उम्मीदों के दीए जलाए....
सृष्टि पर संकट है घना, जीवन पर बन काल तना ।
अंधियारे में छिपे सितारे ,मुश्किल में है हरेक जना।
कोरोना के इस भस्मासुर को ,मिलकर मार भगाए।
दूर अंधेरा मन का करके ,आशाओं के दीए जलाएं।
बेबस हम सब इसके आगे,सारा जग सूना सूना लागे ।
बनकर सब लाचार से बैठे,घर-घर में कैदी बने अभागे।
खत्म हो तन्हाई का आलम,फिर से हो रंगीन फिजाएं।
दूर अंधेरा मन का करके, विश्वासों के दीए जलाएं ।
मेलजोल के रिवाज बदले ,घूमने के मिजाज बदले।
समर यह भी जीतेंगे ,गर हम अपनी परवाज भी बदले।
घर में ही रहकर कुछ दिन ,जन्म चक्र इसका ढहाऐ।
दूर अंधेरा मन का करके, उल्लासो के दीप जलाएं ।
हर पहलू पर हो दूर दृष्टि ,संतुलित करें प्रकृति-सृष्टि।
तुगलकी न फरमान करे,सोच-समझ कर बयान करें।
हो कर्तव्य हम सबका भी,निष्ठा से हर आदेश अपनाएं।
दूर अंधेरा मन का करके ,सद्भाव के दीए जलाएं।
हर बात को सच के तराजू तोले,झुंठ का जहर न घोले।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ,चापलूसी की भाषा न बोले।
हर मुद्दे में धर्म ना ढूंढे,मजहबी तिलिस्म में न उलझाएं।
दूर अंधेरा मनका करके ,सदाकत के दीए जलाएं।
निर्बलो की मदद उपयुक्त करें,क्षुधा उनकी सुप्त करें ।
नेकी की मशाल लेकर, कर्म इंसानियत से युक्त करें।
रोतो के आंसू यदि हम पूंछे ,हर कोई हमको देगा दुआएं।
दूर अंधेरा मन का करके, दानपुण्य के दिये जलाएं।
स्वार्थवृत्ति अपनी हम त्यागे, मानवता के खातिर जागे।
वसुधैव कुटुंबकम अपनाएं ,नफरत के काटे जाले-धागे।
कंटक बुहारे हर पथ से, इंसानी राहों में पुष्प बिछाऐ।
दूर अंधेरा मन का करके ,संवेदना के दीए जलाएं।
निशा अमावस होती काली, पर फिर आती पूनम उजाली।
मौत भी मात खाती है, गर हो हमारी जिजीविषा निराली ।
दूर करें यह मातमी मंजर, फिर से आओ हम मुस्काए।
दूर अंधेरा मन का करके , उम्मीदों के दीए जलाए।
अंधेरा यह जो खड़ा अदा से ,दूर होगा यह भी प्रभा से।
कृतज्ञ बने हम उस खुदा के, सब होता उसकी कृपा से।
भक्ति में ही शक्ति होती, आओ उसकी महिमा गाए।
दूर अंधेरा मन का करके,भक्ति-भाव के दीए जलाए।
कुमार महेश [05-04-2020])
लालसोट,राजस्थान
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