और प्रातः मिलते हैं।
2. कवि के द्वित्व शब्दों के प्रयोग से
भाषा की चित्रात्मकता में वृद्धि हुई है। जैसे-अगल-बगल, एक-दूसरे, अलग-अलग, चकवा-चकई, निशा-काल आदि।
3. मुहावरे द्वारा भी लाक्षणिकता
द्रष्टव्य है।
4. गीत शैली में गेयात्मक छन्द का प्रयोग
हुआ है।
5. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग।
6. मंद-मंद', 'अलग-अलग' में पुनरुक्तिप्रकाश एवं चकवा-चकवी में
अनुप्रास अलंकार है।
7. शैवालों की हरी दरी पर' में रूपक अलंकार है।
8. माधुर्य गुण।
9. शृंगार रस के साथ प्रकृति का आलंबन रूप
में प्रयोग हुआ है।
4. दुर्गम
बरफानी घाटी में
शत-सहस्र
फुट ऊँचाई पर
अलख
नाभि से उठने वाले
निज
के ही उन्मादक परिमल
के
पीछे धावित हो-होकर
तरल-तरुण
कस्तूरी मृग को
अपने
पर चिढ़ते देखा है
बादल
को घिरते देखा है।
शब्दार्थ
:
- दुर्गम =
पहुँचने में कठिन।
- बरफानी घाटी
= बर्फ से ढकी घाटी।
- शत-सहस्र =
सैकड़ों, हजारों।
- अलख-नाभि =
दिखाई न पड़ने वाली नाभि (टुंडी)।
- उन्मादक =
पागल बनाने वाली।
- परिमल =
गन्ध।
- धावित =
दौड़ते हुए।
- तरल-तरुण =
चंचल युवा।
- मृग = हरिण।
- कस्तूरी =
हरिण की नाभि से उत्पन्न एक सुगन्धित पदार्थ जो सम्पूर्ण वन को सुगन्धित कर
देता है।
सन्दर्भ
- प्रस्तुत काव्यांश पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' (काव्यखण्ड) में संकलित कवि नागार्जुन
की प्रसिद्ध कविता 'बादल
को घिरते देखा है' से
उद्धृत है।
प्रसंग
- कवि ने कस्तूरी मृग को प्रत्यक्ष देखकर काव्य में चली आ रही रूढ़ि का वर्णन किया
है (काव्य रूढ़ि के अनुसार कस्तूरी-मृग की नाभि से निकलने वाली गंध से स्वयं वह
हरिण ही पागल-सा होकर इधर-उधर दौड़ता फिरता है)। कवि कह रहा है
व्याख्या
- कवि कहता है कि हिमालय प्रदेश में सैकड़ों और हजारों फीट की ऊँचाई पर दुर्गम और
बर्फ से ढंकी रहने वाली घाटियाँ हैं। कवि ने इन घाटियों में अपनी नाभि से निकलती
कस्तूरी की गंध से मतवाले होकर (कस्तूरी मृगों को) इधर-उधर भागते देखा है। कस्तूरी
उनकी नाभि में होती है पर दिखाई पड़ने के कारण ये हरिण उसे खोजने में व्याकुल बने
वा हरिण बड़े चचल होते हैं। कस्तूरी को बाहर न खोज पाने पर ये हरिण अपने आप पर ही
खीझते दिखाई दिया करते हैं। ऊपर घिरे हुए बादल इस दृश्य को और भी मोहक बनाए रहते
हैं।
विशेष
:
1. पुराने काव्यों में कवियों ने कस्तूरी
मृग से संबंधित विश्वासों को लेकर रचनाएँ की हैं। कबीर ने कहा है 'कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढ़े वन माँहि।'
2. भाषा-तत्सम प्रधान शब्दावली से युक्त
खड़ीबोली का लाक्षणिक रूप से प्रयोग किया है।
3. प्रकृति का आलंबन रूप में वर्णन किया
गया है।
4. तरल-तरुण और हो-होकर में अनुप्रास
अलंकार है।
5. चित्रात्मक शैली में गेयात्मक
छंद-विधान है।
6. बिंब विधान एवं रूपक की छटा विद्यमान
है।
5. कहाँ
गया धनपति कुबेर वह
कहाँ
गई उसकी वह अलका
नहीं
ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही
गंगाजल का,
ढूँढ़ा
बहुत परंतु लगा क्या
मेघदूत
का पता कहीं पर,
कौन
बताये वह छायामय
बरस
पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने
दो, वह
कवि-कल्पित था,
मैंने
तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी
कैलास शीर्ष पर
महामेघ
को झंझानिल से
गरज-गरज
भिड़ते देखा है।
बादल
को घिरते देखा है।
शब्दार्थ
:
- धनपति =
देवताओं का कोषाध्यक्ष, धन का स्वामी।
- अलका = कुबेर
की नगरी, राजधानी।
- कालिदास =
संस्कृत के महाकवि।
- ठिकाना =
अता-पता, स्थिति।
- व्योम-प्रवाही
= आकाश में बहने वाली।
- मेघदूत =
कालिदास का खण्डकाव्य।
- छायामय =
छाया करने वाला।
- कवि-कल्पित =
कवि की कल्पना से युक्त।
- भीषण =
भयंकर।
- नभचुंबी =
आकाश को छूते।
- शीर्ष =
शिखर।
- महामेघ =
भयंकर काले बादल।
- झंझानिल
(झंझा + अनिल) = आँधी।
- भिड़ते =
टकराते।
संदर्भ
- 'बादल
को घिरते देखा है' कविता
से उद्धृत ये काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' (काव्यखण्ड) के 'नागार्जुन' पाठ से संकलित हैं।
प्रसंग
- कवि पौराणिक कथाओं के पात्र कुबेर और कालिदास के महाकाव्यों, खण्डकाव्यों के नायकों को कैलास
मानसरोवर के आस-पास खोजकर इन मान्यताओं को झूठा सिद्ध करते हुए कह रहा है कि
व्याख्या
- पुराण कथाओं में वर्णित स्वर्ग, कुबेर, उसकी
राजधानी अलकापुरी कालिदास द्वारा वर्णित आकाश में प्रवाहित होने वाली गंगा की धारा
का वर्णन मिलता है। किन्तु उसे न तो वहाँ धनपति कुबेर मिले, न स्वर्ग और न ही उनकी अलकापुरी का
अता-पता चला। कालिदास कवि द्वारा रचित मेघदूत नामक खण्डकाव्य के नायक उस यक्ष का
पता नहीं लगा जिसने मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रिया के पास भेजा था। अभिज्ञान
शाकुन्तलम् में वर्णित उस आकाशगामिनी, आकाश गंगा का भी पता न चला। हो सकता है
वह बादल हिमालय पर यहीं कहीं बरस पड़ा होगा। इन सब पौराणिक कथाओं के आधार पर रचे
गये काव्य भी कवि कालिदास की कल्पना से ही जन्मे होंगे। कवि कहता है कि भयंकर शीत
ऋतु में आकाश को छूने वाली हिमालय की चोटियों पर भयंकर आँधी और विशालकाय काले-काले
मेघों को आपस में टकराते हुए देखा है।
विशेष
:
1. कवि ने पौराणिक और कालिदास के काव्य
ग्रंथों में वर्णित उपर्युक्त बातों को कवि की कल्पना माना है
2. और यथार्थवादी दृष्टि से हिमालय का
सौन्दर्य अवलोकन करने की प्रेरणा दी है।
3. भाषा संस्कृतनिष्ठ सरल, सहज खड़ीबोली।
4. भाषा का मुहावरेदार लाक्षणिक प्रयोग
है।
5. गीत शैली और गेयात्मक छन्द।
6. प्रकृति का आलंबन रूप में तथा प्रकृति
की भीषणता का वर्णन सुन्दर है।
6. शत-शत
निर्झर-निर्झरणी-कल
मुखरित
देवदारु कानन में
शोणित
धवल भोज पत्रों से
छाई
हुई कुटी के भीतर
रंग-बिरंगे
और सुगंधित
फूलों
से कुंतल को साजे,
इन्द्रनील
की माला डाले
शंख-सरीखे
सुघढ़ गलों में
कानों
में कुवलय लटकाए
शतदल
लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित
मणि-खचित कलामय
पान-पात्र
द्राक्षासव पूरित
रखे
सामने अपने-अपने
लोहित
चंदन की त्रिपदी पर
नरम
निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों
पर पलथी मारे,
मदिरारुण
आँखों वाले उन
उन्मद
किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल
मनोरम अँगुलियों को
वंशी
पर फिरते देखा है।
बादल
को घिरते देखा है।
शब्दार्थ
:
- निर्झर =
झरना।
- कल = झरनों व
जल-धाराओं की कल-कल ध्वनि।
- देवदारु =
हिमालय पर पाया जाने वाला वृक्ष।
- कानन = वन।
- शोणित = लाल।
- धवल = श्वेत।
- भोजपत्र =
हिमालय में उगने वाले एक वृक्ष के पत्ते।
- कुटी =
झोंपड़ी।
- कुन्तल =
केश।
- इन्द्रनील =
नीलम रत्न।
- कुवलय = नील
कमल।
- शतदल = कमल।
- रजत-रचित =
चाँदी से निर्मित।
- मणि-खचित =
नग जड़ा।
- पान-पात्र =
पीने के गिलास आदि।
- द्राक्षासव =
अंगूर की शराब, मदिरा।
- लोहित = लाल।
- त्रिपदी =
तिपाही।
- निदाग =
स्वच्छ।
- मदिरारुण =
मदिरा से लाल रंग की।
- उन्मद =
मतवाले।
- मृदुल =
कोमल।
संदर्भ
- प्रस्तुत पद्यांश पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा' के काव्यखण्ड के कवि नागार्जुन की
प्रसिद्ध रचना 'बादल
को घिरते देखा है' से
अवतरित है।
प्रसंग
- कवि हिमालय पर्वत श्रृंखला में बनी भोजपत्र की कुटिया में निवास करने वाले
किन्नर-किन्नरियों की वैभवशाली जीवनचर्या का वर्णन करते हुए कह रहा है कि
व्याख्या
- हिमालय पर्वत की ऊँचाइयों पर लगे देवदारु वनों में सैकड़ों छोटे-बड़े झरने बह
रहे हैं। उनकी प्रवाहपूर्ण धाराएँ कल-कल निनाद करती हुई बहती हुई मन को मोहित कर
लेती हैं। किन्नर जाति की सुन्दर बस्तियों में भोज-पत्रों से छायी हुई झोंपड़ियों
में युवक-युवतियाँ रह रहे हैं। उनके सुन्दर अंगों पर अनेक रंगों की सुगन्धित फूलों
से बनाई गयी मालाएँ सुशोभित हैं। उन्होंने फूलों से ही अपनी केश-सज्जा की हुई है।
कानों में नीलकमलों के कुण्डल धारण कर रखे हैं। उन्होंने अपनी सुगठित वेणियों में
लाल कमल सजाए हुए हैं।
उन
गाँवों के साधारण निवासियों में भी मदिरा-पान करने की परंपरा है। अतः वे लाल-चन्दन
से निर्मित तिपाहियों पर मदिरा परिपूरित पान-पात्र सजाये हुए हैं, जो रत्नजटित चाँदी से निर्मित हैं तथा
कलापूर्ण सुरुचिपूर्ण हैं। वे किन्नर-किन्नरियाँ ऐसी मृगछालाओं पर पालथी मारकर
बैठे हैं जोकि छोटे-छोटे कस्तूरी मृगों से . प्राप्त की गई हैं। मदिरापान से उनकी
आँखों में लाल-लाल डोरे पड़ गये हैं। मदिरा के नशे में मदमस्त किन्नर-किन्नरियाँ
अपनी कोमल गलियों से वंशी की मधर-ध्वनि छेड देती हैं। वह दश्य अत्यधिक आकर्षक एवं
मनोहारी होता है।
विशेष
:
1. हिमालय की प्राकृतिक छटा के साथ-साथ
कवि वहाँ पर बसे लोगों की जीवन-चर्या का श्रृंगारयुक्त मनोहारी चित्रण कर रहे हैं।
मदिरापान का दृश्य उस भयंकर शीत में बर्फ में रहने वाले लोगों की परंपरागत
जीवन-शैली का अंग है। अत: कवि ने उसका सहज वर्णन किया है।
2. संयोग श्रृंगार का वर्णन है।
3. तत्सम शब्द प्रधान खड़ी बोली का प्रयोग
हुआ है।
4. शब्द-चयन में ध्वन्यात्मकता का ध्यान
रखा गया है।
5. गेयात्मक छन्द, चित्रात्मक शैली।
6. अनुप्रास एवं उपमा अलंकार।
7. माधुर्य-गुण। शंख-सरीखे में उपमा तथा
शत-शत में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
Questions and Answers
प्रश्न
1.इस
(बादल को घिरते देखा है) कविता में बादलों के सौन्दर्य चित्रण के अतिरिक्त और किन
दृश्यों का चित्रण किया गया है ?
उत्तर :
कवि नागार्जुन
प्रगतिशील काव्यधारा के कवि हैं। उन्होंने अपनी कविता 'बादल को घिरते देखा है' के माध्यम से हिमालय पर्वत का
समग्र रूप से वर्णन करने का प्रयास किया है। बादलों के साथ कवि ने हिमालय की
मानसरोवर झील में खिले सुनहरे कमल, छोटी-बड़ी कई झीलों में अपने
भोजन की तलाश करते तैरते हुए हंसों का, बसंत ऋतु में हिमालय का
सौन्दर्य और चकवा-चकवी पक्षियों की प्रेमभरी छेड़-छाड़, कस्तूरी मृग, बर्फीली चोटियों पर आँधी-तूफान
और भयंकर वर्षा के साथ-साथ वहाँ के जन-जीवन का चित्रण करते हुए भोजपत्रों की छाई
हुई कुटिया में बैठे किन्नर-किन्नरियों का मदिरापान, श्रृंगार एवं वंशी-वादन आदि का
जीवंत चित्रण किया है। इसके साथ ही संस्कृत-साहित्य में वर्णित पौराणिक कथाओं को
यथार्थवादी ढंग से नकारकर हिमालय का यथातथ्य वर्णन किया है, जो प्राकृतिक सौन्दर्य संपदा से
परिपूर्ण है।
प्रश्न 2.प्रणय-कलह
से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :कवि ने
हिमालय स्थित प्रसिद्ध मानसरोवर के किनारे अरुणोदय काल में हरी शैवाल पर
भागते-दौड़ते एक-दूसरे का पीछा करते चकवा और चकवी पक्षी को देखकर उस दृश्य को
सार्थकता प्रदान करते हुए एक काव्य रूढ़ि का ही पोषण किया है। रूढ़ि के अनुसार
चकवा और चकवी पक्षी रात्रि में एक-दूसरे से अलग-अलग रहते हैं तथा प्रभातकाल में ही
मिलते हैं। ऐसा उन्हें शाप लगा हुआ है। कवि ने प्रभातकाल में उनकी प्रेम क्रीड़ा
को प्रणय-कलह कहकर चित्रित किया है। वास्तव में लम्बी रात्रिभर के वियोग के
पश्चात् मिलने पर एक-दूसरे से प्रेम भरी छेड़-छाड़ करके वे भी अपना प्रेम-निवेदन
करते हैं। कवि ने इसी आशय से प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
प्रश्न3. कस्तूरी मृग के अपने पर ही
चिढ़ने के क्या कारण हैं ?
उत्तर :हिमालय
पर्वत की हरी-भरी उपत्यकाओं में कस्तूरी धारण करने वाले काले हिरण पाये जाते हैं।
जब उनकी नाभि में कस्तूरी का उदय होता है तो उसके शरीर से उठने वाली कस्तूरी की
गन्ध सारे वन-प्रान्त को सुवासित कर देती है। मृग स्वयं उस गन्ध से उन्मत्त हो
जाता है। लेकिन उसे यह ज्ञात नहीं होता कि यह गन्ध उसके शरीर से ही आ रही है। अतः
वह पागलों की भाँति इधर-उधर दौड़ लगाकर घास-फूस, पेड़-पौधे और पर्वत-चट्टानों को
सूंघ-सूंघकर उस गंध का स्रोत ज्ञात करना चाहता है। पता नहीं लगने पर वह स्वयं अपने
आपसे चिढ़ने लग जाता है। कवि ने इस दृश्य को शब्दों में बाँधा
प्रश्न 4. बादलों का वर्णन करते हुए कवि
को कालिदास की याद क्यों आती है ?
उत्तर :संस्कृत के
विद्वान् होने के कारण कवि नागार्जुन ने कालिदास के काव्य का गहन अध्ययन किया है।
कालिदास ने अपने कई काव्यों और नाटकों में हिमालय का सुन्दर वर्णन किया है। उनके
प्रसिद्ध महाकाव्य रघुवंश और कुमारसंभव में हिमालय का वर्णन है। खण्डकाव्य मेघदूत
तो पूरी तरह बादलों का ही काव्य है। मेघदूत का नायक यक्ष अलकापुरी का निवासी था, जिसे अलका के स्वामी कुबेर का
शाप लगा था। रामगिरि पर विरह काल गुजारते हुए वह अपनी प्रिय के पास 'मेघ' को दूत बनाकर भेजता है।
इसके अतिरिक्त उनके
प्रसिद्ध नाटक 'अभिज्ञान
शाकुन्तलम्' के
अन्तिम सर्ग में राजा दुष्यन्त स्वर्ग के राजा इन्द्र के निमन्त्रण पर स्वर्ग जाते
हैं। लौटते समय इन्द्र का सारथि मातलि दुष्यन्त को आकाश-गंगा के पास से अपना रथ
गुजरने का वर्णन करता है। अतः कवि ने कालिदास एवं अन्य संस्कृत कवियों द्वारा
हिमालय स्थित स्वर्ग, अलका
और कैलास पर शिव के निवास आदि की पौराणिक मान्यताओं का खण्डन किया है, इसलिये कवि ने बादलों के वर्णन
के साथ ही कालिदास को याद किया है। प्रगतिशील कवि रूढ़ियों पर विश्वास नहीं करते; कवि नागार्जुन ने इस काव्य के
माध्यम से यह प्रमाणित किया है।
प्रश्न 5. कवि ने 'महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज़
भिड़ते देखा है क्यों कहा है ?
उत्तर :कवि
नागार्जुन यात्री के रूप में कैलास- मानसरोवर की यात्रा करते हैं। भयंकर शीत ऋतु
में हिमालय पर बर्फीले तूफान आते हैं। इन तूफानों में कई बार पर्वतारोही दल लापता
हो गये हैं। बर्फ में दबी हुई उनकी मृत-देह वर्षों बाद बर्फ में दबी हुई मिल जाती
हैं। कवि ने इन बर्फीले तूफानों का बड़ा ही रोमांचक अनुभव स्वयं किया है और कविता
में भी वर्णित किया है। अतः मेघदूत की मिथ्या धारणा को तोड़ते हुए- उन्होंने कैलास
पर्वत पर आये भयंकर तूफान का यथातथ्य वर्णन करते हुए बताया है कि उन्होंने भयंकर
बादलों की गर्जना और भयंकर आँधी को आपस में टकराते हुए देखा है और उससे जो भयकारी
वातावरण निर्मित हुआ है उसका भी वास्तविक चित्रण किया है।
प्रश्न 6.'बादल को घिरते देखा है' पंक्ति को बार-बार दोहराये जाने
से कविता में क्या सौन्दर्य आया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :कवि
नागार्जुन ने हर विधा में काव्य-रचना की है। शास्त्रीय छन्दों के साथ-साथ अपने
मुक्त छन्द तथा स्वयं के गढ़े छन्दों के अतिरिक्त उन्होंने गीत भी लिखे हैं।
गीत-रचना की परंपरागत शैली में हर 'बंद' के पश्चात् उस स्थायी पंक्ति को
बार-बार दोहराया जाता है कि जिसे 'टेक' भी कहते हैं, जो इस अंतरा को अपने बंधन में
बाँध देती है, यही
गीत का सौन्दर्य है। अतः कवि ने गीत-रचना प्रक्रिया की परंपरा का पालन करते हुए इस
गीत के छः बंदों के अंत में इस पंक्ति को दोहराया है।
दूसरे यह पंक्ति एक विशेष अर्थ में भी लिखी गई है। अपनी कैलास मानसरोवर की यात्रा
को अविस्मरणीय बनाने के लिए उन्होंने हिमालय के वातावरण के हर पहलू का आकर्षक एवं
प्राकृतिक दृश्यों का नैसर्गिक, सहज एवं यथातथ्य वर्णन किया है। अतः छः बंदों में
अलग-अलग दृश्य एवं घटनाएँ वर्णित हैं। हर दृश्य के बाद 'बादल को घिरते देखा है' को दोहराकर कवि पाठकों का ध्यान
अपने कथन पर केन्द्रित रखना चाहता है, इसलिये भी उन्होंने इस पंक्ति
का कई बार वर्णन किया है।
प्रश्न 7.निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए
-
(क) निशा काल से
चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई
का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के
तीरे
शैवालों की हरी दरी
पर
प्रणय-कलह छिड़ते
देखा है।
अलख नाभि से उठने
वाले।
निज के ही उन्मादक
परिमल
के पीछे धावित
हो-होकर
तरल-तरुण कस्तूरी
मृग को
अपने पर चिढ़ते
देखा है।
उत्तर :
(क) आशय-कवि ने
कैलास-मानसरोवर के आस-पास के शिखरों पर पड़ने वाली अरुणोदय की सुनहरी किरणों के
साथ ही उस प्रभातकाल में अनेक पक्षियों की चहचहाहट के साथ ही चकवा-चकई की
मधुर-ध्वनि को सुना। उन्होंने उस काव्य-रूढ़ि का स्मरण किया, जिसके अनुसार चकवा-चकई को शाप
लगा हुआ है कि वे रात्रि काल में एक-दूसरे से दूर होकर ही रहेंगे, प्रभात में ही मिल सकेंगे। इस
विवशता का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि प्रभात होते ही उसकी करुण पुकारें
समाप्त हो गयी हैं और अब वे दोनों मिलन की इस मोहक वेला में एक-दूसरे को प्रेमभरी
छेड़-छाड़ करके आनन्द-विभोर कर रहे हैं।
(ख)
आशय हिमालय पर्वत पर कस्तूरी मृग भी पाये जाते हैं। जब उनकी नाभि में कस्तूरी का
प्रादुर्भाव होता है तो आस-पास सम्पूर्ण वातावरण उसकी मादक गन्ध से भर जाता है। वह
मृग भी उस गन्ध को ग्रहण करके पागल हो जाता है। उसकी खोज में वह वन के घास-फूस, पत्थरों आदि को सूंघता फिरता
है। न मिलने पर इधर-उधर दौड़ लगाता है। वह चंचल हिरण इस घटना से इतना खीज उठता है
कि वह अपने आप पर ही चिढ़ता हुआ सा दिखाई देता है। कवि ने इसी घटना को बिंब-बिधान के
साथ आकर्षक बना दिया है।
प्रश्न 8. संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए -
(क) छोटे-छोटे मोती
जैसे .............. कमलों पर गिरते देखा है।
(ख) समतल देशों से
आ-आकर ............... हंसों को तिरते देखा है।
(ग) ऋतु वसंत का
सुप्रभात था ............... अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे।
(घ) ढूँढ़ा बहुत
परंतु लगा क्या ................. जाने दो, वह कवि-कल्पित था।
उत्तर :
इन चारों की
व्याख्या के लिये व्याख्या खण्ड देखें।
योग्यता विस्तार -
1. अन्य कवियों की ऋतु सम्बन्धी
कविताओं का संग्रह कीजिए।
2. कालिदास के मेघदूत
का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कीजिए।
3. बादल से सम्बन्धित
अन्य कवियों की कविताएँ याद कर अपनी कक्षा में सुनाइये।
4. एन.सी.ई.आर.टी. में
कई साहित्यकारों, कवियों
पर फिल्में तैयार की हैं। नागार्जुन पर भी फिल्म बनी है, उसे देखिए और चर्चा कीजिए।
उत्तर :स्वयं करें।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1. कवि ने बादल की नन्ही बूंदों को
गिरते देखा है -
(क) मानसरोवर के जल
पर
(ख) पर्वत शिखरों पर
(ग) तट छाई हरी
शैवाल पर
(घ) सुनहले कमलों पर
उत्तर :(घ) सुनहले कमलों पर
प्रश्न 2. कवि नागार्जुन ने हरी घास पर
प्रणय कलह करते देखा -
(क) हंसों और हंसिनियों
को
(ख)
किन्नर-किन्नरियों को
(ग) चकवा-चकवियों को
(घ) चकोर-चकोरियों
को
उत्तर :(ग) चकवा-चकवियों को
प्रश्न 3. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में उल्लेख है, कालिदास के ग्रन्थ -
(क) 'कुमार संभवम्' का
(ख) 'मेघदूतम्' का
(ग) अभिज्ञान
शाकुंतलम् का
(घ) ऋतु संहार का
उत्तर :(ख) 'मेघदूतम्' का
प्रश्न 4. कवि ने कस्तूरी मृग को भागते
देखा है -
(क) अपनी छाया के
पीछे
(ख) हरिणी के पीछे
(ग) कस्तूरी की मादक
गंध के पीछे
(घ) किन्नरों के
पीछे
उत्तर :(ग) कस्तूरी की मादक गंध के पीछे
प्रश्न 5. कवि नागार्जुन ने किन्नर-किन्नरियों को देखा है -
(क) मानसरोवर के तट
पर
(ख) देवदारू वृक्षों
के नीचे
(ग) भोजपत्रों से
छाई हुई कुटियों में
(घ) घाटियों में
विचरण करते हुए
उत्तर : (ग) भोजपत्रों से छाई हुई
कुटियों में
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में किन्नर-किन्नरियों के
रहन-सहन का जो वर्णन किया है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :देवदारु के
वृक्षों के नीचे लाल और सफेद भोजपत्रों से निर्मित कुटियाँ हैं जिनमें किन्नर और
किन्नरियों के परिवार रहते हैं। किन्नरियाँ रंग-बिरंगे सुगन्धित पुष्पों से अपने
केशों को सुसज्जित करती हैं। उन्होंने शंख के समान गलों में नील मणियों (नीलम) के
हार पहन रखे हैं। कानों में नीलकमल के कुण्डलं धारण कर रखे हैं। उन्होंने अपनी
सुगठित वेणियों में लाल कमल सजाए हुए हैं। वे लाल चन्दन से निर्मित तिपाहियों पर
रत्नजड़ित चाँदी से निर्मित पान-पात्रों से मदिरापान करते हैं।
प्रश्न 2. कवि ने झीलों और उनके आस-पास के
वातावरण का चित्रात्मक वर्णन किया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : हिमाच्छादित हिमालय के
गगनचुम्बी शिखरों के बीच में छोटी-बड़ी कई झीलें हैं जिनमें एक सुप्रसिद्ध झील है
जिसे मानसरोवर कहते हैं। इस मानसरोवर झील में स्वर्णिम रंग के कमल खिले हए हैं जिन
पर : झीलों के श्यामल नीले पानी में हंस क्रीड़ा करते हैं और कमलों की नाल से अपना
भोजन प्राप्त करते हैं। इनके किनारों पर हरे रंग की शैवाल पर रात के विछोह का दुख भूलकर
चकवा-चकई प्रणय-कलह करते हैं।
प्रश्न 3. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में नागार्जुन ने बादल के
कोमल और कठोर दोनों रूपों का वर्णन किया है। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :नागार्जुन
की यह कविता प्रकृति वर्णन पर आधारित है। कवि बादलों को घिरने को देखकर प्रभावित
हो गया है, तभी
उन्हें बार-बार याद करता है। पावस में बादल आकाश में छा जाते हैं। उनसे छोटी-छोटी
बूंदें गिरती हैं जो कमल दलों को ढक लेती है। यह बादलों का मनोहारी चित्रण है। कवि
ने कैलाश मानसरोवर की यात्रा की है। वहाँ नागार्जुन को कालिदास के मेघदूत की
स्मृति होती है। यहाँ कवि ने बादलों के समूह को पर्वत की चोटियों से टकराते और
घनघोर गर्जना करते हैं। यह प्रकृति का कठोर स्वरूप है। इस तरह कवि ने बादलों के
दोनों रूपों को चित्रित किया है।
प्रश्न 4. “कवि नागार्जुन ने बसंत ऋतु के
सुप्रभात का मनोहारी चित्रण किया है।" अपने शब्दों में इस कथन की पुष्टि
कीजिए।
उत्तर : नागार्जुन कवि का प्रकृति प्रेम
सर्वविदित है। उन्होंने बसंत ऋतु में हिमालय के सुन्दर दृश्यों को अपने प्रकृति
चित्रण की सुन्दर माला में गूंथा है। वे कहते हैं कि बसंत ऋतु के प्रभात काल में
मंद-मंद पवन बह रहा है। सूर्य का लाल-लाल गोला चारों ओर अपनी लालिमा बिखेर रहा है।
उसकी सुनहली किरणों ने हिमालय की बर्फ से ढकी श्वेत चोटियों को स्वर्ण-आभा से रँग
दिया है। ऐसा लग रहा है जैसे सम्पूर्ण हिमालय सुमेरु पर्वत बन गया है। इस वसंती
प्रभात में रातभर के बिछुड़े चकवा-चकई झील के तट पर प्रेम-क्रीड़ा कर रहे हैं।
प्रश्न 5. कवि ने हिमालय की उपत्यकाओं में
बसे गाँवों की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया है। अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर : हिमालय की बर्फीली घाटियों में
भी जन-जीवन है। उस भयंकर शीतल-वातावरण में भी लोग अपना जीवनयापन कर रहे हैं। कवि
नागार्जुन इस दृश्य का आँखों देखा हाल अपनी इस कविता में व्यक्त कर रहे हैं। वहाँ
के हिमालय पर देवदारु नामक वृक्ष बहुतायत से मिलता है। वहाँ के निवासी देवदारु के
वनों के बीच ही अपना आवास बनाते हैं। उनके गाँव निरन्तर बहने वाले झरनों के किनारे
पर बसे हुए हैं। हिमालय में भोजपत्र नाम का विशाल वृक्ष भी बड़ी संख्या में मिलता
है। भोजपत्र के विशाल वृक्ष के पत्तों का प्रयोग करके कुटियाँ बनायी जाती हैं।
यहाँ के निवासी किन्नर जनजाति के लोग विलास प्रिय हैं और वैभवपूर्ण जीवनशैली अपनाए
हुए हैं।
प्रश्न 6. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में नागार्जुन ने हंसों, मृगों और चकवा-चकवी को क्या
करते देखा है ?
उत्तर :नागार्जुन
ने कैलाश शिखर पर प्रकृति के सुरम्य रूपों का और वहाँ विचरण करने वाले जीवों का भी
वर्णन किया है। ग्रीष्म काल में समतल देशों की गर्मी से व्याकुल हंस मानसरोवर झील
पर आ जाते हैं। कमल नाल से विसंततु मिलता है जो इनका भोजन है। हिमालय में कस्तूरी
मृग भी विचरण करते हैं। ये मृग कस्तूरी की सुगन्ध की खोज में व्याकुल रहते हैं और
इधर-उधर डोलते हैं। उस सुगन्ध के उद्गम स्थल का पता न लगने के कारण बेचैन रहते
हैं। चकवा-चकई शैवाल पर प्रातः प्रणय-कलह करते हैं। रात के विछोह को भूलकर मिलन का
आनन्द उठाते हैं। कवि ने इनकी क्रियाओं को देखकर उनका यथार्थ वर्णन किया है।
प्रश्न 7. कवि नागार्जुन की भाषा में विविधता
मिलती है, कारण
बताओ?
उत्तर : कवि के जन्म स्थान की भाषा 'मैथिली' है अतः आपकी भाषा पर मैथिली का
प्रभाव होना स्वाभाविक है। लेकिन कवि नागार्जुन फक्कड़ और घुमक्कड़ स्वभाव के थे।
आपने भारत के कोने-कोने की यात्रा की है। यहाँ तक कि आपने 'यात्री' उपनाम से रचनाएँ भी लिखी हैं।
लेकिन भारत से बाहर श्रीलंका, तिब्बत नया रूस आदि की यात्रा करने के कारण तथा बौद्ध
धर्म स्वीकार करके बौद्ध भिक्षु के रूप में भ्रमण करने के कारण आपकी भाषा में
विविधता मिलती है। कवि नागार्जुन अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इस कारण भी भाषा में
विविधता आना स्वाभाविक है।
प्रश्न 8. "कवि नागार्जुन की कविताओं में
कल्पना की ऊँची उड़ान के स्थान पर यथार्थ का चित्रण हुआ है।" उपर्युक्त कथन
की समीक्षा अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :कवि
नागार्जुन का जीवन एक छोटे से ग्राम के एक साधारण कृषक परिवार के परिवेश से
प्रारम्भ हुआ है। आपके कृषि व्यवस्था से गहरे सम्बन्ध होने के कारण ही आप किसान और
मजदूर के वास्तविक अभावपूर्ण जीवन एवं गरीबी से भली-भाँति परिचित थे। अतः आपकी
कविता में कल्पना की हवाई उड़ान की जगह जीवन की ठोस वास्तविकता को स्थान मिला हैं।
इसे कवि का यथार्थवादी दृष्टिकोण भी कह सकते हैं। इसी दृष्टिकोण के कारण आपकी
कविता कल्पना के स्थान पर ठोस यथार्थ पर आधारित है।
प्रश्न 9. कवि नागार्जुन की कविता में
व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया गया है। बादल को घिरते देखा है' कविता की शैली पर अपने विचार
व्यक्त कीजिए।
उत्तर :'बादल को घिरते देखा है' कविता व्यंग्य प्रधान शैली में
लिखी गई है। 'शीतल
तुहिन कणों का मानसरोवर के स्वर्णिम कमलों पर गिरना' 'तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी झीलों का होना' "विसतंतु खोजते हंसों को तिरते देखना' ये सभी दृश्य एक आन्तरिक
व्यंग्य से परिपूर्ण हैं, लेकिन
कालिदास के 'व्योम
प्रवाही गंगाजल', धनपति कुबेर की अलकापुरी, मेघदूत का पता न होना आदि के
द्वारा कवि-कल्पित और यथार्थ से दूर बताकर कवि नागार्जुन, कालिदास आदि कवियों की कल्पना
प्रधान रचनाओं पर मधुर व्यंग्य किया है।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर -
प्रश्न 1. 'बादल को घिरते देखा है' कविता में नागार्जुन ने प्रकृति
के सौन्दर्य का यथार्थ वर्णन किया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :कवि
नागार्जुन ने हिमाच्छादित शिखरों को देखा है, वहाँ की प्रकृति को निहारा है।
उसका आँखों देखा वर्णन अपनी कविता में किया है। हिमालय की ऊँची चोटियों पर देवदारु
के लम्बे-लम्बे वृक्ष लगे हैं जिनके नीचे निर्झर और निर्झरणी कल-कल ध्वनि करती
प्रवाहित हो रही हैं। वृक्षों के नीचे लाल और सफेद रंग के भोजपत्रों से कुटियाँ
बनी हैं। बर्फानी शिखरों के बीच में छोटी-बड़ी झीलें हैं जिनमें एक समान मानसरोवर
झील है।
उसमें रंग-बिरंगे
कमल के फूल खिले हैं, जिनकी
पंखुड़ियों पर ओस के कण चमक रहे हैं। बसन्त ऋतु में प्रातः सूर्योदय की शोभा
दर्शनीय होती है। शीतल, मन्द
और सुगन्धित पवन बहती है, जिससे
वातावरण सुहावना हो जाता है। बर्फीली चोटियों से बादल टकराते हैं, तेज तूफानी हवाएँ चलती हैं।
उमड़ते-घुमड़ते मेघों और तूफानी हवाओं के संघर्षण से घनघोर ध्वनि होती है जो
वातावरण को कँपा देती है। हंस झीलों में किलोल करते हैं और हरी शैवाल पर चकवा-चकई
प्रणय क्रिया करते हैं।
प्रश्न 2.'बादल को घिरते देखा है' कविता में प्रकृति चित्रण
कल्पना-आधारित नहीं यथार्थ पर आधारित है। उदाहरण देकर पुष्टि कीजिए।
उत्तर : कल्पना के आधार पर कमरे में
बैठकर किया गया प्रकृति चित्रण यथार्थ और अनुभूतिजन्य नहीं होता। उसमें वास्तविकता
नहीं होती। नागार्जुन की कविता में हुआ प्रकृति-वर्णन कवि ने प्रत्यक्ष रूप में
देखकर किया है। कवि ने हिमालय का भ्रमण किया है तभी तो उसने अनुभव किया कि बादल
घिरकर शिखरों से कैसे टकराते हैं। शिखरों को कैसे ढक लेते हैं। तूफानी हवाएँ किस
तरह आवाज करती हैं और बादलों से टकराकर वातावरण को कैसे भयानक बना देती हैं।
बसन्त में
प्रात:काल का दृश्य कितना आकर्षक होता है। सूर्य की किरणें वातावरण को सुनहरी बना
देती हैं। शीतल हवा से वातावरण में शीतलता बढ़ जाती है। ओस के कणों से कमल दल ढक
जाते हैं और सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होकर मोती जैसे लगते हैं। मृग कैसे
चौकड़ी भरते हैं, हंसों
का किलोल कितना आकर्षक होता है, चकवा-चकई प्रणय-कलह में व्यस्त रहते हैं। यह. सारा
वर्णन यथार्थ है, कवि
ने इसे प्रत्यक्ष देखा है। यह वर्णन कल्पना के आधार पर नहीं किया गया है।
प्रश्न 3. (बादल को घिरते देखा है) कविता
के भावपक्ष और कलापक्ष पर विचार कीजिए।
उत्तर : भावपक्ष-कवि ने कविता में दो
प्रकार के भाव व्यक्त किये हैं। कविता का मुख्य प्रतिपाद्य तो प्रकृति चित्रण है।
इसलिए प्रकृति के कोमल और कठोर दोनों रूपों का चित्रण किया है। इसके साथ ही हिमालय
की झीलों, उपत्यकाओं, ऋतुओं और बादलों का भी वर्णन
किया है। शिखरों के चारों ओर बादल घुमड़ते हैं, तीव्र तूफानी हवाएँ चलती हैं।
बसन्त का प्रात:काल सबको मोह लेता है। शीतल पवन शरीर को स्पर्श करके कम्पन पैदा कर
देती है। पावस की बूंदों से कमलपत्रों की शोभा बढ़ जाती है। किन्नर- किन्नरियाँ
अपना विलासी जीवन व्यतीत करते हैं।
इसके साथ कवि
पौराणिक प्रसंग को लेकर कालिदास का भी वर्णन करता है। मेघों को दूत बनाकर भेजने की
कथा का भी उल्लेख है। चकवा-चकई के सम्बन्ध में जो लोक-जगत की मान्यता है, उसका भी वर्णन है। इस प्रकार
भाव पक्ष की दष्टि से कविता सबल है। कलापक्ष भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए
कलात्मक अभिव्यक्ति भी आवश्यक है।
कविता का कलापक्ष
भी सुन्दर है। गीत शैली की कविता है। इस कारण एक ही पंक्ति की पुनरावृत्ति करके
भावों के प्रभाव को बढ़ाया गया है। बिम्ब योजना बहुत सुन्दर है। भाषा प्रसाद गुण
युक्त है। अनुप्रास, उपमा, रूपक और पुनरुक्ति प्रकाश
अलंकारों का प्रयोग किया है। निर्झर-निर्झर सी, नरम निदाग में अनुप्रास अलंकार
है। 'शंख-सरीखे
सुघड़ गलों में' उपमा
अलंकार है। अतः दोनों दृष्टियों से कविता श्रेष्ठ है।
प्रश्न 4. 'बादल को घिरते देखा है' कविता की भाषा जीवन्त भाषा है।
कविता से उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
उत्तर : प्रस्तुत कविता की भाषा बड़ी
जीवन्त है। कवि ने तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया है। बूंदों के स्थान पर तुहिन
कणों का, हंसों
का तिरना, प्रणय-कलह, बालों के लिए कुंतल, कुण्डलों के लिए कुवलय आदि
तत्सम शब्दों का प्रयोग मिलता है। प्रकृति के चित्रण में कल्पना नहीं है इसलिए
भाषा प्रयोग में भी सहजता है। समासयुक्त शब्दों का प्रयोग है लेकिन समास जटिल नहीं
हैं। जैसे - बालारुण, प्रणय-कलह, अगल-बगल आदि।
दैनिक बोलचाल के
शब्दों के प्रयोग से भाषा में सौन्दर्य आ गया है। ये शब्द भी व्यावहारिक हैं, जैसे - पलथी, उमस, ठिकाना, सुघड़ आदि। यत्र-तत्र मुहावरों
का प्रयोग भी हुआ है। भाषा में प्रसाद गुण है। भाषा में चित्रोपमता है। अलंकारों
का भी सहजता से प्रयोग हुआ है। अनुप्रास अलंकार अधिक है। उपमा और उदाहरण भी मिल
जाते हैं। इस प्रकार कविता की भाषा को जीवन्त भाषा ही कहा जाएगा।
प्रश्न 5. निम्न पंक्तियों का
काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
एक दूसरे से विरहित
हो
अलग-अलग रहकर ही
जिनको
सारी रात बितानी
होती,
निशा काल से
चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के
तीरे
शैवालों की हरी दरी
पर
प्रणय-कलय छिड़ते
देखा है।
उत्तर : भाव-सौन्दर्य - इस अंश में
विरही चकवा-चकई का वर्णन है। ऐसी मान्यता है कि ये जोड़ा रात्रिकाल में बिछुड़
जाता है और दिन में मिलता है। प्रातः हो गया है, जो चकवा-चकवी रात में अलग हो गए
थे और वियोग के क क्रन्दन कर रहे थे, जिनकी चीत्कार की ध्वनि घने
अंधकार में व्याप्त हो गई थी, वह शान्त हो गई। वे नदियों के किनारे पर फैले हरे रंग
की शैवाल पर प्रेम कलह कर रहे हैं। आपस में मिलकर आनन्दित हो रहे हैं। संयोग श्रृंगार
का वर्णन है।
कला पक्ष - भाषा
सरल है। प्रसाद गुण के कारण भाव बोधगम्य हैं। विरहित, अभिशापित, शैवाल जैसे तत्सम शब्दों का
प्रयोग किया है। बिम्ब योजना सुन्दर है। संयोग में पक्षियों को भी आनन्दानुभूति
होती है, इसका
स्वाभाविक वर्णन है। आलंकारिक सौन्दर्य भी है।
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