baat sidhi thi par |
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→ बात सीधी थी पर
-:कुंवर नारायण:- प्रतिपादय-यह कविता ‘कोई
दूसरा नहीं’
कविता-संग्रह से संकलित है।
इसमें कथ्य के द्वंद्व उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की गई है। हर बात के लिए
कुछ खास शब्द नियत होते हैं, ठीक वैसे
ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। अब तक जिन शब्दों को हम
एक-दूसरे के पर्याय के रूप में जानते रहे हैं, उन सबके भी अपने अर्थ होते हैं। अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना
सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या
अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होती, वह
सहूलियत के साथ हो जाता है। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना
प्रभावशाली बनती है।
सार-कवि का मानना है कि बात और भाषा स्वाभाविक रूप से जुड़े होते
हैं। किंतु कभी-कभी भाषा के मोह में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। मनुष्य अपनी
भाषा को टेढ़ी तब बना देता है जब वह आडंबरपूर्ण तथा चमत्कारपूर्ण शब्दों के माध्यम
से कथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। अंतत: शब्दों के चक्कर में पड़कर वे
कथ्य अपना अर्थ खो बैठते हैं। अत: अपनी बात सहज एवं व्यावहारिक भाषा में कहना
चाहिए ताकि आम लोग कथ्य को भलीभाँति समझ सकें। 1. बात सीधी थी पर एक बार भाषा के चक्कर में जरा टेढ़ी हँस गई। उसे पाने की कोशिश में भाषा को उलटा-पलटा तोड़ा मरोड़ा। घुमाया फिराया कि बात या तो बने। या फिर भाषा से बाहर आए लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ बात और भी पेचीदा होती चली गई। कठिन-शब्दार्थ-बात = कथ्य, संदेश।
सीधी = सरल। चक्कर = उलझन, इच्छा। टेढ़ी फंस गई = उलझ गई, अस्पष्ट
होती गई। . उसे पाने = बात को स्पष्ट करने। उलट-पलटी = बदला। तोड़ा-मरोड़ा = नए-नए
ढंग से कहना चाहा। घुमाया-फिराया = बदल-बदल कर देखा। बने = स्पष्ट हो जाय। बाहर आए
= भाषा की क्लिष्टता से मुक्त हो जाए। पेचीदा = पेंच के समान घुमावदार, अस्पष्ट। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक
में संकलित कवि कुंवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से
लिया गया है। कवि इस अंश में उन रचनाकारों पर मधुर व्यंग्य कर रहा है, जो
अपनी कविता को प्रभावशाली बनाने के लिए क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया करते हैं। व्याख्या-कवि कहता है कि वह जो बात पाठकों तक पहुँचाना
चाहता था वह बिल्कुल सीधी और सरल थी परन्तु वह उसे प्रभावपूर्ण भाषा में व्यक्त
करना चाहता था। भाषा को आकर्षक बनाने पर अधिक ध्यान देने के कारण कथ्य की सरलता ही
नष्ट हो गई। वह अस्पष्ट होती चली गई। कवि ने बात की सरलता को नष्ट होने से बचाने
के लिए भाषा में संशोधन किया, शब्दों को बदला और वाक्य रचना में
फेर-बदल किया। उसने प्रयास किया कि बात की सरलता बनी रहे तथा भाषा की क्लिष्टता और
दिखावटी स्वरूप से छुटकारा मिले परन्तु इससे बात व भाषा और अधिक उलझती चली गई। विशेष- (i) कवि
का कहना है कि भाषा की सजावट पर अधिक बल देने से कथ्य (भाव या विचार) का संदेश और
सहजता अस्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार,
काव्य-रचना का मूल उद्देश्य
ही समाप्त हो जाता है। (ii) सहज
सरल भाषा के प्रयोग द्वारा भी कथन के भावों और विचारों को प्रभावशाली ढंग से
प्रकाशित किया जा सकता है। इसके लिए प्रतिभा की आवश्यकता होती है, कारीगरी
की नहीं (iii) कवि
ने आम भाषा का प्रयोग करते हुए भी एक गहरा संदेश सफलता से प्रस्तुत किया है। (iv) भाषा
के चक्कर में’, ‘टेढ़ी हँसना’
तथा ‘पेचीदा
होना’ आदि मुहावरों के प्रयोग से कवि ने कथ्य को
प्रभावशाली बनाया है। (v) ‘उलट-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ में
अनुप्रास, ‘साथ-साथ’
में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
है। 2. सारी मुश्किल को धैर्य से
समझे बिना। मैं पेंच को खोलने के बजाये उसे बेतरह कसता चला जा रहा था क्योंकि इसे करतब पर मुझे साफ़ सुनाई दे रही थी तमाशबीनों की शाबासी और वाह
वाह।। आखिरकार वही हुआ जिसको मुझे डर
था जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई। और वह भाषा में बेकार घूमने
लगी!
कठिन-शब्दार्थ-मुश्किल = कठिनाई, मूल
समस्या। खोलने के बजाय = स्पष्ट बनाने के बजाय। बेतरह = बिना सोचे-समझे, गलत
ढंग से। कसता = और अस्पष्ट बनाता। करतब = दिखावट,
तमाशा। तमाशबीन = तमाशा
देखने वाले लोग। शाबासी = प्रोत्साहन। वाह-वाह = प्रशंसा। आखिरकार = अंत में।
जोर-जबरदस्ती से = भाषा की अनावश्यक सजावट,
क्लिष्टता। चूड़ी = पेंच के
चक्कर, बात का मूल प्रभाव। मर गई = बेकार हो गई, बात
प्रभावहीन हो गई। बेकार घूमने लगी = भाषा से पीछे रह गई, बेअसर
हो गई। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक
में संकलित कवि कुंवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से
लिया गया है। इस अंश में कवि क्लिस्ट शब्दों की कविता में अनुपयोगिता बता रहा है- व्याख्या-कवि कहता है कि उसने सीधी-सादी बात को व्यक्त
करने के लिए आकर्षक और कठिन भाषा का प्रयोग करने की भूल की। इससे कविता में निहित
भाव अस्पष्ट हो गया। कवि ने इस कठिन समस्या पर धैर्यपूर्वक सोच-विचार नहीं किया।
बजाय इसके कि वह’बात’
पर भाषा के कसाब को ढीला
करता, उसे सरल बनाता;
वह उसे और अधिक कसता जा रहा
था। कवि के इस प्रयास पर तमाशा देखने वाले लोग उसकी प्रशंसा और वाह-वाही कर रहे
थे। इस शाबाशी से भ्रमित होकर कवि भाषा के पेंच को और कसता जा रहा था। परिणाम यह
हुआ कि कथन उसी प्रकार निष्प्रभावी हो गया जिस प्रकार पेंच को जबरदस्ती कसने पर
उसकी चूड़ी मर जाती है और वह कसने के स्थान पर बेकार ही घूमने लगता है।। विशेष- (i) कुछ
लोगों को यह भ्रम रहता है कि बात को यदि पाण्डित्यपूर्ण, क्लिष्ट
भाषा में कहा जाएगा, तो वह श्रोताओं को बहुत प्रभावित करेगी। ऐसे
रचनाकार अपना संदेश पाठकों और श्रोताओं तक पहुँचाने में विफल रहते हैं। (ii) कवि
की कवियों को सलाह है कि उन्हें उन लोगों की प्रशंसाओं पर ध्यान न देना चाहिए, जो
चमत्कार प्रदर्शन और शब्दों के आडम्बर को ही श्रेष्ठ काव्य मानते हैं। (iii) कविता
की काया (भाषा) को सजाने के चक्कर में कवि अपनी रचना को दुरूह और अप्रभावी बना
डालता है, यह संदेश भी कुंवर नारायण देना चाहते हैं। (iv) कवि
सरल शब्दों से मनचाहा अर्थ प्रकाशित कराने में कुशल है। भाषा मिश्रित शब्दावली
युक्त है। (v) काव्यांश
की कथन-शैली लाक्षणिक है। (vi)‘बात
की चूड़ी’ में रूपक तथा साफ सुनाई, जोर
जबरदस्त में अनुप्रास और पेंच को कसने की प्रक्रिया के माध्यम से कथ्य को प्रस्तुत
करने से, पूरे काव्यांश में सांगरूपक अलंकार है। 3. हार कर मैंने उसे कील की तरह उसी जगह ठोंक दिया। ऊपर से ठीक-ठाक पर अन्दर से न तो उसमें कसाव था न ताकत! बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी, मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा” क्या तुमने भाषा को। सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा
?” कठिन-शब्दार्थ-हार कर = कोई अन्य उपाय न होने पर। कील की
तरह = बेढंगे रूप में, बलपूर्वक। ठोंक दिया = क्लिष्ट भाषा में
ही प्रकाशित कर दिया। ऊपर से = देखने-सुनने में,
बाहरी रूप में। ठीक-ठाक =
सही लगना। कसाब = मजबूत पकड़। ताकत = प्रभावशीलता। शरारती = चंचल, तंग
करने वाला। खेलना = मजाक बनाना, हँसी उड़ाना। पसीना पोंछना = घबराना, निराश
हो जाना। सहूलियत से = सुविधापूर्वक,
सरल भाव से। बरतना = काम में
लेना। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक
में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से
लिया गया है। इस अंश में कवि कहना चाहता है कि भाव को जोर-जबरदस्ती से कठिन भाषा
में ठोंक देने से वह प्रभावहीन हो जाता है। सरल भाषा में भी मार्मिक भाव प्रकाशित
किए जा सकते हैं। व्याख्या-कवि कहता है कि जब वह चमत्कारपूर्ण भाषा का
प्रयोग करके भी अपने सरल मनोभावों को व्यक्त नहीं कर पाया तो निराश होकर उसने
भावों को उसी क्लिष्ट भाषा में बलपूर्वक भर दिया। उसका यह कार्य ऐसा ही था जैसे कि
कोई पेंच की चूड़ी मर जाने पर उसे कील की तरह हथौड़े से ठोंक दे। इससे वह पेंच ऊपर
से तो ठीक लगता है परन्तु अन्दर से उसकी पकड़ में मजबूती तथा कसाव नहीं होता। ठीक
इसी प्रकार क्लिष्ट भावहीन भाषा में व्यक्त मनोभावों में सौन्दर्य, आकर्षण
तथा पाठक को प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती। अपनी असफलता पर कवि निराश था और
बेचैन होकर बार-बार पसीना पोंछ रहा था। यह देखकर उसके मन के भाव किसी शरारती बच्चे
की तरह उसे छेड़ने लगे। उन्होंने कवि से पूछा कि क्या वह अभी तक सरल भावों की
व्यंजना के लिए सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग नहीं सीख पाया है? सरल
भाषा अभी तक के प्रयोग से भी श्रेष्ठतम भाव व्यक्त किए जा सकते हैं।। विशेष- (i) कवि
क्लिष्ट तथा पांडित्यपूर्ण चमत्कारी भाषा में सरल भावों को व्यक्त करने में सफल न
हो सका। उसके सभी प्रयास बेकार गए और वह सही भाषा का प्रयोग करने में असफल रहा। वह
अपने प्रयासों से हार मान गया। (ii) चमत्कारपूर्ण
भाषा में, प्रयुक्त स्वाभाविक भाव लोगों के मन को
प्रभावित नहीं करते। उनमें पाठकों को अन्दर तक प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती।
उसमें काव्य-सौन्दर्य का भी अभाव होता है। (iii) भाषा
भावानुकूल होनी चाहिए। उसके स्थान पर अपने पांडित्य को प्रदर्शित करने के लोभ में
क्लिष्ट, चमत्कारपूर्ण,
दुरूह तथा बनावटी शब्दों का
प्रयोग करना उचित नहीं है। बनावट से मुक्त स्वाभाविक भाषा का भावों के अनुरूप
प्रयोग करना ही भाषा को सहूलियत से बरतना है। (iv) कवि
कुंवर नारायण बात को सरल भाषा में व्यक्त करने की कला जानते हैं। (v) काव्य
की भाषा में उर्दू शब्दों का मुक्त भाव से प्रयोग हुआ है। (vi) काव्यांश
में “कील
की तरह ……………. ठोंक दिया”
तथा “बात
ने ……………. खेल रही थी”
में उपमा अलंकार तथा
मानवीकरण अलंकार भी है। महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर Q 1.‘बात सी थी पर’ कविता द्वारा
कवि क्या कहना चाहता है? Q 2. सीधी बात टेढ़ी क्यों हँस गई? उत्तर: भाषा को अत्यधिक प्रभावशाली बनाने के
चक्कर में भाषा टेढ़ी फंस गई। Q 3.टेढ़ी हँस जाने का आशय क्या है? उत्तर:टेढ़ी हँस जाने का आशय है बात को
क्लिष्ट या आडम्बरपूर्ण भाषा द्वारा व्यक्त करना कवि को कठिन हो गया। Q 4.बात को पाने के लिए कवि ने क्या-क्या
प्रयत्न किए? उत्तर:कवि ने भाषा में संशोधन, आकर्षण
वृद्धि और फेर-बदल किया। Q 5.भाषा को तोड़ने-मरोड़ने और फेर-बदल
करने का क्या परिणाम हुआ? उत्तर:परिणाम यह हुआ कि कविता का मूल भाव और
अधिक अस्पष्ट होता चला गया। Q 6.पेंच कसते जाने का क्या आशय है? उत्तर:पेंच कसने का आशय है भाषा को और अधिक
कठिन और आकर्षक बनाने का प्रयत्न करना। Q 7.कवि पर तमाशबीनों की वाह-वाही का क्या
प्रभाव पड़ रहा था? उत्तर:कवि वाह-वाह करने वालों से प्रभावित
होकर भाषा को और अधिक आडम्बरपूर्ण बनाए जा रहा था। Q 8.‘करतब’
शब्द से कवि का अभिप्राय
क्या है? उत्तर:‘करतब’
शब्द द्वारा कवि अपनी
मूर्खता पर व्यंग्य कर रहा है। वह समझ रहा था कि वह बिल्कुल सही दिशा में प्रयत्न
कर रहा था। Q 9.‘तमाशबीनों’
से कवि ने किनकी ओर संकेत
किया है? उत्तर:कवि ने इस शब्द द्वारा उन लोगों पर
व्यंग्य किया है, जो कविता के कथ्य पर मर्म की अपेक्षा भाषा की
सजावट को अधिक महत्व देते हैं। Q 10.कवि को किस बात का डर था? उत्तर:कवि डर रहा था कि भाषा को प्रभावी बनाने
के चक्कर में कहीं उसकी बात’ प्रभावहीन न हो जाय। Q 11.‘चूड़ी मर जाने का आशय क्या है? उत्तर:आशय है कि जैसे चूड़ी बेकार हो जाने पर
पेंच का कसाब और मजबूती जाती रहती है,
उसी प्रकार भाषा पर बल देने
से कविता का संदेश प्रभावहीन हो जाता है। Q 12.कवि ने हार मानकर क्या किया? उत्तर:कवि ने पेंच को लकड़ी में कील की तरह
ठोंक दिया। Q 13.कील की तरह ठोंकने का आशय क्या है? उत्तर: भाव को जबरदस्ती कठिन भाषा द्वारा
व्यक्त किए जाने की चेष्टा करना। Q 14. पेंच को कील की तरह ठोंकने का क्या
परिणाम हुआ? उत्तर:कील की तरह ठोंकने से पेंच ऊपर से तो
ठीक-ठाक लगने लगा, लेकिन भीतर उसका कसाव और ताकत दोनों नष्ट हो
गईं। Q 15. कवि के हृदय के भावों ने उस पर क्या
व्यंग्य किया? उत्तर: भावों ने व्यंग्यपूर्वक कहा कि उसे ‘बात’ को
सहज-सरल भाषा में व्यक्त कर पाने की तमीज इतनी काव्य-रचना करने पर भी नहीं आई थी। Q 16.बात किस कारण टेढ़ी फैंस गई ? उत्तर:कवि ने सरल बाते को कहने के लिए दुरूह
तथा चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग किया। वह क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करके स्वयं को
श्रेष्ठ और विद्वान् कवि प्रदर्शित करना चाहता था। भाव सरल था किन्तु भाषा उसके
अनुरूप सरल नहीं थी। इस कारण भाव की सरलता तथा स्वाभाविकता नष्ट हो गई और कविता का
मर्म पाठकों की समझ से परे हो गया। Q 17.उसे पाने की कोशिश में भाषा को
उलटा-पलटा’। कवि क्या पाना चाहता था? भाषा
के उलटने-पलटने से कवि का क्या अभिप्राय है ? उत्तर:कवि अपनी सीधी बात को प्रकट करना चाहता
था। जटिले भाषा का प्रयोग करने के कारण कवि भावों को सफलतापूर्वक व्यंजित नहीं कर
पा रहा था। इसके लिए उसने भाषा में प्रयुक्त शब्दों को बदला तथा वाक्य-रचना में भी
परिवर्तन किया। उसकी सोच थी कि भाषा में हेर-फेर करने से व्यंजना की सरलता प्राप्त
हो सकेगी परन्तु कवि का विचार सही नहीं था। Q 18.बात को पाने की कवि की कोशिश का क्या
परिणाम हुआ ? अथवा ‘बात या तो बने’ से
कवि का आशय क्या है ? उत्तर:कवि ने बात की सरलता तथा स्वाभाविकता को
बनाए रखने का प्रयत्न किया। इसके लिए उसने भाषा के शब्दों तथा वाक्यों में
परिवर्तन किया। वह चाहता था कि ‘या तो बात बने या फिर भाषा से बाहर आए’।
किन्तु कवि का प्रयास सफल नहीं हो सका। भाषा की जटिलता और अधिक बढ़ गई तथा उसकी
कविता पाठकों की समझ से बाहर हो गई। Q 19.‘बात और भी पेचीदा होती चली गई–से
कवि का तात्पर्य क्या है? उत्तर:कवि कविता में सरल मनोभावों को व्यक्त
करना चाहता था किन्तु अस्वाभाविक क्लिष्ट भाषा के कारण उसे सफलता नहीं मिल रही थी।
वह भाषा को संशोधित करता तो वह और अधिक दुरूह हो जाती थी। इसके साथ ही उसका कथ्य
(बात) भी अस्पष्ट और प्रभावहीन हो जाता था। Q 20.‘सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना’- के
अनुसार वह क्या मुश्किल थी जिसे कवि ने समझने का धैर्य नहीं दिखाया। उत्तर:कवि सरल बात को प्रकट कर रहा था, जो
भाषी के बनावटीपन तथा दुरूहता के कारण संभव नहीं हो रहा है। मुश्किल भाषा के बात
के अनुरूप सरल न होने की थी। कवि ने धैर्यपूर्वक इस पर विचार नहीं किया। वह
चमत्कारपूर्ण भाषा पर ही जोर देता रहा। Q 21.पेंच को खोलने तथा कसने का क्या
तात्पर्य है ? उत्तर:पेंच के उदाहरण द्वारा कवि ने कथ्य
(बात) और भाषा के परस्पर सम्बन्ध पर प्रकाश डाला है। अच्छी कविता के लिए आवश्यक है
कि सही बात के लिए सही शब्दों का चुनाव किया जाए। बात को जब बलपूर्वक अनुपयुक्त
भाषा द्वारा कहने की कोशिश की जाती है तो बात बिगड़ जाती है। पेंच को कसने और ढीला
करने का आशय है बात पर भाषा को बलपूर्वक थोपना। Q 22.कवि की जोर भाषा को चमत्कारपूर्ण तथा
दुरूह बनाने पर क्यों था ? अथवा ‘तमाशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह’ का
क्या परिणाम हुआ? उत्तर:कवि ने भाषा को दुरूह तथा चमत्कारपूर्ण
बनाया। इसका कारण यह था कि उसके पाठक तथा श्रोता उसे ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित
कर रहे थे। श्रोता उसको शाबाशी देते थे तथा वाह-वाह करते थे। उनके द्वारा
प्रोत्साहन पाकर कवि बार-बार पांडित्य-प्रदर्शन के लिए प्रेरित होता था तथा भाषा
को क्लिष्ट बनाता जाता था जिससे बात का मर्म प्रकट न हो सका। Q 23.‘करतब’
शब्द का क्या अर्थ है? ‘करतब’ शब्द
को प्रयोग करने का क्या कारण है? उत्तर:करतब’
शब्द का प्रयोग कवि ने सरल
बात को क्लिष्ट तथा दिखावटी भाषा में प्रकट करने के अपने प्रयास के लिए किया है। ‘करतब’ शब्द
में अपने इस चमत्कार प्रदर्शन के प्रयास पर तीखा व्यंग्य किया गया है। Q 24.कवि का कौन-सा डर सच प्रमाणित हुआ ? उत्तर:कवि को डर लग रहा था कि उसकी कविता
लोगों की समझ से बाहर न हो जाय। भाव स्पष्ट न होने से लोग उसे समझ न सकेंगे और उसे
पढ़ना ही छोड़ देंगे। अन्त में कवि का यह डर सत्य सिद्ध हुआ। भाषा को चमत्कारपूर्ण
बनाने के चक्कर में कथन की सरलता ही नष्ट हो गई और भावों की सही व्यंजना नहीं हो
सकी। Q 25.‘बात की चूड़ी मर गई’ में
कवि ने क्या व्यंजित किया है? उत्तर:‘बात की चूड़ी मर गई’ में
कवि के कथनं के प्रभावहीन होने की व्यंजना है। बात की तुलना पेंच से की गयी है।
बात को अस्वाभाविक भाषा में व्यक्त करने के प्रयास में वह प्रभावशून्य हो गई और
कवि का कथन पाठकों की समझ से बाहर हो गया। Q 26.‘बात के भाषा में बेकार घूमने’ से
कवि का क्या आशय है? उत्तर:आशय यह है कि क्लिष्ट तथा बनावटी भाषा
में व्यक्त होने के कारण कविता प्रभावहीन हो गई। श्रोता तथा पाठक उसे समझ नहीं
सके। कवि का प्रयास भी असफल हो गया। दुरूह भाषा में भावाभिव्यक्ति असंभव हो गई। Q 27.‘बात को कील की तरह ठोंकना’ से
कवि का क्या अभिप्राय है ? इससे कथ्य पर क्या प्रभाव पड़ा? उत्तर:‘बात को कील की तरह ठोंकना’ से
कवि का अभिप्राय अपनी बात को अनुपयुक्त भाषा में बलपूर्वक व्यक्त करने से है। पेंच
को लकड़ी में हथौड़े से कील की तरह ठोंकने से उसकी पकड़ में कसावट नहीं आती। कवि
ने भावों को अनुपयुक्त क्लिष्ट भाषा में प्रकट करने की जोर-जबरदस्ती की तो कविता
का मर्म ही नष्ट हो गया। कविता में प्रकट भाव पाठकों की समझ से बाहर हो गए। Q 28.बाहर से कसाब तथा ताकत किसमें नहीं
थी तथा क्यों? उत्तर:सरल बात दिखावटी भाषा में बलपूर्वक
व्यक्त की गई थी। उससे कवि का कथन मर्मस्पर्शी तथा प्रभावशाली नहीं बन पड़ा था।
लकड़ी में हथौड़े से कील की तरह बलपूर्वक ठोंके गए पेंच की तरह कवि का कथन भी
मनोभावों की प्रकट करने में समर्थ नहीं था। Q 29.अपनी असफलता पर कवि की क्या दशा हुई ? उत्तर:कवि के समस्त प्रयास निरर्थक सिद्ध हुए।
वह वांछित भावों को अपनी कविता में प्रकट न कर सका। भाषा की क्लिष्टता ने
भावाभिव्यक्ति को भी दुरूह बना दिया। इससे वह निराश हो उठा। उसके माथे पर पसीने की
बूंदें प्रकट हो उठीं। वह परेशान होकर बार-बार पसीना पोंछने लगा। Q 30.‘क्या तुमने भाषा को सहूलियत से बरतना कभी
नहीं सीखा’-इस कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए। उत्तर:इस कथन द्वारा कवि उन साहित्यकारों पर
व्यंग्य कर रहा है जो सीधी-सच्ची बात को कहने के लिए चमत्कारपूर्ण भाषा का सहारा
लेते हैं तथा अपने इस प्रयास द्वारा भावों के सौन्दर्य को क्षति पहुँचाते हैं। कवि
कहना चाहता है कि अच्छी कविता का गुण सरलता ही होता है। अतः भाषा के चक्कर में उसे
हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। Q 31.‘बात सीधी थी पर’ का
प्रतिपाद्य/कथ्य/उद्देश्य क्या है ? उत्तर:कविता में भावों के अनुरूप सरल भाषा का
प्रयोग ही उचित होता है। यह बताना ही कविता का प्रतिपाद्य है। कवि का संदेश है कि
सरल भावों तथा विचारों को व्यक्त करने के लिए सरल भाषा ही उपयुक्त होती है। लोगों
की प्रशंसा पाने के लालच में तथा पांडित्य-प्रदर्शन के इरादे से भाषा को दुरूह
बनाना ठीक नहीं है। ऐसा करने से कथन का प्रभाव नष्ट हो जाता है तथा पाठक और श्रोता
को काव्य के रस का स्वाद नहीं मिलता। Q 32.कवि ने बात को महत्व न देकर भाषा को
महत्व दिया। ऐसा उसने क्यों किया होगा?
अनुमान के आधार पर बताइए। उत्तर:कवि को लगा होगा कि भाषा को
चमत्कारपूर्ण बनाने से उसकी कविता की अधिक प्रशंसा होगी। पाठकों की वाहवाही पाने
के चक्कर में उसने भावों को बलात् भाषा में बिठाने की कोशिश की। कवि ने इस बात का
संकेत भी “इस…..
शाबाशी और वाह-वाह।” पंक्तियों
में स्वयं किया है। अतः यहाँ किसी प्रकार के अनुमान की आवश्यकता ही नहीं है। Q 33.“बात सीधी थी पर……………..
पेचीदा होती चली गई।” इस काव्यांश में कवि ने
बात के पेचीदा हो जाने का क्या कारण बताया है? स्पष्ट कीजिए। Q 34.“बात सीधी थी पर” नामक
कविता में कवि को पसीना क्यों आ गया? स्पष्ट कीजिए।
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