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हमारी तृष्णाओं से, संकट का
जनम होता है I
खुद को खुदा माने तो, अज़ब
सितम होता है I
हमारी हर खता पर ,वो आवाज़ तो देता है I
कौन है?जो देखता होगा,हमको
भरम होता है I
गुनाह के दल दल में, आयाम बहुत
बनाते है I
जमीर मारकर भी ,कब-कोई बेशरम होता
है I
कामयाबी के जूनून में,रब से
नाता तोड़ देते है I
किसी का चमन उजड़े, हमें कब गम
होता है?
जब जान पर बन आती है, तो वो
याद आता है I
सब कुछ पाने का सफ़र,एकपल में ख़त्म
होता है I
हवा हो जाती बुलंदी ,अंदाज़ भी
बदल जाते है I
बेसबब कुछ नहीं होता,सब उसका
करम होता है I
गर मन से उसे पुकारें ,यक़ीनन माफ़ कर देगा I
नेमत ही बख्शेगा ,दिल उसका नरम होता है I
कुमार महेश (24-03-2020)
(व्यथित मन का सृजन)
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