काला नकाब
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नयन उनके बड़े चंचल ,बड़े लाजवाब है।
बहक रहा हर कोई जैसे ,पी ली शराब है।
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प्रेम के गणित की जैसे, वह तो किताब है।
जोड़-तोड़ आता नहीं ,न आता हिसाब है।
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हसरत है उनकी अब तो उनके ही ख्वाब है।
कातिल निगाहे उनकी ,शौख वो जनाब है।
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नयनों में उनके वफा, दिखती बेहिसाब है।
पर चेहरे पे क्यों उनके, ये काला नकाब है।
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भंवरे हैं मनचले सारे,नियत भी तो खराब है।
मुमकिन वजह यही है , यही तो दबाव है।
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देह के नेह की परिणिति,आजकल तेजाब है।
इस गणित का हल,अब शबाब पर हिजाब है।
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कुमार महेश 31/03/2020
("छपाक" फिल्म से प्रेरित)
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