जिदंगी हैं तो मुश्किलें तो होगी ही, समस्याऐ तो होंगी ही, जिदंगी को जिंदादिली से जीना है, तो समस्याओं का सामना तो करना ही होगा।वो मुर्दे ही होते हैं जिनके पास समस्याऐं नहीं होती।मुश्किलों से घबरा कर दुबक जाने का नाम जिदंगी नहीं है।एक बगीचे में एक नन्हा सा फूल था - "घास का फूल" । दीवार की ओट में ईंटों से ढका हुआ । सब तरह से महफूज और सुरक्षित ।तेज तूफान आता ,लेकिन उसका बाल-बाँका नहीं कर पाता। तपता सूरज उसका कुछ बिगाड नहीं पाता। मुसलाधार बारिश भी उसे गिरा नहीं पाती। क्योंकी वो छुपा हुआ था, बडी बडी घास में ईंटों से ढका हुआ। सारी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल थी। उसके पास ही गुलाब के पौधे थे, वह घास का पौधा गुलाब के पौधों को देखकर बहुत खुश होता ।
वह खिलना चाहता था- उन्हीं की तरह .
एक दिन उसने अपने साथी घास फूलों से कहा- मुझे भी खिलना है गुलाब के फूल की तरह, महकना है इन्हीं की तरह I
साथी फूलों ने बहुत समझाया ,कहा - क्यूँ झंझट में पडते हो ? गुलाब का फूल बनना इतना आसान नहीं है। कभी-कभी तो यह खिल भी नहीं पाता, लोग कली ही तोड लेते हैं। बारिश इसकी सारी पंखुडियाँ तक तोड देती है। तूफान इसकी जड तक हिला देता है। तू बहुत सुरक्षित है।जानता है हमारे पूर्वजों ने भी यही गलती की थी।गुलाब का फूल बनने की गलती । पर परिणाम भयंकर हुए।
तू जैसा है, बिल्कूल सही है।
अपनी औकात में रह।
इस पार घास के फूल ने कहा - मैं कभी सूरज से मिल नहीं पाता, बारिश से संघर्ष नहीं कर पाता। तूफानों से लड नहीं पाता।
इस पर उसके साथियों ने कहा - तो अच्छा ही है ना , जरूरत क्या है ? इसकी ....................
हम ईटों की आड में आराम से जीते है। मगर घास का फूल नहीं माना। उसने भगवान की तपस्या की। और भगवान से वरदान माँगा - हे! ईश्वर, मुझे गुलाब का फूल बना दे। और अगले ही दिन वो गुलाब का फूल बन गया। और फिर हुआ उसका संघर्ष...............................
जोर से आंधियाँ चलने लगी , और उसके प्राण का रूआँ-रूआँ तक काँप गया।उसकी जडें उखडने लगी ।जब आंधियाँ रूकी तो सूरज दिखाई देने लगा। और सूरज की तपिश बढने लगी - तो सारे फूल कुम्हलाने लगे।वो गुलाब का फूल भी कुम्लाह गया। अगले ही दिन तेज वर्षा हुई।उस फूल की पखुँडी-पखुँडी आस-पास बिखर गई।उसकी पंखुडियाँ उसकी जाति के घास फूलों के आस पास ही पडी हुई थी। इसकी हालत देखकर घास फूलों को तरस आने लगा। उन्होंने इसे कहा- हमने तो तुझे पहले ही समझाया था। तुने क्यूँ ? इतनी मुसीबतें मौल ली ? कितने आराम से जी रहा था तू । इस पर उस मरते हुए गुलाब ने कहा - मैं आज बहुत खुश हूँ ।मैं तुमसे भी यहीं कहूगाँ -
जिदंगी भर ईंट की आड में छुपे हुए घास के फूल होने से तो अच्छा है की एक दिन के लिए ही सही, पर गुलाब का फूल हो जाना।
आज मैनें अपनी आत्मा को पा लिया। आज मैंनें तूफानों से संघर्ष किया है।सूरज से मुलाकात की है। और बारिश से जुझ लिया है। मैं ऐसे ही नहीं मर रहा हूँ । मैं जी कर मर रहा हूँ। और तुम मरे मरे से जी रहे हो ।
दोस्तो! वो जीना भी क्या जीना ? जिसमें आप जोखिम उठाने से डरते हो। ये सच है, की किश्तियाँ किनारों पर सबसे ज्यादा महफूज होती है। पर किश्तियाँ किनारों पर खडे होने/रहने के लिए नहीं बनाई जाती है।जिदंगी अपने कम्फर्ट-जोन में बैठे रहने का नाम नहीं है। जिंदगी तो हर दिन कुछ नया सीखने का नाम है। हर दिन पिछले दिन से बेहतर करने का नाम है। सात बार गिर कर आठवीं बार उठने का नाम है।
क्या खूब कहा है किसी ने..................
कभी समस्या तो ,कभी समाधान है जिदंगी।
कभी सम्मान तो ,कभी बलिदान है जिदंगी।।
संघर्ष विघ्न जिम्मेदारियाँ, यहीं तो खुबसुरती है, जिदंगी की।
क्यूँकी कभी उच्च शिखर ,तो कभी गहरी ढलान है जिदंगी ।।
कुमार महेश
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