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कक्षा-11 आरोह (गद्य भाग) – स्पीति में बारिश- यात्रा-वृत्तांत (कृष्णनाथ)spiti me baarish yatra vritaant-krishndaas

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कक्षा-11 आरोह (गद्य भाग) स्पीति में बारिश- यात्रा-वृत्तांत (कृष्णनाथ)

लेखक परिचय

जीवन परिचय-

कृष्णनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 1934 ई. में हुआ। इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की। इसके बाद इनका झुकाव समाजवादी आंदोलन और बौद्ध दर्शन की ओर हो गया। बौद्ध दर्शन में इनकी गहरी पैठ है। वे अर्थशास्त्र के विद्वान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफेसर भी रहे। इनका अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं पर अधिकार है। वे दोनों भाषाओं की पत्रकारिता से जुड़े रहे। ये हिंदी की साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संपादक मंडल में कई वर्ष तक रहे। इन्होंने अंग्रेजी के मैनकाइंड का कुछ वर्षों तक संपादन भी किया।

वे राजनीति, पत्रकारिता और अध्यापन की प्रक्रिया से बौद्ध दर्शन की ओर मुड़े। इन्होंने भारतीय व तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर नागार्जुन के दर्शन और वज़यानी परंपरा का अध्यापन किया। इन्होंने भारतीय चिंतक जे. कृष्णमूर्ति के साथ बौद्ध दर्शन पर काम किया। इन्हें लोहिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

रचनाएँ-

इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

लद्दाख में राग-विराग, किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी परिकमा, हिमालय यात्रा. अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली।

इसके अलावा, इन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का संपादन भी किया।

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साहित्यिक परिचय-

कृष्णनाथ उच्चकोटि के रचनाकार थे। इन्होंने सृजन-आकांक्षा की पूर्ति हेतु यायावरी की। एक यायावरी इन्होंने वैचारिक धरातल पर की थी, दूसरी सांसारिक अर्थ में। उन्होंने हिमालय की यात्रा शुरू की तथा बौद्ध धर्म व भारतीय मिथकों से जुड़े स्थलों को खोजना व खैगालना शुरू किया। इन्होंने अपनी इस यात्रा को शब्दों में बाँधा। वे जहाँ की यात्रा करते हैं, वहाँ पर्यटक के साथ तत्ववेत्ता की तरह अध्ययन करते चलते हैं। वे वहाँ की विशेष स्मृतियों को भी उघाड़ते हैं। ये वे स्मृतियाँ होती हैं जो इतिहास के प्रवाह में सिर्फ स्थानीय होकर रह गई हैं, लेकिन जिनका संपूर्ण भारतीय लोकमानस से गहरा रिश्ता रहा है। पहाड़ के किसी छोटे-बड़े शिखर पर दुबककर बैठी वह विस्मृत-सी-स्मृति मानो कृष्णनाथ की प्रतीक्षा कर रही हो।

इनके यात्रा-वृत्तांत स्थान-विशेष से जुड़े होकर भी भाषा, इतिहास, पुराण का संसार समेटे हुए हैं। पाठक उनके साथ खुद यात्रा करने लगता है। जो लोग इन स्थानों की यात्रा कर चुके होते हैं, वे कृष्णनाथ के यात्रा-वृत्तांत को पढ़कर अपनी यात्रा को पूरा मानेंगे।

स्पीति में बारिश (यात्रा-वृत्तांत)

     स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति ज़िले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलंघ्य  भूगोल यहाँ इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल-स्पीति का योग प्राय:वायरलेस सेट' के ज़रिए है जो केलंग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वायरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसंत में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्रायः असंभव है।

प्राचीनकाल में शायद स्पीति भारतीय साम्राज्यों का अनाम अंग रही है। वह साम्राज्य टूटे तो यह स्वतंत्र रही है। फिर मध्य युग में प्रायः लद्दाख मंडल और कश्मीर मंडल, कभी बुशहर मंडल, कभी कुल्लू मंडल, कभी ब्रिटिश भारत के तहत रही है। तब भी प्रायः स्वायत्त रही है। इसकी स्वायत्तता भूगोल ने सिरसी है I भूगोल ही इसकी रक्षा करता है। भूगोल ही इसका संहार भी करता है।

पहले कभी उन राजाओं का कोई हरकारा आता था तो उसके बाद अल्प वसंत बीत जाता था। कभी कोई जोरावर सिंह जैसा आता था तो स्पीति का तरीका वही था जो तुपचिलिंग गोनपा में मैंने देखा। जब डाइनामाइट का विस्फोट हुआ  तो  लाहली हदस कर, आँख बंदकर, चाँग्मा का तना पकड़ या एक-दूसरे को पकडकर बैठ गए। जब धमाका गुज़र गया तो फिर डरते-डरते आँख खोल कर उठे। जोरावर सिंह के आक्रमण के समय स्पीति के लोग घर छोड़कर भाग गए। उसने स्पीति को और वहाँ के विहारों को लूटा। यह अप्रतिकार शायद स्पीति की सुरक्षा की पद्धति है।         

     स्पीति में जनसंख्या लाहुल से भी कम है। 1901 की जनगणना के अनुसार 3,231 रही है। 1971 की जनगणना के अनुसार 7,196 है। इसका क्षेत्रफल मुझे 1971 की जनगणना में लाहुल के साथ जोड़कर मिला है जो 12,015 वर्ग किलोमीटर है। स्पीति का अलग क्षेत्रफल नहीं दिया गया है। इंपीरियल गजेटियर (ऑक्सफोर्ड, 1908, खंड 23) के अनुसार यह क्षेत्रफल 2,155 वर्गमील है। इस तरह स्पीति की जनसंख्या प्रति वर्गमील चार से भी कम है। 1901 में यह प्रति वर्गमील दो से भी कम थी।

लाहुल-स्पीति का प्रशासन ब्रिटिश राज से भारत को जस का तस मिला। अंग्रेजों को यह 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह के ज़रिए मिला। अंग्रेज़ इनके ज़रिए पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में प्रवेश चाहते थे। तिब्बत में अंग्रेजी साम्राज्य के दूरगामी हित भी थे। जो भी हो, 1846 में कुल्लू, लाहुल, स्पीति ब्रिटिश अधीनता में आए। पहले सुपरिटेंडेंट के अधीन थे। फिर 1847 में वे काँगड़ा जिले में शरीक कर दिए गए। लद्दाख मंडल के दिनों में भी स्पीति का शासन एक नोनो' द्वारा चलाया जाता था। ब्रिटिश भारत में भी कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से यह नोनो कार्य करता रहा। इसका अधिकार-क्षेत्र केवल द्वितीय दरजे के मजिस्ट्रेट के बराबर था। लेकिन स्पीति के लोग इसे अपना राजा ही मानते थे। राजा नहीं है तो दमयंती जी को रानी मानते हैं।

1. वर्तमान (2002 की जनगणना के अनुसार) - लाहुल-स्पीति का क्षेत्रफल 12,210 वर्गकिलोमीटर तथा जनसंख्या 34,000 है।

2. स्थानीय शासक

     1873 में स्पीति रेगुलेशन पास हुआ जिसके तहत लाहुल और स्पीति को विशेष दरजा दिया गया। ब्रिटिश भारत के अन्य कानून यहाँ नहीं लागू होते थे। रेगुलेशन के अधीन प्रशासन के अधिकार नोनो को दिए गए जिसमें मालगुजारी इकट्ठा करना और छोटे – छोटे  फौजदारी के मुकद्दमों का फ़ैसला करना भी शामिल था। उसके ऊपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था। उन दिनों लाहुल-स्पीति का वृत्तांत कांगड़ा जिले के अंतर्गत कुल्लू तहसील में मिलता है। स्वराज्य के बाद 1960 में लाहुल-स्पीति पंजाब राज्य के अंतर्गत एक अलग जिला बना दिया गया जिसका केन्द्र केलंग में है। 1966 में जब हिमाचल प्रदेश राज्य बना तो लाहल-स्पीति उसका उत्तरी डोर का जिला हो गया। यह देश का सबसे अधिक दुर्गम क्षेत्र है।

स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर और 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यह चारों ओर से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों का कैदी है। इन पहाड़ों की

औसत ऊँचाई 18,000 फ़ीट है। यह पहाड़ उसे पूरब में तिब्बत, पश्चिम में लाहुल, दक्षिण में किन्नौर और उत्तर में लद्दाख से अलग करते हैं। इसकी मुख्य घाटी इसी नाम की स्पीति नदी की घाटी है। स्पीति पश्चिम हिमालय में लगभग 16,000 फ़ीट की ऊँचाई से निकल कर पूरब में तिब्बत में बहती है, वहाँ से स्पीति में आती है। स्पीति से बह कर पुराने रामपुर बुशहर राज्य में, अब किन्नौर जिले में बहती हई सतलुज में मिलती है। मेरी इस स्पीति नदी से प्रीति है। स्पीति में मैं सिर्फ नदी को पहचानता हूँ। सुनता हूँ कि कोई पारा नदी भी है, फिर घाटी है। स्पीति के अलावा पिन की घाटी प्रसिद्ध है। मान भाई से इसका किस्सा सुना है। अत्यंत बीहड और वीरान है। इनमें से शायद स्पीति की घाटी ही आबाद है। जैसी वह आबाद है वह आप देख ही रहे हैं। प्रति वर्गमील चार से भी कम लोग बसते हैं।

अचरज यह नहीं कि इतने कम लोग क्यों  है? अचरज यह है कि इतने लोग भी कैसे बसे हुए हैं? मैंने जब भी स्पीति की विपत्ति बताई है तो लोगों ने यही पूछा की आखिर तब लोग वहां रहते क्यों हैं?आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए है I ठण्ड में ठिठुर रहें है.। सिर्फ  एक फ़सल उगाते हैं। लकडी भी नहीं है कि घर गरम रख सके I वृत्ति नहीं है। फिर क्यों रहते हैं? क्या अपने धर्म की रक्षा के लिए रहते हैं? अपनी जन्मभूमि के ममत्व के कारण रहते हैं? या इस मजबूरी में रहते हैं कि कहीं और जा नहीं सकते? कहाँ जाएँ? या फिर और बातों के साथ-साथ यह सब कारण हैं? मैं नहीं जानता। मैं तो इतना ही देखता हूँ कि यहाँ रह रहे हैं, इसलिए रह रहे हैं। और कोई तर्क नहीं है। तर्क से हम किसी चीज़ को भले सिद्ध कर सकें , स्पीति में रहने को नहीं सिद्ध कर सकते। लेकिन तर्क का इतना मोह क्यों? ज्यादा करके संसार और निर्वाण अतर्क्य है। तर्क के परे है।

स्पीति नदी के साथ-साथ मेरा थोडा परिचय स्पीति के पहाडों का भी है। स्पीति के पहाड़ लाहुल से ज़्यादा ऊँचे, नंगे और भव्य हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों का आर्तनाद जमा हुआ है। शिव का अट्टहास नहीं, हिम का आर्तनाद है। ठिठुरन है। गलन है। व्यथा है।

इस व्यथा की कथा इन पहाड़ों की ऊँचाई के आँकड़ों में नहीं कही जा सकती। फिर भी जो सुंदरता को इंच में मापने के अभ्यासी हैं वे भला पहाड़ को कैसे बख्श सकते हैं। वे यह जान लें कि स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। जिसे वे हिमालय जानते हैं स्केटिंग, सौंदर्य प्रतियोगिता, आइसक्रीम और छोले-भटूरे का कुल्लू-मनाली, शिमला, मसूरी, नैनीताल, श्रीनगर वह सब हिमालय नहीं है। हिमालय का तलुआ है। शिवालिक या पीरपंचाल या ऐसा ही कुछ उसका नाम है यह तलहटी है। रोहतांग जोत के पार मध्य हिमालय है। इसमें ही लाहुल-स्पीति की घाटियाँ हैं। इन घाटियों की औसत ऊँचाई नापी गई है। श्री कनिंघम के अनुसार लाहुल की समुद्र की सतह से ऊँचाई 10,535 फ़ीट है। स्पीति की 12,986 फ़ीट है। यानी लगभग 13,000 फ़ीट तो औसत ऊँचाई है। ____

मध्य हिमालय की जो श्रेणियाँ स्पीति को घेरे हुए हैं उनमें से जो उत्तर में हैं उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझें। बारालाचा दर्रे की ऊँचाई का अनुमान 16 221 फ़ीट से लगाकर 16,500 फ़ीट का लगाया गया है। इस पर्वत-श्रेणी में दो चोटियों की ऊँचाई 21.000 फ़ीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। इसका क्या अर्थ है? कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम तो नहीं है? “ओं मणि पद्म हुँ"* इनका बीज मंत्र है इसका बड़ा महात्म्य है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम इस माने के नाम पर तो नहीं है। अगर नहीं है तो करने जैसा है। यहाँ इन पहाड़ियों में माने का इतना जाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों को दे डालना ही सहज है। ___

इंपीरियल गजेटियर में माने श्रेणी की ऊँचाई 21,646 फ़ीट बताई गई है। यह तो इस श्रेणी की किसी चोटी की ऊँचाई होगी। पूरी श्रेणी की ऊँचाई तो एक नहीं होगी। इसमें जो छोटी-छोटी चोटियाँ हैं उनकी ऊँचाई भी 17,000 फ़ीट से अधिक है। कई गाँव समुद्र की सतह से 13,000 फ़ीट से ऊँचे बसे हैं। एक या दो 14,000 फ़ीट की ऊँचाई पर हैं। यह मध्य हिमालय है। इसमें स्पीति स्थित है।           इसके पार बाह्य हिमालय दीखता है। इसकी एक चोटी 23,064 फ़ीट ऊँची बताई जाती है। इसमें कई चोटियाँ 20,000 फ़ीट से अधिक ऊँची हैं।  

      मैं ऊँचाई के माप के चक्कर में नहीं हूँ। न इनसे होड़ लगाने के पक्ष में हूँ। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। हाँ, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान है। मैं सोचता हूँ कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आएँ और पहले तो स्वयं अपने अहंकार को गलाएँ- फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें। उस आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही मामला नहीं है। ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियाँ किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीति का आर्तनाद जमा हुआ है। वह इस युवा अट्टहास की गरमी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है।

* यह ध्वनि मंत्र है, जो ध्यान साधना के लिए प्रयुक्त होता है। बोधिसत्व आर्य अवलोकितेश्वर ने इस मंत्र का सबसे पहले उच्चारण किया था। इसके उच्चारण से करुणा की उत्पत्ति होती है।

लाहुल की तरह ही स्पीति में भी दो ही ऋतुएँ होती हैं। कहीं मैंने षड्ऋतुओं का बखान किया है। वह अभ्यास दोष के कारण है। यहाँ जून से सितंबर तक की एक अल्पकालिक वसंत ऋतु है, शेष वर्ष शीत ऋतु होती है। वसंत में, जुलाई में औसत तापमान 15° सेंटीग्रेड और शीत में, जनवरी में औसत तापमान रिकार्ड किया गया है। औसत से कुछ अंदाज़ नहीं लगता। वसंत में दिन गरम होता है, रात ठंडी होती है। शीत में क्या होता है? इसकी कल्पना ही की जा सकती है। कभी रहकर देखा जा सकता है।

     स्पीति में वसंत लाहुल से भी कम दिनों का होता है। वसंत में भी यहाँ फूल नहीं खिलते, न हरियाली आती है, न वह गंध होती है। दिसंबर से घाटी में फिर बरफ़ पड़ने लगती है। अप्रैल-मई तक रहती है। यहाँ ठंडक भी लाहुल से ज़्यादा पड़ती है। नदी-नाले सब जम जाते हैं और हवाएँ तेज़ चलती हैं। मुँह, हाथ और जो खुले अंग हैं उनमें जैसे शूल की तरह चुभती हैं।

   स्पीति में लाहुल से भी कम वर्षा होती है। मध्य हिमालय मानसून की पहुँच के परे है। यहाँ बरखा बहार नहीं है। कालिदास को अपने 'ऋतु संहार' में यहाँ वर्षा का तो संहार ही करना पड़ेगा। कालिदास में वर्षा का क्या ठाठ है? यह वर्षा वर्णन इस प्रकार शुरू होता है:

प्रिये!जल को फुहारों से भरे बादलों के मतवाले हाथी पर चढ़ा हुआ. चमकती  हुई बिजलियों की झड़ियों को फहराता हुआ और बादलों की गरज के नगाडे बजाता हुआ यह कामीजनों का प्रिय  पावस राजाओं का-सा ठाट-बाट बनाकर आ पहुंचा। ___

         यह पावस यहाँ नहीं पहुंचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमाचल की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं जानता कि इसका लालित्य  लाहुल स्पीति के नर नारी समझ भी पाएँगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि 'बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिघाड़ते हैं. जंगल हरे भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियाँ रोती-कलपती हैं. मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।' ____

     अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि 'अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करें' तो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता?

स्पीति में कभी-कभी बारिश होती है। वर्षा ऋतु यहाँ मन की साध पूरी नहीं करती। धरती सुखी, ठंडी और वंध्या रहती है। ___

      स्पीति में साल में एक फ़सल होती है। मुख्य फ़सलें हैं: दो किस्म का जौ, गेहूँ, मटर और सरसों। इसमें भी जौ मुख्य है। सिंचाई का साधन पहाड़ों से आ रहे नाले हैं या उन पर बनाए कूल हैं। ये नालियाँ पहाड़ों के किनारे-किनारे बहुत दूर तक जाती हैं। स्पीति नदी का तट इतना चौड़ा है कि इसका पानी किसी काम में नहीं आ पाता। स्पीति में ऐसी भूमि बहुत है जो खेती के लायक बनाई जा सकती है। शर्त इतनी है कि इसके लिए स्पीति में जल उलीचा जाए। या फिर पानी का कोई और स्रोत पहुँचाया जाए। स्पीति में कोई फल नहीं होता। मटर और सरसों को छोड़कर कोई सब्जी नहीं। होती। शायद ऊँचाई, वायुमंडल के दबाव में कमी, ठंड की अधिकता, वर्षा की कमा वगैरह के कारण यहाँ पेड़ नहीं होते। इसलिए स्पीति विशेषकर नंगी और वीरान है।

       वर्षा यहाँ एक घटना है। एक सुखद संयोग है। हम काजा के डाक बंगले में सो रहे थे तो लगा कि कोई खिड़की खड़का रहा है। आधी रात का भी पिछला पहर है। इस समय कौन है? लैंप की लौ तेज़ की खिड़की का एक पल्ला खोला। तो तेज़ हवा का झोंका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। मैंने पल्ला भिड़ा दिया। उसकी आड़ से देखने लगा। देखा कि बारिश हो रही थी। मैं उसे देख नहीं रहा था। सुन रहा था। अँधेरा, ठंड और हवा का झोंका आ रहा था। जैसे बरफ़ का अंश लिए तुषार जैसी बूंदें पड़ रही थीं। जैसे नगाड़े पर थाप पड़ रही थी। ढुंगछेन को हवा बजा रही थी। महाशंख की ध्वनि घाटी में तैर रही थी। स्पीति की घाटी में वर्षा हो रही थी। कमरे में ठंड बढ़ रही थी। मैं बिस्तर में पड़ा-पड़ा मालूम नहीं कब सो गया।

सुबह उठा। चाय पीते-पीते सुना कि स्पीति के लोग कह रहे हैं कि हमारी यात्रा शुभ है। स्पीति में बहुत दिनों बाद बारिश हुई है।

पाठ का सारांश

यह पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति, हिमालय के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने यहाँ की जनसंख्या, ऋतु, फसल, जलवायु व भूगोल का वर्णन किया है। ये एक-दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया है। कुछ युवा पर्यटकों का पहुँचना स्पीति के पर्यावरण को बदल सकता है। ठंडे रेगिस्तान जैसे स्पीति के लिए उनका आना, वहाँ बूंदों भरा एक सुखद संयोग बन सकता है।

लेखक बताता है कि हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील स्पीति है। ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसका नाम कम ही रहा है। आजकल संचार के आधुनिक साधनों में वायरलेस के जरिए ही केलग व काजा के बीच संबंध रहता है। केलग के बादशाह को हमेशा अवज्ञा या बगावत का डर रहता है। यह क्षेत्र प्राय: स्वायत्त रहा है चाहे कोई भी राजा रहा हो। इसका कारण यहाँ का भूगोल है। भूगोल ही इसकी रक्षा तथा संहार करता है। पहले राजा का हरकारा आता था तो उसके आने तक अल्प वसंत बीत जाता था। जोरावर सिंह हमले के समय स्पीति के लोग घर छोड़कर भाग गए थे। उसने यहाँ के घरों और विहारों को लूटा।

स्पीति में जनसंख्या लाहुल से भी कम है। 1901 में यहाँ 3231 लोग थे, अब यहाँ 34,000 लोग हैं। लाहुल स्पीति का क्षेत्रफल 12210 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ जनसंख्या प्रति वर्गमील बहुत कम है। भारत को यहाँ का प्रशासन ब्रिटिश राज से मिला। अंग्रेजों ने 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से यहाँ का प्रशासन लिया था ताकि वे पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में जा सकें। लद्दाख मंडल के समय यहाँ का शासन स्थानीय राजा (नोनी) द्वारा चलाया जाता था। अंग्रेजी काल में कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से नोनो काम करता था। स्थानीय लोग इसे अपना राजा मानते थे।

1873 ई. में स्पीति रेगुलेशन में लाहुल व स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया। यहाँ पर अन्य कानून लागू नहीं होते थे। यहाँ के नोनो को मालगुजारी इकट्ठा करने तथा छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया। उससे ऊपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था। 1960 में इस क्षेत्र को पंजाब राज्य में तथा 1966 में हिमाचल प्रदेश बनने के बाद राज्य के उत्तरी छोर का जिला बनाया गया।

 

स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर और 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यहाँ चारों तरफ पहाड़ हैं। इसकी मुख्य घाटी स्पीति नदी की घाटी है। स्पीति नदी तिब्बत की तरफ से आती है तथा किन्नौर जिले से बहती हुई सतलुज में मिलती है। लेखक पारा नदी, पिन की घाटी के बारे में भी मान भाई से सुना है। यह क्षेत्र अत्यंत बीहड़ और वीरान है। यहाँ लोग रहते कैसे हैं? स्पीति के बारे में बताने पर यह सवाल लोग लेखक से पूछते हैं। ये क्षेत्र आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। वे एक फसल उगाते हैं तथा लकड़ी व रोजगार भी नहीं है, फिर भी वे यहाँ रह रहे हैं, क्योंकि वे यहाँ रहते आए हैं। यह तर्क से परे की चीज है।

स्पीति के पहाड़ लाहुल से अधिक ऊँचे, भव्य व नंगे हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों का आर्तनाद जमा हुआ है। यहाँ हिम का आर्तनाद है, ठिठुरन है और व्यथा है। स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। यह हिमालय का तलुआ है। लाहुल । समुद्र की तरह से 10535 फीट ऊँचा है तो स्पीति 12986 फीट ऊँचा। स्पीति घाटी को घेरने वाली पर्वत श्रेणियों की ऊँचाई 16221 से 16500 फीट है। दो चोटियाँ 21,000 फीट से भी ऊँची हैं। इन्हें बारालचा श्रेणियाँ कहते हैं। दक्षिण की पर्वत श्रेणियों को माने श्रेणियाँ कहते हैं। शायद बौद्धों के माने मंत्रों के नाम पर इनका नामकरण किया गया हो। बौद्धों का बीज मंत्र ओों मणि पद्भे हुहै। इसे संक्षेप में माने कहते है।

स्पीति के पार बाह्य हिमालय दिखता है। इसकी एक चोटी 23,064 फीट ऊँची बताई जाती है। लेखक चोटियों से होड़ लगाने के पक्ष में नहीं है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। कभी-कभी उनका मान-मर्यादा करना मर्द और औरत की शान है। लेखक चाहता है कि देश-दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आकर अपने अहंकार को गलाकर फिर चोटियों के अहंकार को चूर करें। माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई। युवक-युवतियाँ यहाँ आकर किलोल करें तो यहाँ आनंद का प्रसार हो।

स्पीति में दो ही ऋतुएँ होती हैं। जून से सितंबर तक अल्पकालिक वसंत ऋतु तथा शेष वर्ष शीत ऋतु होती है। बसंत में जुलाई में औसत तापमान 15० सेंटीग्रेड तथा शीत में, जनवरी में औसत तापमान 8० सेंटीग्रेड होता है। वसंत में दिन गर्म तथा रात ठंडी होती है। शीत ऋतु की ठंड की कल्पना ही की जा सकती है। यहाँ वसंत का समय लाहुल से कम होता है। इस ऋतु में यहाँ फूल, हरियाली आदि नहीं आते। दिसंबर से मई तक बर्फ रहती है। नदी-नाले जम जाते हैं। तेज हवाएँ मुँह, हाथ व अन्य खुले अंगों पर शूल की तरह चुभती हैं।

यहाँ मानसून की पहुँच नहीं है। यहाँ बरखा बहार नहीं है। कालिदास को अपने ऋतु संहारग्रंथ में से वर्षा ऋतु का वर्णन हटाना होगा। उसका वर्षा वर्णन लाहुल-स्पीति के लोगों की समझ से परे है। वे नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं,बादल बरसते हैं और मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं। जंगलों में हरियाली छा जाती है और वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं। यहाँ के लोगों ने कभी पर्याप्त वर्षा नहीं देखी। धरती सूखी, ठंडी व वंध्या रहती है।

स्पीति में एक ही फसल होती है जिनमें जौ, गेहूँ, मटर व सरसों प्रमुख है। इनमें भी जो मुख्य है। सिंचाई के साधन पहाड़ों से बहने वाले झरने हैं। स्पीति नदी का पानी काम में नहीं आता। स्पीति की भूमि पर खेती की जा सकती है बशर्त वहाँ पानी पहुँचाया जाए। यहाँ फल, पेड़ आदि नहीं होते। भूगोल के कारण स्पीति नंगी व वीरान है। वर्षा यहाँ एक घटना है। लेखक एक घटना का वर्णन करता है। वह काजा के डाक बंगले में सो रहा था। आधी रात के समय उन्हें लगा कि कोई खिड़की खड़का रहा है। उसने खिड़की खोली तो हवा का तेज झोंका मुँह व हाथ को छीलने-सा लगा। उसने पल्ला बंद किया तथा आड़ में देखा कि बारिश हो रही है। बर्फ की बारिश हो रही थी। सुबह उठने पर पता चला कि लोग उनकी यात्रा को शुभ बता रहे थे। यहाँ बहुत दिनों बाद बारिश हुई।

शब्दार्थ

 

योग-मिलाप। आकस्मिक-अचानक हुई घटना। अलंध्य-जो पार न किया जा सके। संचार-संदेश भेजने का साधन। अवज़ा-आज्ञा को न मानना। बगावत-विद्रोह। वायरलेस बिना तार संदेश भेजना। तहत-साथ। स्वायत्त-स्वतंत्र। सिरजी-रची। संहार-अंत। हरकारा-डाकिया। अल्प-थोड़ा, कम।

हदस-डर। चाँग्मा-एक पेड़ का नाम! अप्रतिकार-विरोध न करना। पदधति-तरीका। जस का तस-ज्यों-का-त्यों। दूरगामी-दूर तक जाने वाला। अधीनता-गुलामी। शरीक-लम्मिलित

रेगुलेशन-कानून। मालगुजारी-कर। फौजदारी-मारपीट। वृत्तात-हाल। स्वराज्य-अपना राज्य। छोर-किनारा। दुर्गम-जहाँ जाना कठिन हो। प्रीति-प्रेम। वीरान-जहाँ लोग न रहते हों। आबाद-बसी हुई। अचरज-हैरानी।

वृत्ति-जीविका। निर्वाण-वैराग्य। अतक्र्य-तर्क से परे। भव्य-विशाल। आर्तनाद-पीड़ा भरी आवाज। अट्टहास-ठहाका लगाना। बखशना-छोड़ना। तलहटी-पहाड़ से नीचे का क्षेत्र।

महात्म्य-महिमा। गजेटियर-राजपत्र। बाहय-बाहरी। मान-मर्दन-कुचलना। कूवत-सामथ्र्य, बल। किलोल-खेल।

अल्पकालिक-थोड़े समय के लिए। शूल-काँटा। बरखा-बहार-वर्षा की बहार। संहार-अंत।

मतवाला-मस्त। नगाड़े बजाना-बैंड बजाना। कामीजन-विलास करने वाले लोग। पावस-वर्षा ऋतु का महीना। लालित्य-सौंदर्य। संवेदन-अनुभव। कलपती-चीत्कार करती। साध-इच्छा। वध्या-बेकार। कुल-दो हलों से जोती जा सकने वाली धरती। उलीचना-हाथ से बाहर फेंकना।

पहर-समय। पल्ला-हिस्सा। आड़-ओट। तुषार-बर्फ।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलध्य भूगोल यहाँ इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल-स्पीति का योग प्रात: वायरलेस सेटके जरिए है जो केलग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वायरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसंत में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्राय: असंभव है।

प्रश्न - उत्तर

1.   स्पीति कहाँ स्थित हैं?

स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। यह पहाड़ी भू-भाग बहुत ऊँचा-नीचा है। यहाँ के दरें और पहाड़ इसे दुर्गम बनाते हैं। स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। यह पहाड़ी भू-भाग बहुत ऊँचा-नीचा है। यहाँ के दरें और पहाड़ इसे दुर्गम बनाते हैं।

2.   स्पीति का नाम इतिहास में कम क्यों हैं?

स्पीति का इतिहास में कम ही नाम आता है, क्योंकि ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण यह आम संसार से कटा रहता है। वहाँ आवागमन अत्यंत कठिन है।

3.   केलंग के बादशाह को क्या भय रहता हैं?

 केलग के बादशाह को भय रहता है कि काजा का सूबेदार उसकी आज्ञा का पालन करता है या नहीं? कहीं वह बगावत तो नहीं करने वाला। उसके पास संचार का साधन मात्र वायरलेस सेट था।

2. अचरज यह नहीं कि इतने कम लोग क्यों हैं? अचरज यह है कि इतने लोग भी कैसे बसे हुए हैं? मैंने जब भी स्पीति की विपत्ति बताई है तो लोगों ने यही पूछा कि आखिर तब लोग वहाँ रहते क्यों हैं? आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। ठंड में ठिठुर रहे हैं। सिर्फ एक फसल उगाते हैं। लकड़ी भी नहीं है कि घर गरम रख सकें। वृत्ति नहीं है। फिर क्यों रहते हैं? क्या अपने धर्म की रक्षा के लिए रहते हैं? अपनी जन्मभूमि के ममत्व के कारण रहते हैं? या इस मजबूरी में रहते हैं कि कहीं और जा नहीं सकते? कहाँ जाएँ? या फिर और बातों के साथ-साथ यह सब कारण हैं? मैं नहीं जानता। मैं तो इतना ही देखता हूँ कि यहाँ रह रहे हैं, इसलिए रह रहे हैं। और कोई तर्क नहीं है। तर्क से हम किसी चीज को भले सिद्ध कर सकें, स्पीति में रहने को सिद्ध नहीं कर सकते। लेकिन तर्क का इतना मोह क्यों? ज्यादा करके संसार और निर्वाण अतक्र्य है। तर्क के परे है।

प्रश्न - उत्तर

1.   लेखक को स्पीति में लोगों के रहने पर आश्चर्य क्यों है?

लेखक कहता है कि यहाँ भयंकर ठंड होती है। यहाँ लकड़ी, रोजगार नहीं है। फसल भी एक ही होती है। ऐसी दुर्गम स्थितियों में भी लोग यहाँ रहते हैं। इसी बात पर लेखक को हैरानी है।

2.   स्पीति में कोन-सी कठिन परिस्थितियाँ हैं?

 स्पीति में निम्नलिखित कठिन परिस्थितियाँ हैं-

(क) भयंकर ठंड ।

(ख) आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे रहना

(ग) एक फसल ले पाना

(घ) घर गर्म करने हेतु लकडी तक का न होना

(ङ) रोजगार न होना

3.   ससार और निवाण अतक्र्य क्यों हैं?

 संसार और निर्वाण तर्क से परे हैं। लेखक कहना चाहता है कि संसार की हर वस्तु को तर्क के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सकता। प्राणी की उत्पत्ति, संसार का चक्र आदि को कभी समझा नहीं जा सका। इसी तरह मृत्यु के कारण, मृत्यु के बाद जीव का स्थान आदि का सटीक उत्तर नहीं है।

3. मध्य हिमालय की जो श्रेणियाँ स्पीति को घेरे हुए हैं उनमें से जो उत्तर में हैं उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझे। बारालाचा दरें की ऊँचाई का अनुमान 16221 फीट से लगाकर 16,500 फीट का लगाया गया है। इस पर्वत-श्रेणी में दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। इसका क्या अर्थ है? कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर तो नहीं है? ‘ओों मणि पद्मे हुइनका बीज मंत्र है इसका बड़ा महात्म्य है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम इस माने के नाम पर तो नहीं है? अगर नहीं है तो करने जैसा है। यहाँ इन पहाड़ियों में माने का इतना जाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों को दे डालना ही सहज है।

प्रश्न - उत्तर

1.   स्पीति की किन पवतश्रेणियों ने घर रखा है? उनकी ऊँचाई कितनी हैं?

स्पीति मध्य हिमालय पर बसा हुआ है। इसके उत्तर की ओर बारालाचा श्रेणियाँ हैं। इनकी ऊँचाई 16221 फीट से लेकर 16500 फीट तक है। इस पर्वत-श्रेणी की दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में माने श्रेणी है।

2.   दक्षिण की श्रेणी के नामकरण का क्या आधार हैं?

दक्षिण की श्रेणी का नाम माने है। बौद्धों में भी माने एक बीज मंत्र है-ओों मणि पद्मे हु।इसकी बड़ी मान्यता है। इसे माने कहते हैं। लेखक का मानना है कि शायद माने मंत्र के अत्यधिक जप के कारण इसे माने श्रेणी कहने लगे हों।

3.   स्पीति में किस धर्म का प्रभाव है? सप्रमाण उत्तर दीजिए।

स्पीति में बौद्ध धर्म का प्रभाव है। यहाँ की पर्वत श्रेणी को माने श्रेणी कहा जाता है। शायद इसका नाम माने के नाम पर ही हुआ हो। यदि ऐसा नहीं है तो भी यहाँ माने का जाप हुआ है, जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ बौद्ध धर्म का प्रभाव है।

4.    मैं ऊँचाई के माप के चक्कर में नहीं हूँ। न इनसे होड़ लगाने के पक्ष में हूँ। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। हाँ, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान है। मैं सोचता हूँ कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आएँ और पहले तो स्वयं अपने अहंकार को गलाएँ-फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें। उस आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही मामला नहीं है। ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियाँ किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीति का आर्तनाद जमा हुआ है। वह इस युवा अट्टहास की गरमी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है।

प्रश्न - उत्तर

1.   लेखक क्या नहीं चाहता तथा क्यों?

लेखक यह नहीं चाहता कि ऊँचाइयों के माप के चक्कर में पड़ा जाए। वह उनसे होड़ लगाने के पक्ष में भी नहीं है। इसका कारण यह है कि ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु का कारण बन सकता है।

2.   लेखक किन्हें यहाँ बुलाना चाहता है? क्यों?

लेखक दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियों को बुलाना चाहता है ताकि वे यहाँ आकर पहले अपने अहंकार को गलाएँ तथा फिर चोटियों का मान-मर्दन करें। इससे उन्हें आनंद की अनुभूति होगी।

3.   लेखक के अनुसार, माने की चोटियाँ उदास क्यों हैं?

लेखक के अनुसार माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हैं। दूसरे, यहाँ के भूगोल के कारण बर्फ का आर्तनाद छाया रहता है। अत: ये चोटियाँ उदास हैं।

5.  यह पावस यहाँ नहीं पहुँचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमाचल की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं जानता कि इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएँगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियाँ रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करेंतो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता? स्पीति में कभी-कभी बारिश होती है। वर्षा ऋतु यहाँ मन की साध पूरी नहीं करती। धरती सूखी, ठंडी और वंध्या रहती है।

प्रश्न - उत्तर

1.   स्पीति में पावस क्यों नहीं आता?

स्पीति हिमालय की मध्य घाटियों में स्थित है। यहाँ वर्षा ऋतु नहीं होती, क्योंकि यहाँ बादल नहीं पहुँचते। यहाँ कभी-कभी वर्षा होती भी है तो बर्फ की, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है।

2.   स्पीति के लोग क्या नहीं जानते? और क्यों?

स्पीति के लोग यह नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते हैं, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं, वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं, मोर नाचते हैं तथा बंदर गुफाओं में जा छिपते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहाँ वर्षा न के बराबर ही होती है।

3.   कालिदास यहाँ आकर क्या कहगे?

कालिदास यहाँ आकर कहेंगे कि अपने बहुत-से-सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करें।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

प्रश्न 1: इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?

उत्तर- स्पीति हिमाचल की पहाड़ियों में एक ऐसा दुर्गम स्थल है जहाँ पहुँचना सामान्य लोगों के वश में नहीं है। संचार माध्यमों एवं आवागमन के साधनों का अभाव है। अतः यहाँ दूसरे देशों की जानकारी नहीं होती। स्पीति का भूगोल अलंघ्य है। साल में आठ-नौ महीने बरफ़ रहती है तथा यह संसार से कटा रहता है। दुर्गम स्थान के कारण किसी राजा ने यहाँ हमला नहीं किया इसका जिक्र सिर्फ राज्यों के साथ जुड़े रहने पर ही आता है। मानवीय गतिविधियों के अभाव के कारण यहाँ इतिहास नहीं बना। यह क्षेत्र प्रायः स्वायत्त ही रहा है।

प्रश्न 2: स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?

उत्तर- स्पीति का जीवन बहुत कठोर है। यहाँ लंबी शीत ऋतु होती है। आठ-नौ महीने यह क्षेत्र शेष विश्व से कटा रहता है। यहाँ जलाने के लिए लकड़ी भी नहीं होती। लोग ठंड से ठिठुरते रहते हैं। यहाँ न हरियाली है और न ही पेड़। यहाँ पर्याप्त वर्षा भी नहीं होती। यहाँ साल में एक ही फसल उगा सकते हैं। जौ, गेहूँ, मटर व सरसों के अलावा दूसरी फसल नहीं हो सकती। किसी प्रकार का फल व सब्जियाँ पैदा नहीं होतीं। यहाँ रोजगार के साधन नहीं हैं। यहाँ की जमीन खेती योग्य है, परंतु सिंचाई के साधन विकसित नहीं हैं। अत: यहाँ के लोग अत्यंत जटिल परिस्थिति में रहते हैं।

प्रश्न 3: लेखक माने श्रेणी का नाम बौदधों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों है?

उत्तर- माने श्रेणी के विषय में लेखक स्वयं प्रश्न करता है कि इसका क्या अर्थ है? और फिर स्वयं ही अनुमानित करता है कि कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर तो नहीं है? ‘ओं मणि पद्मे हुँइनका बीज मंत्र है। लेखक इसे बौद्धों का बीज मंत्र और संक्षेप में माने कहकर पाठक के समक्ष यह तथ्य रखता है कि इस श्रेणी में माने मंत्र का बहुत अधिक जाप हुआ है और उसे ध्यान में रखते हुए इस श्रेणी का नाम माने ही दे डालना चाहिए।

प्रश्न 4: ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं-इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है?

उत्तर- लेखक ने बताया है कि माने पर्वत श्रेणियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं, क्योंकि उनके जाप से यहाँ का वातावरण बोझिल व नीरस हो गया है। लेखक पहाड़ों व मैदानों से युवक-युवतियों को बुलाना चाहता है ताकि वे यहाँ आकर क्रीड़ा-कौतुक करें, प्रेम के खेल खेलें, जिससे यहाँ के वातावरण में ताजगी व उत्साह का संचार हों। चोटियों पर चढ़ने से जीवन औगड़ाई लेने लगेगा। युवाओं के अट्टहास से चोटियों पर जमा आर्तनाद पिघलेगा।

प्रश्न 5: वर्षा यहाँ एक घटना है, एक सुखद संयोग हैं-लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर- स्पीति में वर्षा नहीं होती। वहाँ के लोग वर्षा की आनंददायक स्थितियों से अनभिज्ञ हैं। यहाँ वर्षा ऋतु मन की साध पूरी नहीं करती। यहाँ की धरती सूखी, ठंडी और वंध्या रहती है। स्पीति में साल में केवल एक फ़सल होती है। सिंचाई का साधन है-पहाड़ों से आ रहे नाले। उपजाऊ और खेती के योग्य धरती का तो यहाँ अभाव नहीं है, परंतु वर्षा नहीं होती। वर्षा यहाँ के लोगों के लिए एक घटना है। इसीलिए लेखक ने इसे एक सुखद संयोग माना है। स्पीति की यात्रा के दौरान वहाँ की वर्षा देखने का सौभाग्य भी लेखक को मिला था। स्थानीय लोगों ने भी इसी कारण लेखक की यात्रा को शुभ कहा था।

प्रश्न 6: स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर- स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से बहुत भिन्न हैं; जैसे-

 

(क) स्पीति के पहाड़ों की ऊँचाई 13000 से 21,000 फीट तक की है। ये अत्यंत दुर्गम हैं।

(ख) यहाँ के दरें बहुत ऊँचे व दुर्गम हैं।

(ग) यहाँ साल में आठ-नौ महीने बर्फ जमी रहती है तथा रास्ते बंद हो जाते हैं।

(घ) यहाँ वर्षा नहीं होती तथा पेड़ व हरियाली का नामोनिशान नहीं है।

(ङ) हुए ह फल हता है उसे भोज मर सों आदमुवा है फ्लए समय या उन नाह होती हैं।

(च) यहाँ सिर्फ दो ऋतुएँ होती हैं-वसंत व शीत ऋतु।

(छ) यहाँ परिवहन व संचार का कोई साधन नहीं।

(ज) यहाँ आबादी बेहद कम है। यहाँ प्रति किलोमीटर चार व्यक्ति रहते हैं।

(झ) यहाँ पर्यटक नहीं आते। अत: यहाँ का वातावरण उदास रहता है।

पाठ के आस-पास

प्रश्न 1: स्पीति में बारिश का वर्णन एक अलग तरीके से किया गया है। आप अपने यहाँ होने वाली बारिश का वर्णन कीजिए।

उत्तर- भारत में और संसार के हर कोने में अपना-अपना मौसम, परिवेश और ऋतु चक्र है। बारिश सभी को सुहावनी लगती है। हमारे यहाँ तेज़ हवा और गरमी के बाद काले बादलों से आसमान घिर जाता है। बादलों की गड़गड़ाहट और बिजली की चमक में ऐसा आकर्षण होता है कि सभी लोग घरों से बाहर निकलकर प्रकृति का यह खेल देखने लगते हैं। बादलों से जब जल का बोझ नहीं सँभलता तो टप-टप बूंदें गिरनी आरंभ हो जाती हैं। सारा माहौल हर्ष-उल्लास से भर जाता है, माटी की भीनी-भीनी सुगंध सबको सराबोर कर देती है। बच्चे दौड़ पड़ते हैं बारिश में भीगने और नहाने के लिए, पर बड़ों का मन भी नियंत्रण खो बैठता है। पकौड़े, हलवा आदि पकवान बनते हैं। उमंग, उत्साह और उल्लास की लहर हिलोरें लेती

 

प्रश्न 2: स्पीति के लोगों और मैदानी भागों में रहने वाले लोगों के जीवन की तुलना कीजिए। किन का जीवन आपको ज़्यादा अच्छा लगता है और क्यों?

उत्तर- स्पीति के लोगों का जीवन मैदानी भागों के निवासियों की तुलना में बेहद कष्टदायक है। मैदानी क्षेत्रों में जलवायु कठोर नहीं है। यहाँ छह ऋतुएँ होती हैं। स्पीति में सर्दी व वसंत दो ही ऋतुएँ होती हैं। सर्दी में सब कुछ जम जाता है। वर्षा नहीं होती।

मैदानों में रोजगार, कृषि, खाद्य-सामग्री व संचार के साधनों की कमी नहीं है। व्यक्ति के पास सुख के साधनों की कमी नहीं है, जबकि स्पीति में ऐसा कुछ नहीं है। वहाँ जीवन-निर्वाह भी कठिनता से होता है। अत: मैदानी भागों में रहने वाले का जीवन ज्यादा सुखी व अच्छा है। यहाँ जीवन की गति नियमित रूप से चलती है।

 

प्रश्न 3: स्पीति में बारिश एक यात्रा-वृतांत है। इसमें यात्रा के दौरान किए गए अनुभवों, यात्रा-स्थल से जुड़ी विभिन्न में कीजिए।

उत्तर- विद्यार्थी इसको आधार मानते हुए करें.

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प्रश्न 4: लेखक ने स्पीति की यात्रा लगभग तीस वर्ष पहले की थी। इन तीस वर्षों में क्या स्पीति में कुछ परिवर्तन आया है? जानें, सोचें और लिखें।

उत्तर- लेखक ने स्पीति की यात्रा लगभग 30 वर्ष पहले की थी, परंतु आज वहाँ कुछ परिवर्तन आया है। अब वहाँ संचार, यातायात व रोजगार के साधन कुछ विकसित हुए हैं, परंतु प्राकृतिक दशाएँ वैसी ही हैं। अत: अधिक परिवर्तन की वहाँ गुंजाइश नहीं है।

 

भाषा की बात

प्रश्न 1: पाठ में से दिए गए अनुच्छेद में क्योंकि, और, बल्कि, जैसे ही, वैसे ही, मानो, ऐसे, शब्दों का प्रयोग करते हुए उसे दोबारा लिखिए-

लैंप की ली तेज़ की खिड़की का एक पल्ला खोला तो तेज़ हवा को झोंका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। मैंने पल्ला भिड़ा दिया। उसकी आड़ से देखने लगा। देखा कि बारिश हो रही थी। मैं उसे देख नहीं रहा था। सुन रहा था। औधरा, ठड और हवा का झोंका आ रहा था। जैसे बरफ का अश लिए तुषार जैसी बूंदें पड़ रही थीं।

उत्तर- लैंप की लौ तेज की। जैसे ही खिड़की का एक पल्ला खोला वैसे ही तेज हवा का झोंका मुँह और हाथ को जैसे छीलने लगा। मैंने पल्ला भिड़ा दिया और उसकी आड़ से देखने लगा। मैं उसे देख नहीं रहा था बल्कि सुन रहा था। अँधेरा, ठंड और हवा का झोंका ऐसे आ रहा था मानो बर्फ का अंश लिए तुषार जैसी बूंदें पड़ रही थीं।

 

अन्य हल प्रश्न

बोधात्मक प्रशन

 

प्रश्न 1: ‘स्पीति में बारिशपाठ का प्रतिपादय बताइए।

उत्तर- यह पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति हिमाचल के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने यहाँ की जनसंख्या, ऋतु, फसल, जलवायु व भूगोल का वर्णन किया है। ये एक-दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया है। कुछ युवा पर्यटकों का पहुँचना स्पीति के पर्यावरण को बदल सकता है। ठंडे रेगिस्तान जैसे स्पीति के लिए उनका आना, वहाँ बूंदों भरा एक सुखद संयोग बन सकता है।

प्रश्न 2: शिव का अट्टहास नहीं, हिम का आर्तनाद है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लेखक बताता है कि पहाड़ के शिखरों पर जो बर्फ जमी होती है, उसे शिव की तेज हँसी का कारण माना जाता है, परंतु स्पीति में यह मान्यता लागू नहीं होती। यहाँ बर्फ कष्टों का प्रतीक है। जीवन में इतने अभाव हैं कि यहाँ दर्द के सिवाय कुछ नहीं है। यही चीख-पुकार, दर्द बर्फ के रूप में जमा हो गया है। प्रश्न

प्रश्न 3: स्पीति रेगुलेशन कब पास हुआ? इसके बारे में बताइए।

उत्तर- स्पीति रेगुलेशन 1873 ई. में ब्रिटिश सरकार के समय पारित किया गया। इसके निम्नलिखित प्रभाव थे-

(क) लाहुल व स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया।

(ख) यहाँ ब्रिटिश भारत के अन्य कानून लागू नहीं होते थे।

(ग) स्थानीय प्रशासन के अधिकार नोनो को दिए गए।

(घ) नोनो मालगुजारी को इकट्ठा करता तथा फौजदारी के छोटे-छोटे मुकदमों का फैसला करता था।

(ङ) अधिक बड़े मामले कमिश्नर को भेजे जाते थे।

प्रश्न 4: बाहय आक्रमण से स्पीति के लोग अपनी सुरक्षा कैसे करते हैं?

उत्तर- बाहरी आक्रमण से रक्षा करने के लिए स्पीति के लोग अप्रतिकार का तरीका अपनाते हैं। वे उससे लड़ते नहीं। वे चाँग्मा का तना पकड़कर या एक-दूसरे को पकड़कर आँख मींचकर बैठ जाते हैं। जब आक्रमणकारी या संकट गुजर जाता है तो वे उठकर वापस आ जाते हैं।

बहुविकल्पी प्रश्न उत्तर

1. 'स्पीति में बारिश' नामक पाठ के रचयिता हैं

(A) कृष्णनाथ                                 (B) कृश्नचंद्र

(C) शेखर जोशी                               (D) प्रेमचंद

उत्तर-कृष्ण नाथ।

2. 'स्पीति में बारिश' नामक पाठ किस विधा से संबंधित है ?

(A) निबंध                                    (B) रेखाचित्र                                 

 (C) कहानी                                  (D) यात्रा वृत्तांत

उत्तर-यात्रा वृत्तांत।

3. स्पीति किस राज्य की एक तहसील है ? .

(A) हरियाणा                                 (B) पंजाब

(C) हिमाचल                                  (D) राजस्थान

उत्तर-हिमाचल।

4. अन्य दूरवर्ती क्षेत्रों से लाहुल-स्पीति का संबंध किस माध्यम से है ?

(A) टेलीफोन                                 (B) मोबाइल

(C) तार                                      (D) वायरलेस सेट

उत्तर-वायरलेस सेट।

5. वसंत ऋतु में भी कितने मील तक लाहुल-स्पीति में जाना कठिन है ?

(A) 150                                     (B) 160

(C) 170                                     (D) 180.

उत्तर-1701

6. किस के आक्रमण से भयभीत लोग स्पीति छोड़ कर भाग गए थे?

(A) जोगा सिंह                                (B) दरियाव सिंह

(C) जोरावर सिंह                             (D) होशियार सिंह

उत्तर-जोरावर सिंह।

7.स्पीति की जनसंख्या प्रति वर्गमील कितने से भी कम है ?

(A) चार                                      (B) चालीस

(C) चार सौ                                  (D) चार हज़ार

उत्तर-चार।

8. लाहुल-स्पीति अंग्रेजों को किस के ज़रिए मिला था ?

(A) राजा गुलाब मल                         (B) राजा गुलाब राय

(C) राजा गुलाब सिंह                         (D) राजा गुलाब चंद

उत्तर-राजा गुलाब सिंह।

9. लद्दाख मंडल के दिनों में स्पीति का शासन कौन चलाता था ?

(A) बोनो                                     (B) टोनो

(C) नोनो                                     (D) पोनो

उत्तर-नोनो।

10. सन् 1960 में लाहुल-स्पीति को किस राज्य का एक जिला बना दिया गया ?

(A) हरियाणा                                 (B) कश्मीर

(C) पंजाब                                    (D) हिमाचल

उत्तर-पंजाब।

11. लाहुल-स्पीति को हिमाचल प्रदेश का जिला कव बनाया गया ?

(A)1961                                     (B) 1964

(C) 1966                                    (D) 1968.

उत्तर-19661

12.लाहल-स्पीति के चारों ओर पहाड़ों की ऊंचाई है

(A) 15000 फीट                            (B) 16000 फीट

(C) 17000 फ़ीट                            (D) 18000 फ़ीट

उत्तर-18000 फीट।

13. स्पीति नदी किस नदी में मिल जाती है ?

(A) रावी                                      (B) सतलुज                        

(C) झेलम                                    (D) व्यास

उत्तर-सतलुज।

14. यह क्षेत्र वर्ष में कितने महीने मुख्य भूमि से कटा रहता है ?

(A) 6-7                                     (B)7-8

(C) 8-9                                     (D)9-10.

उत्तर-8-9 महीने।

15. लाहुल में कितनी ऋतुएं होती हैं ?

(A) दो                                        (B) तीन

(C) चार                                      (D) पाँच

उत्तर-दो।

16. स्पीति में वर्षा कब होती है ?

(A) सदा                                      (B) कभी-कभी

(C) कभी नहीं                                 (D) बहुत कम

उत्तर कभी-कभी।

17. स्पीति में कौन-सा फल उगता है ?

(A) आम                                     (B) पपीता

(C) सेब                                       (D) कोई नहीं

उत्तर-कोई नहीं।

18, स्पीति में साल में कितनी फ़सलें होती हैं ?

(A) एक                                      (B) दो

(C) तीन                                      (D) कोई नहीं

उत्तर - एक।

19, कालिदास की वर्षा की शोभा कहाँ है ?

(A) विदर्भ में                                 (B) कैलाश में

(C) विंध्याचल में                             (D) अरुणाचल में

उत्तर-विंध्याचल में।

20. मध्य हिमालय किसकी पहुँच से परे है ?

(A) मानव                                    (B) मानसून

(C) जनशून्य                                 (D) असीम से

उत्तर-मानसून।

21. 'ओ मणि पोहं किनका मंत्र है ?

(A) जैनियों का                               (B) बौद्धों का

(C) वैष्णवों का                               (D) शैवों का

उत्तर-बौद्धों का।

22. संसार और दूसरा क्या अतयं है ?

(A) निर्माण                                   (B) निर्वाचन

(C) निर्यात                                   (D) निर्वाण

उत्तर-निर्वाण।

23. लेखक के अनुसार ऊँचाइयों से होड़ लगाना क्या है ?

(A) जीवन                                    (B) उत्साह

(C) अंधविश्वास                                (D) मृत्यु

उत्तर- मृत्यु।

24. कालिदास ने वर्षा का वर्णन किस रचना में किया था ?

(A) ऋतु प्रसंग                                (B) ऋतु प्रहार

(C) ऋतु संहार                                (D) ऋतु संदेश

उत्तर-ऋतुसंहार।

25. लाहुल-स्पीति में सुखद संयोग किसे माना गया है ?

(A) शीत को                                  (B) वसंत को

(C) वर्षा को                                  (D) गर्मी को

उत्तर-वर्षा को।

 

छोटे मन में सपने बड़े होते हैं।
पूरे करने के इरादे कड़े होते हैं। ।

  

kumar mahesh 
25-05-2021




कक्षा-11 आरोह (गद्य भाग),स्पीति में बारिश- यात्रा-वृत्तांत (कृष्णनाथ)
spiti me baarish yatra vritaant-krishndaas

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कुमार MAHESH

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