लोक डाउन में इस
तरह हम खुशियां ढूंढ लेते हैं।
कभी ऊपर घूम लेते हैं ,कभी
नीचे घूम लेते हैं,
दिनभर करते रोमांस ,प्रियतम संग
झूम लेते हैं।
लोक डाउन में इस तरह हम खुशियां ढूंढ लेते हैं।
कभी सब्जी काट लेते हैं, कभी
आटा गुंध लेते हैं,
कभी मालिश करते हैं ,कभी उनकी
चोटी गुंथ लेते है।
लोक डाउन में इस तरह हम खुशियां ढूंढ लेते हैं।
कभी उनको मनाते हैं ,कभी उनसे
रूठ लेते हैं ,
कोरोना पर आता गुस्सा
,तो कपड़े कूट लेते है।
लोक डाउन में इस तरह हम खुशियां ढूंढ लेते हैं।
कभी टीवी में झांक लेते हैं ,कभी में झाँक
लेते हैं,
वायरस के डर से दिन भर, चेहरा
हम ढाँक लेते हैं।
लोक डाउन में इस तरह हम खुशियां ढूंढ लेते हैं।
कभी करवट बदलते हैं ,कभी
जबरदस्ती ऊंघ लेते हैं,
बार-बार आती रहती, किचन की
खुशबू सूंघ लेते हैं।
लोक डाउन में इस तरह हम खुशियां ढूंढ लेते हैं।
कभी शुगर बताती ,कभी बीपी, न
देती तो कुढ लेते हैं,
जब खीझ आती है तो ,खुद अपना
सर मूंड लेते हैं।
लोक डाउन में इस तरह हम खुशियां ढूंढ लेते हैं।
कुमार @ महेश ∞ 28-03-020)
लालसोट, राजस्थान
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