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कभी गांव से शहर,कभी शहर से गांव, पलायन है,
दम तोड़ती सांसे ,पर मिटती नहीं गरीबी-डायन है ।
होश संभाला जब से देखा, पेट में अग्नि रेखा
है ,
इस अग्नि की ख़ातिर तन,धूप-छाँव में सेका है।
पर तकदीर में लिखी मिटे ना,बीपीएल की लाईन हैं।
दम तोड़ती सांसे ,पर मिटती नहीं गरीबी-डायन है ।
ख्वाब अधूरे पूरे हो,सुनहरे भविष्य की अभिलाषा हैं,
छिनी उमंगे सारी अब तो, रोटी का खेल तमाशा
है।
उडी अभावों की गर्द जीवन में , दर्द का ही गायन
है।
दम तोड़ती सांसे ,पर मिटती नहीं गरीबी-डायन है ।
न गांव में चैन था, ना शहर में सकून से
बसर है ,
अनजानी सी डगर है ,यह कैसा जीवन सफर है?
कभी लगे कुरुक्षेत्र सा-युद्ध जीवन ,कभी तराइन है।
दम तोड़ती सांसे ,पर मिटती नहीं गरीबी-डायन है ।
राजपथ में सजी रंगोली,बदरंग हमारी तस्वीर हैं,
सोये-खोये से है पहरेदार, मन में हमारे पीर
हैं।
भाषण ही राशन है, अंधेरे-बहरो का
शासन हैं।
दम तोड़ती सांसे ,पर मिटती नहीं गरीबी-डायन है ।
गर्दिश में यदि सितारा हैं,कौन, किसका सहारा है?
वक्त ने जब भी ललकारा है, हर शख्स हारा है।
आदमी वक्त का हस्ताक्षर है, वक्त का ही साइन
है।
दम तोड़ती सांसे ,पर मिटती नहीं गरीबी-डायन है ।
कुमार महेश
व्यथित मन का सृजन
29/03/2020
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