तख्तो-ताज की ख्वाहिश.........
टेपिंग, सेटिंग और हसरतों की नुमाइश हो रही हैं।
सियासत मे तख्तो-ताज की ख्वाहिश हो रही हैं।।
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बिगडे जब बहुमत का गणित,तभी सधता हैं स्व-हित।
मानमनुहार और तकरार,तो कभी गुजारिश हो रही हैं।।
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अजब हैं कुर्सी की चाहत,करतें हैं अपने ही बगावत।
किसमें कितना दम ,साथ कितने,पैमाइश हो रही है।।
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जनता को हैं सारे कष्ट,होटलों मे मजे लेते बेशर्म,भ्रष्ट।
सत्तासुख की खातिर,करोड़ों की फरमाइश हो रही हैं।।
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कोई कहता हमारा हाथ नहीं,कोई कहता हैं साथ नहीं।
सच आजकल लापता हैं,झूँठ की सिफारिश हो रही हैं।।
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बहुत देखी देश ने जाँच, आई ना नेताओं को आँच।
लोकतंत्र की हत्या,संवैधानिकता मे खलिश हो रही हैं।।
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सच कहना इस दौर मे भारी,मिलती हैं शिकस्त करारी ।
कुमार अभी भी कह रहे हो, कहीं तो गुजांइश हो रही हैं।।
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(व्यथित मन का सृजन)
कुमार महेश 19/07/2020
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